scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतशाहरुख़ ख़ान कभी भारत थे और फिर भारत बदल गया

शाहरुख़ ख़ान कभी भारत थे और फिर भारत बदल गया

शाहरुख़ ने हमें बताया कि मंदिर, मार्केट और मंडल के तीन 'एम' से कैसे निपटें. ‘प्यार ही सब कुछ है.’ अपने, परिवार और देश के लिए प्यार.

Text Size:

भारत के सबसे मशहूर सांस्कृतिक निर्यातों में से एक शाहरुख खान नाम के लेजेंड में तीन चीजें अंतर्निहित हैं. इनमें शामिल है वह घर, जिसे इस अभिनेता ने उस शहर में समुद्र के किनारे अपने लिए बनाया है जिसके बारे में उसने कभी कसम खाई थी कि वह एक दिन उस पर राज करेगा. वह खुशहाल, जिंदादिल, चमचमाता परिवार जिसेके लिए अपने पिता को 15 साल की उम्र में और अपनी मां को 26 साल की उम्र में खो देने के बाद उन्होंने दिन रात कड़ी मेहनत की, और इसी में शामिल है अपनी ईमानदारी के लिए उनकी वह प्रतिष्ठा है जो तीन दशक के लंबे करियर के दौरान उनके प्रति लोगों की नज़र में बनी है जिसकी वजह से उन्हें कई बार विभिन्न अधिकारसंपन्न लोगों के साथ संघर्ष करना पड़ा. इसकी शुरुआत शायद जामिया मिलिया इस्लामिया के प्रबंधन के साथ उनकी भिड़ंत से ही शुरू हो गई थी जिसने उन्हें कम उपस्थिति की वजह अंतिम परीक्षा में भाग लेने की अनुमति नहीं दी थी.

पिछले एक पखवाड़े में इन सभी तत्वों को व्यवस्थित रूप से एक साथ नष्ट-भ्रष्ट करने की कोशिश की गई है.

हाल में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) के अधिकारियों ने अपनी कागजी कार्रवाई पूरी करने के लिए ‘मन्नत’ का दौरा किया और इस कार्रवाई को मीडिया ने ‘उनके घर पर छापे‘ के रूप में पेश किया. यह एक ऐसा घर है जिस पर शाहरुख को गर्व है. विरासत वाली एक पुरानी संपत्ति पर निर्मित, इस घर का हर कोना उनकी फिल्मों, उनके विज्ञापनों, शादियों और संगीत समारोहों में उनके द्वारा किए गए नाच-गाने यानी कि एक ऐसे व्यक्ति की वर्षों की कड़ी मेहनत का परिणाम है, जिसने अपना बचपन और युवावस्था किराए के घरों में बिताई हो.


यह भी पढ़ें: ‘ए मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया’- कैसे बेगम अख्तर ने अपनी गायकी से दिल्ली को मदहोश किया था


उनके परिवार में उनके तीन बच्चे (जो उनकी आंखों की रोशनी जैसे हैं), और उनकी पत्नी, जो कभी पारिवारिक मूल्यों के दमकते हुए प्रतिमान के रूप में ‘द फैबुलस लाइव्स ऑफ बॉलीवुड वाइव्स’ (नेटफ्लिक्स) जैसे शो का हिस्सा बनीं थीं. इस दंपत्ति को अपने बच्चों की परवरिश के उनके तरीके के लिए राष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदा किया जा रहा है. उनकी टिप्पणियों और बयानों को संदर्भ से परे जाकर पेश किया जा रहा है, चाहे शाहरुख का सिमी गरेवाल से यह कहना हो कि उनका बेटा, जो उस समय बमुश्किल दो साल का था, जो चाहे (जिसमें ड्रग्स लेना शामिल है) कर सकता है या उनकी पत्नी गौरी खान का डेविड लेटरमैन से यह जाहिर करना कि वो बच्चो की चिंता करने वाले माता-पिता तो हैं मगर हिस्टरीकल पेरेंट्स (बच्चों को कठोर नियन्त्रण में रखने वाले अभिभावक) नहीं है.

इन सबसे बढ़कर, एक साफ-सुथरे पारिवारिक व्यक्ति के रूप में उनकी प्रतिष्ठा को तार-तार कर दिया गया है. उन्हें अक्सर यह कहते हुए सुना जाता था कि ‘मैं शाहरुख खान के मिथक का गुलाम हूं’, आज उसी मिथक पर गहरी चोट की गई है.

