पश्चिमी मीडिया में इस बात को लेकर काफी अटकलें लगाई जा रही हैं कि चीन और अमेरिका के बीच होड़ दक्षिण चीन सागर की गहराइयों में भी गोते लगाने पहुंच गई है. इस होड़ में दांव पर लगा है अमेरिकी नौसेना के 10 करोड़ डॉलर के कीमत वाले एफ-35सी विमान का मलबा और इससे जुड़े रहस्य, जो इस सागर में डूब गया. यह विमान 24 जनवरी को विमानवाही अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस कार्ल विन्सन पर उतरने के दौरान हादसे का शिकार हो गया. एफ-35सी विमान अमेरिका का अत्याधुनिक विमान है, जिसका कंप्यूटर अनेक तरह की उच्च तकनीकी सिस्टम्स से जुड़ा है. मीडिया रिपोर्टें बताती हैं कि चीन और अमेरिका, दोनों इस दुर्घटनाग्रस्त के मलबे की खोज करने की होड़ में लग गए हैं.
पिछले तीन दशकों में चीन ने उच्चस्तरीय सैन्य टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में जबर्दस्त प्रगति की है लेकिन अमेरिका और रूस से वह अभी भी पीछे है. वह एफ-35सी विमान के मलबे को जरूर खोज निकालना चाहेगा ताकि इस विमान के रहस्यों को जान ले और अमेरिका की बढ़त की बराबरी कर ले और ‘रिवर्स इंजीनीयरिंग’ के जरिए अपने ‘वेपन सिस्टम्स’ की खातिर इसका फायदा उठा सके.
यहां मैं उभरती स्थिति और चीन की कामयाबी की संभावनाओं का विश्लेषण करूंगा.
यह भी पढ़ें: चीन का सीमा भूमि कानून भारत के लिए चेतावनी की घंटी है कि वह अपनी रणनीति सुधार ले
एफ-35सी विमान का हादसा
एफ-35सी विमान अमेरिकी लड़ाकू विमानों की पांचवीं पीढ़ी का बहुद्देशीय विमान है, जो हर मौसम में उड़ान भर सकता है और रडार रोधी है. यह दुश्मन के हवाई क्षेत्र पर हावी हो जाने वाला और हमला करने वाला विमान है. नौसेना के लिए बनाए गए इसके संस्कारण एफ-35बी विमान हवाई पट्टी पर बेहद कम दूरी तक दौड़ लगाकर ही उड़ जाते हैं और सीधे उतर जाते हैं. एफ-35सी विमान युद्धपोत से उड़ान भरने और वापस उस पर उतरने की तकनीक से लैस होते हैं. इन दोनों विमानों को फरवरी 2019 में अमेरिकी नौसेना में शामिल किया गया था. एफ-35सी 2 अगस्त 2021 को यूएसएस कार्ल विन्सन से उड़ान भरने लगा था.
24 जनवरी को एक एफ-35सी विमान फिलीपींस से 400 किमी दूर पश्चिम में दक्षिण चीन सागर में युद्धपोत पर उतरने से पहले डेक से टकराकर डूब गया. विमान गिरने लगा तो इसका पायलट पैराशूट से बाहर कूद गया और वह डेक पर तैनात छह नाविकों के साथ घायल हो गया.
इस विमान की टेक्नोलॉजी को महफूज रखने के लिए इसके मलबे को हासिल करने की पूरी कोशिश की जा रही है. बचाव पोतों और मिनी पनडुब्बियों को हादसे वाली जगह पर पहुंचने में 10 दिन का समय लगना था और वे वहां पहुंच गए होंगे. पेंटागन का प्रवक्ता ने साफ कर दिया कि ‘हमें पूरा पता है कि इस विमान का मूल्य क्या है और हम उसके बारे में सचेत हैं. विमान को हासिल करने की कोशिश करते हुए हम, जाहिर है कि उसकी सुरक्षा का और अपने राष्ट्रीय हितों का पूरा ध्यान रखेंगे.’
सैन्य टेक्नोलॉजी के मामले में अमेरिका दुनिया का गुरू है और इसके विरोधी वह हैसियत तमाम खुफिया साधनों से हासिल करने की कोशिश में जुटे हैं. दस्तावेजों या ‘वेपन प्लेटफॉर्म’ के साथ पलायन सबसे कारगर खुफिया चाल होती है. 1976 में रूसी एयरोस्पेस इंजीनियर और पूर्व पायलट विक्टर बेलेंको ने यही किया था. वह अपने समय के अत्याधुनिक टोही विमान मिग25 फॉक्सबैट को लेकर जापान के हाकोडाते पहुंच गया था. जापान और उसके मित्र देशों को सबसे नयी रूसी टेक्नोलॉजी हासिल हो गई थी.
अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र में एफ-35 विमान के हादसे की यह तीसरी घटना है जो दक्षिण चीन सागर में घटी. 9 अप्रैल 2019 को जापान एअर सेल्फ डिफेंस का एम एफ-35ए विमान प्रशांत महासागर में गिरा था. बताया जाता है कि इसके टुकड़े-टुकड़े हो गए थे. माना जाता है कि इसका अधिकांश मलबा अमेरिका और जापान ने खोज निकाला था. 17 नवंबर 2021 को ब्रिटिश रॉयल एअर फोर्स का एक एफ-35बी विमान भूमध्यसागर में सामान्य ऑपरेशन के दौरान हादसे का शिकार हो गया था. मलबा और सभी सुरक्षा उपकरण अमेरिका, इटली और ब्रिटेन की संयुक्त खोज में हासिल कर लिये गए थे.
