शामली/बागपत/मुजफ्फनगर : उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में बाबली गांव निवासी किसान कृष्णपाल चौधरी चीनी मिल के बाहर अपने ट्रैक्टर पर बैठे इंतजार कर रहे हैं कि उनकी फसल की खरीद के लिए कब उसकी तौल हो.
इस तरह इंतजार करने वाले वह अकेले नहीं है. उनके पीछे उसी जिले के सिलाना गांव के उसके दोस्त हरपाल चौधरी समेत गन्ने से लदे ट्रैक्टरों के साथ तमाम किसानों की लंबी कतार है.
फसल की तौल होने के बाद उनमें से हर एक को एक पर्ची मिलेगी, जिसके मुताबिक उन्हें बाद में राज्य सरकार की तरफ से उनकी फसल खरीद के बदले भुगतान मिलेगा.
बात अगर राजनीति की हो तो इन दोनों किसानों में से एक दोस्त चौधरी जयंत सिंह के राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) का समर्थक है, जबकि दूसरा चाहता है कि आगामी विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) फिर सत्ता में लौटे. लेकिन दोनों की ये शिकायत समान है कि उन्हें पिछले साल फरवरी से अपने गन्ने—जिस उपज को वेस्ट यूपी की जीवन रेखा कहा जाता है—का भुगतान नहीं मिला है.
कृष्णपाल कहते हैं, ‘योगी ने 2017 में वादा किया था कि 14 दिनों में हमारा भुगतान मिल जाएगा, लेकिन ब्याज तो छोड़ दीजिए, हमें पिछले 12 महीनों से मूल धन तक नहीं मिला है. उन्होंने चुनाव के मद्देनजर गन्ने की कीमतों में 25 रुपये की बढ़ोतरी की. यह सब चुनावी खेल है.’
पिछले साल सितंबर में, यानी 2022 के विधानसभा चुनावों से पांच महीने पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गन्ने की कीमत 25 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ा दी थी, जिससे करीब चार साल के बाद सामान्य किस्म के गन्ने की कीमत 315 रुपये से बढ़कर 340 रुपये हो गई थी.
कृष्णपाल की तरह बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ और बुलंदशहर आदि जिले के किसानों में भी नाराजगी नजर आती है, और इसमें एक बड़ा हिस्सा जाट और मुस्लिम किसानों का है.
हालांकि, नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने से पश्चिमी यूपी के किसानों को एक बड़ी राहत मिली है और यहां तक कि इसने एक वर्ग में प्रधानमंत्री के प्रति भरोसा भी बढ़ाया है. बतौर उदाहरण कृष्णपाल के दोस्त हरपाल कहते हैं, ‘मोदी ने किसानों के लिए बहुत कुछ किया है. उन्होंने छोटे किसानों को पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत 6,000 रुपये देने का वादा किया था. महामारी के बीच मोदी सरकार ने राशन बांटा है. वह राम मंदिर बनाने का वादा भी निभा रहे हैं और सीमाओं पर पाकिस्तान और चीन की हरकतों पर भी कड़ी नजर रखी गई है.’
हालांकि, एक साल तक चले किसान आंदोलन के साथ-साथ महामारी के बीच बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे ने कुला मिलाकर जाट किसानों के एक बड़े वर्ग को पिछले चुनावों में इस क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन करने वाली सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ लामबंद कर दिया है.
माना जा रहा है कि किसानों की नाराजगी की वजह से क्षेत्र में रालोद की खोई जमीन फिर मजबूत हो रही है, यह क्षेत्र पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह की पार्टी लोकदल से ही बने इस दल का परंपरागत गढ़ रहा है. अब सवाल यह है कि जाटों का वोट भाजपा से कितना छिटकेगा. यह पूरे क्षेत्र की चौपालों में चर्चा का आम विषय है—भाजपा कितने फीसदी जाट वोट गंवाएगी? कुछ का कहना है कि यह करीब 40 फीसदी होगा, जबकि कुछ की राय में भाजपा के जाट वोटबैंक का 30 फीसदी हिस्सा अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) और रालोद के गठबंधन के खाते में जाएगा.
