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Friday, 22 November, 2024
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एंट्रेंस एग्जाम में 12वीं के अंकों को सिर्फ 50% वेटेज? डीयू में 2022 से बदल सकते हैं एडमिशन के नियम

डीयू ने पिछले महीने प्रवेश डेटा का अध्ययन करने के लिए एक पैनल का गठन किया था, यह देखने के लिए कि क्या प्रवेश प्रक्रिया में कोई विसंगतियां हैं, और क्या उन्हें ठीक करने की आवश्यकता है

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नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी अगले शैक्षणिक सत्र से अपने संबद्ध कॉलेजों में स्नातक स्तर पर प्रवेश की प्रक्रिया को बदल सकती है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है.

यूनिवर्सिटी ने पिछले महीने संभावित क्षेत्रीय असंतुलन और ओवर एडमिशन की रिपोर्टें आने के बाद एडमिशन संबंधी डेटा के अध्ययन के लिए एक समिति का गठन किया था, ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या प्रवेश प्रक्रिया में किसी तरह की कोई विसंगति है और अगर ऐसा है तो क्या उसे ठीक करने की जरूरत है. मामले से जुड़े सूत्रों का कहना है कि समिति की रिपोर्ट के आधार पर यूनिवर्सिटी प्रवेश प्रक्रिया में आवश्यक बदलाव कर सकती है.

समिति के अध्यक्ष डीन (एग्जामिनेशन) डीएस रावत हैं और इसके सदस्यों में डीन (छात्र कल्याण) राजीव गुप्ता, शहीद सुखदेव कॉलेज ऑफ बिजनेस स्टडीज की प्रिंसिपल पूनम वर्मा, दौलत राम कॉलेज की प्रिंसिपल सविता रॉय और डीयू रजिस्ट्रार विकास गुप्ता शामिल हैं.

नाम न छापने की शर्त पर समिति के एक सदस्य ने बताया कि तीन संभावनाएं हैं जिन पर समिति अध्ययन कर रही है—अगले साल से प्रवेश परीक्षा के आधार पर प्रवेश देना, 50 फीसदी 12वीं कक्षा की परीक्षा में मिले अंक और 50 प्रतिशत प्रवेश परीक्षा के अंकों के आधार पर विचार करना या फिर यथास्थिति बनाए रखना (कट-ऑफ सिस्टम जारी रखना)

समिति के सदस्य ने कहा कि यदि यूनिवर्सिटी प्रवेश परीक्षा का विकल्प अपनाने का फैसला करती है, तो उसके पास दो रास्ते हैं—शिक्षा मंत्रालय की केंद्रीय विश्वविद्यालय सामान्य प्रवेश परीक्षा (सीयूसीईटी) का हिस्सा बनना, या फिर अपना खुद का सिस्टम बनाना.

डीयू के कॉलेजों में विभिन्न स्नातक पाठ्यक्रमों में प्रवेश मौजूदा समय में 12वीं कक्षा में मिले अंकों के आधार पर किया जाता है. कॉलेज कट-ऑफ जारी करते हैं और उन कट-ऑफ के आधार पर प्रवेश दिया जाता है.

हालांकि, इस साल कुछ बोर्ड के छात्रों को दूसरे बोर्ड की तुलना में अधिक अंक मिलने को लेकर खासी बहस हुई थी. रिपोर्टों के मुताबिक, केरल बोर्ड के 6,000 से अधिक छात्रों ने 100 प्रतिशत अंक प्राप्त किए और अधिकांश पाठ्यक्रमों के लिए पात्र थे, जहां कट-ऑफ 100 प्रतिशत तक पहुंच गई.


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‘अंकों का कोई मॉडरेशन नहीं’

समिति के सदस्य ने बताया कि इसे ठीक करने को लेकर प्रवेश से पहले विभिन्न बोर्डों के अंकों के मॉडरेशन पर चर्चा हुई. हालांकि, सदस्य के मुताबिक, समिति के सदस्यों ने कहा कि अंकों में किसी मॉडरेशन की संभावना बेहद कम है और ऐसे में यूनिवर्सिटी प्रवेश प्रक्रिया को ठीक करने के तरीके पर विचार कर सकती है.

पैनल सदस्य ने कहा, ‘हम अभी अंकों के मॉडरेशन पर कोई विचार नहीं कर रहे हैं….हम परीक्षा से जुड़े डेटा का अध्ययन कर रहे हैं और यह पता लगाने की देखने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या कोई विसंगति है जिसे ठीक करने की जरूरत है. हम अपनी रिपोर्ट अकादमिक परिषद और कुलपति को सौंपेंगे और फिर अगले महीने तक अंतिम निर्णय ले लिया जाएगा.’

समिति के सदस्य ने बताया कि यूनिवर्सिटी में छात्रों के प्रवेश में कुछ असमानता पाई गई थी—कुछ कॉलेजों में सीटें ज्यादा भर गईं और यहां तक कि आरक्षण के पात्र छात्रों को भी प्रवेश नहीं मिल पाया जबकि अन्य संस्थानों में सीटें खाली पड़ी रही. ऐसी ही कुछ विसंगतियां हैं जिनके बारे में ही समिति यह आकलन करने की कोशिश कर रही है कि किस प्रकार के दखल की जरूरत है.

विभिन्न बोर्डों के अंकों के मॉडरेशन पर दिप्रिंट से बात करते हुए डीयू अकादमिक परिषद—शैक्षणिक मामलों पर शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था—के एक सदस्य ने कहा, ‘अंकों का मॉडरेशन बहुत मुश्किल है…हम एक बोर्ड के अंकों की दूसरे बोर्ड के साथ तुलना कैसे कर सकते है? अंक देने के लिए सभी के अलग-अलग मानदंड हैं. जब तक बोर्ड स्वयं अन्य बोर्डों के साथ अंकों की तुलना के संबंध में एक मानक फॉरमेट नहीं देते, तब तक यूनिवर्सिटी के लिए अपने स्तर पर ऐसा कुछ करना बहुत मुश्किल है.’

डीयू के कॉलेजों में कट-ऑफ अक्सर आलोचना और चर्चा का विषय रहता है क्योंकि कुछ पाठ्यक्रमों के लिए कटऑफ 100 प्रतिशत तक पहुंच जाता है. हालांकि, इतने ज्यादा कटऑफ के बावजूद डीयू कई छात्रों के लिए पहली पसंद है. केंद्रीय विश्वविद्यालयों में इस यूनिवर्सिटी के पास ही सबसे अधिक आवेदन आते हैं—जिनकी संख्या प्रति वर्ष करीब तीन लाख है.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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