लखनऊ: देश को साफ-सुथरा बनाने के उद्देश्य से 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रव्यापी स्वच्छ भारत अभियान शुरू करने के लिए झाड़ू लगाई थी. मोदी ने इस अभियान की शुरुआत के लिए दिल्ली के वाल्मीकि नगर को चुना था, जहां कभी महात्मा गांधी रुके थे.
इसने लव कुश नगर, इंदिरा नगर, लखनऊ स्थित वाल्मीकि बस्ती के कई निवासियों को अपनी निष्ठा भाजपा के प्रति जताने के लिए प्रेरित किया. दलित बहुल बस्ती लव कुश नगर में करीब 4,000 वाल्मीकि परिवार रहते हैं.
अब, सात साल बाद प्रधानमंत्री के नक्शेकदम पर चलते हुए उत्तर प्रदेश की कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने वाल्मीकि बस्ती का दौरा किया, वाल्मीकि मंदिर में फर्श की सफाई की और कई परिवारों से मिलीं.
यहां रहने वाले कई लोगों ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि वे प्रियंका को देखकर एकदम हैरान रह गए. उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता ने यहां का दौरा करके लोगों के दिल जीत लिए हैं.
प्रियंका गांधी के साथ मंदिर के फर्श की सफाई के लिए झाड़ू उठाने वाली दो महिलाओं में से एक 30 वर्षीय रेखा वाल्मीकि ने दिप्रिंट को बताया कि अपने जीवन में पहली बार, ‘मैंने अपने सामने इतने बड़े किसी नेता को खड़े देखा. जब मैं मंदिर परिसर के फर्श की सफाई कर रही थी तो प्रियंका ने कहा कि वह इसे खुद साफ करेंगी. बाद में वह मोहल्ले में भी हमारे घर देखने और सभी से मिलने भी आईं.’
एक अन्य निवासी विनय वाल्मीकि ने कहा, ‘हमने पहली बार इतनी बड़ी किसी पर्सनालिटी को अपने क्षेत्र में आते देखा है. मैं इस पल को जीवन भर याद रखूंगा. जब मैंने सेल्फी मांगी तो उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रख दिया. आमतौर पर बड़े नेता हमें छूने से बचते हैं क्योंकि हम वाल्मीकि समुदाय से हैं लेकिन उन्होंने हमें छुआ, यही नहीं यहां कि एक महिला को गले भी लगाया.’
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निष्ठाएं बदल रहीं?
प्रियंका के दौरे से इस बस्ती में वाल्मीकि समुदाय के कुछ सदस्यों ने अपनी राजनीतिक निष्ठा एक बार फिर बदल ली है, जैसा यहां रहने वाले कुछ लोगों ने दिप्रिंट को बताया.
हालांकि, यह कहना मुश्किल है कि प्रियंका के किसी वाल्मीकि कॉलोनी के दौरे का राज्य भर के समुदाय पर कोई प्रभाव पड़ेगा या नहीं. कांग्रेस ने 2017 के चुनाव में 403 सदस्यीय विधानसभा में केवल सात सीटें हासिल की थीं और संगठन की स्थिति एकदम खस्ताहाल बनी हुई है, पिछले कुछ महीनों में कई पूर्व विधायक अन्य पार्टियों में शामिल होने लगे हैं.
कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक रहे दलित पिछले तीन दशकों में अपनी निष्ठाएं बदलकर अन्य पार्टियों के पाले में जा चुके हैं. दो दशक पहले तक, उत्तर प्रदेश में वाल्मीकि पारंपरिक तौर पर कांग्रेस समर्थक थे. लेकिन तब से उन्होंने हर पांच साल में किसी न किसी दूसरी पार्टी को वोट दिया है.
2007 में उन्होंने बसपा को वोट दिया. फिर 2012 में उनका वोट सपा को गया. 2017 में प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत अभियान के बाद उन्होंने भाजपा का समर्थन किया. संयोग से तीनों मौकों पर उन्होंने जिस पार्टी की तरफ रुख किया, उसे ही सरकार बनाने का मौका मिला.
अब उनका कहना है कि वे एक बार फिर कांग्रेस को वोट देंगे.
स्थानीय निवासियों का कहना है कि उन्होंने इस उम्मीद में भाजपा को वोट दिया था कि पार्टी अपने वादों को पूरा करेगी, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ.
सपना वाल्मीकि ने कहा, ‘मोदी ने झाड़ू भी उठाई, इसने हम जैसे तमाम लोगों को आकृष्ट किया लेकिन प्रियंका की यात्रा दिल छू लेने वाली थी. हममें से कुछ लोगों ने भाजपा को वोट दिया लेकिन अब हम उन्हें वोट देंगे. उन्होंने हमारी समस्याएं सुनीं. उन्होंने हमसे वादा किया है कि अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो इन मुद्दों को हल करेगी.’
