scorecardresearch
Thursday, 21 November, 2024
होमराजनीति2017 में उत्तराखंड में शून्य पर सिमटी बसपा को इस बार अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद क्यों है

2017 में उत्तराखंड में शून्य पर सिमटी बसपा को इस बार अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद क्यों है

बसपा प्रमुख मायावती ने गुरुवार को उत्तराखंड चुनाव के लिए अपनी पहली रैली को संबोधित किया, 14 फरवरी को यहां मतदान होने हैं. पार्टी राज्य की सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ रही है.

Text Size:

देहरादून: 2022 के उत्तराखंड विधानसभा चुनावों में वैसे तो राज्य की दो प्रमुख पार्टियों सत्ताधारी भाजपा और विरोधी दल कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला होने की उम्मीद है. लेकिन बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को ऐसा नहीं लगता है.

पार्टी सुप्रीमो मायावती को पूरी उम्मीद है कि वह राज्य में एक बार फिर अपनी पार्टी को मजबूती से खड़ा कर पाएंगी, भले ही बसपा ज्यादा सीटें जीत न पाए लेकिन अन्य प्रतिद्वंद्वियों को कड़ी टक्कर तो जरूर देगी. राज्य में 14 फरवरी को प्रस्तावित चुनावों के सिलसिले में उन्होंने गुरुवार को अपनी पहली रैली को संबोधित किया.

बसपा अपने गढ़ रहे हरिद्वार-रुड़की और कुमाऊं के तराई क्षेत्र पर पूरा ध्यान केंद्रित कर रही है—जहां पार्टी के मुख्य वोटबैंक दलितों की अच्छी खासी आबादी है—और इस बार उसने अपने पुराने दिग्गज नेताओं को भी मैदान में उतारा है.

राज्य इकाई के नेताओं को भरोसा है कि पार्टी इस बार अच्छा प्रदर्शन करेगी और किंगमेकर बनकर उभरेगी.

वैसे, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा इस बार चुनावों में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की रणनीति अपना रही है, और यद्यपि बसपा कड़ी टक्कर दे सकती है, लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि दलित-मुस्लिम वोट-स्विंग उसके शानदार प्रदर्शन में बदल जाएगा.

चुनावी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य में बसपा का जनाधार लगातार कम होता जा रहा है जबकि यहां दलितों की आबादी करीब 19 फीसदी है—जो बसपा के मजबूत गढ़ माने वाले क्षेत्रों में 22 फीसदी तक है—और आम तौर पर पार्टी के समर्थक माने जाने वाले मुस्लिमों की आबादी 14 फीसदी है. हरिद्वार क्षेत्र में दलित-मुस्लिम वोटशेयर लगभग 55 प्रतिशत है.

लगातार फिसलता वोट शेयर

2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में 2002 में पहले विधानसभा चुनाव में मायावती की पार्टी को 11 फीसदी वोट मिले थे.

2002 से 2012 तक 10 वर्षों में राज्य में बसपा का वोटशेयर इसी आंकड़े पर बरकरार रहा, लेकिन 2017 में यह गिरकर 7.4 प्रतिशत हो गया.

जिस पार्टी को 2002 में सात सीटें हासिल हुई थीं वह 2017 में शून्य पर सिमट गई. 2012 में बसपा का वोटशेयर तो बढ़कर 12.19 प्रतिशत हो गया था, लेकिन उसे केवल तीन सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी. 2007 में उसे आठ सीटें मिली थीं.

Graphic: Ramandeep Kaur | ThePrint

राज्य में 2017 में हुए पिछले चुनाव में मायावती की पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था, तब भाजपा ने 70 सदस्यीय विधानसभा में 57 सीटों पर कब्जा जमाया था. उस समय बसपा ने 69 सीटों पर चुनाव लड़ा था.


यह भी पढ़ें: हरीश रावत के इनकार के बावजूद कांग्रेस नेता के ‘मुस्लिम यूनिवर्सिटी के वादे’ वाले बयान पर विवाद जारी


पुराने दिग्गजों को मैदान में उतारा

इस चुनाव में पार्टी के फिर से उत्थान के लिए बसपा ने अपने पुराने दिग्गजों पर भरोसा जताया है, खासकर हरिद्वार-रुड़की और ऊधमसिंह नगर की 23 सीटों पर, जो तराई क्षेत्र का हिस्सा हैं

उत्तराखंड इकाई के बसपा नेताओं को भरोसा है कि पार्टी राज्य में अपनी खोई जमीन फिर से हासिल कर लेगी, साथ ही कहना है कि 2017 में पुराने दिग्गजों का टिकट ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ के कारण कटा था.

बसपा के राज्य प्रभारी नरेश गौतम ने कहा, ‘हमने लगभग हर उस सीट पर अपने वरिष्ठ नेताओं को उतारा है जहां हम मजबूत स्थिति में रहे थे और पिछले चुनावों में जीतते रहे हैं. उनके पार्टी लाइन के खिलाफ जाने के कारण पिछली बार टिकट नहीं दिया गया था.’

पूर्व विधायक मोहम्मद शहजाद और सरवत करीम अंसारी को क्रमश: लक्सर और मंगलौर से मैदान में उतारा गया है. दोनों ने 2012 में इन सीटों पर जीत हासिल की थी लेकिन 2017 में उनका टिकट कट गया था.

