बेंगलुरु: कर्नाटक में बादामी चालुक्य शासक इम्मादी पुलकेशी (या पुलकेशिन द्वितीय) के शासनकाल का जश्न मनाने के लिए शुरू किए गए एक अभियान ने ‘भीतरी बनाम बाहरी’ की एक दिलचस्प लड़ाई का रूप ले लिया है.
इतिहास के प्रति गहरी रुचि रखने वाले कुछ लोगों एक समूह की तरफ से 28 नवंबर को ट्विटर पर शुरू किए गए अभियान ने कन्नड़ के क्षेत्रीय गौरव और संघवाद पर नई बहस छेड़ दी है.
610 से 642 ईसवीं के बीच शासन करने वाले इम्मादी पुलकेशी—जिनकी राजधानी वातापी (मौजूदा बादामी) थी—का गुणगान करते हजारों ट्वीट्स इस समय सोशल मीडिया पर छाए हैं जिनमें अन्य गैर-कन्नड़ क्षेत्रों के ‘उधार’ के नायकों को अस्वीकार करने की मांग भी की जा रही है.
For those Surgical strikers who keep invoking Rana's , Shivajis , Singh's, Vermas of d North trying to establish them as the only Hindu icons. Today kannadiags hv clinically retaliated to The hindutva project of invisiblising d rulers of Southern Kingdoms thru #ImmadiPulakeshi https://t.co/yZupY8ONhU
— RaNn_Silva (@Rann_Silva) November 28, 2021
#DakshinaPateshwara #Parameshwara#ImmadiPulakeshi https://t.co/vl5SXZgNEO
— Dhananjaya (@Dhananjayaka) November 29, 2021
अभियान में शामिल लोग 17वीं शताब्दी के मराठा शासक शिवाजी जैसे ‘बाहरी नायकों’ के बजाये कन्नड़ राजाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाने की जरूरत बता रहे हैं. गौरतलब है कि अक्सर हिंदुत्ववादी संगठनों के साथ-साथ भाजपा की तरफ से भी शिवाजी को एक प्रमुख हिंदू सम्राट के रूप में प्रचारित किया जाता है.
पुलकेशी पर शोध के लिए फंड देने, उनकी उपलब्धियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनकी प्रतिमा स्थापित करने की मांग ने राजनीतिक रंग भी ले लिया है और इस पर सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस दोनों के बीच टीका-टिप्पणियों का दौर शुरू हो गया है.
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‘इसे कोई प्रतिस्पर्द्धा बनाने का इरादा नहीं था’
अभियान के तहत इम्मादी पुलकेशी, उनकी ‘कर्नाटक बाला’ सेना और उनकी जीती लड़ाइयों का जिक्र करते हुए उनका गुणगान किया जा रहा है, जिसमें सातवीं शताब्दी में उत्तर भारत के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लेने वाले शासक हर्षवर्धन के साथ जंग में हासिल की गई जीत भी शामिल है.
ट्विटर हैंडल @NamHistory के क्यूरेटर और अभियान के शुरुआती आयोजकों में शामिल किरण मालेनाडु ने दिप्रिंट से कहा, ‘इम्मादी पुलकेशी की कहीं भी कोई प्रतिमा नहीं लगी है. बादामी से उन्होंने पूरे दक्षिण-मध्य भारत पर शासन किया था. हमारा इरादा कर्नाटक के इतिहास को लेकर जागरूकता पैदा करना था.’
किरण ने इतिहास में रुचि रखने वाले अपने साथियों और सोशल मीडिया पेज क्यूरेटर शिवानंद गुंडानावरा, सुनील कुमार, विवेक और भुवनेश के साथ मिलकर यह अभियान शुरू किया था, जिस पर अकेले 28 नवंबर को 30,000 से अधिक ट्वीट आए. इम्मादी पुलकेशी से जुड़े ट्वीट सोशल मीडिया पर लगातार छाए हुए हैं.
किरण ने कहा, ‘हम सभी आम नागरिक हैं जो कर्नाटक के इतिहास को लेकर अपनी रुचि के कारण एक-दूसरे से जुड़े हैं. हमने किसी ‘तुलना’ के इरादे से यह सब नहीं किया था. हमें शिवाजी में कोई भी दिलचस्पी नहीं है.’ साथ ही कहा कि सरकारें सालों से कर्नाटक के ऐतिहासिक प्रतीकों की उपेक्षा करती आ रही हैं.
