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Thursday, 21 November, 2024
होममत-विमतअब जब बाल विवाह घट रहे हैं तो इसपर राजस्थान में बेमतलब का बदलाव

अब जब बाल विवाह घट रहे हैं तो इसपर राजस्थान में बेमतलब का बदलाव

बाल विवाह रोकथाम अधिनियम, 2006, जब से बना है तब से बाल विवाहों में बहुत गिरावट हुई है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वेक्षण के 2015-16 के सर्वे के अनुसार राजस्थान में बाल विवाह का प्रतिशत 35 फीसद तक घट गया था और देश का 27 फीसदी तक हो गया था.

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राजस्थान में विवाह के पंजीकरण से जुड़े एक विधेयक पर बीते कई दिनों से जारी विवाद का पटाक्षेप हो गया है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्यपाल कलराज मिश्र से विधेयक को लौटाने का आग्रह किया है. गौरतलब है कि विधानसभा के पिछले सत्र में राजस्थान विवाहों का अनिवार्य पंजीकरण (संशोधन) विधेयक, 2021 पारित हुआ था. जिस समय यह विधेयक विधानसभा में पेश हुआ था तब भारतीय जनता पार्टी ने इसका यह कहते हुए विरोध किया था कि इससे बाल विवाह को बढ़ावा मिलेगा. सरकार ने बहुमत के बूते विधेयक तो पारित करवा लिया, लेकिन इसका विरोध बदस्तूर जारी रहा. महिला और जन संगठनों ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की. कुछ लोग इसके खिलाफ अदालत भी पहुंच गए. वहीं, राज्यपाल ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए. इससे पहले कि बवाल और ज्यादा बढ़ता, सरकार ने पीछे हटना ही बेहतर समझा. खुद मुख्यमंत्री ने इसकी घोषणा इसलिए की क्योंकि विधेयक में प्रभारी मंत्री के तौर पर भी गहलोत का नाम अंकित था. यानी इसे लाने की सीधी-सीधी जिम्मदारी गहलोत की थी.

इस विधेयक का विरोध बेवजह नहीं था. 2009 के कानून में संशोधन करते हुए लिखा गया कि – विवाह के पक्षकार, या यदि वर ने इक्कीस वर्ष की आयु पूर्ण नहीं की है और या वधू ने अट्ठारह वर्ष की आयु पूर्ण नहीं की है तो पक्षकारों के माता पिता या, यथास्थिति, उनके संरक्षक, विवाह के अनुष्ठापन की तारीख से तीस दिवस की कालावधि के भीतर-भीतर, ऐसी रीति से, जो विहित की जाए, उस रजिस्ट्रार को, ज्ञापन प्रस्तुत करने के लिए उत्तरदायी होंगे, जिसकी अधिकारिता के भीतर विवाह अनुष्ठापित किया गया है या विवाह के पक्षकार या उनमें से कोई ज्ञापन प्रस्तुत किये जाने की तारीख से कम से कम तीस दिवस पूर्व से निवास कर रहा है. इसका सीधा मतलब ये है कि यदि विवाह के पक्षकारों ने विवाह की आयु पूर्ण न की हो तो उनके माता पिता या संरक्षक उस विवाह के अनिवार्य पंजाकरण के लिए उत्तरदायी होंगे. साफ दिखता था कि ऐसे किसी भी विवाह के पंजीकरण से उस विवाह को वैद्यता मिल जाएगी जो कानूनी रुप से गैरकानूनी है.


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बाल विवाह में गिरावट

जाहिर सी बात है कि इस कानून को लाने से पहले राजस्थान सरकार ने कोई विमर्श नहीं किया था. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार ने 5 फरवरी 2014 को एक पत्र के माध्यम से प्री-लेजिस्लेटिव कन्सल्टेशन नीति जारी करते हुए कहा था कि किसी भी कानून को बनाने से पहले देश में सरकारें जनता से राय लें और अपनी वेबसाईट पर उस कानून के प्रारूप को डालें. राजस्थान की सरकार ने संभवतः ऐसा कुछ भी नहीं किया. जिस समय इस विधेयक पर रार मची हुई थी उसी वक्त सेव द चिल्ड्रन ने ‘ग्लोबल गर्लहुड रिपोर्ट 2021: लड़कियों के अधिकारों’ पर संकट जारी करते हुए बाल विवाह के ऊपर बड़ी चिंता जाहिर की. रिपोर्ट में कहा गया कि कोविड-19 महामारी ने बाल विवाह को बढ़ावा देने वाली असमानताओं को और बढ़ा दिया है. स्कूल बंद होने, स्वास्थ्य सेवाओं पर दबाव या बंद होने, और अधिक परिवारों को गरीबी में धकेले जाने की वजह से महिलाओं और लड़कियों को लंबे लॉकडाउन के दौरान हिंसा के बढ़ते जोखिम का सामना करना पड़ता है.

