मुम्बई: दिसंबर 2019 में शिवसेना के आदित्य ठाकरे ने सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर किया, जिसे उन्होंने एक हफ्ते पहले लिया था, जिस दिन उनके पिता उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, एक ऐसा लमहा जिसे वो अभी भी ‘अदभुत’ बताते हैं.
फोटोग्राफ में सीएम ठाकरे भगवा कुर्ता पहने हुए हैं, और मुस्कुराते हुए अपनी पत्नी रश्मि के मेहंदी रचे हाथों को पकड़े उन्हें निहार रहे हैं. गोल्डन कुर्ता पहने हुए आदित्य, पृष्ठभूमि में खड़े मुस्कुरा रहे हैं, और अपने पिता के साए में खड़े हैं.
दो वर्ष बीत गए हैं जब उद्धव सीएम बने थे, और आदित्य जो चुनावी राजनीति में शामिल होने वाले ठाकरे परिवार के पहले सदस्य थे, एक कैबिनेट मंत्री बने थे. लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है, कि युवा ठाकरे अभी भी वही इंसान हैं जो उस फोटोग्राफ में थे- सरकार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा, लेकिन सियासी रूप से अभी भी, परिवार की विरासत के साए में.
महा विकास अघाड़ी (एमवीए) के इस पूरे कार्यकाल में, अब 31 वर्ष के हो चुके आदित्य, बहुत से विवादों से दूर बने रहे हैं जिनसे तीन दलों की सरकार को काफी चोटें पहुंची हैं, सिवाय सुशांत सिंह राजपूत की मौत के, जब विपक्ष ने उनके संलिप्त होने का आरोप लगाया था. शिवसेना-नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी)- कांग्रेस गठबंधन की राजनीति पर भी वो काफी हद तक ख़ामोश ही रहे, और उसकी बजाय उन्होंने अपने विभागों- पर्यटन, पर्यावरण, तथा प्रोटोकोल पर ध्यान केंद्रित किया.
राजनीतिक विश्लेषकों ने दिप्रिंट से कहा, कि आदित्य ने भले ही तीन लो-प्रोफाइल विभागों को चमका दिया हो, लेकिन एक बड़े जन राजनीतिक नेता की अपनी छवि को मज़बूत करने के लिए, उन्होंने कोई विशेष प्रयास नहीं किए हैं.
शिवसेना नेता सचिन अहीर ने कहा, ‘आदित्य ठाकरे ने ऐसे महकमे चुने जो राजनीतिक रूप से बहुत आकर्षक या हाई प्रोफाइल नहीं थे. उन्होंने ऐसे विभाग चुने जहां नीतिगत हस्तक्षेपों की ज़रूरत थी, और उन्होंने दिखा दिया कि ये विभाग भी महत्वपूर्ण हैं. आदित्य ठाकरे बहुत सी नई नीतियां और विचार लेकर आए हैं, ख़ासकर पर्यटन क्षेत्र में जो महामारी के दौरान बुरी तरह प्रभावित हुआ था’.
अहीर ने आगे कहा, ‘पिछले दो वर्षों में वो किसी राजनीतिक मुद्दे से नहीं जुड़े हैं. उन्होंने सोच-समझकर ऐसा करने का फैसला किया था, कि इसकी बजाय वो अपने विभागों पर ध्यान देंगे. अगर कोई सरकार से जुड़े बहुत से विवादों पर उनसे उनकी राय पूछता है, तो वो एहतियात के साथ टिप्पणी करने से मना कर देते हैं’.
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पर्यावरण पर फोकस
एमवीए सरकार के प्रारंभिक दिनों में, आदित्य ठाकरे अपने मुख्यमंत्री पिता के साथ, बहुत सी बैठकों और समीक्षाओं में शरीक हुए, और क्षेत्रों के दौरों पर गए, भले ही वो उनके विभागों से संबंधित न रहे हों. मसलन, निसारगा चक्रवात से आई तबाही का जायज़ा लेने के लिए, वो उद्धव के साथ रायगढ़ गए, राज्य सरकार के ‘मिशन बिगिन अगेन’ (पिछले वर्ष का विस्तारित लॉकडाउन और चरण-बद्ध ढील) के लिए बैठकों में शरीक हुए. अन्य मंत्रियों के अधिकार-क्षेत्र में आने वाले ज़िलों में भी, वो महामारी समीक्षा बैठकों में मौजूद रहे. जुलाई 2020 में कांग्रेस तथा एनसीपी सूत्रों ने जुलाई 2020 में दिप्रिंट को बताया था, कि सरकार में आदित्य की भूमिका को लेकर उनके मन में संदेह थे.
लेकिन, शिवसेना सदस्यों का कहना है कि पिछले कुछ महीनों से, आदित्य अपने काम से काम रख रहे हैं, और पर्यावरण तथा शहरी इनफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में, ख़ुद को एक ब्राण्ड के तौर पर स्थापित करने में लगे हैं.
