नई दिल्ली: स्कूल के पहले दिन लता मंगेशकर अपनी करीब 10 महीने की छोटी बहन आशा भोसले को लेकर जब कक्षा में पहुंचीं तो उन्हें शिक्षिका से खूब डांट पड़ी और सुर सम्राज्ञी ने गुस्से में स्कूल से इस कदर मुंह मोड़ा कि फिर कभी वहां कदम नहीं रखा.
स्वर कोकिला ने मराठी वर्णमाला अपने घर में घरेलू सहायिका से सीखा, जिन्होंने उन्हें लिखना-पढ़ना सिखाया.
‘लता मंगेशकर… उनकी जुबानी’ शीर्षक वाली अपनी किताब में दोनों की बातचीत का विस्तृत ब्योरा देने वाली लेखिका नसरीन मुन्नी कबीर लिखती हैं, ‘मैं करीब तीन-चार साल की थी, जब मैंने हमारे घरेलू सहायिका विठ्ठल, जो उस वक्त किशोरी थी, से मुझे मराठी वर्णमाला सिखाने और पढ़ना-लिखना सिखाने को कहा. मैंने घर पर ही मराठी पढ़ना सीखा.’
मंगेशकर हालांकि, उससे पहले कुछ दिनों तक नर्सरी स्कूल गई थीं. किताब में लता कहती हैं, ‘मास्टर जी श्यामपट्ट पर ‘श्री गणेशजी’ लिखा करते थे और मैं उसका सटीक नकल किया करती थी. मुझे 10 में से 10 नंबर मिले थे.’
उस वक्त लता की रिश्तेदार वसंती महाराष्ट्र के सांगली में अपने घर के ठीक सामने स्थित मराठी माध्यम के मुरलीधर स्कूल की तीसरी कक्षा में पढ़ती थीं. कभी-कभी लता उन्हीं के साथ स्कूल चली जाती थीं और वसंती जब संगीत का अभ्यास करती थीं, तो मंगेशकर भी पूरे ध्यान से शिक्षक को गाते हुए सुनती थीं.
किताब के अनुसार, ‘एक दिन, शिक्षिका ने मेरी तरफ इशारा कर के मेरी रिश्तेदार से पूछा… यह कौन है? मैंने एकदम खुश होकर कहा… मैं मास्टर दीनानाथ की बेटी हूं.’ लता ने कहा, ‘उन्होंने कहा, वह बहुत अच्छे गायक हैं. क्या तुम गा सकती हो? मैंने उन्हें बताया कि मैं कई राग गा सकती हूं और मैंने उनके नाम बता दिए… वह तत्काल मुझे स्टाफ रूम में ले गईं, जहां और शिक्षक बैठे थे और मुझसे गाने को कहा. मैंने हिंडोल राग पर आधारित शास्त्रीय गीत गाया. मैं उस वक्त करीब चार-पांच साल की थी.’
उसी दिन, मंगेशकर को इस स्कूल में जाना था और उस वक्त आशा भोसले करीब 10 महीने की थीं.
किताब के अनुसार, मंगेशकर याद करती हैं, ‘मैंने उसे (आशा को) गोद में लिया और स्कूल पहुंच गयी. जब मैं कक्षा में पहुंची तो वहां भी आशा को गोद में लेकर बैठ गई. मेरी शिक्षिका ने बड़े कड़े शब्दों में कहा ‘बच्चों को लाने की अनुमति नहीं है.’ मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं वहां से उठ गयी. मैं आशा को लेकर घर आ गई और कभी नहीं (स्कूल) लौटी.’
लता ने हिन्दी अपनी रिश्तेदार इंदिरा से सीखी और बाद में बंबई में लेखराज शर्मा ने उन्हें भाषा सिखायी. फिर उन्होंने उर्दू, बंगालीऔर थोड़ी-थोड़ी पंजाबी भी सीखी. उन्होंने तमिल सीखने का भी प्रयास किया और थोड़ी संस्कृत भी सीखी.
भाषा अर्पणा सुभाष
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