नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान की ओर से जाट नेता और भारतीय किसान संघ (बीकेयू) के अध्यक्ष नरेश टिकैत से सोमवार को की गयी एक जाहिरा तौर पर ‘शिष्टाचार भेंट’ ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश- जहां अगले महीने विधानसभा चुनाव होने वाले हैं – में काफी राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है.
यूपी भाजपा के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले किसान नेताओं तक अपनी रणनीतिक पहुंच बनाने का प्रयास कर रही है. अपने इन प्रयासों के तहत ही पार्टी ने राष्ट्रीय लोक दल (रालोद), जिसके बारे में माना जाता है कि उसका जाट किसानों के बीच एक महत्वपूर्ण समर्थन आधार है – के खिलाफ भी अपनी बयानबाजी भी तेज कर दी है.
हालांकि संजीव बालियान ने दिप्रिंट को बताया कि मुजफ्फरनगर के सिसौली गांव में नरेश टिकैत के साथ मुलाकात के लिए उनकी यात्रा सिर्फ एक ‘शिष्टाचार भेंट’ थी.
संजीव बालियान, जो मुजफ्फरनगर से भाजपा सांसद भी हैं, ने कहा, ‘उन्हें कुछ दिन पहले चोट लग गई थी, इसलिए मैं उनकी सेहत के बारे में जानने के लिए यहां आया था. वह हमारे खाप के चौधरी हैं.’
नरेश टिकैत ने अपनी तरफ से मीडियाकर्मियों से कहा कि यह बैठक एक ‘सामाजिक मुलाकात’ थी. नरेश टिकैत और उनके भाई राकेश टिकैत दोनों ने कहा है कि बीकेयू किसी भी राजनीतिक दल से जुड़ा नहीं है और (हमारे) दरवाजे सभी के लिए खुले हैं.
मगर, बाल्यान के साथ इस बैठक के तुरंत बाद, नरेश टिकैत ने राज्य में समाजवादी पार्टी (सपा)-राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) गठबंधन का समर्थन करने के बारे में अपने द्वारा पहले दिए गए बयानों से खुद को अलग कर लिया.
बैठक के बाद उन्होंने कहा,’हम थोडा सा फालतू बोल गए. हमें ऐसा नहीं कहना चाहिए था.’ उन्होंने यह भी कहा कि वह स्पष्ट रूप से गैर-राजनीतिक संगठन संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम), जो किसानों की संस्थाओं का एक गठबंधन है और जिसने अब निरस्त कर दिए कृषि कानूनों के विरोध का नेतृत्व किया था – से बाहर नहीं होना चाहते हैं.
इस बीच, भाजपा की सोशल मीडिया टीमों ने अत्यधिक सक्रियता दिखाते हुए पश्चिमी यूपी के सैकड़ों व्हाट्सएप ग्रुपों को इस घटनाक्रम के बारे संदेश में भेजे.
भाजपा के सूत्रों ने दिप्रिंट को यह भी बताया कि बाल्यान का यह दौरा उन जाट किसानों तक पहुंच बनाने की रणनीति का हिस्सा था, जो पिछले साल भाजपा सरकार द्वारा लाये गए तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने के फैसले के बावजूद सपा-रालोद गठबंधन की ओर झुक रहे हैं.
पार्टी पश्चिमी यूपी – जहां पहले दो चरणों के तहत 10 और 14 फरवरी को विधानसभा चुनाव होंगे – में जाट नेताओं, खासकर बीकेयू से जुड़े नेताओं के साथ बेहतर संबंध स्थापित करने की योजना बना रही है.
भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘अगले सप्ताह गृह मंत्री अमित शाह भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट नेताओं से मुलाकात करेंगे.’
बागपत से भाजपा विधायक योगेश धामा ने दिप्रिंट को बताया कि सत्ताधारी दल के बारे में किसानों की सभी ‘गलतफहमियों’ को दूर करने का प्रयास किया जा रहा है.
धामा ने कहा ‘हम किसानों को आश्वस्त करने के लिए उनके नेताओं, विशेष रूप से जाटों समुदाय के नेताओं, के साथ बैठक कर रहे हैं. कृषि कानूनों को निरस्त किये जाने और गन्ने की फसल की मूल्य वृद्धि के योगी सरकार के निर्णय के बाद किसानों से जुड़े अधिकांश मुद्दों का समाधान कर दिया गया है, लेकिन उनके भीतर अभी भी कुछ गलतफहमियां है.’ उन्होंने यह भी कहा कि किसानों का समर्थन हासिल करने का सबसे अच्छा तरीका उनके कल्याण के लिए सरकार द्वारा की जा रहीं पहलों से उन्हें अवगत कराना है.
