नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले चरण में गैर-यादव ओबीसी और दलित मतदाताओं को लुभाने के उद्देश्य से भाजपा ने अपने स्टार प्रचारकों की सूची में बड़ी संख्या में पिछड़े समुदायों के प्रमुख चेहरों को शामिल किया है.
यह कदम अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के नेताओं स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान के पार्टी छोड़ने के कुछ कुछ दिनों बाद उठाया गया है, जिन्होंने ‘दलितों और पिछड़ों की उपेक्षा होने’ की दलील देते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) का दामन थाम लिया है.
पार्टी की 30 स्टार प्रचारकों की सूची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे जाने-माने चेहरों के अलावा सैनी, गुर्जर, लोध और निषाद आदि दलित और ओबीसी नेताओं को तरजीह दी गई है.
सात चरणों में प्रस्तावित राज्य विधानसभा चुनावों के पहले चरण में 10 फरवरी (58 सीटों) को मतदान होना है, जिसमें मुख्य तौर पर पश्चिमी यूपी के शामली, मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, गाजियाबाद, गौतम बौद्ध नगर, हापुड़, बुलंदशहर, अलीगढ़, मथुरा और आगरा आदि जिले कवर किए जाएंगे.
इन क्षेत्रों में दलितों (जाटव, पाल), ओबीसी (जाट, गुर्जर, लोध, निषाद, मल्लाह, कश्यप) और मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी आबादी है.
दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अलीगढ़ में इगलास विधानसभा क्षेत्र जाट बहुल है और इसमें इस समुदाय की हिस्सेदारी एक लाख के आसपास है. लेकिन यहां एक बड़ी हिस्सेदारी (30,000 के करीब) बघेल और दलित समुदाय (करीब 50,000) की भी है, जिसका मतलब है कि ये समुदाय चुनाव का रुख किसी के भी पक्ष में बदल सकते हैं.
वहीं, शामली में करीब 70,000 जाटों के अलावा, 65,000 मुस्लिम और लगभग 20,000 गुर्जर, 25,000 कश्यप और लगभग 45,000 दलित हैं. इसलिए, इस वोटबैंक को लुभाने के लिए भाजपा ने इन क्षेत्रों में कश्यप, गुर्जर, सैनी और जाटव नेताओं को स्टार प्रचारक के तौर पर शामिल किया है.
पार्टी सूत्रों का मानना है कि जाट वोटों में किसी भी तरह की कमी की भरपाई इन समुदायों की तरफ से हो जाएगी.
यूपी भाजपा के उपाध्यक्ष दया शंकर ने दिप्रिंट को बताया कि ‘ज्यादातर ओबीसी नेताओं को स्टार प्रचारकों की सूची में शामिल किया गया है क्योंकि अधिकांश जिलों में ओबीसी और दलितों की अच्छी तादात है.’
उन्होंने कहा, ‘प्रमुख चेहरों के अलावा लोग अपनी जाति के नेता की वजह से भी जुड़ते हैं. हमने कई ओबीसी नेताओं को पार्टी और कैबिनेट में शामिल किया है. यह सामाजिक न्याय के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है.’
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जाट, गुर्जर नेताओं को दी तरजीह
मोदी सरकार से धर्मेंद्र प्रधान, मुख्तार अब्बास नकवी, संजीव बाल्यान, जनरल वी.के. सिंह (रिटायर), एस.पी. बघेल और निरंजन ज्योति जैसे नेताओं को स्टार प्रचारकों में शामिल किया गया है.
प्रधान एक प्रमुख ओबीसी नेता हैं और यूपी चुनाव के लिए पार्टी के प्रभारी भी हैं, वहीं, रामपुर के पूर्व सांसद के नाते नकवी को मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी गई है.
पश्चिमी यूपी के एक प्रमुख जाट नेता के तौर पर बाल्यान को स्टार प्रचारकों में शामिल किया जाना बेहद अहम माना जा रहा है, जबकि वी.के. सिंह गाजियाबाद से सांसद हैं, जहां पहले चरण में चुनाव होने हैं. बाल्यान के अलावा सूची में शामिल एक और प्रमुख जाट नेता हैं भूपेंद्र सिंह चौधरी, जो मुरादाबाद के रहने वाले हैं और योगी आदित्यनाथ कैबिनेट में मंत्री भी हैं.