युवा ठाकरे के क़रीबी शिवसेना के एक नेता ने, नाम छिपाने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, ‘लगभग हर परियोजना या क्षेत्र के लिए, ठाकरे के पास विभाग के सरकारी अधिकारियों तथा निजी क्षेत्र के एक्सपर्ट्स की एक बैक-अप टीम है, जिस पर वो भरोसा करते हैं. वो अंतर्राष्ट्रीय मीडिया पर भी बारीकी से नज़र रखते हैं, कि किस चीज़ को वापस अपने यहां अपनाया जा सकता है’.
कुछ साहसिक फैसलों और नीतियों से, जैसे पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील आरे कॉलोनी में मेट्रो कार शेड को रद्द करना, कार शेड का विरोध करने वाले लोगों पर दर्ज मुक़दमों को वापस लेने का दबाव बनाना, महत्वाकांक्षी इलेक्ट्रिक वाहन नीति को लॉन्च करना, माझी वसुंधरा अभियान को शुरू करना, ठाकरे को अपने खुद के लिए एक जगह बनाने में सहायता मिली, चूंकि उन्होंने संरक्षण तथा जलवायु परिवर्तन में कमी लाने का ज़िम्मा स्थानीय इकाइयों को दे दिया.
पर्यावरण मंत्री ने अपनी सरकार से ‘जलवायु परिवर्तन के लिए राज्य परिषद’ का भी गठन कराया, जिससे महाराष्ट्र में जलवायु परिवर्तन की चुनौती के संकट से निपटने के लिए, एक कार्य योजना बनाई जा सके. पिछले महीने गठित की गई ये उच्चाधिकार-प्राप्त परिषद, सीधे सीएम ठाकरे के आधीन है और इसमें सदस्य के तौर पर, डिप्टी सीएम अजीत पवार, 11 अन्य कैबिनेट मंत्री, मुख्य सचिव, और प्रमुख सचिव पर्यावरण शामिल हैं.
पिछले महीने आदित्य ठाकरे ने ग्लासगो में हुए यूएन जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, कॉप-26 में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व किया था, जिसमें उन्होंने बड़ी उत्सुकता के साथ विभिन्न देशों तथा शहरों के मंत्रियों, राज्यपालों, तथा महापौरों के साथ संपर्क स्थापित किए. मसलन, एक पैनल के सदस्य के तौर पर, उन्होंने महाराष्ट्र की शुद्ध-ज़ीरो महत्वाकांक्षाओं पर बात की, जिसमें स्कॉटलैण्ड के पहले मंत्री निकोला स्टर्जन भी शामिल थे, ऑस्लो के उप-महापौर सिरिन स्टाव से मिलकर उनके शहर के साथ साझीदारी पर चर्चा की, जिससे महाराष्ट्र के शहरों के क्लाइमेट बजट्स तैयार किए जा सकें. अन्य लोगों के अलावा उन्होंने मैनचेस्टर के मेयर एंडी बर्नहैम से भी मुलाक़ात की.
कॉप 26 सम्मेलन में उन्होंने महाराष्ट्र सरकार की ओर से जलवायु परिवर्तन के लिए, अंडर 2 कोलीशन फॉर क्लाइमेट एक्शन से इंस्पायरिंग रीजनल लीडरशिप अवॉर्ड भी प्राप्त किया.
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ऊपरी स्तर से ‘सहानुभूति’
पर्यावरण के अलावा, आदित्य ने मुम्बई के इन्फ्रास्ट्रक्चर और बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के कार्यों पर भी बहुत उत्सुकता के साथ ध्यान दिया है, जिसके 2022 में चुनाव होने हैं.
मुंबई मेट्रोपॉलिटन रीजन डेवलपमेंट अथॉरिटी (एमएमआरडीए) के सूत्रों का कहना है, कि आदित्य जो मुम्बई के उपनगरीय इलाक़ों के प्रभारी मंत्री भी हैं, हफ्ते में एक या दो बार समीक्षा बैठकें लेते हैं, और शहर में चल रहीं ट्रांसपोर्ट इनफ्रास्ट्क्चर परियोजनाओं का जायज़ा लेने के लिए, नियमित तौर पर क्षेत्रों के दौरे करते हैं.
इसी तरह, आदित्य के क़रीबी सूत्रों का कहना है कि वो बीएमसी द्वारा किए जा रहे कार्य उनके पूरे नियंत्रण में हैं, जिसकी अगुवाई शिवसेना करती है. वो बीएमसी आयुक्त इक़बाल सिंह चहल के साथ, विशेष रूप से नगर इकाई के कोविड टीकाकरण अभियान, महामारी के दौरान नियम-क़ायदे, और तटीय मार्ग जैसी इनफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं की नियमित समीक्षा करते हैं.
पहली बार के विधायक ने प्रोटोकोल विभाग को भी, जिसे अतीत में ज़्यादातर मुख्यमंत्रियों ने अपने पास रखना पसंद किया है, महावाणिज्य दूतों, राजदूतों, और अन्य राजनयिकों से नियमित बैठकें करके ग्लैमरस बना दिया है. प्रोटोकॉल मंत्री के नाते आदित्य ने पूर्व यूके प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर और पूर्व मालदीव राष्ट्रपति मौहम्मद नाशीद से भी मुलाक़ात की है, और एक नौका में ब्रिटिश उच्चायोग के एक जमावड़े में भी हिस्सा लिया है.