कोई डुप्लीकेट नहीं

ऐसी दुनिया में जहां टॉल पॉपी सिंड्रोम (सार्वजनिक जीवन में उल्लेखनीय ख्याति हासिल करने वाले लोगों को बदनाम या अपमानित करने की एक कथित प्रवृत्ति) एक डिफ़ॉल्ट सेटिंग है. वहां यह चाहत स्वाभाविक है कि सभी को एक समान स्तर पर होना चाहिए और शाहरुख ने तो वास्तव में खुद को एक के ‘टॉल पॉपी’ रूप में स्थापित किया है. चाहे वह स्वयं को सम्मानित करने वाली फिल्मों के माध्यम से हो या फिर लेटरमैन जैसे एंकरों से लेकर अमेज़ॉन के जेफ बेजोस जैसे अरबपतियों तक वैश्विक हस्तियों के साथ अपने साक्षात्कार के द्वारा हो. उन्होंने हमेशा अपने स्टारडम को और आगे ही बढ़ाया है. उससे भी बड़ी बात यह कि उनका यह स्टारडम सर्व-समावेशी है, ठीक उसी तरह जैसे कि उनकी बाहें फ़ैलाने वाली मशहूर अदा और इसमें मुस्लिम, महिलाएं और एलजीबीटीक्यू (लेस्ब‍ियन, गे, बाईसेक्सुअल, ट्रांसजेंडर और क्व‍ियर) समुदाय भी शामिल हैं. अगर बॉलीवुड, जो 1998 में उद्योग का दर्जा दिए जाने के बाद से ही भारतीय जनता पार्टी के निशाने पर है, के द्वारा पूरी दुनिया को एक नए भारत का विचार बेचा जाना है तो पुराने प्रतीकों को धराशाई करना होगा और नए सितारों और कहानियों का निर्माण तो करना ही होगा.

इस स्टार के लिए यह समय एक मुश्किल वक्त रहा है जो इस सारे मामले के दौरान एकदम चुप रहा है. कानूनी रूप से लड़ाई लड़ने का विकल्प चुन रहा है. किसी से सहानुभूति नहीं मांग रहा है. अपने लिए समर्थन जुटाने या फिर माफ़ी मांगने के लिए चिल्ला भी नहीं रहा लेकिन फिर भी वह जनता की नज़र में है. उसका और उसकी पत्नी का दुःख सभी के सामने चर्चा, बहस और हो-हल्ले के लिए प्रदर्शित किया जा रहा है.

फिर गुण निर्विवाद रूप से मौजूद तो है ही – हम काफी तेजी से किसी के भी बारे में किसी भी निर्णय पर पहुंच जाते हैं. खासतौर से उन मशहूर हस्तियों के मामले में जिन्हें हम पसंद करते हैं. हम सिनेमाघरों में लगने वाली शाहरुख की फिल्मों का जश्न मनाना पसंद करते हैं या फिर गौरी खान के नए नवेले घरेलू डिज़ाइन को एक लाइफ़स्टाइल वाली पत्रिका में देख उस पर फ़िदा हो जाते हैं. यह उन सभी पैमानों को पूरा करता है कि हम किसी अति-अमीर शख्स से किस तरह का व्यवहार करने की उम्मीद करते हैं. हम जीवन जीने के उसी तरीक़े को पाने/अपनाने की आकांक्षा रखते हैं और साथ ही हम उससे ईर्ष्या भी करते हैं. जब आप बॉलीवुड स्टार की पत्नियों के शानदार जीवन पर आधारित फैबुलस लाइव्स ऑफ़ बॉलीवुड वाइव्स देखते हैं, तो गौरी खान के बारे में ‘लड़कियों‘ के बात करने के तरीके पर नाक भौं सिकड़ोना कोई मुश्किल बात नहीं है. जैसा कि उनके लंबे समय के दोस्त महीप कपूर कहती है : ‘वो वह महिला हैं जिसने एक ऐसे पुरुष से शादी की है, एक मेगा- मेगा सुपरस्टार, और फिर भी कभी उसकी छाया तले दबी नहीं.’


यह भी पढ़ें: आजादी के बाद 7 दशकों में डाक टिकट पर कैसे नज़र आए बापू


सम्मान में अक्सर आक्रोश के जहर का पुट भी रहता है और यही हमारे सबसे प्यारे सितारों के साथ हमारे संबंधों का ताना-बाना भी बन जाता है. उनमें से कुछ, जैसे अमिताभ बच्चन, चुपचाप दर्शन देने या अप्रासंगिक रूप से ट्वीट करने के बाद अपने बंद दरवाजे़ वाले बुलबुले (शाब्दिक और रूपकीय तौर पर भी) के पीछे दुबक जाने के लिए ही बाहर आते हैं. लेकिन शाहरुख ने बिल्लू (2009) में आम लोगों की इसी फैंटेसी को अमर बना दिया है; उन्होंने ‘दर्शन देने’ के अंदाज को फैन (2016) फिल्म में सिनेमा के परदे पर पेश किया और इस साल के डिज्नी प्लस हॉटस्टार विज्ञापन में इस सबका मजाक भी उड़ाया है जिससे हमें इस अभिनेता की चंचलता पर एक बार फिर से आश्चर्य भी हुआ.

