नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि राज्य की हर कार्रवाई का गैर-मनमाना, औचित्यपूर्ण और तार्किककता की कसौटी पर खरा उतरना जरूरी है. इस कार्रवाई को समान रूप से जनहित से निर्देशित होना भी जरूरी है.
न्यायालय ने कहा कि बिजली वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) भारत के संविधान के अनुच्छेद 12 के अनुसार राज्य की सहायक हैं.
शीर्ष अदालत ने आंध्र प्रदेश में उच्च दर पर बिजली खरीदने के लिए डिस्कॉम की निंदा की और कहा कि सार्वजनिक हित में काम करने के बजाय, उसने इसके विपरीत काम किया.
न्यायमूर्ति एलएन राव और बीआर गवई की पीठ ने अपने फैसले में यह टिप्पणी की.
डिस्कॉम द्वारा दायर याचिका में सात जनवरी, 2020 को विद्युत अपीलीय अधिकरण (एपीटीईएल) के आदेश को चुनौती दी गई है. आदेश में हिंदूजा नेशनल पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड की अपील स्वीकार गई थी.
न्यायालय ने आंध्र प्रदेश विद्युत नियामक आयोग (एपीईआरसी) को पूंजीगत लागत के निर्धारण के लिए एचएनपीसीएल द्वारा दायर याचिका का गुणवत्ता के आधार पर निपटारा करने को कहा. संशोधित और बहाल बिजली खरीद समझौते (पीपीए) के अनुमोदन के लिए डिस्कॉम द्वारा दायर याचिका का निस्तारण भी गुणवत्ता के आधार पर करने को कहा. शीर्ष अदालत ने एपीटीईएल के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया.
भाषा संतोष सुभाष
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