ऐसा कम ही होता है कि संसद या विधानसभा में खाली सीटों को भरने वाला कोई उपचुनाव इतने ज्यादा राजनीतिक दिग्गजों के लिए काफी अहम हो जाए और जिससे कई राज्यों का राजनीतिक माहौल बदल जाने की संभावना बनती हो. 30 अक्टूबर को होने वाले उपचुनाव की खासियत यही है. इसमें लोकसभा की तीन, 11 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश की 29 विधानसभा सीटों का फैसला होगा. इनमें विपक्ष-मुक्त नागालैंड की शमटोर-चेस्सोर सीट शामिल नहीं है जिस पर उम्मीदवार निर्विरोध चुना जा चुका है यानी आप ब्रह्मपुत्र घाटी से लेकर पश्चिमी हिमालय और विंध्य के दक्षिण तक राजनीतिक तनाव की लहर महसूस कर सकते हैं.
महाराष्ट्र में एमवीए के दांव
महाराष्ट्र में केवल नांदेड़ जिले की डेगलूर सीट पर ही चुनाव हो रहा है लेकिन इसने शीर्ष नेताओं सक्रिय कर दिया है. यह सीट रावसाहब अंतापुरकर के निधन के कारण खाली हुई थी और कांग्रेस ने उनके पुत्र जितेश अंतापुरकर को वहां से उम्मीदवार बनाया है. पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण ने नांदेड़ के पूर्व सांसद भास्कर पाटील खतगांवकर की ‘घर वापसी’ कराने के लिए उनके प्रति अपने मनमुटाव को परे कर दिया है. चह्वाण से रंजिश होने के बाद खतगांवकर 2014 में भाजपा में शामिल हो गए थे.
उधर, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस भी नांदेड़ आ पहुंचे ताकि शिवसेना के पूर्व विधायक सुबास सबाणे को बीजेपी में शामिल होकर उपचुनाव लड़ने के लिए मना सकें. सबाणे 2019 में कांग्रेस के उम्मीदवार से हार गए थे. इससे नाराज मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने भाजपा पर तंज़ कसा कि दुनिया की सबसे विशाल पार्टी को उपचुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार ‘आयात’ करना पड़ रहा है.
आखिर, डेगलूर में ऐसा क्या है कि महाराष्ट्र के आला नेता इसमें इतने उलझे हुए हैं?
दरअसल, यह उपचुनाव शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के गठबंधन महा विकास अघाड़ी (एमवीए) की चुनावी ताकत का इम्तहान साबित होने वाला है. पिछली मई में भाजपा ने पंढरपुर विधानसभा सीट पर जो एनसीपी के कब्जे में थी, उपचुनाव में एमवीए को हरा कर उसे झटका दिया था. एमवीए अगर अपने कब्जे की डेगलूर सीट हार जाता है तो इससे तीन दलों के इस गठबंधन की कमजोरी उजागर होगी और इसकी चुनावी ताकत पर संदेह पैदा होगा. गठबंधन में पहले से ही विरोधाभास मौजूद हैं. अगर लगातार दूसरी बार विधानसभा सीट के उपचुनाव में वह हारता है तो इसका खुद गठबंधन पर ही गंभीर असर पड़ेगा. अगले साल के शुरू में ही बृहनमुंबई महापालिका (बीएमसी) के चुनाव होने वाले हैं.
वैसे, शिवसेना और कांग्रेस शनिवार को दादरा एवं नगर हवेली लोकसभा सीट के उपचुनाव में एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रही हैं.
