जालंधर: भारत में खेल से जुड़े कई बेहद शानदार पलों में जालंधर की भी छोटी-सी हिस्सेदारी होती है. दरअसल, टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम की स्टिक से लेकर सचिन तेंदुलकर और एम.एस. धोनी जैसे शानदार खिलाड़ियों के मैच जिताऊ छक्के लगाने वाले क्रिकेट बैट तक यहीं पर बने हैं.
पंजाब का यह शहर देश के सबसे बड़े स्पोर्ट्स मैन्यूफैक्चरिंग हब के तौर पर ख्यात है, जहां प्रो-ग्रेड बॉक्सिंग ग्लव्स से लेकर गली क्रिकेट खेलने के लिए इस्तेमाल होने वाली गेंद तक सब कुछ तैयार किया जाता है.
हालांकि, कोविड के बाद जालंधर जितना उत्पादन करता है, उतने खरीददार नहीं हैं. दिप्रिंट ने जालंधर में कारोबार मालिकों और मजदूरों सबसे बात की जिन्होंने कहा कि खेल के सामानों का उद्योग गंभीर संकट से गुजर रहा है. हालांकि, सरकारी अधिकारियों का कहना है कि इस मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है.
जालंधर स्पोर्ट्स गुड्स मैन्युफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्टर्स के अध्यक्ष आशीष आनंद ने दिप्रिंट को बताया कि कोविड से पहले लगभग 2,000 करोड़ रुपये का रहा यह उद्योग अब सिर्फ 200 करोड़ रुपये का रह गया है.
आनंद ने कहा, ‘इस समय शहर में 500 सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम काम कर रहे हैं. लेकिन जालंधर की कुल विनिर्माण इकाइयों में से करीब 40 प्रतिशत महामारी की शुरुआत के बाद से बंद हो चुकी हैं.’ कुछ मैन्युफैक्चरर ने कहा कि उत्पादन आधा होने के कारण उन्हें नौकरियों में 70-80 प्रतिशत तक की कटौती करनी पड़ी है.
हालांकि, सरकार के मुताबिक ये आंकड़े गलत हैं. पंजाब के प्रधान सचिव वाणिज्य और उद्योग तेजवीर सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘मेरी जानकारी में ऐसा कोई संकट नहीं है.’
तेजवीर सिंह ने कहा, ‘2020-2021 में यह उद्योग करीब 2,000 करोड़ रुपये था, जिसमें 500 करोड़ रुपये का कारोबार निर्यात से जुड़ा था. सवाल ही नहीं उठता कि ये उद्योग 200 करोड़ रुपये तक सिकुड़ गया हो, यह तो तभी हो सकता है जब स्थितियां बद से बदतर हो जाएं.’ साथ ही यह भी जोड़ा कि उन्होंने हाल ही में उद्योग प्रतिनिधियों के साथ एक बैठक की, जहां ऐसी कोई बात नहीं कही गई.
उन्होंने कहा, ‘अभी, उनकी पहली मांग यह है कि एक अलग औद्योगिक पार्क के विस्तार के लिए जगह मिले ताकि वे अपना उत्पादन बढ़ा सकें. नौकरियों में 70 प्रतिशत की कटौती हुई होती तो लोगों के मरने की नौबत आ जाती.’
हालांकि, जब दिप्रिंट ने जालंधर के विनिर्माण क्षेत्रों का दौरा किया, तो वहां के माहौल में एकदम सन्नाटा पसरा दिखाई दिया.
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‘नौकरियां बड़े पैमाने पर घटीं’
जूते, हेलमेट और अन्य पर्सनल गियर बनाने वाला जालंधर के स्पोर्ट्स गुड्स उद्योग का एक बड़ा हिस्सा स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए तमाम तरह की चीजें भी बनाता है.
मैन्युफैक्चरर ने दिप्रिंट को बताया कि लोगों के लिए जिम खुलने के बाद से बॉक्सिंग जैसे खेलों के लिए उपकरणों की मांग बढ़ी है लेकिन टीम के तौर पर खेले जाने वाले खेलों से जुड़े सामान की मांग नहीं बढ़ी है. उनका कहना है कि इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि स्कूल अभी भी सामान्य रूप से नहीं खुल रहे हैं और बच्चे खेल के मैदानों में नहीं उतर रहे हैं.
खेल के सामान बनाने वाली कंपनी आनंद एंड आनंद के प्रबंध निदेशक आशीष आनंद कहते हैं, ‘कोविड के बाद लोग आउटडोर खेलों में हिस्सा नहीं ले रहे हैं. टीम स्पोर्ट्स उपकरण बनाने में लगी कंपनियों की हालत तो और भी खराब है. जब तक बच्चे टीम स्पोर्ट्स का हिस्सा नहीं बनते या फिर खेलने के लिए बाहर नहीं निकलते तब तक स्थिति में सुधार नहीं हो सकता है.’ उन्होंने कहा, ‘हमारे उत्पादन में 70-80 फीसदी की कमी आई है और हमें 400 नौकरियां खत्म करनी पड़ीं.’
