scorecardresearch
Friday, 20 September, 2024
होमदेशउच्चतम न्यायालय ने हरियाणा में निजी क्षेत्र में आरक्षण पर उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज किया

उच्चतम न्यायालय ने हरियाणा में निजी क्षेत्र में आरक्षण पर उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज किया

Text Size:

नयी दिल्ली, 17 फरवरी (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने हरियाणा के निवासियों को निजी क्षेत्र की नौकरियों में 75 प्रतिशत आरक्षण मुहैया कराने के प्रावधान वाले कानून पर अंतरिम रोक लगाने के हरियाणा एवं पंजाब उच्च न्यायालय के आदेश को बृहस्पतिवार को खारिज कर दिया।

न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा की पीठ ने हरियाणा सरकार को नियोक्ताओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं करने का निर्देश भी दिया।

पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मामले के गुण-दोष से निपटने का इरादा नहीं है और हम उच्च न्यायालय से शीघ्र एवं चार सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का अनुरोध करते हैं। पक्षकारों को स्थगन का अनुरोध नहीं करने और सुनवाई की तारीख तय करने के लिए अदालत के सामने मौजूद रहने का निर्देश दिया जाता है।’’

उसने कहा, ‘‘इस बीच, हरियाणा को नियोक्ताओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया जाता है। उच्च न्यायालय के जिस आदेश को चुनौती दी गई है, उसे खारिज किया जाता है, क्योंकि अदालत ने विधेयक पर रोक लगाने के लिए पर्याप्त कारण नहीं दिए हैं।’’

हरियाणा सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए। उन्होंने सुनवाई की शुरुआत में पीठ को सूचित किया कि आंध्र प्रदेश, झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा में इस प्रकार के कानून पारित किए गए हैं।

पीठ ने मेहता से पहले पूछा था कि क्या संबंधित पक्ष इस बात पर सहमत है कि अधिवास के आधार पर निजी क्षेत्र में आरक्षण संबंधी मामलों पर एक साथ विचार किया जाए। इसी के संबंध में पीठ ने मेहता से पूछा कि उनकी राय क्या है।

पीठ ने कहा, ‘‘क्या आप चाहते हैं कि हम सभी लंबित मामलों को यहां वापस स्थानांतरित करें? क्या हमें फैसला करना चाहिए या रोक पर निर्णय लेना चाहिए और उच्च न्यायालय को मामला वापस भेज देना चाहिए?’’

इस पर सॉलिसिटर जनरल ने सलाह दी कि शीर्ष अदालत को मामले की समीक्षा करनी चाहिए और इस बीच पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी जानी चाहिए।

उन्होंने कहा कि यह आदेश 30,000 से कम वेतन पाने वाले लोगों पर लागू होता है और अधिक वेतन वाली नौकरियों के लिए नहीं है। उन्होंने कहा कि हरियाणा राज्य स्थानीय उम्मीदवार रोजगार अधिनियम, 2020 लोगों के दूसरे राज्यों में बसने को विनियमित करना है। मेहता ने कई आदेशों का जिक्र किया, जिनमें कहा गया था कि कानून जब तक प्रथमदृष्ट्या अवैध नहीं हो, इस पर रोक नहीं लगाई जाए।

पीठ ने कहा, ‘‘हमें केवल रोजगार को लेकर चिंता है, क्योंकि हमारे इस देश में चार करोड़ से अधिक प्रवासी श्रमिक हैं। हमें सबसे पहले आजीविका की चिंता है।’’

‘फरीदाबाद उद्योग संघ’ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने अभिवेदन दिया कि इस कानून के आर्थिक क्षेत्र में दूरगामी परिणाम हैं और मुख्य मुद्दा यह है कि क्या सरकार अधिवास के आधार पर निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू कर सकती है?

दवे ने कहा कि कानून पर रोक लगाते समय दिमाग का इस्तेमाल किया गया और उच्च न्यायालय इस बात से प्रथमदृष्ट्या संतुष्ट था कि यह कानून असंवैधानिक है और इसी कारण इस पर रोक लगाई गई।

उन्होंने कहा कि हरियाणा में 48,000 से अधिक कंपनियां पंजीकृत हैं और कानून लागू होने की तारीख से राज्य के बाहर के किसी व्यक्ति को नियुक्त नहीं कर पाने के कारण उन्हें नुकसान होगा।

इसके बाद पीठ ने हस्तक्षेप किया और कहा, ‘‘हम गुण-दोष पर विचार नहीं कर रहे। हम इस बात पर विचार कर रहे हैं कि उच्च न्यायालय ने तत्काल अंतरिम आदेश कैसे दिया।’’

मानेसर कर्मी संघ की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि इस कानून के कारण मौजूदा कारोबारों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा और उच्च न्यायालय की खंड पीठ ने इस पर अंतरिम रोक लगाकर उचित किया।

पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने निजी क्षेत्र की नौकरियों में राज्य के निवासियों को 75 फीसदी आरक्षण देने संबंधी हरियाणा सरकार के कानून पर तीन फरवरी को अंतरिम रोक लगा दी थी। इस फैसले को हरियाणा सरकार ने उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है।

उच्च न्यायालय ने फरीदाबाद के विभिन्न उद्योग संघों और गुरुग्राम सहित हरियाणा की कई अन्य संस्थाओं की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अंतरिम रोक का आदेश दिया था।

भाषा सिम्मी मनीषा

मनीषा

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments