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Wednesday, 20 November, 2024
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पंजाब चुनाव में ‘आप’ को लेकर सुगबुगाहट फिर तेज लेकिन 2017 का अनुभव इसे जरूर सता रहा होगा

राज्य में बहुकोणीय मुकाबले में जहां करीब एक हजार वोट भी नतीजे का रुख मोड़ सकते हैं, वहां कांग्रेस और अकाली दल की तैयारियां बेहतर नजर आती हैं जबकि संगठनात्मक ढांचे के मामले में आप जमीनी स्तर पर लगभग नदारत है.

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चंडीगढ़: चंडीगढ़ से करीब 220 किलोमीटर पश्चिम में स्थित कोट कपूरा की घुमावदार, सिंगल-लेन सड़कों पर एक टाटा सफारी स्टॉर्म का घूमना अब एक आम नजारा हो गया है. यह गाड़ी हर थोड़ी दूरी पर रुकती है और पगड़ी पहने एक लंबा-चौड़ा आदमी बाहर निकलता है, जिसकी दाढ़ी कुछ ग्रे-ब्लैक है. वह भांगड़ा के कुछ स्टेप करता है और ‘जो बोले सो निहाल’ और ‘वाहे गुरुजी का खालसा, वाहे गुरुजी की फतेह’ का उद्घोष करते हुए आगे बढ़ता है. इसके बाद और गांव के लोग उसके आसपास जमा हो जाते हैं.

ये हैं कोट कपूरा से आम आदमी पार्टी (आप) के विधायक कुलतार सिंह संधावा. यहां के लोगों के साथ उनका ‘कनेक्ट’ साफ नजर आता है, वह बुजुर्गों के पांव छूते हैं, युवाओं को गले लगाते हैं और बच्चों के साथ भी खेलते हैं. कोट कपूरा के हरि नौन गांव में सोमवार को उन्होंने यह कहते हुए ग्रामीणों का ध्यान खींचा किया कि यदि ‘आप’ सत्ता में आई तो कोई भी ‘बेअदबी’ करने के बारे में सोच भी नहीं पाएगा और उन्हें बताया कि कैसे दिल्लीवासियों को सरकारी प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए सिर्फ ‘1076’ नंबर डायल करना पड़ता है. और दूसरी तरफ से अधिकारी कैसे उन्हें ‘सर’ कहते हुए विनम्रता से जवाब देते हैं. उन्होंने कहा, ‘आपको दिल्ली में जन्म या मृत्यु प्रमाणपत्र लेने के लिए पैसे नहीं देने पड़ते.’ फिर वह 2017 में सरकार नहीं बना पाने के लिए आप की तरफ से उनसे माफी मांगते हैं और इस बार ऐसा जरूर करने का वादा करते हैं.

कांग्रेस ओर शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) उम्मीदवारों के विपरीत संधावा प्रचार अभियान के दौरान समर्थकों के साथ कारों का काफिला लेकर नहीं चलते. वह अरविंद केजरीवाल की इस सलाह पर अमल करते हैं कि ‘जितना संभव हो उतने लोगों से मिलें’, उनके साथ विनम्र व्यवहार करें और कोशिश करें कि वे 20 फरवरी को मतदान केंद्रों तक अवश्य पहुंचें.

2017 से आप ने क्या सबक सीखे

आम आदमी पार्टी 2017 में 117 सदस्यीय विधानसभा में 20 सीटों पर जीत के साथ भले ही प्रमुख विपक्षी दल के तौर पर उभरी हो लेकिन वह इस चुनाव में आम जनता की भावनाओं को वोटों में बदलने में विफल क्यों रही, इस पर बात करने के लिए उन्हें राजी करना कोई मुश्किल काम नहीं था. संधावा ने इसके पीछे चार कारण गिनाए.

उनके मुताबिक, पहला कारण था ‘अमरिंदर की कसम’—2015 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ‘गुटका साहिब’ हाथ में लेकर प्रतिज्ञा ली थी कि बेअदबी के मामलों को अंजाम तक पहुंचाएंगे और पंजाब की सूरत बदल देंगे. जो कांग्रेस के लिए एक ‘ट्रम्प कार्ड’ साबित हुआ. दूसरा कारण वह ‘मीडिया ने गढ़ी झूठी कहानियों’ को बताते हैं. आप उम्मीदवार का कहना है कि उस समय यह प्रचारित किया गया था कि केजरीवाल कथित तौर पर एक खालिस्तानी आतंकवादी के घर में रह रहे हैं, जबकि ‘ऐसा कुछ नहीं था. केजरीवाल को तो यह पता भी नहीं था कि वह किसका घर है.’

तीसरा कारण, मतदान से तीन दिन पूर्व मौर (बठिंडा में) बम विस्फोट की घटना थी. हालांकि, संधावा ने इस बारे में ज्यादा विस्तार से कुछ नहीं कहा लेकिन यह जगजाहिर है. उस समय केजरीवाल के राजनीतिक विरोधी उन पर सिख कट्टरपंथी तत्वों से हाथ मिलाने का आरोप लगा रहे थे, और ऐसे में इस धमाके ने पंजाब के उदारवादी तबके, खासकर हिंदू समुदाय को सशंकित कर दिया था. कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन के बड़ी संख्या में अनिवासी भारतीयों को चंडीगढ़ लाने के पीछे आप का जो मकसद था, वो भी सफल नहीं हो पाया था. संधावा के मुताबिक, चौथा प्रमुख कारण ये रहा कि आप को ‘जबरदस्त जनसमर्थन’ तो मिल रहा था, लेकिन लोगों को इसका भरोसा नहीं था कि यह कांग्रेस-एसएडी के वर्चस्व को तोड़कर सरकार बना पाएगी.

संधावा ने दिप्रिंट से कहा, ‘अब काफी कुछ बदल चुका है. पंजाब के लोग भावुक हैं. वे जोखिम लेने से नहीं हिचकिचाते. उन्होंने इस बार अरविंद केजरीवाल को एक मौका देने का फैसला कर लिया है.’

पंजाब में कहीं भी जाएं और ‘आप’ के नेताओं और उम्मीदवारों से मिलें, आपको इसी तरह की बातें सुनने को मिलेंगी. लगता है ‘आप’ ने अब सबक सीख लिया है. ऐसा नहीं है कि यह पार्टी अब विदेश से वॉलंटियर्स नहीं ला रही है. संधावा के ड्राइवर कनाडा में रहने वाले एक सॉफ्टवेयर डेवलपर रमनदीप सिंह सोढ़ी हैं. यह वही हैं जो संधावा के लिए टाटा सफारी स्टॉर्म लाएं हैं और खुद ही इसे चलाते भी हैं. सोढ़ी 20 फरवरी को मतदान के बाद ही कनाडा लौटेंगे.

वह कोट कपूरा सिर्फ इसलिए आए क्योंकि उन्हें लगता है कि ‘पंजाब में जो बदलाव बहुत जरूरी हैं, उन्हें केवल आप ही ला सकती है.’ सोढ़ी उन सिंगल-लेन सड़कों पर 100-120 किलोमीटर/घंटा की गति से गाड़ी चलाते हैं और कोई नहीं जानता इस सबसे उनका क्या फायदा है. टाटा स्टॉर्म में पीछे की सीट पर बैठने वाले एक अन्य व्यक्ति मेजर अरविंद कुमार हैं जिनका परिवार मुंबई में बसा है. वह भी आप की मदद के लिए कोट कपूरा आए हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि वे फील्ड मार्शल मानेकशॉ के एडीसी (एड-डी-कैंप) रह चुके हैं.

