श्रीनगर: 15 नवंबर को हैदरपुरा मुठभेड़ में मारे गए दो नागरिकों के परिवारों के पास दुख मनाने का भी वक्त नहीं था.
उसकी बजाय उन्हें 76 घंटे तक जद्दोजहद करनी पड़ी- सरकारी दफ्तरों और पुलिस थानों के चक्कर, बिना सोए तीन रातें, पुलिस के साथ लंबी बातचीत का दौर और एक प्रदर्शन- ये सब कुछ अपने मृतकों को वापस लाने, उन्हें दफ्नाने और अपने बच्चों के लिए इस मामले को खत्म करने के लिए.
उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन, मुठभेड़ में मारे लोगों की वीडियो, घाटी के अंदर व्हाट्सएप ग्रुप्स पर वायरल होने लगी. लेकिन खून में लथपथ पड़े अल्ताफ भट की वीडियो सार्वजनिक हो जाने के बाद भी उसके परिवार के लोग इनकार करते रहे और आधिकारिक पुष्टि का इंतज़ार करते रहे.
भट की भतीजी सायमा भट ने कहा, ‘शाम 8 बजे के करीब कुछ वीडियो चलने शुरू हुए, जिनमें अल्ताफ चाचा की लाश उनकी बिल्डिंग के कॉरिडोर में पड़ी हुई थी. मैंने उनका चेहरा देखा लेकिन मुझे यकीन नहीं हुआ. मैं उन तस्वीरों पर यकीन नहीं करना चाहती थी. मैं खुद से कहती रही कि वो एक बेगुनाह शहरी हैं, वो किसी मुठभेड़ में क्यों मारे जाएंगे?’
सायमा ने फिर परिवार को दिलासा दिया और उन्हें भरोसा दिलाया कि भट जल्दी ही वापस आ जाएंगे. फिर उसने घबराहट में पुलिस प्रतिष्ठान में लोगों को फोन करने शुरू कर दिए.
उसकी मौत की पुष्टि दो घंटे बाद हुई, जब जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अधिकारिक रूप से ऐलान किया कि मरने वालों में दो दहशतगर्द थे- हैदर (एक पाकिस्तानी नागरिक) और उसका साथी अमीर अहमद- और दो आम नागरिक अल्ताफ अहमद भट, तथा एक और व्यक्ति जिसकी पहचान बाद में मुदस्सिर गुल के रूप में हुई, जो ‘बिल्डिंग में संदिग्ध कॉल सेंटर को दिखाने के लिए’ ‘सर्च पार्टी के साथ गया था’, जहां से आतंकवादी काम कर रहे थे.
ये वही बिल्डिंग थी जहां भट पिछले तीन दशकों से सीमेंट और हार्डवेयर की अपनी दुकान चला रहा था. दो साल पहले उसने गुल को एक फ्लोर, ऑफिस चलाने के लिए किराए पर दिया था. गुल प्रॉपर्टी डीलर का काम कर रहा था.
अल्ताफ की 12 साल की बेटी नायफा ने दिप्रिंट से कहा, ‘हम बिल्कुल बिखर गए. मैं तो सन्न रह गई’.
मुदस्सिर गुल के परिवार के लिए मौत की पुष्टि काफी बाद में हुई, क्योंकि शुरू में पुलिस ने उसका नाम घोषित नहीं किया था. 16 नवंबर की सुबह तक, गुल का परिवार ये समझ रहा था कि हो सकता है कि उसे किसी ‘जांच’ के लिए कहीं ‘रोक’ लिया गया हो और वो घर वापस आ जाएगा.
गुल की विधवा ने बताया, ‘मुदस्सिर की तलाश में हम पूरी रात पुलिस थानों, कंट्रोल रूम और अस्पतालों के चक्कर लगाते रहे, लेकिन वो नहीं मिले. हमने उनके दोस्तों और साथियों को इतने सारे फोन किए लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली. पुलिस से किसी ने हमें कॉल करके नहीं बताया कि वो मुठभेड़ में मारे गए. अगले दिन जाकर हमें पता चल पाया’.
