मुंबई, 21 जनवरी (भाषा) मुंबई की विशेष पीएमएलए अदालत ने अपने आदेश में महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के नेता अनिल देशमुख को धन शोधन मामले में तकनीकी आधार पर जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि उनकी न्यायिक हिरासत का विस्तार अवैध नहीं है। अदालत ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने निर्धारित 60 दिन की अवधि में पूरक आरोप पत्र दाखिल किया था।
अदालत ने यह भी कहा है कि आरोप पत्र दाखिल करने के बाद अपराध का संज्ञान लेना दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के तहत निहित न्यायिक शक्ति का प्रयोग करने के लिए कोई आवश्यक शर्त नहीं है। तकनीकी आधार पर जमानत के लिए देशमुख की अर्जी को विशेष पीएमएलए न्यायाधीश आर एम रोकड़े ने 18 जनवरी को खारिज कर दिया था और विस्तृत आदेश शुक्रवार को उपलब्ध कराया गया।
देशमुख ने अपनी अर्जी में कहा था कि धन शोधन निवारण कानून (पीएमएलए) के मामलों की सुनवाई करने वाली विशेष अदालत ने उन्हें आगे की न्यायिक हिरासत में भेजने से पहले ईडी द्वारा दाखिल आरोप पत्र का संज्ञान नहीं लिया और इसलिए वह तकनीकी आधार पर (डिफॉल्ट) जमानत के हकदार हैं।
देशमुख को दो नवंबर 2021 को गिरफ्तार किया गया था और वर्तमान में वह न्यायिक हिरासत में हैं। ईडी ने देशमुख की अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि आरोप पत्र निर्धारित समय के भीतर दाखिल किया गया था।
ईडी ने कहा कि सीआरपीसी की संबंधित धारा के तहत संज्ञान लेने की अवधारणा अनिवार्य नहीं है। साथ ही कहा कि यदि जांच पूरी हो जाती है और संबंधित अदालत के अधिकारी के पास आरोप पत्र दाखिल किया जाता है तो यह तथ्य ‘‘महत्वहीन’’ हो जाता है कि सीआरपीसी के प्रावधानों के तहत अदालत द्वारा 60 दिनों की अवधि के भीतर संज्ञान नहीं लिया गया।
देशमुख पर मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का आरोप लगाया था, जिसके बाद केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और ईडी ने राज्य के पूर्व गृह मंत्री के खिलाफ मामले दर्ज किए थे।
भाषा आशीष माधव
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