नई दिल्ली: ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी सरकार ने अपनी फ्लैगशिप ‘ऑड-ईवन’ स्कीम में आस्था गंवा दी है. दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने एक इंटरव्यू में दिप्रिंट को बताया, कि अब केवल आपात स्थिति में ही उस फार्मूले का सहारा लिया जाएगा.
गोपाल राय ने कहा कि अरविंद केजरीवाल सरकार की प्राथमिकता है, कि दूसरे उपायों पर ज़ोर देकर उन्हें कामयाबी के साथ लागू किया जाए, वायु प्रदूषण के खिलाफ दिल्ली की लड़ाई में लोगों की भागीदारी बढ़ाई जाए, और टेक्नॉलजी पर भी फोकस किया जाए. उन्होंने कहा, ‘अगर स्थिति गंभीर हो जाती है, तो सरकार ऑड-ईवन लागू करने पर फैसला कर सकती है’.
ऑड-ईवन फॉर्मूला, जिसमें अंत में ऑड नंबर प्लेट वाली गाड़ियों को, ऑड तारीख़ों पर सड़क पर निकलने की अनुमति मिलती है, और (कुछ अपवाद के साथ) फिर इसका उल्टा होता है- 2016 की सर्दियों में प्रदूषण के चरम पर, वाहनों से हो रहे प्रदूषण को घटाने के लिए शुरू किया गया था. अक्तूबर से फरवरी के बीच राष्ट्रीय राजधानी में, वायु की गुणवत्ता ख़ासतौर से ख़राब रहती है.
वाहन राशनिंग की इस पॉलिसी को दुनिया भर में सराहा गया है. फॉरच्यून पत्रिका ने अरविंद केजरीवाल को 2016 में दुनिया के 50 सबसे बड़े नेताओं में शुमार किया था, और विशेष रूप से दिल्ली सरकार के ऑड-ईवन फॉर्मूले की प्रशंसा की थी.
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प्रदूषण से जंग
हालांकि, दिल्ली की हवा की क्वालिटी पूरे साल चिंता का विषय रहती है (राष्ट्रीय औसत से तीन गुना अधिक), लेकिन सर्दियां शुरू होते ही ये विशेष रूप से बिगड़ जाती है. प्रदूषण के लिए काफी हद तक साल के इस समय, राष्ट्रीय राजधानी के आसपास के राज्यों में पराली जलाने, और तापमान में गिरावट को ज़िम्मेवार माना जाता है, जिससे हवा में निलंबित कण सतह के नज़दीक ही स्थिर बने रहते हैं.
प्रदूषण से निपटने के लिए आप सरकार ने कई उपाय शुरू किए हैं. पूरी दिल्ली में लगाए गए बिलबोर्ड्स में सीएम केजरीवाल को, ‘युद्ध, प्रदूषण के विरुद्ध’ अभियान के साथ, वायु प्रदूषण के खिलाफ जंग छेड़ते हुए दिखाया गया है.
बहुत सारे ट्रैफिक सिग्नल्स पर वॉलंटियर्स को, वाहन चालकों से ‘लाल बत्ती ऑन, गाड़ी ऑफ’ पर अमल करने का अनुरोध करते देखा जा सकता है, जिसमें चालकों को प्रोत्साहित किया जाता है, कि जब वो बत्ती के हरे होने का इंतज़ार करते हैं, तो कार के इंजिन को बंद कर लें.
ये उपाय एक अस्थायी समाधान लग सकते हैं, लेकिन गोपाल राय ने ये कहते हुए अभियान का बचाव किया कि, ‘दिल्ली में एक कम्यूटर (नियमित आने-जाने वाला) औसतन 12-13 सिग्नल्स पार करता है. इसका मतलब है कि वो औसतन 30 मिनट्स का ईंधन बरबाद करता है. अब ज़रा सोचिए कि अगर वो इन 30 मिनट्स का ईंधन बचा लेते हैं, तो क्या ये कोई बुरी बात होगी? पेट्रोलियम संरक्षण पर एक रिपोर्ट के मुताबिक़, अगर सभी गाड़ियां लाल बत्तियों पर अपने इंजिन बंद कर लें, तो उससे प्रदूषण में 13 प्रतिशत की कमी हो जाएगी.
मंत्री ने उस बायो-डीकम्पोज़र में भी काफी विश्वास व्यक्त किया, जो दिल्ली सरकार ने पराली जलाने के विकल्प के रूप में विकसित किया है, जिसे इस समय के दौरान दिल्ली में स्मॉग कवर के लिए, बड़ी हद तक ज़िम्मेवार माना जाता है.
राय का कहना था कि दिल्ली सरकार ने दिल्ली और आसपास के, क़रीब 2,000 एकड़ इलाक़े में डीकम्पोज़र का छिड़काव किया है, लेकिन दूसरे पड़ोसी राज्यों में ऐसा नहीं हुआ है. उन्होंने कहा, ‘हमने बायो-डीकम्पोज़र पर एक रिपोर्ट, वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को सौंपी थी. हमने उसके निष्कर्षों का केंद्र की एक सरकारी एजेंसी से थर्ड पार्टी ऑडिट भी कराया था, और उसे भी केंद्र सरकार को भेजा था. उसके बाद भी अगर डीकम्पोज़र को नहीं अपनाया गया, तो उससे यही ज़ाहिर होता है कि केंद्र ने कोई ज़मीनी कार्य योजना नहीं बनाई है, जिसके नतीजे में पराली जलाने से अभी भी (दिल्ली के वायु प्रदूषण स्तर को) ख़तरा बना हुआ है’.
राय ने ये भी कहा कि सरकार बाबा खड़क सिंह मार्ग पर लगाए गए स्मॉग टावर की निगरानी कर रही है. उन्होंने कहा, ‘स्मॉग टावर फिलहाल पायलट आधार पर चल रहा है. आईआईटी बॉम्बे और आईआईटी दिल्ली फिलहाल आंकलन कर रहे हैं, कि ये सहायक है कि नहीं है. लेकिन अगर सीधे तौर पर ज़मीनी रिपोर्ट को ध्यान से देखें, तो हम पाते हैं कि टावर हवा में पीएम 2.5 को, क़रीब 60-70 प्रतिशत कम कर रहा है’.
काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्लू) की एक स्टडी में पता चला, कि अक्तूबर से नवंबर 2020 के बीच, खुली आग (जिसमें पराली जलाना शामिल था) दिल्ली में 30 प्रतिशत वायु प्रदूषण की ज़िम्मेवार थी. घरों से होने वाला उत्सर्जन (खाना पकाना आदि) नवंबर से दिसंबर तक 24 प्रतिशत, और दिसंबर 2020 से जनवरी 2021 तक 36 प्रतिशत वायु प्रदूषण के लिए ज़िम्मेवार था. स्टडी में कहा गया था कि वाहनों के उत्सर्जन का, दिल्ली के पीएम 2.5 स्तरों (टेरी और एआरएआ 2018) में 17-28 प्रतिशत योगदान था.
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