नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने इज़राइल स्पाईवेयर पेगासस के जरिए भारतीय नागरिकों की कथित जासूसी के मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय विशेषज्ञों की एक समिति बनाई है. अदालत ने विशेषज्ञों के पैनल से जल्द से जल्द रिपोर्ट तैयार करने को कहा है. मामले की आगे की सुनवाई आठ हफ्ते बाद की जाएगी.
पेगासस मामले पर चीफ जस्टिस एन वी रमन्ना, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि, ‘इस पर केंद्र द्वारा कोई विशेष खंडन नहीं किया गया, इस प्रकार हमारे पास याचिकाकर्ता की दलीलों को प्रथमदृष्टया स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, हम एक विशेषज्ञ समिति नियुक्त करते हैं जिसका काम सुप्रीम कोर्ट की देख रेख में किया जाएगा.’
तीन सदस्यीय समिति की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश आर.वी. रवींद्रन करेंगे. समिति के अन्य सदस्य आलोक जोशी होंगे जो 1976 बैज के आईपीएस हैं और उनके साथ संदीप ओबेरॉय होंगे जो फिलहाल इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन ऑफ स्टैंडर्डाइजेशन के चेयरमैन हैं.
इसके साथ ही इसमें टेक्निकल समिति भी बनाई गई है जिसमें गांधीनगर गुजरात के नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी के डीन डॉ. नवीन कुमार चौधरी, केरल अमृता विश्व विद्यापीठम के प्रोफेसर डॉ. प्रभाहरन पी और बांबे आईआईटी के डॉ. अश्विन अनिल गुमस्ते को शामिल किया गया है.
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‘हर किसी की निजता की रक्षा होनी चाहिए’
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि ‘विशेषज्ञ पैनल के, पूर्वाग्रहों से मुक्त सदस्यों का चयन करना बहुत ही कठिन काम था. ‘
अदालत ने पेगासस जासूसी मामले पर कहा, ‘याचिकाओं में निजता के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघन जैसे आरोप लगाए गए हैं, जिनकी जांच करने की जरूरत है.’
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि, ‘हर किसी की निजता की रक्षा होनी चाहिए.’
‘हम सूचना के युग में रहते हैं और हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण है, लेकिन यहां न केवल पत्रकारों के लिए बल्कि सभी नागरिकों के निजता के अधिकार की रक्षा करना महत्वपूर्ण है.
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत इस संबंध में दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिनमें वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार के साथ-साथ एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की याचिका भी शामिल है. इन याचिकाओं में कथित पेगासस जासूसी कांड की स्वतंत्र जांच की मांग की गई है.
कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि शुरू में जब याचिकाएं दायर की गईं तो अदालत अखबारों की रिपोर्टों के आधार पर दायर याचिकाओं से संतुष्ट नहीं थी, हालांकि, सीधे पीड़ित लोगों द्वारा कई अन्य याचिकाएं दायर की गईं जिसके बाद कार्रवाई की गई.
अंतरराष्ट्रीय मीडिया समूह ने खबर दी थी कि करीब 300 प्रमाणित भारतीय फोन नंबर हैं, जो पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिये जासूसी के संभावित निशाना थे.
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