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Wednesday, 13 November, 2024
होममत-विमतएच-वन बी वीसा विवाद: ट्रंप 'टेकियों' को मनुष्य नहीं, मशीन मानते हैं

एच-वन बी वीसा विवाद: ट्रंप ‘टेकियों’ को मनुष्य नहीं, मशीन मानते हैं

एक हिंदू समारोह में अमेरिकी राष्ट्रपति शामिल हो गए और भारतीयों ने अगर उन्हें अलग तरह का नेता मान लिया तो यह उनकी ही गलती है.

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“मैं हिंदू धर्म का बहुत बड़ा फैन हूं, और मैं भारत का बहुत बड़ा फैन हूं, बहुत बहुत बड़ा!” डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी तारीफों के पुल बांधे जाने के जवाब में यह बयान दिया था. उनकी तारीफ के पुल बांध रहे थे रिपब्लिकन हिंदू कोलीशन नामक संगठन और उनके मुखिया शलभ कुमार, जिन्होंने ट्रंप के चुनाव अभियान के लिए 11 लाख डॉलर का चंदा दिया था.

लेकिन अब उलटी पड़ रही है. ट्रंप ने अपने नंबर वन देसी दोस्त को बहुत बड़ी सौगात थमा दी है. अमेरिका का होमलैंड सिक्युरिटी विभाग ऐसे प्रस्ताव पर विचार कर रहा है कि एच-वन बी वीसा के नियमों में ऐसे बदलाव किए जाएं कि पांच लाख भारतीय, जिनमें ‘टेकी’ के नाम से जाने गए सॉफ्टवेयरविदों की संख्या ज्यादा है, स्वदेश लौटने को मजबूर हो जाएं. एच-वन बी वीसा वाले कामगार अपने लिए ग्रीन कार्ड का इंतजार करने के लिए वहां रुकने की अवधि बढ़ाए जाने की अर्जी दे दिया करते थे. लेकिन नए प्रस्ताव के मुताबिक अब ऐसा नहीं हो सकेगा. ट्रंप की ‘बाइ अमेरिकन, हायर अमेरिकन’ (अमेरिकी चीजें खरीदो, अमेरिकियों को नौकरी दो) पहल के तहत, एच-वन बी वीसा वालों को अमेरिका छोड़ना पड़ेगा और स्थायी निवास कार्ड के लिए बाहर रहकर इंतजार करना पड़ेगा, अगर एच-वन बी वीसा के तहत उनकी अर्जी पर छह साल खत्म होने के बाद भी फैसला नहीं हुआ है. यह इंतजार इस स्तर पर एक दशक से भी लंबा खिंच रहा है.

यह प्रस्ताव मंजूर हो गया तो एच-वन बी के तहत अनिश्चितता का नरक और यातनादायी हो सकता है.

जाहिर है, यह भारत को काफी परेशान कर रहा है. भारत सरकार ने कहा है कि वह खबरं पर नजर रखे हुए है, “अमेरिका में अपने वार्ताकारों से चर्चा में हम इस विषय को काफी प्राथमिकता दे रहे हैं. अमेरिकी कांग्रेस और शासन में इस मसले से जुड़े लोगों के साथ हम मिलकर काम कर रहे हैं”.

लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप रिपब्लिकन हिंदू कोलीशन द्वारा आयोजित नाच-गाने के एक हिंदू समारोह में शामिल हो गए और भारतीयों ने अगर उन्हें अलग तरह का नेता मान लिया तो यह उनकी ही गलती है. यह परिवर्तन को लेकर ट्रंप के वादे का मामला है.

शलभ कुमार ने वादा किया था कि ट्रंप “अमेरिका के अब तक के सभी राष्ट्रपतियों के मुकाबले सबसे ज्यादा भारत समर्थक राष्ट्रपति” साबित होंगे. लेकिन अपने पूरे चुनाव अभियान में ट्रंप चीखते फिर रहे थे कि हिलेरी क्लिंटन आउटसोर्सिंग की चैंपियन हैं, कि अमेरिकी रोजगार अमेरिकी कामगारों के लिए हैं. उन्होंने कहा था, “एच-वन बी प्रोग्राम न तो उच्च हुनर वालों के लिए है और न प्रवासियों के लिए. ये लोग अस्थायी विदेशी कामगार हैं जिन्हें विदेश से आयातित किया जाता है ताकि अमेरिकी कामगारों की जगह कम पैसे लेने वालों से काम करवाया जाए… सस्ते मजदूर लाने के कार्यक्रम को हमेशा के लिए खत्म कर दूंगा और हरेक वीसा और आव्रजन कार्यक्रम के लिए अमेरिकी कामगारों को रखने की व्यवस्था लागू करूंगा. किसी अपवाद की गुंजाइश नहीं होगी”.

भारतीय लोग खुद को हमेशा एक अपवाद, अपनी शिक्षा-डिग्रियों और अंग्रेजी ज्ञान के कारण एक मॉडल अल्पसंख्यक मानते रहे हैं. जब ट्रंप ने ‘हत्यारे-बलात्कारी’ मेक्सिकों वालों और ‘आतंकवादी’ मुसलमानो को निकाल बाहर करने की बात की तब अमेरिका में रह रहे कई भारतीयों ने सहमति में सिर हिलाए थे. अब जब वे एच-वन बी वीसा वाले कामगारों पर निशाना साध रहे है तब भारतीयों को मानना पड़ेगा कि उनकी चमड़ी का रंग भी भूरा ही है, पीलापन लिये भूरा नहीं है.