रालोद महासचिव राजेंद्र शर्मा का दावा है, ‘केवल जाट ही नहीं, सभी किसानों को पिछले एक साल में नुकसान उठाना पड़ा है. इसलिए वे गठबंधन का समर्थन करेंगे. एक-दो सीटों को लेकर शुरुआत में कुछ हिचकिचाहट थी. चुनावी ध्रुवीकरण की भाजपा की कोशिशों के बावजूद वोट ट्रांसफर में कोई मुश्किल नहीं आएगी. वे जाटों के बीच सपा के मुस्लिम नेतृत्व को लेकर दहशत पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन लोग सभी चालें समझते हैं.’
इस बीच, बुढाना के भाजपा विधायक उमेश मलिक का दावा है कि पश्चिमी यूपी में कानून-व्यवस्था एक बड़ा मुद्दा है, और यह मतदाताओं को उनकी पार्टी से जोड़े रखेगा. उन्होंने कहा, ‘अखिलेश को पुलिस व्यवस्था पर नियंत्रण न रख पाने के लिए जाना जाता है. भाजपा ने किसानों के लिए काफी काम किए हैं, सरकार ने किसानों का 36 हजार करोड़ का कर्ज माफ किया है. पार्टी ने गन्ना किसानों को 1,48,000 करोड़ रुपये का भुगतान किया है.’
गन्ना बकाया, महंगाई, बिजली और आवारा पशु बने बड़े मुद्दे
किसान आंदोलन के दौरान गन्ने के भुगतान में देरी, बिजली महंगी होने और आवारा मवेशियों जैसे मुद्दों—जो उन्हें सीधे तौर पर प्रभावित करते हैं—ने पश्चिमी यूपी के किसानों को भारतीय किसान संघ (बीकेयू) राकेश टिकैत की अगुआई में एकजुट होने को प्रेरित किया.
सालभर जारी रहे आंदोलन ने इन मुद्दों पर गुस्से को और बढ़ाया है. बागपत जिले के जाट किसान बहुल एक गांव मलकपुर में रहने वाले वीरेंद्र चौधरी कहते हैं, ‘योगी ने (गन्ने) की दरों में केवल 25 रुपये की वृद्धि की है, जबकि डीजल और पेट्रोल की दरों में पिछले पांच वर्षों में 40 रुपये से अधिक की वृद्धि हुई है. यही नहीं यूपी में बिजली की कीमत किसी अन्य राज्य की तुलना से ज्यादा है. इतनी महंगाई के दौर में हम अपने बच्चों की परवरिश कैसे करेंगे?
रात में गेहूं, सरसों और गन्ने की फसलें आवारा पशुओं द्वारा नष्ट किए जाने के मुद्दे ने भी किसानों का मोहभंग होने में अहम भूमिका निभाई है. योगी आदित्यनाथ सरकार ने 2017 में पहली बार सत्ता में आने पर गौशालाएं बनाने का वादा किया था, लेकिन किसानों का कहना है कि पांच साल बाद भी इनकी संख्या नगण्य ही है. यहां तक कि कई गौशालाएं अक्सर मवेशियों को शाम के समय आवारा घूमने के लिए छोड़ देती हैं.
मलकपुर के एक अन्य किसान सोमपाल का कहना है कि दिन में उन्हें अपने खेतों में काम करना पड़ता है जबकि सर्द रातें आवारा मवेशियों से खेतों की रखवाली करने में बीतती हैं. वे कहते हैं, ‘मैं तो उसे ही वोट दूंगा जो हमें आवारा पशुओं से बचाएगा. योगीजी ने वादा किया था गौशाला बनवाएंगे, बागपत में कहां है गोशाला, बताओ? वे रात में हमारी फसल नष्ट कर रहे हैं. हमने अपने खेतों में बाड़ भी लगाई, लेकिन उसका कोई फायदा नहीं होता है.’
