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Wednesday, 16 October, 2024
होमदेशकृषि कानूनों पर मोदी के यू-टर्न के बाद CAA-विरोधी प्रदर्शनों के लिए फिर से तैयार असम के संगठन

कृषि कानूनों पर मोदी के यू-टर्न के बाद CAA-विरोधी प्रदर्शनों के लिए फिर से तैयार असम के संगठन

परीक्षाओं तथा कोविड के चलते रुक जाने के कारण असम के सीएए विरोधी आंदोलन का आवेग थम गया था. एएएसयू, एजेपी और रायजोर दल जैसे संगठन अब 10-12 दिसंबर से आंदोलन को फिर से शुरू करना चाहते हैं.

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गुवाहाटी: तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों की वापसी के नरेंद्र मोदी सरकार के फैसले के बाद असम के संगठन नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ फिर से विरोध प्रदर्शन शुरू करने जा रहे हैं.

ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू) से लेकर असम जातीय परिषद (एजेपी) और रायजोर दल जैसी राजनीतिक पार्टियों तक, असम के कई संगठन आंदोलन को फिर से शुरू करने की अपनी मंशा जाहिर कर चुके हैं. अधिनियम के लागू होने के बाद दिसंबर 2019 में जबसे सीएए-विरोधी आंदोलन शुरू हुआ, तब से ये संगठन सबसे आगे बने हुए थे.

एक्ट में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, तथा पाकिस्तान के हिंदुओं, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता हासिल करने की अनुमति दी गई है.

आसू के मुख्य सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने कहा, ‘मोदी सरकार के कृषि कानूनों को वापस लेने से साबित हो गया कि उनमें अन्याय था और केवल किसानों के आंदोलन की वजह से ही वो कानूनों को वापस लेने को मजबूर हुए हैं. उत्तर-पूर्व के लोगों ने तब तक लड़ने की ठान ली है, जब तक इसे रद्द नहीं किया जाता…हम इसे कैसे आगे बढ़ाएंगे, उस रणनीति पर फैसला किया जाएगा’.


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दूसरी वर्षगांठ, स्वहीद दिवस के आसपास प्रदर्शन

सीएए-विरोधी संगठनों के नेताओं ने संकेत दिया है कि 10-12 दिसंबर के बीच प्रदर्शन और रैलियों की तैयारी की जा रही है, जो संसद में नागरिकता (संशोधन) बिल पारित किए जाने की दूसरी वर्षगांठ होगी.

‘10 दिसंबर के बाद से, जो स्वहीद दिवस है, हम सीएए के लागू किए जाने के खिलाफ आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं’, ये कहना था एजेपी अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई का जिनका संगठन, आसू और असम जातीयताबादी युवा छात्र परिषद (एजेवाईसीपी) के नेताओं द्वारा सीएए-विरोधी प्रदर्शनों के बाद वजूद में आया था.

स्वहीद दिवस (शहीद दिवस) राज्य में हर साल 10 दिसंबर को, उन लोगों की याद में मनाया जाता है, जो 1979 से 1985 के बीच असम आंदोलन के दौरान मारे गए थे.

आंदोलन की नेचर के बारे में पूछे जाने पर गोगोई ने कहा कि एजेपी पहले एक्ट के बारे में ‘आम लोगों को शिक्षित करेगी’. उन्होंने कहा, ‘हम बहुत मजबूती से इस तरह के कानून के खिलाफ हैं…सीएए के थोपे जाने के बाद हमने उसके परिणाम देखे हैं. हम इस तरह के सांप्रदायिक कदम के खिलाफ हैं. भारी संख्या में विदेशियों के आने के बाद असम की जनसांख्यिकी पहले ही बदल चुकी है’.

नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ बनी समन्वय समिति के मुख्य समन्वयक देबेन तमूली ने भी यही कहा कि 12 दिसंबर को एक रैली की तैयारी की जा रही है. ये समन्वय समिति विभिन्न संगठनों की एक अंब्रेला कमेटी है, जिनमें कृषक मुक्ति संग्राम समिति (केएमएसएस), भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी आदि शामिल हैं.

उन्होंने कहा, ‘कमेटी 12 दिसंबर को हमारे संघर्ष को तेज करने की तैयारी कर रही है. उस दिन हम प्रदर्शन तथा विरोध आयोजित करने की तैयारी कर रहे हैं’.


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‘लोग आयोजकों से नाराज’

आसू ने 2020 के शुरू में 10वीं क्लास के बोर्ड इम्तिहानों की वजह से सीएए-विरोधी आंदोलन को ‘अस्थायी विराम’ देने का ऐलान किया था. आंदोलन को उस समय झटका लगा था, जब असम में सीएए-विरोधी आंदोलन के दौरान उस समय के केएमएसएस सलाहकार अखिल गोगोई को दिसंबर 2019 में यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर लिया था. जब तक देश कोविड महामारी की जकड़ में आता, तब तक आंदोलन तेजी से अपनी गति खो चुका था.

अब रायजोर दल के प्रमुख गोगोई को बाद में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने जुलाई 2021 में सभी आरोपों से बरी कर दिया.

लेकिन भट्टाचार्य ने कहा, ‘आंदोलन चल रहा था. केवल इम्तिहानों और कोविड की वजह से वो धीमा हो गया था. लेकिन आंदोलन चलता रहा है’.

केएमएसएस सचिव मुकुट डेका के अनुसार, आंदोलन ‘थोड़ा कमज़ोर हो गया है’ और उसे ‘फिर से संगठित’ करने की जरूरत है. उन्होंने दावा किया, ‘बहुत सारे संगठन सरकार के साथ थे. सरकार ने उनके नेतृत्व को खरीद लिया था’.

सीएए के प्रति जनभावनाओं के बारे में पूछे जाने पर डेका ने कहा, ‘लोग उसके विरोध में सड़कों पर उतर आए थे. लोगों की भावनाएं तो साथ हैं लेकिन आयोजक उतने सक्रिय नहीं रहे हैं. इसलिए लोगों में संगठनों को लेकर भी नाराजगी है.


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‘नेता, बुद्धिजीवी, कलाकार, समझौता कर चुके हैं’

एजेपी के लुरिनज्योति गोगोई का दावा था कि एक ‘प्रचार अभियान’ चलाया जा रहा है, जिसके नतीजे में आम लोग चकराए हुए हैं’.

उन्होंने कहा, ‘नेताओं ने इस मुद्दे पर समझौता कर लिया है और कलाकारों तथा बुद्धिजीवियों ने भी इस मामले में यही किया है. (लेकिन) जो सही है वो सही है. आम लोगों के लिए ये एक खतरा है, हमें उन्हें ये समझाना है. असम में, आंदोलन का हमारा एक लंबा इतिहास रहा है. हमें यकीन है कि वो काम करेगा’.

उन्होंने आगे कहा, ‘सभी लोगों, सभी छात्र संगठनों को, इसमें हिस्सा लेना चाहिए. ये असम के आम लोगों का मुद्दा है. आंदोलन में सभी का प्रतिनिधित्व होना चाहिए, सभी की अगुवाई होनी चाहिए’.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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