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भाजपा ने रालोद पर तान दीं हैं बंदूकें
जाट बेल्ट में अपनी रणनीति के तहत, भाजपा ने रालोद, जिसका किसानों के बीच एक महत्वपूर्ण समर्थन आधार है, के खिलाफ भी अपनी बयानबाजी तेज कर दी है.
अब तक भाजपा अपना सारा गुस्सा समाजवादी पार्टी पर ही केंद्रित कर रही थी और उसने रालोद पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया था. हालांकि, अब यूपी भाजपा के आधिकारिक ट्विटर हैंडल ने इस हफ्ते एक नया वीडियो क्लिप जारी किया, जिसमें दिवंगत रालोद प्रमुख अजीत सिंह के सपा विरोधी रुख की तुलना उनके बेटे जयंत चौधरी से की गई, जो फ़िलहाल सपा के साथ गठबंधन में हैं.
इस वीडियो में आरोप लगाया गया है कि जयंत चौधरी ने विभिन्न तरीकों से जाटों को नीचा दिखाया है और सत्ता के लिए अपने ‘लालच’ की वजह से अपने ही पिता की विरासत की अनदेखी की है.
पश्चिमी यूपी के लिए भाजपा के एजेंडे में किसान, जातिय गणित पर है ज्यादा ध्यान
पश्चिमी यूपी के एक भाजपा विधायक ने कहा कि हालांकि पार्टी को किसानों के विरोध के कारण पश्चिमी यूपी में ‘कुछ नुकसान’ होने की उम्मीद है, लेकिन एक प्रभावी प्रचार चीजों को बदलने में मदद कर सकता है.
उन्होंने कहा, ‘हमने उन कानूनों को निरस्त कर दिया है, लेकिन किसान अभी भी अपने कष्ट को नहीं भूले हैं. कोविड से जुडी हुई बेरोजगारी और पेट्रोल एवं डीजल की कीमतों में आई तेज वृद्धि भी हमारी (चुनावी) संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है. लेकिन, हालांकि इससे जाट वोटों में सेंध लग सकती है, मगर यह उस स्तर का नहीं होगा जिससे भाजपा को कोई खतरा हो.‘
राज्य की कुल 403 विधानसभा सीटों में से 113 विधानसभा सीटें पश्चिमी यूपी में हैं.
2012 में, जब समाजवादी पार्टी यूपी में सत्ता में आई थी तो उसने यहां की 113 में से 41 सीटें जीतीं, जबकि बसपा और भाजपा को क्रमशः 35 और 18 सीटें मिली थीं. रालोद और कांग्रेस ने भी आठ-आठ सीटें जीतीं थीं. 2017 में, भाजपा ने 91 सीटों के साथ भारी जीत हासिल की थी, जबकि सपा 17 सीटों के साथ काफी पीछे रहते हुए दूसरे स्थान पर थी. बसपा और कांग्रेस ने सिर्फ दो-दो सीटें जीतीं और रालोद को केवल 1 सीट ही मिली थी. 2017 में, भाजपा को इस क्षेत्र में जाट वोटों का 50 प्रतिशत प्राप्त हुआ था
हालांकि उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में जाटों की संख्या 2 फीसदी से भी कम है, मगर पश्चिमी यूपी के कुछ जिलों में इनकी आबादी 18 फीसदी तक है.
सपा-रालोद गठबंधन मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए जाट-मुस्लिम एकता के साथ-साथ किसानों के बीच भाजपा विरोधी भावनाओं पर भरोसा कर रहा है. इस बीच, भाजपा ओबीसी समुदायों के साथ-साथ सांप्रदायिक आधार पर होने वाले प्रति-ध्रुवीकरण पर अपना दांव लगा रही है.
भाजपा ‘गुर्जर एकता’ के अपने पक्ष में काम करने के लिए भरोसा कर रही है (जैसा कि हाल ही में गुर्जर प्रतीक मिहिर भोज का महिमामंडन करने वाली परियोजनाओं से दिखता है) और साथ ही यह बसपा के दलित वोटों में विभाजन की भी उम्मीद कर रही है.
यूपी भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि पार्टी कई तरह की जातिय गणनाओं का मूल्यांकन कर रही है.
इस नेता ने कहा, ‘अगर जाट वोटों का ध्रुवीकरण रालोद-सपा के पक्ष में होता है, तो हम गुर्जर-सैनी एकता पर अपना ध्यान केंद्रित करेंगे. लेकिन, जाट वोटों का समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को हस्तांतरण रालोद के लिए एक बड़ी चुनौती होगी, खासकर उन सीटों पर जहां सपा ने मुस्लिम उम्मीदवारों को खड़ा किया है. हम कई तरह की गणनाओं (हिसाब-किताब) पर काम कर रहे हैं, जिससे इस इलाके में सपा-रालोद के पक्ष में जातिगत ध्रुवीकरण रुक जाएगा.’
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