संधावा के मुताबिक, सोढ़ी और कुमार बदलते समय का संकेत हैं जो यह बताते हैं कि बाहर बसे पंजाबी आप के लिए काम करने के लिए अपना घर-बार तक छोड़कर आ सकते हैं. केजरीवाल की पार्टी अब एनआरआई का समर्थन नहीं दिखा रही. इसकी एक बड़ी वजह 2017 में मिला अनुभव भी है. वहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री पिछले साल अक्टूबर से ही पंजाब के विभिन्न मंदिरों के चक्कर लगा रहे हैं, जिसकी शुरुआत उन्होंने नवरात्रि में जालंधर स्थित देवी तालाब मंदिर से की थी.

शासन के तथाकथित ‘दिल्ली मॉडल’ और गैर-कांग्रेसी, गैर-एसएडी सरकार के विकल्प के तौर पर आप को लेकर सुगबुगाहट काफी तेज है. ये बात अलग है कि विपक्षी नेता इसकी वजह को आप की तरफ से प्रचार पर अच्छा-खासा खर्च किया जाना बताते हैं.

Kultar Singh Sandhwan
कोट कपूर में चुनाव प्रचार के दौरान कुलतार सिंह संधवां। फोटो- प्रवीण जैन | दिप्रिंट

पिछले मंगलवार को बठिंडा में सफायर होटल के बाहर जब भीड़ शिरोमणि अकाली दल अध्यक्ष सुखबीर बादल के इंतजार में उमड़ रही थी, तराजू (अकाली दल का चुनाव चिह्न) वाला बिल्ला लगाए खड़े एक व्यक्ति, जिसकी उम्र करीब 50 वर्ष के आसपास होगी, ने साफ कहा, ‘बादल सरकार ने 2007 और 2017 के बीच किसी भी अन्य सरकार की तुलना में अधिक विकास कार्य किए हैं. लेकिन, जब भी आप किसी चाय की दुकान पर जाते हैं, तो लोगों को आप के बारे में बात करते सुनते हैं. यह काफी हैरान करने वाला है.’

इस बातचीत में पुलिस अधिकारी भी शामिल हो गया, जिसका कहना था, ‘हां, हर कोई आप के बारे में बात कर रहा है. जबकि और भी जटिल मुद्दे हैं. मैं एक जाट सिख हूं और ईमानदारी से कहता हूं, जब आप दलित मुख्यमंत्री बनाते हैं तो जाट सिखों को लगता है कि उनके वर्चस्व को खतरा हो सकता है. अकाली दल परंपरागत रूप से जाट सिखों की आवाज रहा है. बहुत संभव है कि वे (कुल आबादी में 20 फीसदी हिस्सेदारी वाले जाट सिख) एसएडी के पक्ष में एकजुट हो जाएं. लेकिन अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.’

बिल्ला लगाए बैठा एसएडी का समर्थक और पुलिस अधिकारी कुछ हद तक जमीनी जनभावनाओं को परिलक्षित करते हैं. वित्त मंत्री मनप्रीत बादल के बठिंडा (शहरी) निर्वाचन क्षेत्र में खेता बस्ती निवासी फल विक्रेता हरि सिंह अपने मोहल्ले में सीवेज की समस्या से परेशान है, जहां वह पिछले 40 साल से रह रहा है. उस जगह से करीब 200 किलोमीटर पूर्व में स्थित राजपुरा निर्वाचन क्षेत्र में एक ढाबे पर जुटे पांच युवाओं का एक समूह आक्रामक रूप से तर्क देता है कि पंजाब को ‘कांग्रेस-एसएडी के जाल’ से बाहर निकालने की जरूरत क्यों है.


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वोट शेयर

इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट एंड कम्युनिकेशन, चंडीगढ़ के निदेशक डॉ. प्रमोद कुमार इस पर काफी सधी हुई प्रतिक्रिया देते हैं. डॉ. कुमार का कहना है, ‘बदलाव समर्थक हमेशा शोर ज्यादा करते हैं. आप मैकडॉनल्ड्स की तरह है. इसका मेन्यू (घोषणापत्र या वादे) देखें. आप वेज बर्गर चाहते हैं, आप देने का वादा कर रही है. आपको चिकन बर्गर चाहिए… आप वह भी देगी. मतदाता जो कुछ भी (मुफ्त) चाहते हैं, आप दे सकती है. लेकिन यह काम नहीं करता.’ हालांकि, वह मानते हैं कि कांग्रेस और एसएडी की ‘गलतियों’ के कारण आप को करीब 20 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं.