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हरियाणा में तिकोनी टक्कर
हरियाणा की एलनाबाद विधानसभा सीट का उपचुनाव इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलोद) के प्रमुख ओम प्रकाश चौटाला के लिए बहुत महत्व रखता है क्योंकि जेल से 10 साल बाद रिहा होने के बाद उन्हें अपनी राजनीतिक अहमियत साबित करनी है. उनके पुत्र अभय चौटाला ने नरेंद्र मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों के विरोध में एलनाबाद सीट से इस्तीफा दे दिया था और अब फिर चुनाव लड़ रहे हैं. पिता-पुत्र की जोड़ी अपनी राजनीतिक जमीन वापस हासिल करना चाहते हैं जिसे जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) के दुष्यंत चौटाला ने कब्जा कर लिया है. एलनाबाद में हार वापसी के इनेलोद के मंसूबों को बड़ा झटका दे सकती है. भाजपा ने विवादास्पद विधायक गोपाल कांडा के भाई गोविंद कांडा को पार्टी में शामिल करने के तीन दिन के अंदर वहां से उम्मीदवार घोषित कर दिया और उन्हें भाजपा आलाकमान के सामने एक राष्ट्रवादी और गौरक्षक के रूप में पेश किया. अगर गोविंद कांडा भाजपा को वहां से जीत दिलाते हैं तो कृषि कानूनों से नाराज किसानों के कारण प्रतिकूल होते हरियाणा में उसका हौसला बढ़ेगा.
असम में भाजपा और कांग्रेस की परीक्षा
असम में यह हिमंत बिसवा सरमा के लिए मुख्यमंत्री के रूप में और उग्र हिंदुत्ववादी के अपने नए अवतार के रूप में पहली परीक्षा होगी. शनिवार को राज्य विधानसभा की पांच सीटों तामुलपुर, गोसाईगांव, थोवरा, भबानीपुर, मरियानी के लिए उपचुनाव होंगे. पहली दो सीटें विधायकों की मृत्यु के कारण और बाकी तीन सीटें दलबदल— दो विधायकों के कांग्रेस में जाने और एक के एयूडीएफ में जाने के कारण खाली हुई थीं. भाजपा ने सभी दलबदलुओं को टिकट दिया है और दो सीटें सहयोगी दलों के लिए छोड़ दी है. 126 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा की 59 सीटें हैं. अगर वह तीनों सीटें जीत जाती है तो वह बहुमत से दो सीटें ही पीछे रहेगी.
इसके अलावा, माजुली सीट के लिए जल्द ही उपचुनाव होगा. राज्यसभा के लिए चुने जाने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने यह सीट खाली की है. भाजपा अपनी सहयोगियों असम गण परिषद और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी (यूपीपीएल) पर निर्भरता खत्म करने की जुगत में तो जुटी ही होगी.
एयूडीएफ के बदरुद्दीन अजमल से रिश्ता तोड़ चुकी कांग्रेस ने अखिल गोगोई के रायजोर दल से वार्ता टूट जाने के बाद सभी पांच सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. 10 दलों के पूर्व ‘महाजोत’ के तीन सहयोगी एयूडीएफ, बीपीएफ और भाकपा ने भी अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. महाजोत के दूसरे सदस्यों ने निष्ठा बदल दी है. माकपा चार सीटों पर और भाकपा एक सीट पर कांग्रेस का समर्थन कर रही है. राजद अलग-अलग सीटों पर कांग्रेस, एयूडीएफ और भाकपा का समर्थन कर रहा है. इस साल के शुरू में विधानसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के नेताओं ने अजमल की पार्टी को सहयोगी बनाने के फैसले पर सवाल उठाया था.
इन उपचुनावों से फैसला हो जाएगा कि कांग्रेस अकेले रहकर बेहतर करेगी या नहीं.
कर्नाटक तो येदयुरप्पा का खेल
कर्नाटक की सिंदगी और हंगल विधानसभा सीटों पर उपचुनाव मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई के लिए पहली चुनावी परीक्षा होगी. जुलाई में ही वे बी.एस. येदयुरप्पा की जगह गद्दी पर बैठे हैं. इन उपचुनावों से येदयुरप्पा को कोई लाभ नहीं होने वाला है. लिंगायतों की बड़ी संख्या वाली इन सीटों को भाजपा अगर जीत लेती है तो बोम्मई को इसका श्रेय दिया जाएगा कि येदयुरप्पा के बाद भी उन्होंने पार्टी को आगे बढ़ाया लेकिन भाजपा अगर हार गई, खासकर हंगल में तो बोम्मई की तो किरकिरी होगी ही, साथ ही येदयुरप्पा को कहीं बड़ा झटका लगेगा. उन्होंने पार्टी को मजबूर किया था कि वह उनके बेटे बी.वाइ. विजयेन्द्र को हंगल का एक प्रभारी बनाए. अपनी साख बनाए रखने के लिए येदयुरप्पा को लिंगायत मतदाताओं पर अपनी पकड़ साबित करनी होगी.