अभियान का समर्थन करने वालों में लोकप्रिय कन्नड़ अभिनेता धनंजय का भी शामिल हैं. धनंजय ने दिप्रिंट से कहा, ‘प्रतिमा होने या न होने का विषय मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता. लेकिन मैं ‘कन्नड़ताना (कन्नड़ पहचान)’ में विश्वास करता हूं. हम अपनी पहचान छोड़कर अन्य तमाम सारी चीजों के लिए जश्न मनाते हैं. हर्ष के खिलाफ हासिल की जीत को देखते हुए इम्मादी पुलकेशी तमाम योद्धाओं में शीर्ष स्थान रखते हैं.’
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‘मांग पर ध्यान दिया गया है’
ऊर्जा और कन्नड़ एवं संस्कृति मामलों के मंत्री वी. सुनील कुमार ने दिप्रिंट को बताया कि उनके विभाग ने ‘मांग पर ध्यान दिया है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘हम इतिहासकारों और विशेषज्ञों के साथ चर्चा करेंगे और इस मांग पर विचार करेंगे. हमें सभी कन्नड़ नायकों पर गर्व करना चाहिए.’
हालांकि, एक कन्नड़ शासक को सांस्कृतिक प्रतीक चुने जाने का दबाव बनाने के इरादे के साथ की गई एक ‘गैरराजनीतिक’ पहल ने राजनीतिक मोड़ भी ले लिया है विपक्ष के नेता और कांग्रेस विधायक दल के प्रमुख सिद्धारमैया ने इस अभियान का समर्थन किया है.
सिद्धारमैया ने कहा, ‘सरकार को चालुक्य सम्राट #ImmadiPulakeshi पर और अधिक शोध करना चाहिए. बच्चे कर्नाटक के गौरवशाली इतिहास के बारे में सही ढंग से समझ सकें इसलिए उनकी उपलब्धियों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाना चाहिए.’ उन्होंने आगे कहा कि चालुक्य शासक ‘कर्नाटक का गौरव’ थे. कांग्रेस के राज्यसभा सांसद जी.सी. चंद्रशेखर भी ट्विटर पर इस अभियान में शामिल हो गए.
हालांकि, शिवाजी और इम्मादी पुलकेशी के बीच तुलना भाजपा के कुछ सदस्यों को पसंद नहीं आई है.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘क्या वे समकालीन हैं? तुलना क्यों होनी चाहिए? वे इसे क्षेत्रवाद कहते हैं लेकिन यह राष्ट्रवाद के खिलाफ है. तब भाषा को लेकर कोई लड़ाई नहीं थी. चाहे हर्ष ने लड़ाई जीती या पुलकेशी ने, दोनों ने मंदिर बनवाए.’
नेता ने आगे कहा, ‘उन्होंने मुस्लिम आक्रमणकारियों के विपरीत संस्कृति को नष्ट नहीं किया. अगर ये लोग वास्तव में कन्नड़ से प्यार करते हैं तो फारसी थोपने वाले टीपू सुल्तान का विरोध करते. उनकी मानसिकता ‘टुकड़े गैंग’ वाली है. वे सिर्फ मराठा और कन्नड़, तमिल और कन्नड़ के बीच लड़ाई चाहते हैं, लेकिन कन्नड़-बनाम-उर्दू की लड़ाई नहीं चाहते.’
राजनीतिक विश्लेषक और स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी एंड गवर्नेंस, अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में फैकल्टी मेंबर ए. नारायण का कहना है, ‘किसी आइकन को खोजना या पुन: खोजना एक दिलचस्प आइडिया है क्योंकि अन्य राज्यों में जहां क्षेत्रवाद काफी मजबूत है, यह सब इसी तरह शुरू हुआ. अभी कर्नाटक के पास कोई ऐसा नायक नहीं है जिसे पूरे राज्य में अहमियत दी जाती हो और ऐसे में यदि यह ट्रेंड शुरू हुआ है तो इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए.’
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