नई दिल्ली: भारतीय निर्यातक, खासकर चमड़े और इंजीनियरिंग वस्तुओं का कारोबार करने वाले, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में भारतीय वस्तुओं को समर्पित, एक संभावित व्यापार बाजार को लेकर उत्साहित हैं- एक विचार जिसे केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने पिछले हफ्ते सामने रखा- क्योंकि इससे वृहत खाड़ी क्षेत्र और अफ्रीका के बाजारों तक पहुंचने का रास्ता मिल सकता है, और सप्लाई चेन के खर्च में कमी आ सकती है.
ऐसे बाजार से निर्यातक बड़ी मात्रा में भारतीय वस्तुओं को, इन देशों में भेज सकेंगे जहां इनकी भारी मांग है, क्योंकि वेयरहाउसिंग और पैकेजिंग ज्यादा किफायती हो जाएगी.
गोयल ने पिछले शुक्रवार को पहली बार, भारत-यूएई मुक्त व्यापार सझौता (एफटीए) वार्त्ता में ‘इंडिया मार्ट’ का उल्लेख किया था, जिसके दौरान उन्होंने कहा कि बातचीत एक ‘आगे के दौर’ में पहुंच गई है.
उन्होंने आगे कहा था, ‘हम इस दिशा में काम कर रहे हैं कि क्या हम दुबई में बड़े पैमाने पर ‘इंडिया मार्ट’ स्थापित कर सकते हैं, जहां भारतीय वस्तुओं को प्रदर्शित करने के लिए, बड़ी संख्या में स्टोर्स खोले जा सकते हैं. यहां किफायती दरों पर बड़ी मात्रा में वेयरहाउसिंग सुविधाएं भी हासिल की जा सकती हैं, और ये एक आधार बन सकता है जहां से हम, पूरे मध्य पूर्व, अफ्रीका और दुनिया के दूसरे हिस्सों में अपने पंख फैला सकते हैं’.
उसके बाद से गोयल ने इंडस्ट्री लीडर्स और एक्पोर्ट प्रमोशन काउंसिल प्रमुखों तथा डीपी वर्ल्ड से यूएई-स्वामित्व वाले लॉजिस्टिक्स के साथ बातचीत की है, और सुझाव दिया है कि इस तरह का बाज़ार, दुबई के जबल अली फ्री ज़ोन में स्थापित किया जा सकता है
गोयल ने कहा था, ‘हम चाह रहे हैं कि ये भारत के लिए एक 10 बिलियन डॉलर का अवसर बन जाए, और ब्राण्ड इंडिया को विश्व स्तर पर प्रदर्शित किया जाए’.
वाणिज्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले एक व्यापार संवर्धन निकाय, फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (एफआईईओ) के महानिदेशक और सीईओ अजय सहाय का कहना है, कि इससे भारतीय वस्तुओं को अफ्रीकी बाजारों में घुसने में सहायता मिलेगी.
सहाय ने दिप्रिंट से कहा, ‘इंडिया मार्ट से भारत को न सिर्फ यूएई क्षेत्र, बल्कि अफ्रीका तक की ज़रूरतें पूरी करने में सहायता मिलेगी. बल्कि दुबई अफ्रीका की वित्तीय जड़ है क्योंकि ज़्यादातर मामलों में अफ्रीका को किए जाने वाले निर्यात का भुगतान, दुबई के ज़रिए ही किया जाता है’.
उन्होंने कहा कि इससे भारत को चीनी वस्तुओं से मुक़ाबला करने में भी सहायता मिल सकती है. दुबई में पहले ही ‘ड्रैगन मार्ट’ मौजूद है- मुख्य भूमि चीन के बाहर चीनी वस्तुओं का सबसे बड़ा चीनी मॉल और व्यापार केंद्र- जो दिसंबर 2007 में खुला था.
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, अगर दोनों देशों में एक आर्थिक समझौता हो जाता है, तो अपेक्षा की जाती है कि पांच साल के अंदर वस्तुओं का द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 100 बिलियन डॉलर और सेवाओं का व्यापार बढ़कर 15 बिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है.
उसने आगे कहा कि इस वित्र वर्ष के अंत तक, भारत पहले ही 400 बिलियन डॉलर मूल्य के माल निर्यात को छूने की राह पर अग्रसर है.
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‘बेहतरीन इनफ्रास्ट्रक्चर’
दुबई का जबल अली फ्री जोन भारतीय निर्यातकों के लिए, सिर्फ इसलिए आकर्षक नहीं है कि ये टैक्स-फ्री जोन है, बल्कि इसलिए भी कि यहां बहुत ऊंचे दर्जे का इनफ्रास्ट्रक्चर, और लॉजिस्टिक्स सुविधाएं उपलब्ध है.
कोलकाता स्थित इंजीनियरिंग गुड्स कंपनी पैटन इंटरनेशनल के ऑपरेशंस हेड, सुमित गोयल ने दिप्रिंट से कहा, ‘जबल अली में इनफ्रास्ट्रक्चर उच्च क्वालिटी का है. भारत के इंजीनियरिंग सामान के लिए अमेरिका एक प्रमुख बाज़ार है, और यूएई का भी इसमें एक बड़ा हिस्सा है, लेकिन इस तरह का मार्ट उस हिस्सेदारी को बढ़ा सकता है’.
इस बीच, भारत के चमड़ा निर्यातक ये जानने को उत्सुक हैं, कि कैसे ये मार्ट ‘एक ही छत के नीचे’ खुदरा और थोक, दोनों वस्तुओं के लिए काम कर सकता है, और क्या इससे डिज़ाइन सेवाओं (वस्तुओं के डिज़ाइन) का भी फायदा मिल सकता है.
काउंसिल फॉर लैदर एक्सपोर्ट्स के कार्यकारी निदेशक आरके सेल्वम ने दिप्रिंट को बताया, ‘भारत में चमड़े की वस्तुओं का उत्पादन पूरे देश में बिखरा हुआ है. मुख्य उत्पादन केंद्र हैं चेन्नई, कानपुर, दिल्ली, कोलकाता, और मुम्बई, लेकिन ये एक ही छत के नीचे खुदरा और थोक, दोनों सेवाएं मुहैया करा सकता है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘दुबई दुनिया की प्रमुख फैशन राजधानियों में से एक है. इस तरह का मार्ट डिज़ाइन इनपुट्स पेश कर सकता है, और भारत के चमड़ा उत्पादों की क्वालिटी में सुधार कर सकता है’.
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