बांग्लादेश में हिंदू समुदाय के लोग लगातार निशाने पर हैं. क्या इस खबर में कुछ नया है? वहां पर हिंदुओं के मंदिरों को तोड़ा जा रहा है, पर ये तो पड़ोसी मुल्क में लगातार होता रहता है. दरअसल खबर यह है कि हिंदुओं को नोआखली में मारा जा रहा है जहां पर 1946 में महात्मा गांधी ने जाकर कत्लेआम को रोका था.
नोआखली देश की आजादी के बाद पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बना और 1971 में पाकिस्तान के दो फाड़ होने के बाद बांग्लादेश का अंग बना. इन दिनों नोआखली फिर से जल रहा है. कुछ दिन पहले धार्मिक उन्मादियों की भीड़ ने नोआखली में इस्कॉन मंदिर में भी तोड़फोड़ की. हमलावरों ने मंदिर में मौजूद भक्तों के साथ मारपीट की. वहां हिंसा जारी है.
ISKCON temple & devotees were violently attacked today by a mob in Noakhali, Bangladesh. Temple suffered significant damage & the condition of a devotee remains critical.
We call on the Govt of Bangladesh to ensure the safety of all Hindus & bring the perpetrators to justice. pic.twitter.com/ZpHtB48lZi
— ISKCON (@iskcon) October 15, 2021
महात्मा गांधी को कांग्रेस के नेता डॉ विधान चंद्र राय ने 18 अक्टूबर 1946 को बताया था कि नोआखली के हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं. हिंदुओं का नरसंहार हो रहा है और हिंदू महिलाओं के साथ धतकरम किया जा रहा है. मोहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन के बाद कलकत्ता (कोलकाता) में भड़की हिंसा और कत्लेआम का असर नोआखली में भी हुआ था. गांधी ने स्थिति की गंभीरता को समझा और उन्होंने 19 अक्टूबर, 1946 को नोआखली जाने का फैसला किया.
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कैसे शुरू हुई हिंसा
बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान हिंदुओं के खिलाफ शुरू हुई हिंसा का नया दौर पिछले सप्ताह से ही जारी है. मुस्लिम कट्टरपंथी हमलावरों के एक समूह ने ताजा हिंसा में हिंदुओं के 66 घरों को क्षतिग्रस्त कर दिया और करीब 29 घरों में आग लगा दी.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, रविवार रात को सौ से अधिक लोगों की भीड़ ने राजधानी ढाका से करीब 255 किमी दूर रंगपुर जिले के पीरगंज स्थित एक गांव में आगजनी की.
कोमिला इलाके में दुर्गा पूजा के एक पंडाल में कथित ईशनिंदा के बाद फैले सांप्रदायिक तनाव के कारण आग लगाने की घटना हुई है. पिछले हफ्ते कोमिला इलाके में हुई घटना के कारण हिंदू मंदिरों पर हमले किए गए और कोमिला, चांदपुर, चटग्राम, कॉक्स बाजार, बंदरबन, मौलवीबाजार, गाजीपुर, फेनी सहित कई जिलों में पुलिस और हमलावरों के बीच संघर्ष हुए.
बांग्लादेश की एक संस्था ऐन ओ सालिश केंद्र के मुताबिक, जनवरी 2013 से इस वर्ष सितंबर महीने के बीच वहां हिंदुओं पर 3,679 हमले हो चुके थे.
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गांधी के साथ कौन गया था नोआखली
6 नवंबर 1946 को नोआखली के लिए गांधी रवाना हुए और अगले दिन यानी 7 नवंबर को वो वहां पहुंच गए. महात्मा गांधी के साथ उनके निजी सचिव प्यारे लाल नैयर, डॉ राम मनोहर लोहिया, जेबी कृपलानी, सुचेता कृपलानी, सरोजनी नायडू, उनकी अनन्य सहयोगी आभा और मनु वगैरह भी थे.
9 नवंबर को बापू नंगे पैर नोआखली के दौरे पर निकले. उन्होंने अगले सात हफ्तों में 116 मील की दूरी तय की और 47 गांवों का दौरा किया. गांधी ने चार महीने मुस्लिम लीग की सरकार की तमाम अड़चनों के बाद भी गांव-गांव पैदल घूम कर पीड़ित हिंदुओं के आंसू पोंछने और उन्हें हौसला दिलाने का काम किया.
बैरिस्टर हेमंत कुमार घोष ने उन्हें लगभग 2000 एकड़ भूमि दान की. वहां पर गांधी आश्रम की स्थापना की गई जहां आज भी बापू की प्रतिमा लगी हुई है. पाकिस्तान बनने के बाद तमाम उथल-पुथल और कानूनी जंग के बावजूद गांधी आश्रम आज भी वहां है. लेकिन अब हालात पूरी तरह बदले हुए हैं. इसलिए तो नोआखली में इंसानियत मर रही है. हिंदुओं को मारा जा रहा है.