इसके अलावा सूची में यूपी भाजपा अध्यक्ष और कुर्मी जाति से आने वाले प्रभावशाली ओबीसी नेता स्वतंत्र देव सिंह और उपमुख्यमंत्री और मौर्य समुदाय के एक प्रमुख नेता (ओबीसी) केशव प्रसाद मौर्य भी शामिल हैं. जून 2021 में उत्तर प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष नियुक्त किए गए जसवंत सैनी सहारनपुर के एक प्रमुख सैनी नेता हैं.
मंत्री अशोक कटारिया को पश्चिमी यूपी में गुर्जरों के बीच पैठ बनाने के लिए ही आदित्यनाथ सरकार में शामिल किया गया था. पार्टी सूत्रों ने कहा कि पहले भाजपा महासचिव रहे कटारिया का गुर्जरों की अच्छी-खासी आबादी वाले मुरादाबाद, बरेली और मेरठ क्षेत्रों में काफी प्रभाव है. इस सूची में जगह पाने वाले एक अन्य गुर्जर नेता राज्यसभा सांसद सुरेंद्र सिंह नागर हैं, जो 2020 में सपा को छोड़कर भाजपा में आए थे.
पिछले साल सितंबर में गौतम बौद्ध नगर के दादरी में एक विवाद उत्पन्न हो गया था, जहां मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने 9वीं शताब्दी के शासक राजा मिहिर भोज की प्रतिमा का अनावरण किया था.
बाद में राजा मिहिर भोज को लेकर राजपूतों और गुर्जरों के बीच विवाद हो गया और कुछ अज्ञात लोगों ने प्रतिमा की पट्टिका पर लिखे ‘गुर्जर’ शब्द पर काली स्याही पोत दी थी. तब नागर ने मौके पर पहुंचकर उसे साफ कराया था. इसके बाद फिर कुछ अज्ञात लोगों ने पट्टिका पर लिखे मुख्यमंत्री, नागर और स्थानीय विधायक के नाम पर काली स्याही पोत दी थी. भाजपा ने यूपी के गुर्जर बहुल इलाकों में यह मुद्दा उठाया था.
सूची में शामिल केंद्रीय मंत्री बी.एल. वर्मा एक अन्य प्रमुख ओबीसी चेहरा हैं, जो लोध समुदाय से आते हैं. लोध समुदाय मुख्य तौर पर कृषि से जुड़ा है. वर्मा दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री और प्रमुख लोध नेता कल्याण सिंह के सहयोगी भी रहे हैं.
सूची में शामिल प्रमुख दलित चेहरों में राज्य मंत्री और आगरा के सांसद सत्य पाल सिंह बघेल भी हैं, जो पाल (अनुसूचित जाति) समुदाय से आते हैं.
बुलंदशहर के सांसद भोला सिंह खटिक स्टार प्रचारकों में शामिल एक और दलित नेता हैं.
राज्यसभा सदस्य और जाटव समुदाय (एससी) की प्रमुख महिला नेता कांता कर्दम और निषाद (मछुआरे) समुदाय के बीच प्रमुख ओबीसी चेहरा निरंजन ज्योति को भी स्टार प्रचारक बनाया गया है. इसी तरह का एक अन्य नाम आंवला से सांसद धर्मेंद्र कश्यप का है, जो मल्लाह समुदाय (ओबीसी) से आते हैं और पश्चिमी यूपी के तराई बेल्ट वाले जिलों में खासा दबदबा रखते हैं.
उत्तर प्रदेश पिछड़ा वर्ग आयोग के प्रमुख जसवंत सैनी ने दिप्रिंट से कहा कि पहले राजनीतिक दलों की तरफ से सैनी, केवट और मल्लाह जैसी छोटी-मोटी ओबीसी जातियों की उपेक्षा की जाती थी, लेकिन भाजपा ने उन्हें पद और सत्ता में हिस्सेदारी मुहैया कराई है.
उन्होंने कहा, ‘अखिलेश यादव के शासन में केवल यादवों और मुसलमानों को सत्ता में भागीदारी मिली. हम अन्य जातियों के साथ न्याय कर रहे हैं और यही वजह कि 2017 और 2019 में इन जातियों ने भाजपा का समर्थन किया. स्वामी प्रसाद मौर्य और दारा सिंह चौहान के पार्टी छोड़ने के बावजूद हमें अधिकांश ओबीसी जातियों का समर्थन हासिल होगा.
यूपी में में सात चरणों में विधानसभा चुनाव होना है जिसके लिए 10, 14, 20, 23 और 27 फरवरी और 3 और 7 मार्च को वोट पड़ेंगे. मतदान के नतीजे 10 मार्च को घोषित किए जाएंगे.
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