मुंबई, नौ फरवरी (भाषा) कोरेगांव-भीमा जांच आयोग ने महाराष्ट्र के पुणे जिले में एक युद्ध स्मारक पर जनवरी 2018 में हुई हिंसा के संबंध में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार को 23 और 24 फरवरी को पेश होने के लिए कहा है।
आयोग ने पूर्व में 2020 में पवार को तलब किया था, लेकिन कोरोना वायरस के प्रसार के कारण लागू लॉकडाउन के चलते वह पेश नहीं हो सके। न्यायिक आयोग के वकील आशीष सतपुते ने बुधवार को बताया कि आयोग शरद पवार के अलावा 21 फरवरी से 25 फरवरी के बीच तत्कालीन पुलिस अधीक्षक (पुणे ग्रामीण) सुवेज हक, तत्कालीन अतिरिक्त एस पी संदीप पखले और तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त, पुणे, रवींद्र सेनगांवकर के बयान भी दर्ज करेगा।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश जे एन पटेल और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य सचिव सुमित मलिक का दो सदस्यीय जांच आयोग मामले की जांच कर रहा है। पुणे पुलिस के अनुसार एक जनवरी 2018 को कोरेगांव भीमा की 1818 की लड़ाई की वर्षगांठ के दौरान युद्ध स्मारक के पास जाति समूहों के बीच हिंसा भड़क गई थी।
पुणे पुलिस ने आरोप लगाया था कि 31 दिसंबर, 2017 को पुणे में आयोजित ‘एल्गार परिषद सम्मेलन’ में ‘‘भड़काऊ’’ भाषणों के कारण कोरेगांव भीमा के आसपास हिंसा भड़की थी। पुलिस ने आरोप लगाया था कि एल्गार परिषद सम्मेलन के आयोजकों के माओवादियों से संबंध थे।
राकांपा प्रमुख ने आठ अक्टूबर 2018 को आयोग के समक्ष एक हलफनामा दाखिल किया था। फरवरी 2020 में, सामाजिक समूह ‘विवेक विचार मंच’ के सदस्य सागर शिंदे ने आयोग के समक्ष एक आवेदन दायर किया, जिसमें 2018 की जाति हिंसा के बारे में मीडिया में पवार द्वारा दिए गए कुछ बयानों के मद्देनजर उन्हें तलब करने का अनुरोध किया था।
शिंदे ने अपने आवेदन में पवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस का हवाला दिया। शिंदे के आवेदन के अनुसार, संवाददाता सम्मेलन में पवार ने आरोप लगाया कि दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं मिलिंद एकबोटे और संभाजी भिड़े ने कोरेगांव भीमा और इसके आसपास के क्षेत्र में एक ‘‘अलग’’ माहौल बनाया। शिंदे ने अपनी दलील में कहा था, ‘‘उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में पवार ने यह भी आरोप लगाया कि पुणे शहर के पुलिस आयुक्त की भूमिका संदिग्ध है और इसकी जांच होनी चाहिए। ये बयान इस आयोग की जांच के दायरे में हैं और इसलिए, ये प्रासंगिक हैं।’’
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