77 साल के गांधी वहां पर प्रार्थना सभाओं का आयोजन करने लगे थे, स्थानीय मुस्लिम नेताओं से मिलते और उनका विश्वास जीतने की कोशिश करते. गांधी के नोआखली छोड़ने से पहले वहां पर हालात काफी हद तक सामान्य हो गए थे. नोआखली को तब से ही बापू के साथ जोड़कर देखा जाता है. वे नोआखली के बाद बिहार, कलकत्ता और अंत में दिल्ली में दंगों को रुकवाने के लिए निकल पड़े. पर सवाल यह है कि अब क्या हो गया कि गांधी का नोआखली फिर से जल रहा है?
दरअसल अफगानिस्तान में तालिबानी राज का असर नोआखली में भी पड़ रहा है. अबुल अला मौदूदी द्वारा स्थापित घोर कट्टरवादी जमात-ए-इस्लामी की एक शाखा नोआखली में भी है जो बांगलादेश में शरीयत लागू करने की कोशिश कर रही है. बेगम शेख हसीना उदारवादी हैं मगर कट्टरपंथियों के आगे बेबस और असमर्थ नजर आ रही हैं.
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हुसैन शाहिद सुहरावर्दी ने नहीं की थी कोई कार्रवाई
19 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा थी, बंगाल में इसे कोजागरी पौर्णिमा के रूप में मनाते हैं. व्रत के बाद रात भर जाग कर लक्ष्मी पूजन किया जाता है. 1946 की कोजागरी पौर्णिमा नोआखली पर बहुत भारी थी. 10 अक्टूबर को पूरी तैयारी के साथ कत्लेआम किया गया.
राजधानी के हरिजन सेवक केंद्र से जुड़े गांधीवादी चिंतक रजनीश कुमार कहते हैं, ‘नोआखली में हज़ारों हिंदुओं को 1946 में मुसलमान बनाया गया था. स्त्रियों का शीलहरण किया गया था. तब बंगाल में सरकार मुस्लिम लीग की थी. उसके मुखिया हुसैन शाहिद सुहरावर्दी ने दंगाईयों के पक्ष में आंखें बंद कर ली थीं. नोआखली जिले का कलेक्टर जिला छोड़कर भाग गया था.
हिंदुओं का यह हाल देख कर मन ही मन पाकिस्तान के गठन को कांग्रेस स्वीकार कर चुकी थी. अगर हिंदू सफलतापूर्वक अपना बचाव कर पाते तो शायद बंटवारा कभी न होता. 1946 में मोहम्मद अली जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन के बाद जिस तरह से हालात बिगड़े थे, लगभग उससे मिलते-जुलते हालात फिर से नोआखली और शेष बांग्लादेश में बन रहे हैं.
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. राकेश बटबयाल कहते हैं, ‘गांधी जी की नोआखली की शांति यात्रा का मुस्लिम लीग के मंत्रियों, कार्यकर्ताओं और स्थानीय मौलवियों ने घनघोर तरीके से विरोध किया था. मुख्यमंत्री हुसैन शाहिद सुहरावर्दी ने गांधी जी से नोआखली को छोड़ने के लिए कहा था. पर वे तब तक वहां रहे जब तक हालात बेहतर नहीं हो गए.’
ये जगजाहिर है कि बांग्लादेश में हिंदू बुरी तरह से पीड़ित हैं. मंदिरों और हिंदू घरों को तोड़ा व जलाया जाता रहा है. फिलहाल तो यही लग रहा है कि बांग्लादेश सरकार हिंसा की ऐसी क्रूर घटनाओं को थामने में कमजोर साबित हो रही है.
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घट रही है हिंदू आबादी
जब 1947 में भारत का बंटवारा हुआ था, उस समय पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में हिंदू वहां की आबादी के 30 से 35 फीसदी के बीच थे. पर अब 2011 की जनगणना के बाद वहां हिंदू देश की कुल आबादी का मात्र 8 फीसदी ही रह गए हैं.
आप बांग्लादेश के अखबारों को पढ़े तो देखेंगे कि वहां शायद ही ऐसा कोई दिन बीतता होगा, जब किसी हिंदू महिला के साथ कट्टरवादी बदतमीजी न करते हों.
क्या कुछ साल बाद बंगलादेश हिंदू-विहीन हो जाएगा? इस सवाल का जवाब हां और ना में दिया जा सकता है. पर फिलहाल नोआखली को फिर से गांधी की जरूरत है जो वहां पर भाईचारे और मैत्री का संदेश दे सके.
(विवेक शुक्ला वरिष्ठ पत्रकार और Gandhi’s Delhi के लेखक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
(कृष्ण मुरारी द्वारा संपादित)
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