भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत की एक हेलिकॉप्टर हादसे में 12 अन्य के साथ आकस्मिक और दुखद मौत, भाग्य के हाथों एक घातक मार है. विडंबना यह है कि सीडीएस की मौत कुछ वरिष्ठ सैन्य लीडर्स के भाग्य का भी फैसला कर सकती है, जिन्हें करियर की प्रगति के मामले में फायदा या नुक़सान हो सकता है. योग्य व्यक्तियों के बीच से जो भी नियुक्त होगा, उसके हिसाब से सैन्य पदानुक्रम में दूसरों की तक़दीर बदल सकती है.
सीडीएस पद के लिए योग्यता इस तरह से रखी गई है कि राजनीतिक नेतृत्व को दो क्षेत्रों- सेवारत और सेवा निवृत्त से बहुत सारे विकल्पों में से चुनने का मौक़ा मिल जाता है. बाहरी विकल्प पूर्व सेवा प्रमुखों तक सीमित है जिनकी आयु 65 वर्ष से अधिक न हो. अंदरूनी विकल्प कोई तीन-सितारा भी हो सकता है. इसलिए तकनीकी रूप से सभी सेवारत तीन सितारा और चार सितारा अधिकारी पात्र हैं. ये बहुत व्यापक विकल्प हैं. इसलिए जब तक नियुक्ति का ऐलान नहीं हो जाता, तब तक अपेक्षा की जा सकती है कि अटकलबाज़ियों और षडयंत्र के सिद्धांतों का बाज़ार गर्म रहेगा.
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भारत नियुक्ति में देरी सहन नहीं कर सकता
तक़रीबन एक हफ्ता हो गया है जब सीडीएस का पद खाली हुआ था, और अभी तक कोई घोषणा नहीं हुई है कि कार्यकारी की हैसियत से इस पद को कौन देख रहा है.
ऐसा लगता है कि सीडीएस की जो अलग अलग भूमिकाएं होती हैं, उनमें कोई भी रिक्ति इतनी अत्यावश्यक नहीं है कि उसे तुरंत किसी पदधारी से भरा जाए. ऐसे दृष्टिकोण में सीडीएस की बतौर एक महत्वपूर्ण सलाहकार, और चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी चेयरमेन (पीसी-सीओएससी) के नाते उसकी परिचालन भूमिका, दोनों की अनदेखी की जाती है. इसके अलावा भारत के सामरिक परिदृश्य पर छाए भू-राजनीतिक तनावों को देखते हुए, देश का रक्षा आधुनिकीकरण कार्यक्रम निर्धारित समय से बहुत पीछे चल रहा है, और समय गंवाने की बिल्कुल गुंजाइश नहीं है.
सीडीएस के एक केंद्रीय शख़्सियत होने के नाते, जो सैन्य सुधारों को दिशा और गति दोनों दे सकता है, इस पद को उतने ही समय के लिए खाली रखना चाहिए, जितना राजनीतिक चयन की प्रक्रिया के लिए अपरिहार्य है. लेकिन, परिचालन कारणों से किसी कार्यकारी सीडीएस को नियुक्त न करने का कोई औचित्य नहीं हो सकता.
कार्यकारी सीडीएस बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि एक स्थायी चेयरमेन के रूप में उसकी एक परिचालन भूमिका है- जिसमें शीर्ष निकाय की अगुवाई करनी होती है, जहां अंतर-सेवा योजना और समन्वय को अंजाम दिया जाता है. अगर कोई सुरक्षा संकट पैदा हो जाता है, तो पीसी-सीओएससी के न होने से समन्वित योजना बनाना यक़ीनन मुश्किल हो जाएगा, क्योंकि अधिकारिक रूप से कोई उत्तराधिकारी नामित नहीं है, हालांकि सबसे वरिष्ठ चीफ को बराबरी के बीच पहले के तौर पर नामित किया जा सकता है. लेकिन ऐसे अस्थायी क़दम बेअसर विकल्प साबित हो सकते हैं, क्योंकि संकट इतनी तेज़ी से बढ़ सकते हैं, जितनी पहले कल्पना नहीं की गई होती. साइबर और स्पेस दोनों गति बढ़ाने का काम कर सकते हैं.
देरी के संभावित कारण
नए CDS के ऐलान में देरी इस कारण भी हो सकती है क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व तमाम योग्य रिटायर्ड और सेवारत अधिकारियों के बीच गहराई से तलाश कर रहा है. अगर ये चयन तीनों सेवाओं के पूर्व प्रमुखों के बीच से किया जाता है, तो आयु के आधार पर पात्रता दो सेवा प्रमुखों तक सीमित हो जाती है, जो हाल ही में रिटायर हुए हैं: एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया और एडमिरल केबी सिंह.