लेकिन, पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि दोनों नागरिकों के परिवारों से संपर्क किया गया था और उनसे श्रीनगर के हैदरपुरा से 70 किलोमीटर दूर पुलिस टीम के साथ चलने के लिए कहा गया था, जहां शवों को दफनाया जाना था.
कुमार ने दिप्रिंट से कहा, ‘अल्ताफ और मुदस्सिर दोनों के परिवारों से संपर्क किया गया था और उनसे पुलिस के साथ चलकर उनके दफ्न में शरीक होने के लिए भी कहा गया था. हम उनके शवों को हंदवाड़ा ले गए और उन्हें परिवारों को नहीं लौटाया, क्योंकि हम कोई कानून व्यवस्था की स्थिति पैदा होने नहीं देना चाहते थे’.
कुमार ने ये भी कहा कि जेएंडके पुलिस को ‘खेद’ है कि ‘उन्हें बचाने की पुलिस की कोशिशों के बावजूद’, भट और गुल दोनों तरफ से हुई गोलीबारी में मारे गए.
कुमार ने आगे कहा, ‘अल्ताफ ने पहला फ्लोर मुदस्सिर को किराए पर दिया हुआ था, जहां वो एक फर्ज़ी कॉल सेंटर चला रहा था और उग्रवादियों को पनाह दिए हुए था. लेकिन चूंकि वो दोनों ओर से हुई गोलीबारी में मारा गया, इसलिए हमें उसका खेद है. हमने उन्हें बचाने की कोशिश की लेकिन बचा नहीं पाए क्योंकि चारों तरफ से गोलियां चल रहीं थीं’.
इलाके के चश्मदीदों ने याद किया कि मुठभेड़ 15 नवंबर को शाम 4.30 बजे हुई, जब जेएंडके पुलिस, सेना और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवान, फिरन पहने हुए हैदरपुरा के बाज़ार इलाके में पहुंच गए और इलाके की घेराबंदी करके इमारतों की तलाशी शुरू कर दी.
पुलिस का दावा है कि उसके पास ‘इलाके में आतंकवादियों की मौजूदगी’ की खुफिया खबर थी और 200 मीटर के घेरे में दर्जन भर दुकानों के लोगों को इलाके के एक अस्पताल और एक रॉयल इनफील्ड शोरूम के अंदर रखा गया था. इसी ग्रुप से भट और गुल को दहशतगर्दों का ‘पता लगाने’ के लिए ले जाया गया था.
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शवों को वापस लेने की जद्दोजहद
जब दोनों परिवारों को बता दिया गया कि उनके शव हंदवाड़ा में दफ्ना दिए गए हैं, तो उन्होंने शवों को वापस लेने की अपनी जद्दोजहद शुरू कर दी.
सायमा ने कहा, ‘मैंने भट साहब के बच्चों से वादा किया कि मैं उनके मरे हुए पिता को वापस लाउंगी. क्या उन्हें एक आखिरी बार अपने बाप का चेहरा देखने का हक नहीं है? मैंने उनसे कहा कि ये हमारा हक है, जिसे कोई नहीं छीन सकता’.
मुठभेड़ की रात सायमा और उसके दो रिश्तेदार, स्थानीय पुलिस थाने गए ताकि भट का शव वापस लेने की प्रक्रिया के बारे में पता लगा सकें. लेकिन स्टेशन हाउस ऑफिसर ने उनसे कहा कि शव को पोस्टमॉर्टम के लिए ले जाया जा चुका है, और उसकी स्थिति अगले दिन ही साफ हो पाएगी.
सायमा ने कहा, ‘उस वक्त तक हमें कुछ पता नहीं था कि पुलिस शव को हंदवाड़ा ले गई थी. सवेरे 3 बजे हमने एयरपोर्ट मार्ग को ब्लॉक कर दिया और वहां बैठ गए. सुबह करीब 6.30 बजे इलाके की एक तैनाती हमारे पास आई और हमें बताया कि उनका पोस्टमॉर्टम चल रहा था और उसके बाद शव हमें दे दिया जाएगा, इसलिए अब हमें घर चले जाना चाहिए’.
