नागालैंड के मोन जिले में सुरक्षाबलों की गोलियों से मारे गए 14 आम नागरिकों की हत्या मामला लगातार बढ़ता जा रहा है. काफी समय से लंबित नागा शांति वार्ता में अहम भूमिका निभाने वाला संगठन- नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (इसाक-मुवाह) जल्द ही एक आंतरिक बैठक करने वाला है.
इसके बाद एनएससीएन (आई-एम ) नागा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुपों से भी मुलाकात करेगा, जिसमें मोदी सरकार के साथ होने वाली शांति वार्ता को लेकर आगे की चर्चा की जाएगी. एनएससीएन (आई-एम ) के एक मेंबर ने अपना नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘सभी नेता एक बैठक करेंगे. अभी हम शोक में है. जल्द ही एक मीटिंग होगी जिसमें आगे की योजना पर चर्चा होगी’
जब उनसे पूछा गया कि क्या इन हत्याओं का उनकी बातचीत पर कोई असर पड़ेगा तो उन्होंने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की. उन्होंने कहा, ‘यह हमारे लिए बहुत की दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी. देखते है कि आने वाली बैठकों में लीडरशिप क्या तय करती है.’
नागा विद्रोह और शांति वार्ता के प्रयास
नागा विद्रोह 20वीं शताब्दी की शुरुआत में कई मांगों के साथ शुरू हुआ था, जिसमें असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और म्यांमार के राज्य में बसे हुए नागा- इलाकों को मिलाकर एक बड़े नागालैंड या नागालिम बनाने की मांग शामिल थी. हालांकि केंद्र सरकार ने नागा-आबादी वाले किसी भी क्षेत्र के विलय करने से इनकार कर दिया था.
एनएससीएन (आई-एम ) ऐसा सबसे बड़ा नागा समूह है जिसने साल 2015 में लंबे समय से चले आ रहे विद्रोह को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार के साथ एक फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. हालांकि, बाद में संगठन ने कहा था कि वह तब तक समझौते का पालन नहीं करेगा, जब तक केंद्र सरकार नागालैंड के लिए अलग झंडे और अलग संविधान की उनकी मांग को स्वीकार नहीं कर लेती.
केंद्र सरकार इन मांगों को तत्काल खारिज कर दिया और इसकी जगह दूसरे विकल्प सुझाए जिसमें पारंपरिक गतिविधियों में अलग झंडे के इस्तेमाल का जिक्र था. केंद्र के इस सुझाव को संगठन ने खारिज कर दिया जिसके बाद से ही यह समझौत बीच में अटक गया था.
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पिछले साल अगस्त में एनएससीएन (आई-एम) ने नागालैंड के पूर्व गवर्नर आर.एन रावी, जो साल 2014 से शांति वार्ता के दूत भी रहे- पर मूल दस्तावेज को अपनी व्याख्या के मुताबिक बनाने के लिए कीवर्ड डिलीट करने का आरोप लगाया था. संगठन ने उन्हें हटाए जाने की मांग की थी. सितंबर, 2021 में रावी ने शांति वार्ता दूत के पद से इस्तीफा दे दिया था.
एनएससीएन (आई-एम) के उलट एनएनपीजी (सात विद्रोही संगठनों से बना ग्रुप) अक्टूबर तक शांति प्रक्रिया के समर्थन में था. सूत्रों ने बताया कि अब केंद्र सरकार इस बात को लेकर संशय में है कि क्या आने वाले समय में इस शांति समझौते पर हस्ताक्षर होंगे.
शांति बनाए रखना है प्राथमिकता
गृह मंत्रालय के एक सूत्र ने बताया कि हालात को संभालने के लिए एक बड़े अधिकारी ने कुछ नागा लीडर्स से मुलाकात की थी लेकिन, नागा वार्ता को लेकर उसमें कोई चर्चा नहीं हुई.
सूत्र ने बताया, इन हत्याओं ने लोगों में गुस्सा पैदा कर दिया है. जिसे बढ़ावा देकर कुछ संगठन एंटी-इंडिया या प्रो-नागालिम एजेंडा पूरा करने की कोशिश कर सकते हैं. सूत्र ने कहा, हमारी प्राथमिकता है कि इलाके में शांति बने रहे और सुनिश्चित करें कि कोई कानून और व्यवस्था की स्थिति पैदा न हो.
एक अन्य सूत्र ने बताया कि यह जरूरी है कि नागा संगठनों से बातचीत होती रहे और उन्हें बातचीत में शामिल किया जाए. सूत्र ने कहा, शांति वार्ता को लेकर कोई चर्चा नहीं की जाएगी. यह इसके लिए सही समय नहीं है. हमें नागा संगठनों को अपने साथ बातचीत में शामिल करना है जो हमें मौजूदा स्थिति को काबू करने में मदद करेगा.
हत्याओं के खिलाफ भड़का गुस्सा
शांति वार्ता पर ना-नुकुर कर रहे एनएससीएन (आई-एम) ने सुरक्षाबलों के कृत्यों को खारिज करते हुए बयान जारी किया जिसमें उसने कहा कि भारतीय सुरक्षा बलों ने नागालिम में ‘खून भरे जहरीले तूफान’ की शुरुआत की है, यह कोई नई बात नहीं है बल्कि पहले की तरह ही है जब नागा राजनीतिक आंदोलनों को दबाया जाता था.
बयान में कहा गया कि नागा लोगों के लिए यह एक काला दिन था और भारतीय सुरक्षा बल कभी मासूमों के खून से रंगे अपने हाथ साफ नहीं कर पाएंगे. चाहे वे कोई भी बयान जारी कर कहें कि यह ऑपरेशन खुफिया इंटेलिजेंस की रिपोर्ट के आधार पर विद्रोहियों को पकड़ने के लिए चलाया गया था.
बयान में आगे कहा गया कि ये हत्याएं ‘ट्रिगर-हैप्पी 21वें पैरा कमांडो/असम राइफल्स’ का काम था.
हत्याओं के बाद ही संगठन ने अपना बयान जारी किया था जिसमें उन्होंने कहा था कि नागा पहले भी भारतीय सुरक्षा बलों की ऐसी हरकतों का सामना कर चुके हैं जिसमें वे नागा राजनीतिक आंदोलन के खिलाफ काम करते थे और भारत सरकार के सशस्त्र बलअफस्पा के तहत दंड देते थे.
बयान में कहा गया, ‘ऐसे हालात में हमारे पास इन हत्याओं को खारिज करने के लिए सही शब्द भी नहीं है. सभ्य दुनिया (नागालिम) के इस हिस्से में जहां भारत-नागा शांति प्रक्रिया में काफी प्रगति हुई है, इसे किसी भी तरह से ठीक नहीं ठहराया जा सकता है.’
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