scorecardresearch
Tuesday, 17 December, 2024
होमइलानॉमिक्सपांच बातें तय करेंगी 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था का क्या हाल होगा

पांच बातें तय करेंगी 2022 में भारतीय अर्थव्यवस्था का क्या हाल होगा

जीडीपी और मुद्रास्फीति, दोनों में बढ़ोतरी के कारण दुनियाभर में केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि कर सकते हैं जिससे वित्त बाज़ार में अस्थिरता पैदा होगी मगर यह कोई बुरी खबर नहीं है.

Text Size:

कोविड-19 महामारी की तीसरी लहर भारत में तेजी से फ़ेल रही है, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि यह उतनी मारक नहीं होगी और न ही देर तक टिकेगी. और, भारतीय अर्थव्यवस्था में आर्थिक वृद्धि ने पिछले छह महीने में जो रफ्तार पकड़ी है उसमें कोई कमी नहीं आएगी. भारत जब नये वर्ष में प्रवेश कर रहा है, वृहत अर्थव्यवस्था के पांच कारक 2022 में पूरी अर्थव्यवस्था का स्वरूप तय करेंगे.

2022-23 में ऊंची वृद्धि दर

उम्मीद की जा रही है कि वित्त वर्ष 2022-23 में सकाल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर ऊंची रहेगी. आय और उत्पादन में वृद्धि केवल नीची ‘बेस इफेक्ट’ यानी पिछले वर्ष की इसी अवधि में नीची मुद्रास्फीति के कारण नहीं होगी बल्कि व्यवसाय में बेहतरी और अंतरराष्ट्रीय तथा घरेलू मांग में अनुमानित सुधार के कारण भी होगी. हालांकि ओमिक्रोन वाइरस के प्रकोप के कारण इस साल के पहले कुछ सप्ताह मुश्किल भरे दिख रहे हैं, लेकिन इसके बाद के महीनों में ‘रिकवरी’ फिर पटरी पर लौटने की उम्मीद है.

हालांकि वाइरस का ओमिक्रोन रूप काफी तेजी से संक्रमण फैलाता है लेकिन यह वाइरस के पिछले रूपों से कम घातक है. टीकाकरण की दरों में सुधार, रोग प्रतिरोध की सामुदायिक क्षमता (‘हर्ड इम्यूनिटी’) के विकास, और हमारी तैयारियों के कारण जीवन और आजीविका की कम क्षति होने की उम्मीद है.

2021 के समाप्त होने तक वयस्कों की आबादी में 61 फीसदी को टीके की दोनों खुराक, और 90 फीसदी को एक खुराक लगाई जा चुकी थी. अब किशोरवय वालों को टीका लगाया जा रहा है. स्वास्थ्यकर्मियों, और दूसरे रोगों से पीड़ित 60 वर्ष से ज्यादा उम्र वालों को तीसरी खुराक देने की तैयारी की जा रही है. टीकाकरण की ऊंची दर के कारण आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी और मांग में वृद्धि को सहारा मिलेगा.

वायरस को लेकर अनिश्चितता के कारण आर्थिक वृद्धि में कुछ गिरावट का खतरा हो सकता है, खासकर सघन क्षेत्रों में, लेकिन यह साल के शुरू के महीने तक ही सीमित रह सकता है. आर्थिक वृद्धि को ऊंचे पूंजी व्यय, नये संस्थागत ढांचे के जरिए इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा, मैनुफैक्चरिंग सेक्टर की मजबूती और निर्यात में वृद्धि आदि के कारण उछाल मिलेगा.


यह भी पढ़ें: जब लग रहा था कि अर्थव्यवस्था रिकवर करने ही वाली है ऐसे में ओमीक्रॉन की आशंका ने इसे झटका दे दिया


बढ़ती महंगाई

विकसित और उभरती बाजार केंद्रित अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति रेकॉर्ड स्तरों पर पहुंच चुकी है. भारत में इसकी दिशा दुनियाभर में जींसों की कीमतों और व्यवस्थागत लागत में वृद्धि, सप्लाइ के मामले में अड़चनों, और औद्योगिक कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि से प्रभावित होगी. थोक कीमत सूचकांक (डब्लूपीआइ) पर आधारित मुद्रास्फीति, जो वैश्विक कारकों से प्रभावित होती है, नवंबर 2021 में 14.32 प्रतिशत के रेकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई. उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति भी नवंबर में बढ़कर 4.91 प्रतिशत पर पहुंच गई. लेकिन डब्लूपीआइ और सीपीआइ में बड़ा अंतर थोक वाले मामले पर कीमत के कारण दबाव को दर्शाता है, जो आगामी महीनों में खुदरा के मामले पर डाल दिया जा सकता है.

कई फ़र्मों ने, खासकर उपभोक्ता वस्तुओं के सेक्टर वाली फ़र्मों ने लागत में वृद्धि के कारण अपने सामान की कीमत बढ़ा दी है. लागत पर दबाव आगामी महीनों में मूल मुद्रास्फीति पर भारी पड़ सकता है. पाबंदियां बढ़ने से सप्लाइ में अड़चनें आ सकती हैं और यह 2022 के शुरू के महीनों में मुद्रास्फीति पर दबाव बना सकती है. जैसे ही सप्लाइ की अड़चनें दूर होंगी और मांग सामान्य स्थिति में पहुंचेगी, साल के आगामी महीनों में मुद्रस्फीति में कमी आ सकती है.