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तेलंगाना में भाजपा का इम्तहान
तेलंगाना की हुजूराबाद विधानसभा सीट पर उपचुनाव का परिणाम दक्षिण के इस राज्य में भाजपा की ताकत का एक और अंदाजा देगा. पिछले नवंबर में इसने दुब्बका सीट पर उपचुनाव में सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) को झटका दिया था. दिसंबर में ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 150 वॉर्डों में से 48 को जीता था जबकि 2016 में इससे चार कम वार्ड जीते थे. बहरहाल, यह एक साल पुरानी बात है.
हुजूराबाद का उपचुनाव यह साबित करेगा कि भाजपा ने यहां अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी टीआरएस के मुक़ाबले अपनी स्थिति कितनी मजबूत की है. मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के लिए यह चुनाव अपनी नाराजगी साबित करने का भी मौका है क्योंकि कभी उनके पार्टी के साथी रहे एताला राजेंद्र यहां से भाजपा उम्मीदवार हैं.
हिमाचल, मध्य प्रदेश, बिहार की राह पर
हिमाचल प्रदेश की मंडी लोकसभा सीट, अर्की, जुबबल-कोटखई और फ़तेहपुर विधानसभा सीट पर उपचुनाव मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के लिए बेहद अहम हैं. राज्य विधानसभा चुनाव के एक साल पहले ये चुनाव अगर भाजपा सरकार विरोधी भावना का संकेत देते हैं तो यह पार्टी आलाकमान के सामने उनकी कैसे छवि पेश करेगा यह सोच कर ठाकुर जरूर परेशान होते होंगे. सरकार विरोधी भावना से लड़ने के लिए भाजपा ने पूरे गुजरात मंत्रिमंडल को पिछले महीने बदल डाला. मंडी में प्रतिभा सिंह अपने पति और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की राजनीतिक विरासत को खासकर कांग्रेस के अंदर बचाने की लड़ाई लड़ रही हैं.
उधर मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी एक लोकसभा सीट और तीन विधानसभा सीटों पर उपचनाव के कारण दबाव महसूस कर रहे होंगे. उनके कई सहकर्मी उनकी गद्दी पर नज़र टिकाए हैं और पार्टी आलाकमान भी नेताओं की नई जमात को आगे लाने को उत्सुक हैं ऐसे में चौहान कोई जोखिम नहीं मोल लेना चाहेंगे.
बिहार में विधानसभा की दो सीटों पर उपचुनाव नीतीश कुमार की सरकार की स्थिरता के लिए अहम साबित हो सकते हैं. जदयू के दो विधायकों की मृत्यु ने 243 सीटों वाली विधानसभा में एनडीए सरकार की ताकत घटाकर 126 सीटों पर सीमित कर दी जो बहुमत से मात्र चार सीटें ज्यादा है. यह जीतन राम मांझी के ‘हम’, और मुकेश सहनी की ‘वीआइपी’ जैसे छोटे चार-चार विधायकों वाले सहयोगी दलों का वजन बेवजह बढ़ा देता है. इनमें से एक ने भी सरकार से समर्थन वापस ले लिया तो सरकार लंगड़ी हो जाएगी.
कभी साथ रही कांग्रेस और राजद अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. राजद नेताओं का कहना है कि पिछले विधानसभा चुनाव में गठबंधन के रूप में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ के और मात्र 19 सीटें जीत कर उन्हें कमजोर कर दिया. अब इन उपचुनावों के नतीजे उनके भावी समीकरण पर निश्चित ही असर डालेंगे.
यहां व्यक्त विचार निजी हैं.
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