मुजफ्फरनगर जिले के गांवों में भी यही समस्या है, बुढ़ाना निवासी राजवीर मलिक ने कहा, ‘योगी ने गायों की रक्षा के लिए बहुत सारे वादे किए थे लेकिन उन्होंने इन आवारा पशुओं पर नियंत्रण के लिए कुछ नहीं किया. वे हमारे खेतों में घुसते हैं और राज्य की तरफ से कुछ किया नहीं जा रहा है.’
पिछले वर्ष पशुपालन मंत्रालय की तरफ से जारी 20वीं पशुधन गणना के मुताबिक, 2012 और 2019 के बीच यूपी में आवारा मवेशियों की संख्या में 17.34 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, भले ही कुल (देशभर में) आबादी में गिरावट आई हो. यूपी सरकार ने 2019-20 के लिए अपने बजट में गौशाला निर्माण के लिए 247.60 करोड़ रुपये आवंटित किए थे.
सिलाना निवासी हरपाल चौधरी का कहना है, ‘यूपी में करीब 545 पंजीकृत गौशालाएं हैं. लेकिन इनमें से अधिकांश में पशुओं की संख्या जरूरत से ज्यादा है, जो इस चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बन गया है. पिछले साल अखिलेश यादव ने उन्नाव में अपनी रथ यात्रा के दौरान सांडों के हमले में मरने वालों के परिवारों को 5 लाख रुपये के मुआवजे का वादा किया था. पिछले साल बांदा और बुलंदशहर में आवारा पशुओं के हमले में दो किसानों की मौत हुई थी.’
जाटलैंड में भाजपा बनाम रालोद
पिछले साल किसान आंदोलन के जोर पकड़ने के बाद रालोद ने पश्चिमी यूपी के सभी जिलों में किसान पंचायतों का आयोजन शुरू कर दिया था. पार्टी ने जाट-मुस्लिम एकता बढ़ाने के लिए ‘भाईचारा’ बैठकें भी आयोजित कीं, जिनके बीच 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के दौरान और उसके बाद दूरियां काफी बढ़ गई थीं.
पश्चिमी यूपी में जाट बहुल निर्वाचन क्षेत्र छपरौली के राकेश चौधरी का कहना है कि 2014 (लोकसभा), 2017 (विधानसभा) और 2019 (लोकसभा) के चुनावों में समुदाय के युवाओं ने तो मोदी को वोट दिया, जबकि क्षेत्र में चौधरी चरण सिंह के बेटे और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह के प्रभाव के कारण 50 साल से अधिक उम्र वालों ने रालोद को वोट दिया. राकेश कहते हैं, ‘युवा जाटों ने मोदी को वोट दिया. उन्होंने अपने परिवार की एक नहीं सुनी. लेकिन अब उन्हें एहसास हो गया है, जात भी गवाया और भात भी नहीं खाया, छोकरे बहक गए थे. इस बार युवा मतदाताओं के बीच मोदी की अच्छी अपील के बावजूद तमाम युवा मतदाता रालोद को वोट देंगे.’
बुढ़ाना के मलूक चौधरी का कहना है कि 2019 में हालात अलग थे. मलूक के मुताबिक, ‘बालाकोट हुआ, सभी राष्ट्रवाद के पक्ष में एकजुट हो गए लेकिन इस बार ऐसा कोई भावनात्मक मुद्दा नहीं है, पेट भी तो देखना पड़ेगा.’
पिछले कुछ दिनों में शामली और मुजफ्फरनगर जिलों में भाजपा को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा है. शामली से भाजपा विधायक तेजेंद्र निर्वाल को चुनासा गांव में प्रचार के दौरान विरोध का सामना करना पड़ा. उनके अंदर घुसते ही लोग ‘रालोद जिंदाबाद’ और ‘गो बैक निर्वाल’ जैसे नारे लगाने लगे, जिसके वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गए. वहीं, शामली के लिलोन गांव में तो लोगों ने दीवारों पर लिखकर भाजपा नेताओं को वोट मांगने के लिए क्षेत्र में न घुसने की चेतावनी तक दे डाली. यही नहीं केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान को भी इसी तरह के विरोध का सामना करना पड़ा.
