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Friday, 20 December, 2024
होमदेशक्या है आदिवासियों का सोहराय त्योहार? असिस्टेंट प्रोफेसर रजनी मुर्मू के एक फेसबुक पोस्ट से मची है हलचल

क्या है आदिवासियों का सोहराय त्योहार? असिस्टेंट प्रोफेसर रजनी मुर्मू के एक फेसबुक पोस्ट से मची है हलचल

रजनी मुर्मू ने सात जनवरी को किए अपने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि सोहराय पर्व मनाने के बहाने आदिवासी लड़के लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न करते हैं. इसे बंद होना चाहिए.

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रांची: झारखंड के संताल परगना इलाके (दुमका, गोड्डा, देवघर, साहिबगंज, पाकुड़) में बीते एक हफ्ते से अलग तरह की हलचल मची हुई है. गोड्डा कॉलेज में समाजशास्त्र की असिस्टेंट प्रोफेसर रजनी मुर्मू ने आदिवासी समाज में व्याप्त पुरुषवादी मानसिकता और उसके रूप पर अपना क्षोभ व्यक्त किया.

गोड्डा कॉलेज, सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय (एसकेएमयू) के अंतर्गत आता है.

रजनी मुर्मू ने सात जनवरी को किए अपने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि सोहराय पर्व मनाने के बहाने आदिवासी लड़के लड़कियों के साथ यौन उत्पीड़न करते हैं. इसे बंद होना चाहिए.

पोस्ट के मुताबिक, ‘संताल परगना में संतालों का सबसे बड़ा पर्व सोहराय बडे़ ही धूम धाम से मनाया जाता है. जिसमें हर गांव अपनी सुविधानुसार 5 से 15 जनवरी के बीच अपना दिन तय करते हैं. ये त्योहार लगातार 5 दिनों तक चलता है. इस त्योहार की सबसे बड़ी खासियत स्त्री और पुरूषों का सामुहिक नृत्य होता है. इस नृत्य में गांव के लगभग सभी लोग शामिल होते हैं. मां-बाप से साथ बच्चे मिलकर नाचते हैं.’

‘पर जब से संताल शहरों में बसने लगे तो यहां भी लोगों ने इस त्योहार के दिन को कम कर के एक दिवसीय सोहराय कर दिया. खासकर के सोहराय मनाने की जिम्मेदारी सरकारी कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों ने उठाई. मैंने दो बार एसपी कॉलेज दुमका का सोहराय अटेंड किया है. जहां मैं देख रही थी कि लड़के शालीनता से नृत्य करने के बजाय लड़कियों के सामने बदतमीजी से ‘सोगोय’ करते हैं.’

सोगोय एक संताली शब्द है, जिसका मतलब सामूहिक नृत्य होता है. इसमें केवल लड़के हिस्सा लेते हैं. लड़कियों के सामने ताली बजाते हुए नाचते हैं. ये केवल संताल इलाके में किया जाता है.

वो आगे लिखती हैं, ‘सोगोय करते करते लड़कियों के इतने करीब आ जाते हैं कि लड़कियों के लिए नाचना बहुत मुश्किल हो जाता है. सुनने को तो ये भी आता है कि अंधेरा हो जाने के बाद सीनियर लड़के कॉलेज में नई आई लड़कियों को झाड़ियों की तरफ जबरदस्ती खींच कर ले जाते हैं और आयोजक मंडल इन सब बातों को नजरअंदाज कर चलते हैं.’

सोहराय आदिवासी इलाकों में मनाया जानेवाला एक प्रमुख त्योहार है. इसमें भाई-बहन के रिश्ते को सेलिब्रेट किया जाता है. इस दौरान घर, गाय-बैल, फसलों आदि की पूजा की जाती है.

संताल परगना वो इलाका है जहां से राज्य के सीएम हेमंत सोरेन, उनकी भाभी सीता सोरेन, उनके भाई बसंत सोरेन विधानसभा में चुनकर आए हैं. झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) का गढ़ भी इसे माना जाता रहा है.

इसे लिखने के बाद रजनी मुर्मू के खिलाफ दुमका थाने में सनहा दर्ज कराई गई है. दर्ज करानेवाले में स्थानीय छात्र नेता श्यामदेव हेम्बरोम, राजीव बास्की और प्रेमराज हेम्बरोम सहित कई अन्य शामिल हैं. उन्हें नौकरी से हटाने के लिए सिदो-कान्हू मुर्मू यूनिवर्सिटी की वीसी सोना झरिया मिंज को भी ज्ञापन दिया गया है.


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पोस्ट के खिलाफ केस

श्यामदेव हेम्बरोम ने दिप्रिंट को बताया, ‘अपने समाज की बुराइयों के बारे में दुनिया को बताकर वाहवाही बटोरना कहां से उचित्त है. ऐसे में हमारा समाज रजनी मुर्मू की उपलब्धियों पर गर्व कैसे करे. एसपी कॉलेज में अगर इस तरह की कोई घटना हुई है, तो उन्हें आयोजकों के साथ बैठकर बात करनी चाहिए थी. न कि सबसे सामने समाज की इज्जत को उछालना चाहिए था. इसलिए हमने उनके बर्खास्तगी की मांग की है.’

श्यामदेव ने बताया कि वो इस वक्त दुमका कॉलेज में पीएचडी के छात्र हैं. वह झारखंड में जनजाति एवं संताल परगना के संस्कृति एवं विशेष संदर्भ विषय पर शोध कर रहे हैं.

