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Friday, 22 November, 2024
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#WorldMentalHealthDay : कोविड ने तोड़ा है तो अपने इसे जोड़ेंगे, दिल खोलिए दवा की जरूरत नहीं पड़ेगी

यूनिसेफ की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड महामारी वर्षों तक बच्चों और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है.

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नई दिल्ली: काम में दिल न लगना, चिंता, भय, पैनिक अटैक, चिड़चिड़ापन, जल्दी गुस्सा आना, सिगरेट पीने की आदत, आत्महत्या, अकेले रहना, घूमने फिरने के लिए बाहर न निकलना, बार बार रोने की इच्छा होना और शक करना आदि जैसे लक्षण ये सब मानसिक तनाव के कारण हैं.

दुनियाभर में फैली कोविड महामारी के कारण जहां एक ओर अर्थव्यवस्था चरमराई है वहीं लाखों की संख्या में लोग बेरोजगार हुए, अचानक बंद हुए काम धंधे, ऑफिस और स्कूल के कारण लोगों में बहुत तेजी ने मानसिक बदलाव हुए. विश्व स्वास्थ्य संगठन दस अक्टूबर को मनाए जाने वाले  #WorldMentalHealthDay की थीम Mental health care for all: let’s make it a reality रखी है.

यूनिसेफ की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 15 से 24 साल के बच्चों में सात में से एक बच्चा अकसर उदास महसूस करता है या काम करने में दिलचस्पी नहीं लेता. रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि कोविड महामारी वर्षों तक बच्चों और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण को प्रभावित कर सकती है. यही नहीं इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारतीय युवा मानसिक तनाव के दौरान किसी का समर्थन और साथ लेने से भी बचते हैं. यूनिसेफ ने गैलप के साथ मिलकर  21 देशों में 20,000 बच्चों और व्यस्कों पर एक सर्वे के बाद ये बात कही है.

डब्ल्यूएचओ (WHO) के आकंडे बताते है कि 56 मिलियन भारतीय डिप्रेशन से ग्रसित हैं, और कोविड के दौरान इन आकंडो मे काफी तेजी से बढ़ोतरी हुई थी.

इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंस (IHBAS) में प्रोफेसर ओम प्रकाश कहते हैं,’ ऐसा नहीं है कि कोविड के कारण सिर्फ निगेटिव चीजें ही हुई हैं.मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ा है लेकिन इस दौरान पॉजिटिव चीजें भी हुईं हैं.’

‘कोविड के कारण बच्चों में सोचने समझने की क्षमता बढ़ी हैं.कल तक जो पैरेंट्स मोबाइल फोन बच्चों को नहीं देते थे उन सभी के हाथों में स्मार्ट फोन आए जिसके बाद बच्चों ने खूब प्रयोग किए, जिसने बच्चों की पर्सनालिटी पर बड़ा असर डाला.’

हालांकि, पिछले लगभग 18 महीनों से चल रही इस कोविड महामारी के दौरान कितने प्रतिशत लोग इस मानसिक बीमारी से पीड़ित रहे उसका सटीक कोई आकड़ा नहीं है. क्यूंकि उस दौरान सारे अस्पताल बंद थे और जो अस्पताल चल रहे थे वो कोविड अस्पताल थे जिसकी वजह से सटीक आंकड़े तो नहीं हैं. लेकिन हां अधिकतर मानसिक तनाव के शिकार लोगों ने अपने तनाव को कम करने का उपचार अपने घर पर ही तलाश लिया.

हालांकि इसके इतर यूएन बाल एजेंसी की बच्चों पर हाल ही में जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया भर में, 10 से 19 वर्ष की उम्र के हर सात में से एक, पुष्ट हो चुकी मानसिक समस्याओं के साथ जीवन जी रहा हैा.

इन हालात में, हर साल लगभग 46 हज़ार बच्चे या किशोर, आत्महत्या करके अपनी जान गंवा देते हैं और यह, इस आयु वर्ग में मौतें होने के शीर्ष कारणों में पांचवां कारण है.


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’18 महीने बच्चों पर रहे बहुत भारी’

इसके बावजूद मानसिक स्वास्थ्य ज़रूरतों और मानसिक स्वास्थ्य क्षेत्र के लिये उपलब्ध धन के बीच गहरा अन्तर है. सरकारों के स्वास्थ्य बजटों का केवल दो प्रतिशत हिस्सा ही, मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी ज़रूरतों पर ख़र्च किया जाता है.

यूनीसेफ़ की कार्यकारी निदेशक हैनरीएटा फ़ोर बताती हैं कि पिछले 18 महीने, बच्चों पर बहुत भारी रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘दुनिया के लगभग हर देश में लॉकडाउन लगाया गया, घर से बाहर निकलने पर पाबंदियां लगा दी गईं. इसका बहुत बड़ा असर बच्चों, स्वास्थ्य और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा है.’

वह आगे कहती हैं, ‘महामारी सम्बन्धी प्रतिबन्ध लागू होने के कारण, बच्चों को अपने जीवन के महत्वपूर्ण वर्ष, अपने परिवारों, दोस्तों, कक्षाओं और खेलकूद से दूर और वंचित रहते हुए गुज़ारने पड़े हैं जबकि ये सभी, बचपन का बहुत अहम हिस्सा होते हैं.’