भदौरिया की नियुक्ति में नियमों को बदला गया था, क्योंकि वो तकनीकी रूप से अयोग्य थे, चूंकि वो उसी दिन रिटायर हो रहे थे जिस दिन एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ हो रहे थे. अगर इसी सिद्धांत को अपनाया जाता तो वाइस एडमिरल चावला को, जो उसी दिन रिटायर हुए जिस दिन एडमिरल केबी सिंह हुए, नौसेना प्रमुख बन जाना चाहिए था. इसलिए ऐसा लगता है कि वरिष्ठता से बड़ी भूमिका राजनीतिक संरक्षण की रही. अगर तलाश एक ऐसे सीडीएस की हो रही है, जिसकी सलाह और कार्य सरकार के अनुरूप रहने की अपेक्षा की जा सकती है, तो एयर चीफ मार्शल भदौरिया दौड़ में सबसे आगे हो सकते हैं.
एडमिरल केबी सिंह अभी 30 नवंबर को ही रिटायर हुए हैं, और उन्हें निश्चित रूप से लिस्ट में होना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि वो आसानी से राजनीतिक संरक्षण के प्रलोभन में नहीं आते. अगर सरकार रिटायर्ड प्रमुखों में से चयन करती है और लचीलेपन का गुण विचाराधीन नहीं है, तो वो पहली पसंद हो सकते हैं.
अगर ये चयन सेवारत प्रमुखों में से किया जाता है, तो सेना प्रमुख जनरल नरवाणे सबसे आगे हैं, क्योंकि दो अन्य प्रमुखों को अपनी ज़िम्मेदारियां संभाले तीन महीना भी नहीं हुआ है. नरवाणे को कम से कम पहली पसंद होना चाहिए था, लेकिन उनका अधिकारिक तौर पर कार्यकारी सीडीएस नियुक्त न किया जाना, राजनीतिक नेतृत्व की उनके प्रति अनिच्छा का एक संकेत हो सकता है. अनिच्छा के असली कारण का अंदाज़ा लगाना मुश्किल है.
हालांकि सभी सेवारत लेफ्टिनेंट जनरल तकनीकी रूप से पात्र हैं, लेकिन इतने अंदर जाकर चयन करने की संभावना नहीं होगी, क्योंकि इससे सैन्य पदानुक्रम में एक अस्वीकार्य अशांति पैदा हो सकती है, जहां वरिष्ठता को आसानी से नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता.
सीडीएस के चयन के लिए मंत्रीमंडलीय नियुक्ति समिति (एसीसी) की मंज़ूरी की ज़रूरत होगी. इस कमेटी का गठन 2016 में हुआ था, और इसमें अभी केवल दो सदस्य हैं- प्रधानमंत्री और गृह मंत्री.
जहां तक प्रक्रिया के पालन का सवाल है, रक्षा मंत्रालय को फाइल आगे बढ़ाकर तीन उम्मीदवारों का एक पैनल मुहैया कराना है. हो सकता है कि एमओडी शीर्ष से प्रक्रिया को आकार देने के लिए निर्देशों की प्रतीक्षा कर रही हो, जिनसे चयन के झुकाव अंदाज़ा हो सकता है.
लेखक की नज़र में पैनल के सामने तीन तरह के विकल्प हो सकते हैं. पैनल-ए में तीन सेवारत सेवा प्रमुख हो सकते हैं. पैनल-बी में सेना प्रमुख, एयर चीफ मार्शल भदौरिया और एडमिरल केबी सिंह हो सकते हैं. पैनल-सी में दो सेवारत सेवा प्रमुख और एक रिटायर्ड चीफ हो सकते हैं. सेना प्रमुख तीनों में आते हैं. अगर किसी और को सीडीएस बनाया जाता है, तो उसका कारण केवल एक ही हो सकता है कि वो निष्ठा की परख पर पूरा नहीं उतरा. ये एक ऐसा विषय है जिसपर मैं आने वाले सप्ताहों में विचार करूंगा.
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(लेफ्टिनेंट जनरल (रिटा.) डॉ. प्रकाश मेनन तक्षशिला संस्थान, बेंगलुरु में स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम के डायरेक्टर और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के पूर्व सैन्य सलाहकार हैं. वह @prakashmenon51 पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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