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Thursday, 19 December, 2024
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गोवा में कांग्रेस के पतन की कहानी- 2017 में सबसे बड़ी पार्टी से लेकर 4 विधायक तक का सफर

गोवा के विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री लुइज़िन्हो फलेरियो ने सोमवार को कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा दे दिया. वह 2017 के बाद से, जब वह गोवा के 40 विधायकों वाले सदन में 17 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी, पार्टी छोड़ने वाले 13वें विधायक हैं.

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मुंबई: गोवा के विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री लुइज़िन्हो फलेरियो ने सोमवार को कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और उन्होंने इस बात के संकेत दिए कि वह जल्द ही ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस में शामिल होंगे, जिसने 2022 में गोवा विधानसभा चुनाव लड़ने का इरादा जताया है.

दक्षिण गोवा के नवेलिम सीट से कांग्रेस के सात बार विधायक रहे फलेरियो 2017 के बाद से पार्टी छोड़ने वाले 13वें विधायक हैं.

उनके इस्तीफे के साथ ही, कांग्रेस, जो 2017 के विधानसभा चुनावों में गोवा की 40 विधानसभा सीटों में से 17 के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी (भले ही वह सरकार बनाने में विफल रही), के पास अब केवल चार विधायक रह गए हैं और राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए अब छह महीने से भी कम का समय बचा है.

यहां तक कि शेष चार विधायक भी बुरी तरह से विभाजित गुटों के रूप में पेश आते हैं: उनमें से तीन- प्रतापसिंह राणे, रवि नाइक और एलेक्सो रेजिनाल्ड लौरेंको- के बारे में कहा जाता है कि उनका गोवा कांग्रेस के नेतृत्व से मोहभंग हो चुका है. इसके अलावा, उनमें से दो- राणे और नाइक के बेटे पहले से ही भाजपा के सदस्य हैं.

कांग्रेस के विक्षुब्ध पदाधिकारी चौथे विधायक और विपक्ष के नेता दिगंबर कामत को, गोवा कांग्रेस अध्यक्ष गिरीश चोडनकर के साथ मिलकर एक शक्ति केंद्र के रूप में देखते हैं और उनका दावा हैं कि इन दोनों नेताओं ने राज्य में वरिष्ठ कांग्रेसियों को दरकिनार कर दिया है.

सोमवार शाम एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए फलेरियो ने कहा, ‘आज, हमारा कांग्रेस परिवार विभाजित है. हमें लीक से हटकर सोचना होगा और यह देखना होगा कि दिल्ली और गोवा में सत्तारूढ़ सरकारों का सामना करने के लिए सबसे उपयुक्त कौन है.’

उन्होने कहा, ‘मैंने पिछले साढ़े चार सालों से अपने कष्टों पर एक सम्मानजनक मौन साधे रखा है. लेकिन, मेरी पीड़ा महत्वपूर्ण नहीं है. गोवा के उन लोगों की पीड़ा का कहीं ज्यादा महत्व है जिन्होंने अपना कीमती वोट दिया और जिनके साथ विश्वासघात किया गया. उनकी पीड़ा मेरी पीड़ा की तुलना में कहीं अधिक है.‘

वे कहते हैं, ‘आज गोवा कांग्रेस वापस उसी जगह आ गई है, जहां से मैंने 2017 के चुनावों के दौरान (प्रचार अभियान चलाने के लिए) पदभार संभाला था. कृपया मुझे और बात करने के लिए न कहें.’ उन्होने कहा कि गोवा में कांग्रेस के सदस्य ही हैं जिन्होंने कांग्रेस पार्टी को नष्ट कर दिया है.

दिप्रिंट ने फोन द्वारा कामत और चोडनकर से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन इस रिपोर्ट के प्रकाशन के समय तक उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.


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2017 से बाद का पतन

2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 17 सीटों के साथ राज्य में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और बहुमत से सिर्फ तीन सीट पीछे थी. परंतु भाजपा, जिसके पास केवल 13 सीटें थीं, ने क्षेत्रीय दलों- महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) और गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी) के साथ गठबंधन करके सरकार बना ली.

सोमवार को पणजी में प्रेस से बात करते हुए फलेरियो ने कहा कि वह गोवा में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार बनाने के लिए 21 विधायकों के समर्थन के साथ पूरी तरह से तैयार थे, लेकिन गोवा में पार्टी मामलों के एआईसीसी प्रभारी ने उन्हें रोक दिया.

फलेरियो ने कहा, ‘बाकी तो इतिहास है. मुझे बहुत पीड़ा हुई. मैं एकदम बिखर गया था. अगले दिन जब हमने सरकार बनाने का अवसर गंवा दिया, तो उन्होंने मुझे बताया कि आप सीएलपी (कांग्रेस विधायक दल) के नेता के रूप में चुने गए हैं. मैंने उनसे कहा कि मैं इसे स्वीकार नही करूंगा क्योंकि लोग नाराज हैं. उन्होंने हमें जनादेश दिया है और हम इस जनादेश को पूरा करने में विफल रहे हैं.’