रिपोर्ट में यह भविष्यवाणी की गई कि एक वर्ष में लगभग एक करोड़ लड़कियों की बाल विवाह कर दिया जाएगा. ये पिछले 20 वर्षों में पहली बढोत्तरी होगी, अन्यथा पिछले 25 सालों में विश्व स्तर पर लगभग आठ करोड़ बाल विवाह को रोका गया है. रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2030 तक 110 करोड़ लड़कियों पर बाल विवाह का खतरा मंडरा रहा है.

आंकड़े यह बताते हैं कि बाल विवाह रोकथाम अधिनियम, 2006, जब से बना है तब से बाल विवाहों में बहुत गिरावट हुई है. महिला व बच्चों की स्थिति का अध्ययन करने वाला नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वेक्षण, द्वारा 2015-16 का चौथे (NFHS– 4) सर्वे के अनुसार राजस्थान का बाल विवाह का प्रतिशत 35 फीसद तक घट के रह गया था और भारत देश का 27 फीसद था. अगर इसकी तुलना नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (3) 2005-2006 से करें तो मालूम चलता है कि उस वक्त देश भर में औसत 47 फीसद बच्चों का बाल विवाह हो रहा था और राजस्थान में यह 65 प्रतिशत थाI

जाहिर है कि 10 साल में देश भर में और राजस्थान में बाल विवाह का प्रतिशत लगभग आधा रह गया. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार देश भर में बाल विवाह घटकर 11 फीसद और राजस्थान में 16.2 फीसद रह गया है. हम जानते हैं कि बाल विवाह लैंगिक असमानता का सबसे खराब प्रतीक है और इसकी वजह से गर्भावस्था और प्रसव के दौरान एक साल में करीब 22 हजार से ज्यादा लड़कियों की मौत हो जाती है. लेकिन अब जब बाल विवाह घटने के कगार पर हैं ऐसे में कानून में इस प्रकार का संशोधन करना, जिससे इस कुरीति के बढ़ने की आशंका हो तो इस पर बवाल होना ही था.

इस कानून का असर बाल विवाह रोकथाम अधिनियम, 2006, में शादी रद्द करने के हक पर भी कुठाराघात की आशंका थी. बाल विवाह रोकथाम कानून यह हक देता है की 18 साल से 20 साल के बीच शादी रद्द कराई जा सकती है.

राजस्थान में पिछले वर्षों में कई बाल विवाह रद्द कराए गए हैं. कुछ लड़कियों को घर से निकाल दिया, कुछ के खिलाफ जाति पंचायतों ने तुगलकी फरमान जारी किए लेकिन वे अपनी लड़ाई में अडिग रहीं. यदि नया प्रावधान लागू हो जाता तो उनका यह हक भी समाप्त हो जाता.

माता-पिता बाल विवाह को रजिस्टर नहीं करवाएंगे, क्योंकि उन पर सजा की तलवार है. यदि पंजीकरण हो भी जाएगा तो वो उस लड़की को अभिभावक कागज नहीं देंगे और जब वह 18 साल की होने पर वह विवाह शून्य कराने जाएगी तो उससे पंजीकरण के कागज मांगे जाएंगे जो उसके पास होगा नहीं. इस प्रकार उसके पास जो एक हक था वह भी यह प्रावधान कमजोर कर देता.

खैर, अब जब राजस्थान सरकार से इसे वापिस लेने की घोषणा कर दी है तो इस पर बहस समाप्त हो चुकी है लेकिन कोरोना की वजह से बाल विवाह के बढ़ने की आशंका डराती है. हम जानते हैं कि बाल विवाह जैसे लैंगिक अपराध हमारी सामूहिक विफलता है. दुखद है कि इस सदी में भी मानवता के खिलाफ इस तरह के अपराध प्रचलित और चिरस्थायी हैं. बच्चों, और विशेष रूप से लड़कियों को उनके मूल अधिकार से वंचित करना और उन्हें एक खुशहाल और बेफिक्र बचपन का आनंद न लेने देना मानवाधिकारों का उल्लंघन है और इसकी रोकथाम के लिए सरकारों को कमर कस लेनी चाहिए.

(लेखक भारतीय जन संचार संस्थान, जम्मू के क्षेत्रीय निदेशक हैं. यहां व्यक्त विचार निजी है.)


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