नई दिल्ली: दिप्रिंट को मिली जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया गया है कि प्रत्येक कक्षा के उन छात्रों की पहचान करें जिन्होंने बीच में स्कूल छोड़ दिया है (ड्राप आउटस) और अप्रैल तक उनका पता लगाएं.
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने फरवरी के पहले सप्ताह में राज्यों के साथ इस बारे में एक विस्तृत रोड मैप भी साझा किया जिसका उद्देश्य स्कूली छात्रों के बीच कोविड महामारी की वजह से सीखने में हुए नुकसान को कम करना है- इनमें बच्चों के बीच पढ़ने के कौशल (रीडिंग स्किल्स) का एक गहन सर्वेक्षण, सरकारी और निजी स्कूलों को समूहों में एकसाथ जोड़ना और छात्रों को कक्षा में सीखने की ओर वापस आने में मदद करने के लिए योजनाएं भी प्रस्तावित हैं.
पिछले लगभग दो साल से स्कूलों के बंद होने के कारण छात्रों के सीखने-सिखाने (लर्निंग) का भारी नुकसान हुआ है. अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि औसतन 92 प्रतिशत बच्चों ने कम-से-कम एक विशिष्ट भाषा क्षमता (लैंग्वेज एबिलिटी) खो दी है और कक्षा 2 से 6 तक कम-से-कम 82 प्रतिशत ने पिछले वर्ष की तुलना में कोई-न-कोई विशिष्ट गणितीय क्षमता (मैथमेटिकल एबिलिटी) खो दी है.’
शिक्षा मंत्रालय के एक दस्तावेज जिसकी एक कॉपी दिप्रिंट के पास भी है, के अनुसार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शैक्षणिक वर्ष 2022-23 में पूरे करने के लिए समयबद्ध कार्य दिए गए हैं. यह कार्य ड्रॉप-आउट स्टूडेंट्स की पहचान करना और उन्हें स्कूल सिस्टम में वापस लाने के साथ शुरू होता है.
राज्यों से कहा गया है कि वे पहले मार्च से अप्रैल तक बच्चों के बीच एक मौखिक रूप से पाठ को पढ़ने के प्रवाह (ओरल रीडिंग फ्लो – ओआरएफ) के बारे में सर्वे करें ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि वे पढ़ने के कौशल के मामले में किस मुकाम पर खड़े हैं. इस कवायद के संचालन के लिए राज्यों को प्रति राज्य 20 लाख रुपए की वित्तीय सहायता भी दी जाएगी.
शिक्षा मंत्रालय में संयुक्त सचिव मनीष गर्ग द्वारा सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को संबोधित करते हुए भेजे गए इस दस्तावेज में कहा गया है – ‘ग्रेड 3 के स्तर पर बच्चों के लिए ओरल रीडिंग फ्लो के मूल्यांकन करने का यह प्रस्ताव विभिन्न भारतीय भाषाओं में न्यूनतम पठन मानदंड स्थापित करने और उसके अनुसार उनके प्रदर्शन का आकलन करने के लिए है, ताकि इस के लिए सुधारात्मक कदम उठाए जा सकें.
इसी समयावधि – मार्च से अप्रैल – में राज्यों को स्कूल से बाहर के बच्चों (जो कभी स्कूल सिस्टम रहे ही नहीं हैं) के साथ-साथ उन छात्रों की पहचान करनी है जो कोविड की वजह से लगाए गए लॉकडाउन और अन्य कारणों से उससे बाहर हो गए हैं.
अभी तक सरकार ने स्कूल बंद होने की पिछले दो वर्षों की अवधि के दौरान स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या पर कोई डेटा साझा नहीं किया है. इस सारी कवायद से केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को कुछ ठोस आंकड़े मिलने की उम्मीद है.
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निजी स्कूलों, केंद्रीय विद्यालयों और नवोदय विद्यालयों के समुच्चय
ड्रॉप-आउट करने वालों छात्रों की पहचान करने के बाद राज्यों को केंद्र सरकार द्वारा संचालित केंद्रीय विद्यालयों (केवी) या जवाहर नवोदय विद्यालयों (जेएनवी) के साथ निजी स्कूलों के समूह या जोड़े बनाने होंगे ताकि स्कूल एक-दूसरे से सीख सकें और बेहतर शिक्षा प्रदान कर सकें. इसे संभवतः अप्रैल और मई 2022 के बीच किया जाना है.
इसके अलावा, मंत्रालय ने कुछ ऐसे कार्य भी सौंपे हैं जिन्हें पूरे साल करना होगा- सभी स्कूलों से यह अपेक्षा की जाती है कि वो पूरे शिक्षण वर्ष में हर महीने एक पेरेंट्स टीचर मीट आयोजित करें. स्कूलों से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वे छात्रों द्वारा हासिल किए जाने वाले सीखने के परिणामों (लर्निंग आउटकम्स) की साप्ताहिक योजना तैयार करें. इस बीच, स्कूलों से अपेक्षा की जाती है कि वे सरकार और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा डिज़ाइन किए गए विभिन्न इंटरवेंशनल टूल्स (अंतराष्ट्रीय उपकरणों) का उपयोग करके सीखने में आई कमी को दूर करें.’
एनसीईआरटी ने स्कूल से बाहर रह रहे उन बच्चों के लिए एक ब्रिज कोर्स भी तैयार किया है जो प्री-स्कूल (नर्सरी और केजी) से कक्षा 8 तक के वर्ग में हैं ताकि उन्हें औपचारिक विद्यालय प्रणाली में आने में मदद मिल सके.
छात्रों के शिक्षण को वापस पटरी पर लाने में मदद करने के लिए पैकेज
इसके अलावा केंद्र सरकार एक लर्निंग एन्हांसमेंट प्रोग्राम (एलईपी) लेकर आई है जो एक ऐसी योजना है जो छात्रों को कक्षाओं में सामान्य रूप से सीखने की ओर वापस आने में मदद करने के लिए है.
इस योजना के तहत, छात्रों को वर्कशीट / वर्कबुक, आयु के अनुसार उपयुक्त कहानी की किताबें, पूरक शिक्षण सामग्री और व्यक्तिगत शिक्षण हस्तक्षेप (इंडिविजुअल टीचिंग इंटरवेंशन) जैसे सुधारात्मक (सुधार में काम आने वाले) शिक्षण संसाधन दिए जाएंगे. छात्रों को दिए जाने वाले सहायता पैकेज के हिस्से के रूप में एक निश्चित राशि भी प्रदान की जाएगी.
इस दस्तावेज में कहा गया है, ‘राज्य और केंद्रशासित प्रदेश ग्रेड के हिसाब से पाठ्य सामग्री तैयार कर सकते हैं और उन्हें छात्रों तक पहुंचाना सुनिश्चित कर सकते हैं. सभी बच्चों को 2022-23 के शैक्षणिक सत्र की शुरुआत में ही यह पैकेज उपलब्ध करा दिया जाना चाहिए. उच्च प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के सभी छात्रों के लिए प्रति छात्र 500 रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी.’
केंद्र सरकार ने पिछले साल नवंबर में छात्रों के बीच सीखने में आए अंतर (लर्निंग गैप) की पहचान करने के लिए एक राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (नेशनल अचीवमेंट सर्वे – एनएएस) भी किया था. इस सर्वेक्षण के परिणामों का उपयोग भी राज्यों द्वारा छात्रों के लिए किए जाने वाले सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिए किया जाएगा.
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