scorecardresearch
Tuesday, 5 November, 2024
होमसमाज-संस्कृतिमैंने 21 साल देश के लिए फुटबॉल खेला लेकिन कोई नहीं जानता था मैं कौन हूं- पद्मश्री बेमबेम देवी

मैंने 21 साल देश के लिए फुटबॉल खेला लेकिन कोई नहीं जानता था मैं कौन हूं- पद्मश्री बेमबेम देवी

खेल जगत में महिला सशक्तिकरण पर हुई चर्चा में दूसरी स्पीकर शुचि कुलश्रेष्ठ ने बताया कि वे सैकड़ों परुषओं के बीच अकेली महिला होती हैं. इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा कि खेल जगत में पितृसत्ता मौजूद है और लंबे समय तक रहेगी.

Text Size:

नई दिल्ली: पिछले कुछ सालों में महिलाओं ने खेल जगत में जो झंडे गाडे हैं, वो किसी से छुपे नहीं है. पी.वी सिंधु का लगातार दो बार ओलंपिक में मेडल लाना हो या मैरी कॉम का बॉक्सिंग में कई वर्ल्ड चैंपियनशिप अपने नाम करना हो. महिलाओं ने खेल जगत में अपनी साख स्थापित की है. पूरे देश समेत दुनिया ने यह स्वीकार किया है कि महिलाएं रूढ़ियों की बेड़ियों को तोड़कर आगे बढ़ रही हैं.

महिलाओं के आगे बढ़ने के साथ-साथ उनकी प्रतिभा और उनके योगदान को पहचाना भी जा रहा है और सराहा भी जा रहा है. यकीनन तौर पर इसे सुधारे जाने की गुंजाइश है लेकिन बीते वक्त में महिलाओं को लेकर देश में एक लहर पैदा हुई. ओडिशा के भुवनेश्वर में चल रहे कलिंग साहित्य महोत्सव में दूसरे दिन ‘खेल के जरिए कैसे महिला सशक्तिकरण और प्रवृत्ति को मजबूत करें’ पर चर्चा हुई.

दिप्रिंट हिंदी कलिंग साहित्य महोत्सव का डिजिटल पार्टनर है और लगातार वहां के आयोजनों को कवर कर रहा है.

खेल जगत में महिलाओं को होने वाली इस चर्चा में पूर्व महिला फुटबॉल कप्तान व पद्मश्री सम्मानित बेमबेम देवी और शुचि कुलश्रेष्ठ ने हिस्सा लिया. इसी सत्र में बमबम देवी से सवाल किया, क्या आपको लगता है कि आपने जब शुरू किया था तब से और आपको पद्मश्री मिलते तक बदलाव हुआ है?

‘किसी को नहीं पता था बेमबेम कौन है’

इस सवाल के जवाब में बेमबेम देवी कहती हैं, अभी जब मुझे पद्मश्री मिल गया तो देश में लोग मुझे जानने लगे, मैंने 21 साल देश के लिए फुटबॉल खेला लेकिन किसी को नहीं पता था कि बेमबेम कौन है. अब पद्मश्री और अर्जुन अवार्ड मिलने के बाद काफी बदलाव हुए हैं. अब महिला फुटबॉल को आगे ले जाने के लिए काई कदम उठाए जा रहे हैं.

बेमबेम कहती हैं कि जब उन्होंने खेलना शुरू किया था तब से अब तक काफी सुधार हुआ है.

महिलाएं खेल जगत में दो तरह से अपना प्रतिनिधित्व करके और दूसरा खेल की व्यवस्था में जाकर वहां चीजों में बराबरी लाकर. कोलंबिया विश्व विद्यालय से पढ़कर आई शुचि कुलश्रेष्ठ स्पोर्ट्स बिजनस प्रोफेशनल हैं और भारत में आकर खेल जगत में अपने अनुभव में पितृसत्ता का जिक्र करती हैं.

खेल जगत में पितृसत्ता

राजस्थान रॉयल्स के साथ काम कर चुकी शुचि कहती हैं, ‘मैं साल 2019 में भारत आई थी. मेरे लिया खेल जगत का सफर थोड़ा चुनौती भरा रहा है. एक महिला के तौर पर काम में कुछ भी पेश करने के लिए मुझे कई बार चीजों का दोहराना पड़ता है, एक ही चीज को कई बार समझाना पड़ता है. वहीं दूसरी ओर किसी पुरुष को ऐसा नहीं करना पड़ता.’

‘जैसा सोचकर मैं यहां आई थी वैसा नहीं हुआ. वैसा यहां नहीं होता. कई बार सैकड़ों परुषों के बीच मैं अकेली महिला होती हूं. यह बिल्कुल एक पुरुष प्रधान जगह है. अगर आप पितृसत्ता के बारे में मुझसे पूछेंगे तो बिल्कुल यहां पितृसत्ता है. पितृसत्ता बहुत समय से यहां है और मुझे लगता है कि आने वाले लंबे समय तक भी यह रहने वाली है. अगर हमें इसे नियंत्रित करना है तो महिला के योगदान को बढ़ाना है.’

खेल जगत में जेंडर के आधार पर होने वाले भेदभाव पर बात करते हुए खासतौर फुटबॉल के बारे में बेमबेम देवी कहती हैं, ‘फुटबॉल 90 मिनट का गेम है. पुरुष भी वैसे ही खेलते हैं और महिलाएं भी वैसे ही खेलती हैं. फिर महिलाओं को क्यों नीची नजर से देखा जाता है? पुरुषों को जो सुविधाएं दी जाती हैं उसकी 50 प्रतिशत सुविधाएं भी अगर महिलाओं को मिले तो काफी विकास हो सकता है.’

ओडिशा के भुवनेश्वर में कलिंग साहित्य महोत्सव का आठवां संस्करण आयोजित किया जा रहा है. जहां देश, समाज और साहित्य के तमाम मुद्दों पर दिग्गजों को बुलाकर चर्चा की जा रही है. खेल, राजनीति, साहित्य समेत अलग-अलग विषय के कुल 300 स्पीकर इस साहित्योत्सव में हिस्सा ले रहे हैं.


यह भी पढ़ें- आध्यात्म कैसे बना महिलाओं की आजादी का रास्ता? कलिंग साहित्य महोत्सव में महिलाओं के मोक्ष पर चर्चा


 

share & View comments