उसने आगे कहा, ‘फिर सुबह 11 बजे हम डीसी ऑफिस गए और एक लिखित दर्खास्त देकर शव वापस दिए जाने की मांग की. हमने डीआईजी (उप महानिरीक्षक) तक से बात की. उस समय हमारे अंदर कोई गुस्सा नहीं था, सिर्फ एक बेबसी थी कि किसी तरह हम अपने मुर्दे को घर ले आएं’.
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उसके बाद शुरू हुई बातचीत
शव को वापस करने की मांग के बाद भट परिवार और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के बीच ‘बातचीत’ शुरू हुई- जिन्होंने परिवार को राज़ी करने की कोशिश की, कि शव वापस लेने का इसरार न करें.
परिवार का कहना है कि उन्हें कई विकल्प दिए गए- आंशिक रूप से शव को खोदकर उन्हें चेहरा दिखाने से लेकर, वाहन का बंदोबस्त करने तक, ताकि वो हंदवाड़ा के कब्रिस्तान जा सकें जहां उसे दफनाया गया था. लेकिन परिवार ने इनकार कर दिया.
सायमा ने कहा, ‘16 नवंबर को 1 बजे के करीब हम डीआईजी से मिले. हमने डीआईजी से कहा कि वो हमें लिखकर दें, कि अल्ताफ का शव लौटा दिया जाएगा लेकिन उन्होंने मना कर दिया. उन्होंने हमसे कहा कि हमारे परिवार के 4-5 सदस्य हंदवाड़ा के कब्रिस्तान जा सकते हैं, लेकिन हमने इनकार कर दिया. हमारी मांग थी कि हमें शव वापस चाहिए और उसके लिए हम किसी भी हद तक जाएंगे’.
उसने कहा, ‘फिर डीआईजी ने कहा कि वो आईजी से बात करेंगे और हमें घर वापस चले जाना चाहिए. फिर हमने आईजी की कॉल का इंतज़ार किया, 4.30 बजे जाकर आखिकार उनसे मुलाकात हुई’.
सायमा के मुताबिक आईजी ने उससे कहा कि ‘उन्हें अल्ताफ के मारे जाने का अफसोस है’ और फिर उन्होंने पेशकश की कि वो शव को ‘आंशिक रूप से खोदकर निकलवा लेंगे’.
सायमा ने कहा, ‘उन्होंने कहा कि आप उनका चेहरा देखकर श्रद्धांजलि पेश कर सकते हैं, अपने रस्मो रिवाज कर लीजिए, लेकिन शव को वापस लौटाना मुमकिन नहीं होगा, क्योंकि उसे पहले ही दफ्नाया जा चुका है’.
भट के परिवार ने आईजी से कहा कि वो ये सवाल भी नहीं कर रहे हैं कि वो क्यों और कैसे मारे गए. सायमा ने कहा, ‘हम सिर्फ शव वापस लेने की मांग कर रहे हैं, क्या ये मांग बहुत ज़्यादा है?’ ये हमारा हक है. मैंने उनसे कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो हम कोर्ट जाएंगे, लेकिन चूंकि मैंने उनके बच्चों से वादा किया है कि मैं उनके मरे हुए बाप को वापस लाउंगी, इसलिए मैं किसी भी कीमत पर वो करूंगी’.
फिर ये फैसला किया गया कि शव को लौटा दिया जाएगा, अगर भट का परिवार ‘लिखकर देगा’ कि वो शव को रात में बहुत सीमित लोगों की मौजूदगी में दफ्नाएंगे. परिवार इसके लिए राज़ी हो गया.
आईजी ने जो उस समय तक राज़ी हो गए लगते थे, भट के परिवार से कहा कि वो उनके फोन का इंतज़ार करें. सायमा ने कहा, ‘हमें उम्मीद बंधी थी. लेकिन वो हमारी मुसीबतों का खात्मा नहीं था. हमने पूरी रात उनके फोन का इंतज़ार किया, लेकिन उनकी कॉल नहीं आई. उस समय मैंने उप-राज्यपाल को एक ई-मेल लिखा’.
