पिछले कुछ हफ्तों में, देश भर के अख़बार दिल्ली के सरकारी स्कूलों में एक नया देशभक्ति पाठ्यक्रम शुरू करने के, सरकार के मिशन से जुड़े विज्ञापनों से भरे हुए हैं. ज़ाहिरी तौर पर इसका मक़सद ‘छात्रों में देशभक्ति की भावना भरना, और उन्हें अपने देश के प्रति गर्व महसूस करने के लिए प्रेरित करना है’. ऐसा लगता है कि एक नए ‘देशभक्ति’ पाठ्यक्रम की उपलब्धि का, देशभर में प्रचार करने की अपनी सरकार की इच्छा का ख़र्च, दिल्ली के करदाता वहन कर रहे हैं.
उन बच्चों के पेरेंट्स जो दिल्ली सरकार के स्कूलों में जाते हैं, इस ‘देशभक्ति’ पाठ्यक्रम को लेकर क्या सोचते हैं? प्रश्नम ने इस हफ्ते यही पता लगाने का प्रयास किया.
हमने दिल्ली के 38 चुनाव क्षेत्रों में फैले ऐसे 300 परिवारों से, जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं, एक सवाल पूछा:
आपके बच्चों के लिए स्कूलों में शुरू किए गए ‘देशभक्ति’ पाठ्यक्रम के बारे में आपकी क्या राय है?
1. अन्य विषयों के साथ देशभक्ति पढ़ाया जाना अच्छा और स्वागत योग्य है.
2. ऐसी चीज़ों से स्कूलों का राजनीतिकरण नहीं किया जाना चाहिए, और उन्हें सिर्फ मानक विषय पढ़ाने चाहिएं.
3. कोई राय नहीं.
सर्वे किए गए परिवारों के 84 प्रतिशत सदस्यों ने इस बात का अनुमोदन किया, कि सरकारी स्कूलों में उनके बच्चों को नया ‘देशभक्ति’ पाठ्यक्रम पढ़ाया जाए. दिल्ली सरकार के अधिकारियों और आम आदमी पार्टी (आप) के सदस्यों के लिए, शायद इसमें कोई आश्चर्य नहीं है.
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दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 2019 में पहली बार, स्वतंत्रता दिवस के मौक़े पर इस पाठ्यक्रम को शुरू किए जाने का ऐलान किया था. उनकी सरकार का विचार था कि इस पाठ्यक्रम को, ‘ख़ुशी’ तथा ‘उद्यमिता मानसिकता’ पाठ्यत्रमों के साथ मिलाकर पढ़ाया जाएगा. केजरीवाल ने कहा था कि बच्चों में देशभक्ति और गर्व की भावना भरने के अलावा, देशभक्ति पाठ्यक्रम का उद्देश्य ये भी था, कि उन्हें ‘देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी और कर्त्तव्य से अवगत कराया जाए’.
घोषणा के अनुरूप 28 सितंबर से, दिल्ली के सरकारी स्कूलों में ये कोर्स पढ़ाया जाने लगा, जो स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह की वर्षगांठ भी थी. सरकारी सर्कुलर के अनुसार नर्सरी से 8वीं क्लास तक के बच्चों के लिए, हर दिन एक पीरियड देशभक्ति की पढ़ाई का होगा, और 9 से 12वीं तक के छात्रों के लिए, हफ्ते में दो पीरियड होंगे जो ग़ैर-निरंतर दिनों में होंगे.
ये मालूम नहीं है कि पाठ्यक्रम निर्धारित करते हुए शिक्षाशास्त्र के विशेषज्ञों की सलाह ली गई थी कि नहीं, और ली गई तो क्या उन्होंने इस बदलाव का अनुमोदन किया था. ये भी मालूम नहीं है कि क्या इस कोर्स को पढ़ने वाले छात्र, आगे चलकर बेहतर नागरिक बनेंगे.
फिलहाल तो ये केवल एक लोकप्रिय क़दम है, जिसने लगता है दिल्ली के मध्यम वर्ग के दिल के तारों को छू लिया है. लेकिन जैसा कि इतिहासकार नियाल फरगुसन ने कहा, ‘अगर धर्म जनसाधारण के लिए अफीम है, तो राष्ट्रवाद बुर्जुआ वर्ग की कोकेन है’.
पारदर्शिता और ईमानदारी के सिद्धांतों के अनुरूप, प्रश्नम इस सर्वे का तमाम कच्चा डेटा यहां उपलब्ध कराता है, जिससे कि विश्लेषक और शोधकर्त्ता उसे सत्यापित करके, आगे विश्लेषण कर सकें.
राजेश जैन एक एआई टेक्नॉलजी स्टार्ट-अप प्रश्नम के संस्थापक हैं, जिसका उद्देश्य राय एकत्र करने के काम को अधिक वैज्ञानिक, आसान, तेज़ और किफायती बनाना है. वो @rajeshjain पर ट्वीट करते हैं.
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