बसपा के पूर्व विधायक और मंत्री सुरेंद्र राकेश, जिनका 2014 में निधन हो गया था, के भाई सुबोध राकेश को भी प्रत्याशी बनाया गया है. सुबोध को उनकी भाभी ममता राकेश के खिलाफ उतारा गया है, जो अपने पति की मृत्यु के बाद कांग्रेस में शामिल हो गई थीं. ममता भगवानपुर से निवर्तमान विधायक हैं. सुबोध ने भी 2016 में भाजपा का दामन थाम लिया था, लेकिन 2021 में वह बसपा में लौट आए.

मायावती ने झाबरेड़ा से पूर्व विधायक हरिदास के बेटे आदित्य ब्रजवाल और रानीपुर से दिग्गज नेता ओमपाल सिंह को टिकट दिया है. हरिदास उन लोगों में शामिल रहे हैं जिनका टिकट 2017 में कथित तौर पर पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण कट गया था.

बसपा के एक अन्य दिग्गज और दो बार के विधायक नारायण पाल सितारगंज निर्वाचन क्षेत्र से फिर मैदान में हैं, जहां मुकाबला त्रिकोणीय है. यहां भाजपा ने अपने मौजूदा विधायक सौरभ बहुगुणा और कांग्रेस ने नवतेज पाल सिंह को मैदान में उतारा है.

बसपा प्रत्याशी करीम अंसारी ने दिप्रिंट को बताया, ‘दो मुख्य राजनीतिक दलों के दावों के विपरीत यह चुनाव त्रिकोणीय लड़ाई के साथ बसपा के फिर उभरने का गवाह बनेगा. हम हरिद्वार-रुड़की क्षेत्र की 11 विधानसभा सीटों और उधमसिंह नगर और नैनीताल जिलों की कम से कम 12 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों को कड़ी टक्कर देने वाले हैं.’

मायावती पर टिका दारोमदार

बसपा की सारी उम्मीदें गुरुवार की मायावती की रैली पर टिकी थीं. पार्टी नेताओं ने कहा कि उनका मानना है कि इससे हरिद्वार में बसपा के उम्मीदवारों की संभावनाएं बढ़ेंगी और साथ ही 23-25 निर्वाचन क्षेत्रों में कांग्रेस और भाजपा के चुनावी समीकरण भी बिगड़ सकते हैं.

बसपा नेताओं की राय के मुताबिक, उनके उम्मीदवार करीब आधा दर्जन विधानसभा सीटों पर फिर से जीत हासिल कर सकते हैं और हरिद्वार और तराई की 17 अन्य सीटों पर कड़ी टक्कर देने की स्थिति में हैं. बसपा ने इस बार सभी 70 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं.

गौतम ने कहा, ‘मायावती आज उत्तराखंड चुनाव के लिए अपनी पहली रैली को संबोधित करेंगी. इससे मुख्य रूप से हरिद्वार-रुड़की और तराई के मैदानी इलाकों में चुनावी समीकरण बदलेंगे. बहनजी के संबोधन से बसपा की संभावनाएं कई गुना बढ़ जाएंगी.’

गौतम ने बताया कि जिन छह विधानसभा क्षेत्रों में बसपा की अधिकतम हिस्सेदारी है, वे हैं भगवानपुर, झाबरेड़ा, मंगलौर, लक्सर, ज्वालापुर और पिरान कलियार. ये सभी सीटें मौजूदा समय में कांग्रेस या भाजपा के पास है.

‘बसपा इसे बना सकती है त्रिकोणीय मुकाबला’

हरिद्वार के कुछ राजनीतिक विश्लेषक इससे सहमत नजर आते हैं कि इस बार चुनाव में बसपा चौंका सकती है. उनके मुताबिक, बसपा ने जिस तरह उम्मीदवारों का चयन किया है, उसने उसकी जीत की संभावना बढ़ा दी है क्योंकि पार्टी की तरफ से मैदान में उतारे गए सभी पूर्व विधायकों की मुस्लिम-दलित गढ़ों में अच्छी पकड़ है.

हरिद्वार के राजनीतिक विश्लेषक भागीरथ शर्मा कहते हैं, ‘हरिद्वार-रुड़की क्षेत्र में लगभग 35 प्रतिशत मुस्लिम और 22 प्रतिशत से अधिक दलित वोट हैं. इससे पहले, जब बसपा ने 2002 में सात और 2007 में आठ सीटें जीती थीं तो तराई बेल्ट की कुछ सीटों को छोड़कर पार्टी का अधिकांश सीटें हरिद्वार से ही मिली थीं. यहां तक कि 2012 में पार्टी को जिन तीन सीटों पर सफलता हासिल हुई थी, वे दलित-मुस्लिम समीकरण में इन नेताओं के दबदबे का ही नतीजा थीं.’ उन्होंने साथ ही जोड़ा कि बसपा कुछ सीटों पर चुनावी जंग में कड़ी टक्कर दे सकती है.

लेकिन एक अन्य राजनीतिक टिप्पणीकार, सुनील पांडे, बसपा नेताओं के चुनावी गणित से पूरी तरह सहमत नहीं हैं. उनका कहना है, ‘यह जरूर है कि इस बार उम्मीदवार काफी मजबूत हैं लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या वे दलित-मुस्लिम मतदाताओं को अपने पक्ष में कर पाएंगे? मायावती की रैली भी इसकी गारंटी नहीं दे सकती. क्योंकि भाजपा हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण की हरसंभव कोशिश कर रही है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढें: इतने सारे पूर्व CMs लेकिन प्रचार से गायब- उत्तराखंड की चुनावी गतिविधियों में सक्रिय क्यों नहीं BJP के पुराने नेता


 

share & View comments