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के आंकड़ों के मुताबिक, 2012 के यूपी विधानसभा चुनावों में केवल 7 प्रतिशत जाटों ने भाजपा को वोट दिया था, जो आंकड़ा 2014 (लोकसभा चुनाव) में बढ़कर 77 प्रतिशत और 2017 (यूपी चुनाव) में 91 प्रतिशत हो गया.
2017 में भाजपा के 11 जाट विधायक चुने गए, और इनमें चार को योगी आदित्यनाथ सरकार में जगह मिली. रालोद ने एकमात्र सीट छपरौली में जीत हासिल की लेकिन उसके विधायक ने भी 2018 में भाजपा का दामन थाम लिया. 2019 के लोकसभा चुनावों में तीन जाट भाजपा सांसद बने।
जाट वोट बैंक और मुजफ्फरनगर दंगों का असर
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में जाटों की आबादी अनुमानित तौर पर 18 फीसदी तक है. उदाहरण के तौर पर मुजफ्फरनगर में राजनीतिक दलों के आंकड़ों के अनुसार, बुढाना विधानसभा क्षेत्र में 70,000 जाट वोटर और 1.4 लाख मुस्लिम हैं, जबकि चरथवल में 40,000 जाट वोटर और 1.5 लाख मुस्लिम हैं. इसी तरह मुजफ्फरनगर में 26,000 जाट और 1.1 लाख मुस्लिम हैं, खतौली में इनकी संख्या क्रमश: 27,000 और 70,000, पुरकाजी (सुरक्षित) में क्रमशः 26,000 और 1.1 लाख और मीरापुर में क्रमश: 42,000 और 70,000 है.
आगामी विधानसभा चुनाव के पहले और दूसरे चरण के लिए प्रत्याशियों की सूची में सपा ने रालोद के लिए 33 सीटें छोड़ी हैं, जबकि पांच प्रत्याशी रालोद के चुनाव चिह्न पर सपा से चुनाव लड़ेंगे. गठबंधन ने 10 जाट उम्मीदवार उतारे हैं, जबकि भाजपा ने 16 उम्मीदवार उतारे हैं.
भाजपा की नजरें मुस्लिम वोट बंटने और दलित ओबीसी ध्रुवीकरण के साथ-साथ युवा जाट मतदाताओं के एक बड़े हिस्से पर टिकी हैं. मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने कई मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जिससे भाजपा को फायदा हो सकता है. यह सपा के लिए भी एक चुनौती है, जिसे मुस्लिम वोट बंटने का सामना करना पड़ सकता है. सपा को टिकट बंटवारे पर रालोद कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है.
2012 के चुनावों में भाजपा ने इस क्षेत्र में 70 में से 11 सीटें जीती थीं, लेकिन 2017 में उसने 70 में से 51 सीटें जीतीं. जबकि सपा ने 15, कांग्रेस ने दो और रालोद और बसपा ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की.
भाजपा ने पूर्व में जाट वोटों को साधने के लिए यूपी में रालोद के साथ गठबंधन किया था. लेकिन 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों ने यूपी में जाट राजनीति के पूरे समीकरण को बदलकर रख दिया.
इस चुनाव में भाकियू नेता राकेश टिकैत किसानों को एक चेहरा बना रहे हैं, लेकिन माना जा रहा है कि इस क्षेत्र की पहचान माने जाने वाले जाट चुनाव नतीजों में निर्णायक साबित होंगे. आगामी चुनाव जाट-मुस्लिम एकता की भी परीक्षा होंगे, जिस पर रालोद अध्यक्ष जयंत सिंह पिछले एक साल से जोर दे रहे हैं.
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