नयी दिल्ली, 24 फरवरी (भाषा) भारत सरकार ने पिछली तारीख से कराधान मामले का निपटान करते हुए ब्रिटेन की केयर्न एनर्जी को 7,900 करोड़ रुपये लौटा दिये हैं।
पूर्व में कैप्रिकॉर्न एनर्जी के नाम से जानी जाने वाली केयर्न ने एक बयान में कहा कि उसे शुद्ध रूप से 1.06 अरब डॉलर प्राप्त हुए हैं। इसमें से करीब 70 प्रतिशत शेयरधारकों को लौटाये जाएंगे।
उल्लेखनीय है कि कर विभाग ने 2012 के कानून का उपयोग कर केयर्न से 10,247 करोड़ रुपये की मांग की थी। इस कानून से विभाग को 50 साल पुराने मामले को खोलने और कारोबारी संपत्ति भारत में रहने पर विदेशों में मालिकाना हक बदलने को लेकर पूंजीगत लाभ कर लगाने का अधिकार मिल गया था।
केयर्न ने शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने से पहले 2006-07 में भारतीय कारोबार का पुनर्गठन किया था। इसमें राजस्थान तेल फील्ड शामिल था। कंपनी ने भारतीय इकाई में अपनी बहुलांश हिस्सेदारी 2011 में वेदांता को बेच दी। इसपर कंपनी को पुनर्गठन से कथित पूंजीगत लाभ को लेकर 2014 में कर मांग का नोटिस दिया गया।
ब्रिटेन की कंपनी ने इसको लेकर आपत्ति जताई थी और कहा कि पुनर्गठन से जुड़े सभी करों का भुगतान कर दिया गया तथा उसे सभी सांविधिक प्राधिकरणों की मंजूरी भी मिल गयी।
लेकिन कर विभाग ने 2014 में कर मांग के निपटान को लेकर केयर्न के भारतीय इकाई में बचे शेयर को जब्त कर उसे बेच दिया। साथ ही कर वापसी को रोक लिया और लाभांश को जब्त कर लिया। यह राशि कुल 7,900 करोड़ रुपये थी।
केयर्न शुल्क वसूले जाने और जबरन कार्यवाही मामले को अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण में ले गयी। न्यायाधिकरण ने 22 दिसंबर, 2020 को कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया और भारत से वसूले गये कर को ब्याज तथा जुर्माने सहित लौटाने को कहा।
सरकार ने शुरू में आदेश मानने से इनकार किया लेकिन बाद में वह पिछली तिथि से कराधान मांग से जुड़े सभी मामलों को रद्द करने और वसूली गयी राशि बिना ब्याज या जुर्माने के लौटाने को लेकर अगस्त, 2021 में कानून लेकर आई।
कैप्रिकॉर्न एनर्जी के मुख्य कार्यपालक अधिकारी साइमन थॉमसन ने कहा, ‘‘हमारी कंपनी के इतिहास में भारत का एक विशेष स्थान है और हमें बहुत खुशी है कि यह मुद्दा अब समाप्त हो गया है।’’
भाषा
रमण अजय
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