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Wednesday, 20 November, 2024
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‘छोटी काशी’- क्यों मोदी और हिमाचल के सीएम ने मंडी में तीर्थ यात्रा से जुड़ी बड़ी योजनाओं की बात की?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को मंडी का दौरा करने के दौरान कहा कि इस महीने की शुरुआत में काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद ‘छोटी काशी’ आकर वह धन्य हो गए हैं.

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 14 दिसंबर को अपने निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी (जिसे काशी भी कहा जाता है) में 700 करोड़ रुपये के काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का उद्घाटन किया. पूजा-अर्चना के लिए पवित्र जल लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचने से पहले प्रधानमंत्री ने गंगा में डुबकी लगाई. शाम को उन्होंने नाव से गंगा आरती भी देखी.

करीब दो हफ्ते बाद सोमवार को हिमाचल प्रदेश के मंडी शहर के दौरे पर पहुंचे प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्हें ‘छोटी काशी’ आने का सौभाग्य मिला है. प्रधानमंत्री वहां 11,000 करोड़ रुपये से अधिक की जलविद्युत परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास करने पहुंचे थे.

यूपी और हिमाचल प्रदेश दोनों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं. हिमाचल में 2022 उत्तरार्ध में चुनाव प्रस्तावित हैं.
मंडी में स्थानीय बोली मांडयाली में भीड़ को संबोधित करते हुए मोदी ने कहा कि उन्हें एक ही महीने में काशी विश्वनाथ के दर्शन के बाद छोटी काशी आने पर बेहद खुशी हो रही है.

उन्होंने शहर के भूतनाथ मंदिर और पंचवक्त्र मंदिर की अपनी यात्राओं का भी उल्लेख किया और वहां शिव धाम परियोजना के लिए चल रहे काम के बारे में बताया, जिसकी आधारशिला उन्होंने फरवरी में रखी थी.

मोदी द्वारा मंडी का जिक्र ‘छोटी काशी’ के तौर पर किए जाने को हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने भी दोहराया. उन्होंने बताया कि इस उपनाम के पीछे तथ्य यह है कि मंडी में ‘300 मंदिर’ हैं और राज्य सरकार इसे काशी की तरह ही विकसित करने की कोशिश कर रही है.


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मंडी को क्यों मिला ‘छोटी काशी’ का उपनाम

ब्यास नदी के तट पर स्थित मंडी शहर 1527 ईसवी में बसा था, जब अजबर सेन नामक एक राजा ने यहां अपना महल बनवाया. यह हिमाचल प्रदेश का एक हिस्सा बना, जब 1948 में इसे चीफ कमिश्नर के प्रांत का हिस्सा बनाया गया.

यह शहर अपने कई प्राचीन मंदिरों और सप्ताह भर चलने वाले शिवरात्रि उत्सव के लिए ख्यात है, जिसका आयोजन हिंदू कैलेंडर की तिथियों के मुताबिक हर साल फरवरी या मार्च में होता है.

प्राचीन धरोहर होने के कारण इसके कई मंदिरों को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की तरफ से ‘संरक्षित’ स्मारकों की श्रेणी में रखा गया है. मंडी में पंचवक्त्र मंदिर, त्रिलोकीनाथ मंदिर, अर्धनारीश्वर मंदिर और बरसेला आदि मंदिर राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की सूची में शामिल हैं.

एएसआई के पूर्व निदेशक और मॉन्यूमेंटल हेरिटेज ऑफ मंडी किताब के लेखक बी.एम. पांडे कहते हैं, ‘मंडी में कई मंदिर हैं और हर तरह के हैं. कुछ शिव को समर्पित हैं, कुछ शक्ति को और कुछ वैष्णव मंदिर हैं. लेकिन अगर संख्या के लिहाज से देखें तो भगवान शिव के मंदिर सबसे ज्यादा हैं. यही वजह है जिससे मंडी को ‘छोटी काशी’ का लोकप्रिय नाम मिला है.’
दिप्रिंट आपको यहां शहर में कुछ लोकप्रिय मंदिरों के बारे में जानकारी दे रहा है…

भूतनाथ मंदिर: माना जाता है कि 1527 ईसवी में यह मंदिर राजा अजबर सेन ने बनवाया था, यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है और शहर के मध्य में स्थित है.

पंचवक्त्र मंदिर: यह मंदिर ब्यास और सुकेती नदियों के संगम पर स्थित है. यहां पर भगवान शिव की पांच सिर वाला मूर्ति है, जो उनके चेहरे पर पांच अलग-अलग भावों को दर्शाती है. चट्टानों से निर्मित इस मंदिर की सतह पर नक्काशी में दैवीय आकृतियों और लेखों को उकेरा गया है. वैसे इस बात को लेकर कुछ भी पुख्ता जानकारी नहीं है कि वास्तव में इस मंदिर का निर्माण कब हुआ. लेकिन राजा सिद्ध सेन (1684-1727) के शासनकाल में बाढ़ के कारण क्षतिग्रस्त होने के बाद इसका पुनर्निर्माण कराया गया था.

अर्धनारीश्वर मंदिर: मंदिर के प्रमुख देवता के तौर पर अर्धनारीश्वर—आधा पुरुष-आधी महिला, या शिव और शक्ति का संगम—की मूर्ति है. मंदिर शहर के मध्य में स्थित है.

त्रिलोकीनाथ मंदिर: यह मंदिर तीन सिर वाले शिव को समर्पित है, जो पृथ्वी, स्वर्ग और नर्क तीनों पर शासन करने वाले देवता का प्रतिनिधित्व करते हैं. पत्थरों से निर्मित इस मंदिर में एक मुख्य मंदिर (या गर्भगृह) है और इसके आगे का हिस्सा झोपड़ी जैसा बना हुआ है. माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण अजबर सेन की पत्नी ने करवाया था.

शिकारी देवी मंदिर: यह मंदिर जिले की सबसे ऊंची चोटी पर 3,359 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और इसे ‘मंडी का ताज’ कहा जाता है. बिना छत का यह मंदिर एक स्थानीय देवी को समर्पित है. कहा जाता है कि इसे पांडवों ने बनवाया था.

टारना देवी मंदिर: लाल और सफेद पत्थरों से बना 17वीं सदी का यह मंदिर देवी काली को समर्पित है. मूर्ति के तीन मुख हैं. ऐसी मान्यता है कि मंदिर का निर्माण स्थानीय शासक राजा श्याम सेन ने कराया था, जो देवी के भक्त थे.

माधो राय मंदिर: मंडी के रक्षक माने जाने वाले माधो राय भगवान विष्णु का ही दूसरा नाम है. कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण मंडी के राजा सूरज सेन ने करवाया था. राजा का कोई वारिस नहीं था और राधा और कृष्ण की एक चांदी की एक प्रतिमा को माधो राय नाम दिया गया और सूरज सेन की मृत्यु के बाद उन्हें ही मंडी का राजा माना जाने लगा.

शहर का शिवरात्रि मेला मुख्य रूप से माधो राय और भूतनाथ इन दो मंदिरों के इर्द-गिर्द ही केंद्रित होता है.

इस शहर में पाराशर और कमरुनाग नामक झीलें भी हैं, जिन्हें बेहद पवित्र माना जाता है. जबकि पाराशर झील का नाम ऋषि पाराशर के नाम पर रखा गया है, कमरुनाग महाभारत काल के राजा यक्ष का नाम है, जिनकी पूजा पांडव करते थे. उन्हें ‘बारिश के देवता’ के रूप में भी जाना जाता है. दोनों झीलों के साथ जुड़े मंदिर भी हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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