नई दिल्ली: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मंगलवार को यूरोपीय संघ और भारत-प्रशांत देशों की अभी तक की सबसे पहली सभा में यूरोप को याद दिलाया कि गहराते रूस-यूक्रेन संकट की अपेक्षा चीन दुनिया के सामने एक ज़्यादा बड़ा ख़तरा है.
रूस-यूक्रेन के बीच तेज़ी से गहराते संकट के दौरान भारत- प्रशांत क्षेत्र में सहयोग के लिए मंत्रिस्तरीय मंच- की इस सभा में, जो मंगलवार को पेरिस में आयोजित की गई, ईयू के सदस्य देशों और भारत समेत इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के, क़रीब 30 देश ने हिस्सा लिया.
ईयू और अमेरिका मॉस्को पर कड़ी पाबंदिया लगाने की तैयारी कर रहे हैं क्योंकि इससे पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन में विद्रोहियों के क़ब्ज़े वाले लुहैंस्क और डोनेस्क क्षेत्रों को, स्वतंत्र राज्यों के तौर पर मान्यता देने की घोषणा कर दी और उसके बाद उन इलाक़ों में ‘शांति सेनाओं’ को तैनात कर दिया जिससे तनाव में और इज़ाफा हो गया.
‘आपके अपने क्षेत्र में एक गंभीर संकट के बीच, ये पहल उस महत्व को दर्शाती है, जो आप भारत-प्रशांत के साथ यूरोप के संपर्क को देते हैं… भारत-प्रशांत उस बहुध्रुवीयता और पुनर्संतुलन के केंद्र में है जो समसामयिक परिवर्तनों की विशेषता है’, फोरम में अपनी शुरुआती टिप्पणियों में ये कहना था जयशंकर का, जिसकी सह-अध्यक्षता विदेशी मामलों तथा सुरक्षा नीति के लिए ईयू के उच्च प्रतिनिधि जोज़प बोरेल फॉन्टेलेस और यूरोपियन कमीशन के उपाध्यक्ष और फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां वेस ले द्रां कर रहे हैं.
इस साल ईयू की अध्यक्षता फ्रांस के पास है.
यूक्रेनयूक्रेन में उभरते संकट पर कोई स्पष्ट रुख़ इख़्तियार किए बिना जयशंकर ने कहा, ‘बहुत आवश्यक है कि अधिक ताक़त और मज़बूत क्षमताओं से ज़िम्मेदारी और संयम पैदा हों. इसका अर्थ है कि अंतर्राष्ट्रीय क़ानून, क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान सबसे ऊपर है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘इसका मतलब है दबाव से मुक्त अर्थशास्त्र और धमकी या बल प्रयोग से मुक्त राजनीति. इसका मतलब है वैश्विक मानदंडों और प्रथाओं का पालन करना और ग्लोबल कॉमन्स पर दावेदारी पेश करने से बचना’.
चीन का नाम लिए बिना लेकिन ज़ाहिरी तौर पर एशियाई महाशक्ति का उल्लेख करते हुए, विदेश मंत्री ने पेरिस में कहा, ‘आज, हम उस बारे में चुनौतियां देखते हैं, उस स्पष्टता के साथ जो निकटता से मिलती है और मेरा विश्वास कीजिए कि दूरियां कोई बचाव नहीं हैं…भारत-प्रशांत में जो मुद्दे हमारे सामने हैं, वो आगे बढ़कर यूरोप तक जाएंगे’.
समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ करने के ईयू के निर्णय का स्वागत करते हुए जयशंकर ने कहा, ‘हमारे सामूहिक प्रयास महासागरों को शांत, खुला और सुरक्षित रख सकते हैं और साथ ही इसके संसाधनों के संरक्षण और इसे स्वच्छ रखने में भूमिका अदा कर सकते हैं’.
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फ्रांस ने चीनी वर्चस्व पर रोशनी डाली
यूरोपीय देशों और भारत-प्रशांत क्षेत्र के बीच अधिक एकीकरण का अनुरोध करते हुए फ्रांस के विदेश मंत्री ले द्रां ने कहा, ‘भारत-प्रशांत आज एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें ख़ासकर चीन के बढ़ते वर्चस्व के मद्देनज़र भारी चुनौतियां हैं’.
यूरोपीय संघ ने सितंबर 2021 में अपनी ख़ुद की इंडो-पैसिफिक रणनीति जारी की थी जबकि फ्रांस, जर्मनी, और नीदरलैंड्स जैसे देश, उससे पहले, 2020 में अपनी व्यक्तिगत नीतियां ला चुके थे.
बोरेल के अनुसार, इंडो-पैसिफिक क्षेत्र ईयू के लिए एक उच्च प्राथमिकता बना रहेगा. चूंकि इस क्षेत्र में 70 प्रतिशत व्यापार, इंडो-पैसिफिक के समुद्री रास्तों के ज़रिए होता है.
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