बीट ऑल स्पोर्ट्स के मालिक सोमनाथ कोहली ने भी कहा कि जब तक स्कूल सामान्य कामकाज फिर से शुरू नहीं करेंगे, तब तक खेल उद्योग की हालत ठीक नहीं होगी.
उन्होंने कहा, ‘सब कुछ स्कूलों पर निर्भर है…यहां तक कि खेल अकादमियां भी काफी हद तक बंद हैं. जब तक ये सब नहीं खुलेंगे, हमारे व्यवसाय को नुकसान होता रहेगा.’
आनंद की तरह कोहली ने भी कहा कि उन्हें कर्मचारियों की छंटनी करनी पड़ी है, हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि उन्होंने कितने कर्मचारियों को हटाया. बॉक्सिंग और एमएमए उपकरण बनाने वाली आनंद को स्पोर्टिंग फाउंडेशन के प्रबंध निदेशक और पार्टनर अनूप आनंद ने भी कहा कि उन्हें नौकरियों में 50 फीसदी की कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
‘काम करीब 50% तक घटा’
जालंधर के खेल सामग्री उद्योग में सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाले वो दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी हैं, जिनमें से कई छोटी दुकानों और कारखानों में जूते बनाने के काम करते हैं.
उत्तर प्रदेश के रायबरेली की रहने वाली 32 वर्षीय प्रवासी श्रमिक सरिता देवी ने दिप्रिंट को बताया कि महामारी के बाद से उनकी कमाई में भारी गिरावट आई है.
सरिता ने बताया, ‘मुझे ऊपरी हिस्सा बनाने के लिए हर जूते पर 4 रुपये मिलते हैं. लॉकडाउन से पहले मैं एक दिन में 100 जूते तक बना लेती थी, लेकिन पिछले दो महीने से इतनी कमाई भी नहीं कर पाती हूं कि ठीक से खाने तक का इंतजाम कर पाऊं. कोई अन्य काम नहीं कर सकती क्योंकि मुझे बच्चे भी संभालने होते हैं और कोई अन्य काम आता भी नहीं है.’
सरिता देवी मॉडल टाउन इलाके में जालंधर की बैंक कॉलोनी में अपने घर पर ही काम करती थी.
उत्तर प्रदेश के उन्नाव के रहने वाले और पिछले 25 सालों से जूते बनाने का काम कर रहे अनिल अंबेडकर ने बताया कि तालाबंदी के दौरान उन्हें यूपी में अपने गांव वापस जाने के लिए मजबूर होना पड़ा था. उन्होंने कहा, ‘काम करीब 50 फीसदी तक घट गया है.
नए अवसरों ने दी राहत
मौजूदा कठिनाइयों के बावजूद कई मैन्युफैक्चरर का कहना है कि नए अवसरों ने उन्हें थोड़ी राहत पहुंचाई है.
ओलंपिक में भारत की सफलता ने मुक्केबाजी, हॉकी और भाला फेंक जैसे खेलों में रुचि बढ़ाई है और इन खेलों से जुड़े उपकरणों की मांग में तेजी भी आई है.
कोहली ने दिप्रिंट को बताया कि टोक्यो में पुरुषों की हॉकी टीम के कांस्य पदक जीतने के बाद हॉकी स्टिक की मांग में 90 प्रतिशत की तेजी आई है, जबकि अनूप आनंद ने कहा कि लवलीना बोरगोहेन के पदक ने मुक्केबाजी के प्रति रुचि बढ़ाई है.
कोहली ने कहा, ‘कोई भी हॉकी में दिलचस्पी नहीं लेता था, लेकिन इस कोविड काल में भी मेरी बिक्री 90 फीसदी तक बढ़ गई. नीरज चोपड़ा के गोल्ड मेडल जीतने के बाद अचानक लोगों की दिलचस्पी भाले में भी बढ़ी है. आप खेल उपकरण बेचने वाले किसी भी दुकानदार के पास जाएं, वहां बिक्री के लिए कम से कम एक भाला जरूर होगा.’
खेल के सामानों की खुदरा विक्रेता डेकथलॉन जैसी जानी-मानी फ्रांसीसी कंपनी भी जालंधर से मुख्यधारा से इतर खेल उपकरणों की खरीद कर रही है.
आशीष आनंद ने दिप्रिंट को बताया कि कंपनी खेल के ऐसे उपकरण बनाने के लिए कांट्रैक्ट दे रही है जो उसने संभवत: पहले कभी नहीं दिए थे. आनंद ने कहा, ‘वे घुड़सवारी, रॉक क्लाइंबिंग, कैंपिंग, पोलो, वाटर पोलो के लिए उपकरण चाहते हैं…इससे उद्योग को बढ़ावा जरूर मिलेगा.’
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