लाहौर, 11 फरवरी (भाषा) जाने-माने पाकिस्तानी इतिहासकार और शिक्षाविद फकीर सैयद एजाजुद्दीन को आज भी 1983 का वह दिन याद है जब उन्होंने महान गायिका लता मंगेशकर को दोपहर के भोजन के दौरान मसालेदार अचार और तीखी करी का स्वाद लेते देखा था, जो ऐसी चीज है जिससे गायक आमतौर पर परहेज करते हैं।
इतिहासकार ने पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में कहा कि मंगेशकर की आवाज ईश्वर की ओर से एक भेंट थी क्योंकि इसमें दिव्यता की अनुभूति थी और उन्हें सुनना सुकून महसूस करने की तरह था।
एजाजुद्दीन ने कहा, ‘‘लता मंगेशकर एक अलौकिक आवाज थी। उन्होंने इसे भगवान का एक उपहार बताया था। उन्होंने इसे एक वरदान के रूप में माना और इसके साथ मिली जिम्मेदारी के साथ कभी विश्वासघात नहीं किया। उन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि ईश्वर को देख नहीं सकते हैं लेकिन गीत के माध्यम से उसकी दिव्यता को सुन सकते हैं।’’
मंगेशकर का रविवार को निधन हो गया। एजाजुद्दीन समेत गायिका के कई प्रशंसकों ने उनके निधन पर शोक प्रकट किया। एजाजुद्दीन ने जनवरी 1983 में अबू धाबी में एक संगीत कार्यक्रम के दौरान गायिका से मुलाकात को याद किया। एजाजुद्दीन ने कहा, ‘‘उन्होंने दोपहर को रियाज किया और उसी शाम शानदार प्रस्तुति दी। सफेद साड़ी पहने हुए वह मंच के पास पहुंची, उन्होंने अपनी सैंडल उतारी और फिर एक पवित्र ‘श्लोक’ के साथ शुरुआत की… राज कपूर की फिल्म ‘सत्यम, शिवम, सुंदरम’ के शीर्षक गीत में उन्होंने शानदार प्रस्तुति दी।’’
कार्यक्रम के बाद गायिका से एजाजुद्दीन की मुलाकात हुई। उन्होंने कहा, ‘‘हर किसी को लगता होगा कि वह अपने गले को लेकर बहुत सतर्क रहती होंगी। ऐसा नहीं है, दोपहर के भोजन के दौरान, उन्होंने मसालेदार अचार और तीखी करी का आनंद लिया।’’
एजाजुद्दीन ने अपना जीवन भारतीय लघु चित्रकला, सिख कला इतिहास, उपमहाद्वीप की यात्रा करने वाले 19वीं सदी के कलाकारों के काम पर शोध करते हुए बिताया है। इतिहासकार ने कहा कि 1950 के दशक में पाकिस्तानी सिनेमाघरों में भारतीय फिल्में खूब दिखाई जाती थीं।
भाषा आशीष उमा
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