scorecardresearch
Sunday, 24 November, 2024
होमएजुकेशनबाल मजदूरी से 'आजाद होता बचपन', बाल आश्रम के पांच बच्चों का एसआरएम विश्‍वविद्यालय में दाखिला

बाल मजदूरी से ‘आजाद होता बचपन’, बाल आश्रम के पांच बच्चों का एसआरएम विश्‍वविद्यालय में दाखिला

चिराग बताते हैं कि फैक्ट्री एक छोटे से कमरे में 8 से 10 बच्चे रहा करते थे. उसी छोटे कमरे में हमारे लिए बाथरूम, किचन, काम करने और सोने की व्यवस्था की गई थी. वो हमसे 16-17 घंटे काम कराते थे.

Text Size:

नई दिल्ली: नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी और सुमेधा कैलाश द्वारा स्थापित ‘बाल आश्रम’ के पांच बच्‍चों को देश के प्रतिष्ठित और उच्‍च शिक्षा संस्‍थानों में से एक एसआरएम विश्‍वविद्यालय में दाखिला मिला है. ये पांचो बच्चे पहले बाल मजदूर रहे हैं जिनको बचपन बचाओ आंदोलन के तहत छुड़ाया गया और शिक्षा के लिए प्रेरित किया. बाल आश्रम में रह कर पढ़ाई करते हुए पांचों बच्चों ने 12वीं की परीक्षा अव्वल नंबरों से पास की है. इन पांचों बच्चों के नाम संजय कुमार, इम्तियाज अली, मनीष कुमार, चिराग आलम और मन्‍नू कुमार है.

बिहार के रहने वाले मन्नू बताते हैं कि वो आठ साल के थे जब उन्हें तबेले में बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर होना पड़ा. जब छोटे थे तो पिता का निधन हो गया था और परिवार की स्थिति काफी खराब थी. मन्नू को याद भी नहीं है कि जानवरों को चराने के बदले वो कितना कमा लेते थे. कुछ सालों बाद मन्नू को रेसक्यू किया गया. वो कहते हैं कि आश्रम में पढ़ाई के दौरान मैंने काफी कुछ सीखा है और मेरी यही कोशिश रहेगी कि मैं लोगों को अधिकार दिलाने के लिए उनकी कुछ मदद कर सकूं.

वो कहते है कि ‘मैं चाहता हूं कि जिन हालात से मैं गुजरा उससे कोई और ना गुज़रे.’

वो आगे कहते हैं कि ‘कोरोना काल में जिन लोगों के पास फोन था उनके लिए ऑनलाइन एजुकेशन लेना आसान था लेकिन जो गरीब थे वो इससे दूर हो गए. मैं सरकार से कहना चाहता हूं कि वो इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए नियम बनाए. वो ऐसे कानून बनाए जिससे बाल मजदूरी खत्म हो.’

गौरतलब है कि बाल आश्रम के जिन बच्‍चों का एसआरएम विश्‍वविद्यालय के विभिन्‍न पाठ्यक्रमों में दाखिला हुआ है वे समाज के सबसे कमजोर और हाशिए के तबके से आते हैं. इन बच्चों बीएससी (फिजिकल एजुकेशन), बैचलर ऑफ फिजियोथेरेपी, होटल मैनेजमेंट, डिप्लोमा इन नर्सिंग एवं बैचलर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन के पाठ्यक्रमों में चयन हुआ है.

19 वर्षीय संजय कुमार का चयन होटल मैनेजमेंट और केटरिंग कोर्स में हुआ है. राजस्थान के संजय कुमार कहते हैं कि जब वो बाल मजदूरी में गए उस समय उनकी उम्र 7 साल थी. वो बताते हैं कि उनके घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी जिसके कारण वो अपने माता पिता के साथ पास के ही एक ईंट भट्टी पर काम करने जाया करते थे. जब तक संजय के माता पिता काम किया करते थे तब तक वो भी उनका हाथ बटाया करते थे. उन्हें मजदूरी के तौर पर 50 रुपए मिला करते थे जिसे वो अपने मां बाप को दे दिया करते थे.


यह भी पढे़ं: 2020-21 अमेरिका में पढ़ने वाले भारतीयों की संख्या में 13% की कमी आई: रिपोर्ट


संजय को भी साल 2010 में रेसक्यू किया गया था. जिसके बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई आश्रम में ही की. संजय कहते हैं कि ‘लोगों को बाल मजदूरी के बारे में ज्यादा से ज्यादा जागरुक करने की जरूरत है. सरकार को इसके खिलाफ कड़े कानून बनाने चाहिए ताकि कोई बच्चा बाल मजदूरी करने को मजबूर ना हो. सरकार को हर किसी का रोज़गार सुनिश्चित करना चाहिए.’

इक्कीस वर्षीय चिराग आलम का चयन बीबीए पाठ्यक्रम के लिए हुआ है. साल 2009 में चिराग को नौ साल की उम्र में उसके पास के गांव का ही एक शख्स बहला-फुसलाकर उसे दिल्ली ले आया जहां चिराग को एलएनजेपी इलाके में हैंडीक्राफ्ट फैक्ट्री में बाल मजदूरी करने के लिए मजबूर किया.

चिराग कहते हैं कि ‘वहां एक छोटे से कमरे में 8 से 10 बच्चे रहा करते थे. उसी छोटे कमरे में हमारे लिए बाथरूम, किचन, काम करने और सोने की व्यवस्था की गई थी. वो हमसे 16-17 घंटे काम कराते थे. अगर बीच में नींद आ जाती थी तो वो गालियां दिया करते थे और मारा पीटा करते थे. तब लगता था कि जिंदगी ऐसे ही गुज़रेगी. एक साल बाद बचपन बचाव आंदोलन के तहत पुरी बस्ती में से 52 बच्चों को बाल मज़दूरी से बाहर निकाला गया.’

चिराग के पिता पंजाब के खेतों में मज़दूरी करते हैं और 400-500 रुपए दिन का कमा लेते हैं जो 9 स्दस्यों वाले परिवार का पालन पोषण करने के लिए कम पड़ते हैं. चिराग कहते हैं कि ‘अगर पढ़ाई करने के बाद अच्छी नौकरी मिल गई तो हमारे परिवार की कई परेशानियां कम हो जाएंगी.’

चिराग कहते हैं कि वो लोगों को बाल मजदूरी और शिक्षा के लिए अभी से जागरूक कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे.
वो आगे कहते हैं कि ‘सरकार कहती है कि 18 साल से पहले लड़की और 21 साल से पहले लड़का शादी नहीं कर सकते हैं यानी सरकार मान रही है कि वो इससे पहले बच्चे हैं इस लिहाज़ से सरकार को उन्हें मुफ़्त शिक्षा देनी चाहिए और गुणवत्तापुर्ण होनी चाहिए.’

चिराग का मां चिमनी बेगम कहती हैं कि ‘उनके बेटे का एडमिशन हो जाने से पुरे गांव में बेहद खुशी है. मुझे पूरी उम्मीद है कि इसके पढ़ लिख जाने से हमारी कई परेशानियां हल हो जाएंगी.’


यह भी पढ़ें: कोविड ने प्रारंभिक शिक्षा को कैसे प्रभावित किया, अभिभावकों, शिक्षकों और तकनीक की क्या है भूमिका


 

share & View comments