शाहरुख़ ख़ान ही भारत थे

शाहरुख़ कभी एक्सीडेंटल स्टार (संयोगवश उभरे सितारे) नहीं रहे हैं. उनका स्टारडम ऐसा है जिसे सोच-समझकर और शानदार ढंग से विकसित किया गया है. उन्होंने हमेशा आधुनिक बॉलीवुड के सबसे प्रकाशमान सितारे अमिताभ बच्चन के खिलाफ खुद की क्षमता को मापते हुए इसे गढ़ा है. उन्होंने लोगों को उनकी स्व-घोषित सिनेमाई विरासत की याद दिलाने के लिए प्रतिष्ठित फिल्मों के रीमेक में काम भी क्या है, चाहे वह अमिताभ बच्चन की डॉन हो या दिलीप कुमार की देवदास.

उनके सभी समकालीनों सितारों में से उनके बारे में ही सबसे अधिक किताबें लिखी गई हैं, चाहे वे किताबें उनके सिनेमा का विश्लेषण करती हों, स्वयं उनके बारे में हों या दुनिया भर की महिलाओं में उनके प्रति आकर्षण के बारे में. फिल्म चक दे इण्डिया (2007), में उनके सहयोगी इस फिल्म में शाहरुख द्वारा निभाए चरित्र से कहते हैं, ‘एक गलती तो सबको माफ़ होती है‘. जवाब में शाहरुख तिरस्कारभरी मुस्कान के साथ कहते हैं: ‘सबकी? इस फिल्म में, इस संवाद का आशय यह है कि भारत के सार्वजनिक जीवन में एक मुस्लिम को अतिरिक्त सतर्क रहना पड़ता है. उसके-या उसके परिवार के- दामन में रत्ती भर भी दाग नहीं होनी चाहिए.

शाहरुख पहले भी बदलाव का सामना कर चुके हैं. नब्बे के दशक में, उन्होंने हमें बताया कि मंदिर, मार्केट और मंडल के तीन ‘एम’ से कैसे निपटें. ‘प्यार ही सब कुछ है.’ अपने लिए, परिवार के लिए, देश के लिए प्यार. फिलहाल पूरी दुनिया संक्रमण के दौर में है और एक ओर जहां फिल्म उद्योग में पुरानी निश्चितताएं खत्म होती जा रही हैं, नए का जन्म होना बाकी है. अपनी महत्वाकांक्षी फिल्म ज़ीरो (2018) की विफलता के बाद शाहरुख ने आत्म-निर्वासन के तौर पर एक साल की छुट्टी ले ली थी जो कोविड के बाद लगे लॉकडाउन की वजह से तीन साल के लम्बे ब्रेक में बदल गई. वह यश राज फिल्म्स की फिल्म पठान से शुरू होने वाली और एटली की एक थ्रिलर मूवी (जिसके बारे में अफवाह थी की यह मनी हीस्ट पर आधारित है) और राजकुमार हिरानी के इमिग्रेशन ड्रामा (प्रवास पर आधारित नाटक) पर आधारित फिल्मों की एक पूरी श्रृंखला के साथ दर्शकों को मन एक बार फिर से मोह लेने की तैयारी में थे. उनके व्यक्तिगत जीवन में आए संकट से निपटने के प्रयासों के कारण पहले दो फिल्मों की शूटिंग बीच में रुक गई है. उनके एक दोस्त कहते हैं, ‘वह कह रहे हैं कि वह ठीक है. वह कोई मदद नहीं चाहते. वह सभी कानूनी विकल्पों का सहारा लेंगे.’

शाहरुख खान उन संस्थानों और लोकाचार से उत्पन्न एक प्रोडक्ट (व्यक्ति) हैं जो भारत को एक गौरवशाली लोकतंत्र बनाते है. इसके मिशनरी स्कूल जो सामानतावाद का पाठ सिखाते हैं. इसकी अनुदान आधारित कॉलेज शिक्षा जो समावेशिता सिखाती है. इसका अव्यवसायिक रंगमंच जहां आप कड़ी मेहनत के बदले अभिनय सीख सकते हैं. यह एक ऐसी दुनिया थी जिसमें शिक्षा आपको विशेषाधिकार से भरी दुनिया में प्रवेश दिला सकती थी और फिर आप अपने पीछे की दुनिया के दरवाजे को बंद कर सकते थे. नए भारत में आपसे इस दरवाजे को खुला रखने की अपेक्षा की जाती है. अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो किसी को भी इसे नष्ट करने में कोई दिक्कत नहीं होगी और ऐसा करने के लिए वह हर क़ानूनी किताब, हर कानून, हर नीति नियम का इस्तेमाल कर सकते हैं.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: कृषि मंत्री तोमर से ‘सम्मान’ पाने वाला निहंग सिख 1971 के वॉर हीरो की हत्या के प्रयास के मामले में वांटेड


 

share & View comments