इसमें कोई संदेह नहीं रहना चाहिए कि अमेरिका विमान के मलबे को हासिल करने या उसे खुफिया मामलों में फायदा उठाने से नाकाम करने की हर संभव कोशिश करेगा क्योंकि विमान का कंप्यूटर अमेरिकी नौसेना के पूरे ऑपरेशन सिस्टम से जुड़ा है.
चीन द्वारा मलबा चुराए जाने की संभावना
चूंकि विमान की टेक्नोलॉजी अत्याधुनिक है और उसका कंप्यूटर अमेरिकी नौसेना की पूरी कमान और नियंत्रण तथा टार्गेटिंग सिस्टम से जुड़ा है इसलिए, उसका मलबा चीन के लिए टेक्नोलॉजी के मामले में सोने की खान साबित हो सकता है, अगर वह उसे हासिल कर ले. अमेरिकी बचाव पोत जब 10 दिन दूर थे तब चीन की कोशिशों को लेकर खूब अटकलें लगाई जा रही थीं. ज्यादा इसलिए भी कि चीन दक्षिण चीन सागर को अपना क्षेत्र मानता है. वास्तव में, यूएसएस कार्ल विन्सन इस दावे को चुनौती देने और अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र में आवागमन की आज़ादी जताने के लिए गश्त पर था. कानूनन, अंतरराष्ट्रीय जल क्षेत्र में हासिल मलबा या बचाव में मिली चीज उसकी ही मानी जाती है जो सबसे पहले उसकी खोज करता है और बचाव कार्रवाई शुरू करता है. चीनी नौसेना दक्षिण चीन सागर में अमेरिकी नौसेना का निरंतर ‘पीछा’ करती रहती है.
1 अप्रैल 2001 को आसमान में चीनी लड़ाकू विमान से टकराने के बाद बुरी तरह नष्ट हुआ अमेरिकी ईपी-3 गश्ती विमान चीन के हाइनान द्वीप पर उतरा. चीनी विमान गिर गया था और उसका पायलट मारा गया था. ईपी-3 का पाइलट भी मारा गया और चालक दल के 24 सदस्य (तीन महिलाओं समेत) चमत्कारी ढंग से बच गए. चीनियों ने उन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ करने के बाद 10 दिनों बाद रिहा कर दिया, जब अमेरिका ने लगभग माफी मांग ली थी. ईपी-3 विमान के पुर्जे-पुर्जे निकाल लिये गए थे और इसके बेहद गुप्त उपकरणों और खुफिया सामग्री की चीनियों ने गहरी जांच की और अंततः तीन महीने बाद विमान को टुकड़ों में लौटाया.
मेरे खयाल से, एफ-35सी विमान के हादसे की जो स्थितियां थीं उनके मद्देनजर मीडिया की ये अटकलें सनसनीखेज ही मानी जा सकती हैं कि चीन ने मलबे या टेक्नोलॉजी को चुरा लिया होगा. विमान युद्धपोत के पास ही गिरा था इसलिए जगह की पहचान स्पष्ट थी और उस पर एक सबसे ताकतवर कैरियर स्ट्राइक ग्रुप की नज़र लगी जिसमें विमानवाही पोत यूएसएस कार्ल विन्सन के साथ विशाल वायु सुरक्षा व्यवस्था, एक क्रूजर, दो डेस्ट्रायर, और दो लॉजिस्टिक्स पोत के अलावा पास के सैन्य अड्डे पर तटवर्ती क्षेत्र में तैनात विमान भी मौजूद थे.
हादसे के समय वह एक क्रूजर और चार डेस्ट्रायर से लैस विमानवाही पोत अब्राहम लिंकन पर तैनात कहीं बड़े कैरियर स्ट्राइक ग्रुप के साथ युद्धाभ्यास कर रहा था. विमानवाही पोत रोनाल्ड रीगन पर तैनात कैरियर स्ट्राइक ग्रुप जापान के योकोसुका में स्थित है. दो और नौसैनिक टास्क फोर्स—अमेरिकन एक्सपेडीशनरी स्ट्राइक ग्रुप और एसेक्स एम्फीबियस स्ट्राइक ग्रुप—भी उस क्षेत्र में कार्रवाई कर रहे थे. दक्षिण चीन सागर और पश्चिमी प्रशांत में कई पनडुब्बियां भी सक्रिय हो सकती हैं. अमेरिकी नौसेना की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक सभी पोत अभी भी उस क्षेत्र में मौजूद हैं.
इसलिए, अमेरिकी विमान या उसके मलबे को ढूंढ़ निकालने या उस पर दावा करने के लिए चीन जहाजों के इस ताकतवर बेड़े को चुनौती देगा, इसकी संभावना शून्य के बराबर ही है.
(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
(ले.जन. एचएस पनाग, पीवीएसएम, एवीएसएम (रिटायर्ड) ने 40 वर्ष भारतीय सेना की सेवा की है. वो नॉर्दर्न कमांड और सेंट्रल कमांड में जीओसी-इन-सी रहे हैं. रिटायर होने के बाद आर्म्ड फोर्सेज ट्रिब्यूनल के सदस्य रहे. उनका ट्विटर हैंडल @rwac48 है. व्यक्त विचार निजी हैं)
यह भी पढ़ें: नेताओं और राजनयिकों ने कई कोशिशें की लेकिन अब भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच बातचीत की जरूरत