भारतीय रिजर्व बैंक का अनुमान है कि जनवरी-मार्च तिमाही के लिए सीपीआइ आधारित मुद्रास्फीति 5.7 प्रतिशत रहेगी, और अगले वित्त वर्ष के पूर्वार्द्ध में यह 5 फीसदी रह सकती है.

ब्याज दरों में उथलपुथल

रिजर्व बैंक ने महामारी के कारण पैदा हुई मुश्किलों को आसान बनाने के लिए मार्च 2020 से मुद्रा के मामले में सख्ती की नीति अपना रखी है. हाल की अपनी नीतिगत घोषणाओं में उसने रेपो और रिवर्स रेपो रेटों को अपरिवर्तित रखा है, जबकि मुद्रा के मामले में सख्ती के लिए दूसरे कदम उठाए हैं, जैसे रिवर्स रेपो का वैरिएबल रेट रखना और सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री करना.

इन उपायों के कारण तरलता व्यवस्था में ही समाहित हो गई है और अल्पावधि दरें 4 फीसदी के करीब पहुंची हैं. इनमें आगामी महीनों में और वृद्धि हो सकती है क्योंकि रिजर्व बैंक ऊंची मुद्रास्फीति के कारण मुद्रा के मामले में सख्ती जारी रखेगा.

अमेरिकी बॉन्डों पर ऊंचे लाभ और घरेलू मुद्रास्फीति में वृद्धि के चलते दीर्घावधि बॉन्डों की दरें ऊंचे स्तर पर हैं. दीर्घावधि लाभ वित्तीय स्थिति पर निर्भर करेगा. अगले वित्त वर्ष के लिए सरकार अगर अधिक उधार लेने का लक्ष्य रखेगी तो 10 वर्षीय बॉन्डों पर लाभ और बढ़ेगा.

अनिश्चित वित्त बाजार

वर्ष 2021 में निवेशकों को शेयर बाजार से बड़ा लाभ हासिल हुआ. कंपनियों के मुनाफे में वृद्धि, छोटे निवेशकों की बढ़ी हुई भागीदारी, और शुरू में कई आइपीओ की पेशकश ने शेयर बाज़ारों को ऊपर चढ़ा दिया. इनके अलावा वैश्विक कारणों का भी असर पड़ा. अमेरिकी केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा एसेट्स की खरीद में कमी लाने की घोषणा, ब्याज दरों में वृद्धि, और ओमिक्रोन के कारण अनिश्चितता आदि के चलते बाज़ारों में उथलपुथल बढ़ी. आगामी महीनों में भारतीय एसेट्स के मामले में विदेशी निवेशकों की पहल और अमेरिकी डॉलर की कीमत के कारण बाजार प्रभावित हो सकते हैं.

बैंकों में बढ़ता एनपीए

पिछले सप्ताह रिजर्व बैंक की ‘फाइनान्शियल स्टेबिलिटी रिपोर्ट’ में कहा गया है की महामारी के बीच मौद्रिक नीति का सहारा मिलने के कारण बैंकों की स्थिति मजबूत रही. बैंकों में बुरे कर्ज का अनुपात सितंबर 2021 में छह साल में सबसे कम 6.9 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया. बैंकों की पूंजीगत स्थिति में भी काफी सुधार आया. लेकिन नीतिगत समर्थन हटाने से बैंकों के बैलेंसशीट पर दबाव बढ़ सकता है. अति लघु, लघु और मझोले उपक्रमों के अलावा व्यक्तिगत कर्ज वाले मामले पर दबाव बढ़ने के संकेत मिलने लगे हैं.

उक्त रिपोर्ट कहती है कि बैंकों के खराब कर्ज (एनपीए) सितंबर तक ‘बेसलाइन’ के हिसाब से 8 प्रतिशत के स्तर को पार कर सकते हैं. सरकारी बैंकों में खराब कर्जों में तेज वृद्धि हो सकती है. उन्हें कुछ तरह के कर्जदारों पर दबाव से उबरने के लिए अधिक पूंजी की जरूरत पड़ सकती है. यह बैंकों को सतर्क कर्जदाता बनने को मजबूर करेगा.

संक्षेप में, जबकि जीडीपी और मुद्रास्फीति में वृद्धि हो रही है, दुनियाभर में भारतीय रिजर्व बैंक समेत तमाम केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में वृद्धि कर सकते हैं, तब ऐसे में वित्त बाजारों में अस्थिरता पैदा हो सकती है.

नया साल नयी उम्मीद ला सकता है, और अधिक फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाने के लिए सावधान भी कर सकता है.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(इला पटनायक एक अर्थशास्त्री और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में प्रोफेसर हैं. राधिका पांडे एनआईपीएफपी में सलाहकार हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)


यह भी पढ़ें: ग्लोबल उथल पुथल के बीच अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए बुनियादी बातों पर भी ध्यान देना जरूरी


 

share & View comments