पर्यटन विभाग के नौकरशाहों का कहना है, कि ठाकरे के प्रभार संभालने के बाद, उनका विभाग राज्य की साप्ताहिक कैबिनेट बैठकों का एक नियमित हिस्सा रहा है, जबकि पहले ऐसा कुछ महीनों में एक बार होता था. कई नई नीतियां पारित कराने के अलावा, आदित्य के नेतृत्व में राज्य सरकार ने, हॉस्पिटैलिटी सेक्टर को उद्योग का दर्जा भी दिया है.
राजनीतिक विश्लेषक प्रताप एस्बे ने दिप्रिंट से कहा, ‘जिस तरह के मुद्दे आदित्य ठाकरे ने उठाए हैं, वो आमतौर पर बुद्धिजीवियों या सिविल सोसाइटी के प्रभावशाली सदस्यों को आकर्षित करते हैं. इसलिए समाज के ऊपरी स्तर पर उनके प्रति एक सहानुभूति की भावना है’.
एस्बे ने आगे कहा कि आदित्य के लगभग सभी एमवीए मंत्रियों के साथ बेहद मैत्रीपूर्ण संबंध हैं. उन्होंने कहा, ‘लेकिन, फिर भी एक धारणा है कि वो अपने पिता के साए में हैं. पिछले दो वर्षों में आम आदमी के साथ, उनके जुड़ाव में कोई ज़्यादा सुधार नहीं आया है’.
विवादों से दूर
एमवीए सरकार से जुड़ा एकमात्र विवाद, जिस पर आदित्य ठाकरे ने ज़ोर देकर टिप्पणी की, वो एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत की जांच थी. यहां भी उनकी टिप्पणी तब आई जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सदस्यों ने राजपूत की मौत को एक हत्या बताया, और उसमें आदित्य के शामिल होने की ओर इशारा किया.
एक बयान में आदित्य ने इन आरोपों को ‘राजनीतिक निराशा’ से उपजी ‘गंदी राजनीति’ क़रार दिया.
उसके अलावा, युवा नेता लगभग सभी प्रमुख मुद्दों पर ख़ामोश ही रहे हैं, बर्ख़ास्त पुलिस अधिकारी सचिन वाझे की गिरफ्तारी से लेकर, पूर्व मुम्बई पुलिस प्रमुख परमबीर सिंह के तत्कालीन गृह मंत्री अनिल देशमुख पर जबरन पैसा उगाही के आरोप, उसके बाद देशमुख के इस्तीफे, एक टिकटॉक स्टार की संदिग्ध मौत के मामले में पूर्व शिवसेना मंत्री संजय राठौड़ के शामिल होने के आरोप, और एक्टर कंगना रनौत के उनके परिवार के सदस्यों के साथ झगड़े तक.
बीजेपी नेताओं तथा केंद्रीय मंत्री नारायण राणे के बेटों नीतेश और नीलेश ने, अकसर आदित्य ठाकरे पर निशाना साधा है, और उन्हें ‘बेबी पेंगुइन’ कहकर पुकारा है. इससे पहले बीएमसी ने भायखला के चिड़ियाघर में एक पेंगुइन बाड़ा बनाया था, जिसे आदित्य के दिमाग़ की उपज बताया जाता है. दोनों मामलों में आदित्य ने कोई जवाब नहीं दिया है.
We say baby penguin – Shiv sainiks start trolling!
We say Yuva leader – Anil Parab says Aditya T has nothing to do with it!
No body even took his name yet!!!
Perfect example of : आ बेल मुझे मार !!!???
— nitesh rane (@NiteshNRane) August 4, 2020
राजनीतिक टीकाकार हेमंत देसाई ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि वो आगे बढ़कर नहीं लड़ना चाहते. एक तरह से वो उससे एक क़दम आगे हैं, जो उद्धव ठाकरे सियासत में शामिल होने से पहले थे. वो बहुत कम बोलते थे और अपने कज़िन राज ठाकरे के विपरीत, विवादास्पद तथा आक्रामक बयानों से दूर रहते थे’.
देसाई ने आगे कहा, ‘लेकिन, अगर वो (आदित्य) राजनीति में अपनी छाप छोड़ना चाहते हैं, तो उन्हें आगे बढ़कर विवादास्पद विषयों पर भी रुचि लेनी होगी, सियासी मुद्दों पर एमवीए दलों के बीच समन्वय के प्रयास करने होंगे, और मीडिया से ज़्यादा बातचीत करनी होगी. सम्मेलन, काउंसलेट्स, सेलिब्रिटीज़, वो अभी भी इन्हीं सब में उलझे हुए हैं, लेकिन अगर वो इससे आगे बढ़कर आम लोगों के साथ नहीं घुलते-मिलते, तो एक राजनेता के तौर पर वो तरक़्क़ी नहीं करेंगे.’
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