अक्टूबर 2018 में, कांग्रेस के दो विधायकों- सुभाष शिरोडकर और दयानंद सोपटे- ने भाजपा में शामिल होने के लिए पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद जुलाई 2019 में दस और कांग्रेस विधायकों, जिनमें तत्कालीन विपक्ष के नेता चंद्रकांत कावलेकर भी शामिल थे, ने खुद का भाजपा में विलय कर लिया. इस तरह कांग्रेस की विधायक संख्या पांच रह गयी.


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बटा हुआ कांग्रेस घेमा

गोवा विधानसभा चुनाव में अब छह महीने से भी कम का समय बचा है और कांग्रेस की राज्य इकाई अभी भी तीव्र गुटबाजी को रोकने के लिए संघर्ष कर रही है. राज्य के कई वरिष्ठ पार्टी पदाधिकारियों ने मौजूदा नेतृत्व, मुख्य रूप से चोडनकर और कामत के खिलाफ आवाज उठाई है.

पिछले हफ्ते, गोवा कांग्रेस के महासचिव विजय पाई और सचिव मारियो पिंटो ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी और कहा था कि पार्टी ने अपने सभी वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर दिया है और कोई नहीं जानता कि कौन सारे फैसले ले रहा है.

पाई ने कहा था, ‘मैं पिछले 28 साल से कांग्रेस में हूं, लेकिन मुझे आज पहली बार पार्टी में कोई दिशा नहीं दिखाई पड़ रही है. जो चुनाव नहीं जीतते हैं उन्हें बड़े पद मिलते हैं और जो जीतते हैं उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है.’ उन्होने खासतौर पर फलेरियो, राणे और नाइक का पार्टी में मोहभंग होने का जिक्र किया था.

पाई ने जिन तीन विधायकों का जिक्र किया था, उनमें से फलेरियो ने सोमवार को पार्टी छोड़ दी, जबकि राणे और नाइक के भाजपा से पहले से ही परोक्ष संबंध हैं.

राणे के बेटे, विश्वजीत राणे, अप्रैल 2017 में उस समय भाजपा में शामिल हो गए थे जब पार्टी जीएफपी और एमजीपी के साथ सदन में अपनी ताकत बढ़ाने की हरसंभव कोशिश कर रही थी.

कई मौकों पर राणे सीनियर के भी भाजपा में शामिल होने की अफवाहें उड़ी हैं लेकिन पोरीम के विधायक ने हमेशा उन्हें खारिज कर दिया है.

इस तरह की अफवाह फैलाने वाली नवीनतम घटना उस वक्त हुई जब भाजपा के गोवा चुनावों के पार्टी प्रभारी देवेंद्र फडणवीस पिछले सप्ताह भाजपा गोवा के अध्यक्ष सदानंद शेत तनवड़े के साथ राणे के घर रात के खाने के लिए गये थे.

हालांकि, तनवड़े ने पिछले हफ्ते दिप्रिंट को कहा था, ‘प्रतापसिंह राणे गोवा के एक वरिष्ठ, अनुभवी, पूर्व मुख्यमंत्री हैं और उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में 50 साल पूरे कर लिए हैं. उन्होंने बस अपने अनुभव साझा किए. उनके भाजपा में शामिल होने के बारे में कोई चर्चा नहीं हुई.’

नाइक के बेटे, रितेश और रॉय भी अगस्त 2020 में भाजपा में शामिल हो गए. थे. पूर्व में मुख्यमंत्री रहे नाइक ने पिछले साल चोडनकर और कामत पर पार्टी को मजबूत करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने के लिए निशाना साधा था, जिसके बाद पिछले साल दिसंबर में चोडनकर ने कहा था, ‘विधानसभा में रवि नाइक कांग्रेस के विधायक जरूर हैं लेकिन हमने उन्हें अपने विधायक के रूप में गिनना बंद कर दिया है.’

इस साल जुलाई में पार्टी के एक और विधायक रेजिनाल्ड लौरेंको ने विधानसभा चुनाव से पहले राज्य के पार्टी नेतृत्व में बदलाव की मांग की थी. फिर भी, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने चोडनकर को अध्यक्ष बनाए रखने का फैसला किया.

दिप्रिंट ने फोन कॉल और टेक्स्ट संदेशों के माध्यम से राणे, नाइक और रेजिनाल्ड लौरेंको से संपर्क किया लेकिन इस खबर के प्रकाशन के समय तक उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.

पार्टी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने अपना नाम न बताने की शर्त पर कहा, ‘कांग्रेस बस अपने अतीत के गौरव में जी रही है. इतने सारे नेताओं ने इस बारे में विचार व्यक्त किया कि चुनाव में नेतृत्व में बदलाव से पार्टी को फायदा होगा, लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की गई. चुनाव के इतने करीब हो रही आंतरिक कलह पार्टी की अच्छी तस्वीर नहीं पेश करती है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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