‘इसका असर बहुत व्यापक है, और ये स्थिति, बहुत विशाल संकट की एक झलक भर है. यहां तक कि महामारी शुरू होने से पहले भी, बहुत से बच्चों को, मानसिक स्वास्थ्य के ऐसे मुद्दों के भारी बोझ तले दबे रहकर ज़िन्दगी गुज़ारनी पड़ रही थी जिनका कोई समाधान निकालने की कोशिशें नहीं हुईं.’

हैनरीएटा फ़ोर ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा इतनी तेजी से मानसिक स्वास्थ्य पर पड़े प्रभावों को देखते हुए भी बहुत कम सरकारी संसाधन लगाए जा रहे हैं. ‘मानसिक स्वास्थ्य और भविष्य में जीवन के परिणामों के बीच सम्बन्ध को, पर्याप्त और समुचित महत्ता नहीं दी जा रही है.’

हालांकि डॉक्टर मानते हैं कि, जीवन के हर उम्र में मानसिक तनाव रहता है चाहे वो बचपन हो, किशोरावस्था हो या वयस्कत उम्र हो, उनका कहना है मानसिक तनाव से हम ग्रस्त रहते है और इस बात का हमें अंदाज़ा भी नही होता, और कुछ परेशानीयों से ये तनाव बढ़ता जाता है जो डिप्रेशन का रुप ले लेता है. बस हमें तनाव को सही समय पर पहचानने की जरूरत है.

शोध के दौरान जब बच्चों से बात की गई तो पता चला कि औसतन, हर पांच युवाओं में से एक कहीं न कहीं मानसिक तनाव का शिकार है और वह बताता है कि वो अक्सर अवसाद का शिकार या नकारात्मक भावनाओं के तले दबे हुआ महसूस करते हैं, या फिर सामान्य चीज़ों में उनकी दिलचस्पी बहुत कम होती है.

अब जबकि महामारी तीसरे वर्ष में दाख़िल हो रही है, तो बच्चों व किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य और उनके रहन-सहन पर बहुत भारी नकारात्मक प्रभाव भी जारी है.

ताज़ा आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में, सात में से एक बच्चे को लॉकडाउन के दौरान सीधे प्रभावों का सामना करना पड़ा है.

हालांकि भारत में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर काफी काम हो रहा है..कोविड महामारी जब चरम पर थी तो सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य के मद्देनजर आ रही लोगों की परेशानी को देखते हुए 1600 टोल फ्री नंबर भी लांच किया था. हालांकि यह अभी तक पता नहीं चल पाया है कि इसपर कोविड के दौरान या फिर उसके बाद कितने फोन आते थे. दिप्रिंट ने इस बाबत स्वास्थ्य मंत्रालय को मेल भी लिखा है.


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‘दस में तीन छात्र मानसिक स्वास्थ्य से पीड़ित’

पिछले दिनों स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य समग्र स्वास्थ्य का एक अनिवार्य घटक है और समाज में इसके बारे में और अधिक जागरूकता फैलानी चाहिए. प्रगति के लिए सभी प्रकार का स्वास्थ्य और सेहत आवश्यक है. उन्होंने कहा, ‘स्वस्थ व्यक्तियों के बिना एक स्वस्थ परिवार, एक स्वस्थ समाज और एक स्वस्थ राष्ट्र नहीं होगा. खराब स्वास्थ्य, चाहे शारीरिक हो या मानसिक, खराब उत्पादकता की ओर ले जाता है जिससे राष्ट्रों की वृद्धि और उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.’

उन्होंने कहा, ‘दस में से, तीन छात्र मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों से पीड़ित हैं, हमारे 14 प्रतिशत बच्चे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से पीड़ित हैं.’ मांडविया ने कहा , ‘हमें अपने शिक्षकों को इस तरह से प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है कि वे बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों का आसानी से पता लगा सकें.’’

उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को पहचानना, स्वीकार करना, उनका निदान करना और उनका इलाज करना महत्वपूर्ण है.

‘दिल खोलिए दवा की जरूरत नहीं पड़ेगी’

लाइफ कोच और एनर्जी हीलर करने वाली इशिता कोटिया बताती हैं कि पिछले लगभग दो साल में हर वो व्यक्ति लगभग टूटा है तो मजबूत कहा जाता था. कोविड महामारी ने अमीर-गरीब में कोई फर्क नहीं किया. मजबूत व्यक्ति भी भावानात्मक, शारीरिक और आर्थिक रूप से टूटा है.

वह कहती हैं कि मैं अपने सेशल में अकसर सभी से कहती हूं कि किसी को भूलना नहीं चाहिए कि यदि अच्छा समय नहीं रहता तो बुरा समय भी नहीं रहेगा.

हर बदलाव आशा की एक किरण होती है.

दिप्रिंट से बात करते हुए इशिता कहती हैं,’ हमें आशावादी बने रहना है और अपने, अपने परिवार और समाज के खुशहाल और उज्जवल भविष्य की कामना करनी है. विपरीत समय हमारे मानसिक स्वास्थ्य के पोषण का काम करता है.

वह आगे कहती हैं कि यदि आपके जीवन में कोई परेशानी है तो, आप आगे बढ़कर अपने परिवार, दोस्तों या फिर किसी समझदार परामर्शदाता के साथ साझा करें..यकीन मानिए आपकी सारी चिंता मिनटों में उड़ जाएगी. मानसिक परेशानी से निपटने के बहुत से तरीके हैं और हमेशा इसके लिए दवा की जरूरत नहीं होती कभी कभी अपने परिवार वालों और दोस्तों से दिल खोलना भी आपको कई दुख दर्द से दूर कर देता है.


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