वहीं रजनी मुर्मू से जब बात हुई तो वह कोर्ट से लौट रही थीं. उन्होंने बताया कि, महेशपुर, पाकुड़, गोड्डा में भी उनके खिलाफ शिकायत दर्ज हुई है. वो आगे बताती हैं, ‘पोस्ट लिखने के बाद सात तारीख की रात को तीन फोन कॉल आए जिसमें मुझे धमकाया और गाली-गलौच का इस्तेमाल किया गया.’

‘फोन करनेवाले ने कहा कि जो अपने पति को नहीं संभाल सकती है, समाज को क्या संभालेगी. घटना के बाद जेएमएम की नेता सुनीता सोरेन ने भी फोन किया. उन्होंने कहा कि धमकी देनेवाले लड़के माफी मांगने के लिए तैयार हैं, समझौता कर लो. मैं इसके लिए तैयार भी थी. लेकिन फिर देख रही हूं कि वही लड़के उग्र आंदोलन की बात कर रहे हैं. इसके खिलाफ मैंने गोड्डा थाने में शिकायत दर्ज कराई है. लेकिन उस शिकायत को एफआईआर में तब्दील नहीं किया जा रहा है. जिसके खिलाफ मैं कोर्ट जा रही हूं.’

वो बताती हैं, साल 2018 और 19 में वह दुमका कॉलेज के सोहराई समारोह को अटेंड करने गई थी. जहां इस तरह की हरकतों को उन्होंने देखा. इस साल भी ये समारोह आयोजित हो रहा था, तो मैंने अपनी बात रखी.

‘पुरुषवादी सोच’ और ‘बेबुनियाद आरोप’

दुमका की सामाजिक कार्यकर्ता निर्मला पुतुल भी इससे इत्तेफाक रखती हैं. उनके मुताबिक, ‘सिर्फ सोहराई ही नहीं, अन्य पर्व-त्योहार के दौरान भी हमने ये चीजें देखी हैं. लड़की की मर्जी की बात हो तो कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन मर्जी न होने पर भी कई बार लड़कियां इसका विरोध नहीं कर पाती हैं. पुरुषवादी सोच रजनी के लिखे को पचा नहीं पा रही है. लेकिन इसे कब तक छिपाया जाएगा.’

वो आगे कहती हैं, ‘ये बात सही है कि आदिवासी महिलाएं अन्य महिलाओं के मुकाबले अधिक स्वतंत्र हैं. लेकिन किस मामले में, नौकरी करने, बाहर जाकर काम करने, घर चलाने के लिए. इन सब मामलों में आवाज उठाने के लिए नहीं.’

वहीं संताली भाषा, संस्कृति के जानकार और विनोबा भावे विवि में संताली भाषा के गेस्ट फैकल्टी गणेश मुर्मू का कहना है कि, वो दुमका इलाके को बेहतर तरीके से जानते हैं. उनके मुताबिक, ‘उस कम्यूनिटी में ऐसा कोई ट्रेंड नहीं है, जिस तरीके का आरोप रजनी लगा रही हैं. गांव में कभी रेप या ताक-झांक भी नहीं होती है.’

बरहेट (सीएम हेमंत सोरेन इसी विधानसभा के चुनकर आए हैं) के एक गांव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘वहां तालाब के एक तरफ महिलाएं नहाती हैं तो दूसरी तरफ पुरुष. लेकिन कभी कोई ऐसी घटना नहीं घटी है. महिलाएं अगर शौच के लिए पहाड़ के एक तरफ जा रही हैं तो पुरुष दूसरी तरफ जाते हैं. जबकि कोई साइनबोर्ड भी नहीं लगा है.’

वो आगे कहते हैं, ‘संताली समाज बहुत सिविलाइज्ड है. वहां प्रेम विवाह आम बात है. लेकिन अगर सामाजिक तौर पर कुछ गलत होता है तो उसका बिटलाहा कर दिया जाता है. रजनी किस उद्देश्य से ये मसला उठा रही हैं, मुझे इसकी जानकारी नहीं है.’

सामाजिक बहिष्कार 

रजनी मुर्मू के खिलाफ बिटलाहा की बात कही जा रही है. स्थानीय चलन के मुताबिक बिटलाहा का मतलब होता है सामाजिक बहिष्कार.

इसकी मांग करनेवाले श्यामदेव अब इससे पलटते नजर आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि केवल मेरे कहने भर से बिटलाहा नहीं हो जाएगा. इसका निर्णय समाज के लोग मिलकर करेंगे.

ये पहला मामला नहीं है जब रजनी मुर्मू को अपने कहे या लिखे का विरोध का सामना करना पड़ रहा हो. इससे पहले साल 2017 में पाकुड़ कॉलेज में भी एक समारोह के दौरान उन्होंने विरोध किया था इसके बाद उनका तबादला एसपी कॉलेज में कर दिया गया था. रजनी इसपर कहती हैं, इस घटना के बाद मेरी मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी. ऐसे में हम खुद अनुरोध कर ट्रांसफर ले लिए थे.

आदिवासी समुदाय में भी पितृ सत्ता मजबूत जड़ बनाए हुए है. इस पर जसिंता केरकेट्टा जैसी लेखिका भी चिंता जाहिर कर चुकी हैं. इस वक्त कई लोग रजनी मुर्मू के खिलाफ हैं तो कई आदिवासी उनके समर्थन में भी खड़े हुए हैं.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)


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