लेकिन सत्ता में आने के लिए 20 फीसदी वोट काफी नहीं हैं. दशकों से कांग्रेस और एसएडी को मिलने वाले वोटों का शेयर देखें. यहां तक कि जब 2017 में पंजाब विधानसभा में अकाली दल को मात्र 15 सीटें मिलीं, तब भी उसका वोट शेयर करीब 30 प्रतिशत था, जो आप को मिले वोटों से छह प्रतिशत अधिक था. कांग्रेस का वोट शेयर कभी 30 प्रतिशत से नीचे नहीं गया, यहां तक कि ऑपरेशन ब्लूस्टार के बाद 1985 के विधानसभा चुनाव में भी नहीं, जब पार्टी को 38 प्रतिशत वोट मिले थे.

जबकि आप की लोकप्रियता में उल्लेखनीय गिरावट दिखाई दी है—2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी का वोट शेयर 24 फीसदी से अधिक था जो 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 7 प्रतिशत ही रह गया. उदाहरण के तौर पर, शायद यह इस बात का संकेत है कि बदलाव समर्थक जमीनी स्तर पर तो आप को लेकर खासी चर्चा कर रहे हैं—हालांकि, यह 2017 की तुलना में कम ही है—लेकिन आप पर दांव लगाने के लिए अभी खुद को पूरी तरह तैयार नहीं कर पाए हैं.

राज्य में बहुकोणीय मुकाबले में जहां करीब एक हजार वोट भी नतीजे का रुख मोड़ सकते हैं, वहां दो परंपरागत पार्टियों कांग्रेस और अकाली दल की तैयारियां बेहतर नजर आती हैं जबकि संगठनात्मक ढांचे के मामले में आप जमीनी स्तर पर लगभग नदारत है.

गत सोमवार को बरनाला में सुखबीर बादल की सभा के दौरान एक युवक बाहर पार्क मोटरसाइकिलों में एक पर बैठा हुआ था, जबकि अकाली दल की सभा अंदर चल रही थी. यह युवक एक ग्रेजुएट है और मजदूर माता-पिता की संतान है, जो कपड़े की एक दुकान पर काम करके अपने जीवन यापन के लिए प्रतिमाह करीब 6,000 रुपये ही कमा पाता है. वह दुबई जाने के लिए करीब दो-ढाई लाख रुपये की व्यवस्था करने की कोशिश में लगा है. उसका दोस्त हाल ही में वहां गया है और 45,000 रुपये प्रति माह कमा रहा है. वह बादल की सभा में इसलिए आया क्योंकि स्थानीय नगर निगम के एक पार्षद ने वादा किया है कि अगर एसएडी सत्ता में आई तो वह उसे बरनाला में नौकरी दिला देगा. हालांकि, युवक बदलाव के लिए तीसरे विकल्प यानी आप को अपनी पसंद मानता है, लेकिन बादल की सभा स्थल के बाहर इंतजार इसलिए कर रहा है ताकि पार्षद के प्रति अपनी निष्ठा दिखा सके. हो सकता है कि इसके बदले में पार्षद चुनाव बाद अपना वादा पूरा कर दे.

यद्यपि तथाकथित दिल्ली मॉडल पूरे पंजाब में जनता के बीच एक उम्मीद तो जगाता है, लेकिन देखना होगा कि आप को लेकर यह सुगबुगाहट 20 फरवरी को होने वाले चुनाव के दौरान वोट में कितनी परिवर्तित हो पाती है. पंजाब और राष्ट्रीय स्तर पर आप का सियासी भविष्य इसी पर निर्भर करेगा. हालांकि, उम्मीद है कि 2017 में सीखे सबक को आप नेताओं ने भुलाया नहीं होगा.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें) 


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