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प्रदर्शन की बारी
चूंकि भट परिवार को आईजी या किसी दूसरे पुलिस अधिकारी के यहां से कोई पुष्टि नहीं मिली, इसलिए 17 नवंबर की सुबह परिवार एक शांतिपूर्ण धरना देने के लिए श्रीनगर में प्रेस कॉलोनी पहुंच गया. मुदस्सिर गुल का परिवार भी उनके साथ मिल गया.
नायफा ने कहा, ‘धरने पर बैठने के सिवाय, हमारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था’.
शाम 6 बजे के करीब स्थानीय एसपी ने भट के परिवार को फोन किया कि उसका शव लौटा दिया जाएगा और उन्हें अपना विरोध खत्म कर देना चाहिए.
सायमा ने कहा, ‘हमें उनपर यकीन नहीं था क्योंकि उन्होंने हमें दर-दर की ठोकरें खिलाईं थीं, इसलिए हमने उनसे लिखकर देने के लिए कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया. इसलिए हमने भी धरने से हटने से इनकार कर दिया’.
‘सहमति’ बनी
अगली सुबह भट परिवार को एरिया एसएसपी से फोन आया कि पुलिस ‘शव को वापस करने पर गौर कर रही है’. उन्होंने परिवार को आईजी से मुलाकात करने के लिए सुबह 11 बजे आने को कहा.
सायमा ने कहा, ‘जब हम आईजी से मिलने गए तो उन्होंने हमें दो विकल्प दिए- या तो हम सब हंदवाड़ा जाकर शव को वापस ले आएं या पुलिस उसे लाए और हमें सौंप दे. हमने दूसरा विकल्प चुना’.
परिवारों और पुलिस के बीच एक ‘सहमति’ बन गई. जहां पुलिस ने वादा किया कि वो शवों को परिवारों को सौंप देंगे, वहीं परिवार को भी अपने घरों के बाहर से सारे मीडिया को हटाना था’.
सायमा ने कहा, ‘हमारे बीच बनी आपसी सहमति के मुताबिक, हमने पूरे मीडिया से अनुरोध किया कि वो वहां से हट जाएं और रास्ता खाली कर दें, क्योंकि हम पहले ही इन बच्चों के मुर्दा पिता को लाने में बहुत मशक्कत कर चुके थे, और अब हम कोई चांस नहीं लेना चाहते थे. मीडिया ने हमारे साथ सहयोग किया और आधी रात के करीब हमने शव को दफ्ना दिया, और तब जाकर इस पूरे किस्से का ख़ात्मा हुआ’.
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नुकसान से उबरना
दोनों परिवार अब उस सदमे से उबरने की कोशिश कर रहे हैं, जो उनके साथ 15 नवंबर को पेश आया. 12 साल की नायफा भी उसी स्थिति में है.
उसने कहा, ‘मुझे अभी भी लगता है कि वो घर लौट आएंगे. इन तीन दिनों से हम जब उनके शव को वापस लाने के लिए भादौड़ कर रहे थे, तो मैं बिल्कुल भावहीन थी. मुझे धक्का तब लगा जब मैंने उनके मुर्दा शरीर, उनके चेहरे को देखा, और यही वजह है कि उनके मुर्दा शरीर को वापस लाना इतना ज़रूरी था’.
राफिया बस ये चाहती है कि उसके शौहर के ऊपर से सभी आरोप हट जाएं.
उसने कहा, ‘हम पुलिस के शुक्रगुज़ार हैं कि उसने उनका शव लौटा दिया, जिससे उन्हें सभी रस्मो रिवाज के साथ इज़्ज़त से दफनाया जा सके. मुदस्सिर चले गए, मैं उन्हें वापस नहीं ला सकती. लेकिन अब मैं सिर्फ मुनासिब मुआवज़े और अपने बच्चों के लिए एक सुरक्षित जीवन की कामना करती हूं. आतंकियों के सहयोगी होने का कलंक धुल जाना चाहिए, वरना ये मेरे बच्चों का भविष्य बर्बाद कर देगा’.
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