एक अन्य निवासी बबीता ने सपना के विचारों से सहमति जताई. बबीता ने कहा, ‘हमने पहले समाजवादी पार्टी को वोट दिया था लेकिन इस बार हम प्रियंका दीदी के साथ जाएंगे. हमारे परिवार के लोग अभी भी बेरोजगार हैं, कुछ संविदा में सफाई कर्मचारी के तौर पर काम कर रहे हैं लेकिन वे स्थायी नहीं हैं. इस सरकार ने कई वादे किए लेकिन उनमें से एक भी पूरा नहीं किया.’
उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी लगभग 20 प्रतिशत है और ये एक महत्वपूर्ण वोट बैंक हैं. जाटवों को छोड़कर अन्य दलित जातियों ने पिछले कुछ चुनावों में भाजपा का समर्थन किया है.
हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इस पर टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी कि वाल्मीकि किसे वोट देंगे लेकिन प्रियंका की यात्रा ने असर डालने में जरूर सफलता हासिल की है.
लखनऊ यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर कविराज कहते हैं, ‘वाल्मीकि 1990 के दशक तक कांग्रेस के परंपरागत मतदाता थे लेकिन बाद में वह कांशीराम और मायावती के समर्थक बन गए. जब बसपा कमजोर हो गई तो उन्होंने मोदी को एक विकल्प के तौर पर पाया क्योंकि भाजपा 2014 से गैर-जाटवों पर फोकस कर रही थी. लेकिन अगर वे अब घर वापसी के बारे में सोच रहे हैं, तो यह यूपी की दलित राजनीति का एक बेहद दिलचस्प पहलू होगा.’
उन्होंने कहा, ‘पहले कांग्रेस को दलितों का जबर्दस्त समर्थन हासिल था. उनके मूल मतदाता ब्राह्मण, दलित और मुसलमान थे लेकिन 1990 के दशक में उसने उन्हें खो दिया. अगर प्रियंका इसमें (उनके वोट) से आधे भी वापस लाने में सक्षम रहती हैं तो कांग्रेस अपने प्रदर्शन में सुधार कर सकती है.’
यूपी की राजनीतिक विश्लेषक और लखनऊ स्थित गिरि इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज में सहायक प्रोफेसर डॉ. शिल्प शिखा सिंह का कहना है, ‘यह कहना जल्दबाजी होगी कि वे निर्णायक रूप से कांग्रेस को वोट देंगे लेकिन हां, कांग्रेस बहुत प्रयास कर रही है और प्रियंका की मौजूदगी को लोग महसूस भी कर रहे हैं. ऐसा लगता है कि उनमें लोगों का ध्यान आकृष्ट करने की कुछ क्षमता है, लेकिन चीजें तभी पटरी पर आ सकती हैं, जब कांग्रेस महत्वपूर्ण मुद्दों पर सही रुख अपनाकर अपने प्रयास निरंतर जारी रखे.’
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‘2022 के लिए सपा, 2024 के लिए कांग्रेस’
प्रियंका ने जिस बस्ती का दौरा किया, उसमें हर कोई कांग्रेस को लेकर उतना ही उत्सुक नहीं है जितना ऊपर उद्धृत निवासियों ने कहा. कुछ ने तो यह भी कहा कि वे 2022 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में अलग-अलग पार्टियों को वोट देंगे.
55 वर्षीय राजू वाल्मीकि का दावा है कि बस्ती के आधे लोग कांग्रेस को और बाकी आधे सपा को वोट देंगे. उन्होंने कहा, ‘हमें लगता है 2022 के राज्य चुनावों के लिए सपा बेहतर है और हम 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का समर्थन करेंगे. सपा के पास मजबूत स्थानीय नेतृत्व है, इसलिए हमारे समाज के लोग राज्य के चुनावों में सपा की ओर झुक सकते हैं.’
एक अन्य निवासी सतवीर वाल्मीकि ने कहा कि क्षेत्र के पार्षद समाजवादी पार्टी के नेता हैं जो वाल्मीकि समुदाय से ही आते हैं और जब यह तय करना हो कि किसे वोट देना है तो इन सब बातों का बहुत फर्क पड़ता है. उन्होंने कहा, ‘अंतत: स्थानीय नेता काफी मायने रखते हैं. प्रियंका गांधी के लिए हमारे मन में बहुत सम्मान है, कम से कम वह हमसे मिलने तो आईं. हम आगामी चुनावों में उसे ही वोट देंगे जो भाजपा को हरा सके, इसलिए अभी इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है कि यह सपा होगी या कांग्रेस.’
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