ट्रंप ने ‘अच्छे प्रवासियों’ की यह कहकर तारीफ की है कि “भारतीयों और हिंदू अमेरिकियों की कई पीढ़ियों ने अपनी कड़ी मेहनत, शिक्षा तथा उद्यमशीलता से हमारे देश को मजबूत बनाया है”. लेकिन अमेरिकी नागरिक की उनकी परिभाषा में भारतीय लोग कभी शामिल नहीं रहे, उनका 11 लाख डॉलर का चेक जरूर स्वीकार्य रहा.

नई प्रस्तावित नीतियां, चाहे वे सचमुच लागू हो या न हो, आनी तो थीं ही. मैं एच-वन बी वीसा के तहत वहां जा चुका हूं औरं देख रहा था कि स्वागत में बिछाया गया कालीन धीर-धीरे समेटा जा रहा है. ट्रंप ने ओबामा राज के उन नियमों को खत्म कर दिया है जिनके तहत एच-वन बी वीसा वालों के जीवन साथी को अमेरिका में रोजगार करने की छूट दी गई थी. एच-वन बी वीसा की व्यवस्था तुरंत चरमरा गई क्योंकि वीसा की सीमा जल्दी ही खत्म हो गई. एच-वन बी वीसा को अमेरिकी सपने को साकार करने वाला ‘मेड इन इंडिया/चाइना’ तलिस्मा माना जाने लगा था.

जब मैं सिलिकन वैली में था, तब चुटकुला चला करता था कि सनीवेल के अपार्टमेंटों में जिस तरह एच-वन बी वीसा वालों ‘टेकियों’ की बाढ़ आ गई उसके चलते वह सूर्य नगरी बन गई है. और पार्किंग स्थलों में जिस तरह सुरक्षित-भरोसेमंद होंडा एकॉर्ड कारों की भीड़ लग गई है, उसे ‘हिंदू एकॉर्ड’ कहा जाने लगा है. मॉलो में डोसा और बिरयानी की खुशबू फैलने लगी थी, भारतीय सिनेमाघरों में देर रात तक क्रिकेेट मैचों का सीधा प्रसारण दिखाया जाने लगा था और सिलिकन वैली के दफ्तरों में पहुंचकर ऐसा लगता था कि हम सांता क्लारा नहीं बल्कि हैदराबाद में पहुंच गए हो. भारती मुखर्जी ने अपने उपन्यास ‘द ट्री ब्राइड’ में उसकी नायिका तारा के मुंह से कहलवाया है- “कैलिफोर्निया में 20 साल से रह रही हूं और ऐसा लगता है कि अमेरिका में दक्षिण एशियाई प्रवासियों का कुहासा-सा फैल गया है”. और तारा सोच में पड़ी है कि इस सबको कौन कलमबद्ध करेगा, “20वीं सदी में कोई फित्जराल्ड जिंदा हो जाएगा या शायद कोई महान गुप्ता”.

अमेरिकी कथा एच-वन बी के बिना पूरी भी नहीं हो सकती, लेकिन लेखक अमिताभ कुमार ने एक बार यह भी सवाल उठाया था कि पश्चिम के कल्पनालोक में भारतीय साइबरटेकी का स्थान कहां है? पूरी सिलिकन वैली के मॉलों में भारत के ‘नकदी लाओ माल ले जाओ बाजारों और तंदूरी ‘पैलेसों’ को उभरते जरूर देखा मगर एच-वन बी कथा के बदरंग पहलू- शोषणपूर्ण वेतन, रोजगार की असुरक्षा, कई तरह लाभों से वंचित रह जाना, ग्रीन कार्ड का अंतहीन इंतजार, कारोबार जब मंदा हो तो बेंच पर बैठा दिए जाने की शर्म- अनजाने ही रहे. हम एच-वन बी के पोस्टर ब्वॉय के रूप में सुंदर पिचई और सत्य नडेला सरीखे की बातें तो करते हैं लेकिन ‘लिट्ल मैगजीन’ के एक लेख में जिन्हें ओरेकल राव कहा गया है उन जैसे कई-कई लोगों की बात हम नहीं करते जिनके पास पैसे भी बहुत कम हैं और जिनका प्रभाव भी बहुत कम है, जिन्हें “ठेके पर रोजगार दिया जाता है और क्लायंट की मर्जी से इधर से उधर भेजा जाता है”.

ट्रंप का प्रस्ताव साफ कर देता है कि अमेरिका के लिए एच-वन बी का अर्थ है डाटाबेस, ऑपरेटिंग सिस्टम और कोडिंग लैंग्वेज, इसका अर्थ वे मनुष्य नहीं हैं जिन्होंने अमेरिका के उपनगरों में अपना परिवार बसाया है, जिनके बच्चे स्कूल जाते हैं, जिनके जीवन को एक क्षण नोटिस जारी करके आननफानन उखाड़कर नहीं फेंका जा सकता क्योंकि नौकरशाही ने फैसले करने में सुस्ती बरती.

वैसे, ट्रंप अंततः भारत की एक मदद ही कर रहे हैं. अमेरिका जब अपना कालीन समेट रहा है, भारत में मेक्सिको के राजदूत ने कहा है कि उनका देश इन भारतीयों का सहर्ष स्वागत करने को तैयार है.

लेकिन मेक्सिको क्यों? भारत ही क्यों नहीं? अगर आजादी के 70 साल बाद सचमुच अच्छे दिन आए हैं तो अगले पिचइ या नडेला ऐसे हों जो किसी और की एच-वन बी कथा के पोस्टर ब्वॉय तो न हों. वे भारत की कथा के, अपने घर की कथा के पोस्टर ब्वॉय तो न हों. ट्रंप की नीतियों से शायद वह शुरू हो सकेगा जो न भारत सरकार कर सकी और न भारतीय मांएं कर सकीं- प्रतिभा की वापसी!

संदीप राय एक पत्रकार, टीकाकार और लेखक हैं.

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