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Friday, 22 November, 2024
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सत श्री अकाल, इंशाअल्लाह, जोय दुर्गा- कैसे भवानीपुर के अलग-अलग मुहल्लों में बदल जाती है ममता के भाषण की स्टाइल

भवानीपुर में 30 सितंबर को होने वाले उपचुनाव के लिए प्रचार में जुटी ममता बनर्जी हर मोहल्ले में वहां बहुलता में बसे समुदाय के हिसाब से ही अपना भाषण देती हैं. भाजपा ने ‘विभाजनकारी’ करार दिया है.

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कोलकाता: पश्चिम बंगाल की भवानीपुर सीट के लिए उपचुनाव से पांच दिन पहले शनिवार शाम को यहां शेक्सपियर सरानी इलाके में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को सुनने के लिए भारी भीड़ उमड़ी.

बड़ी संख्या में सिख इस भीड़ का हिस्सा थे और शाम करीब पांच बजे के बाद ममता बनर्जी भाषण देने के लिए मंच पर खड़ी हुईं तो उन्होंने देखा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री और समाजवादी पार्टी के नेता बलवंत सिंह रामूवालिया, जो अभी उत्तर प्रदेश में एमएलसी हैं, भीड़ में बैठे हुए हैं.

पंजाबी समुदाय ने रामूवालिया को ममता के चुनावी अभियान का हिस्सा बनने के लिए शहर में आमंत्रित किया था. जनसभा में ममता ने उन्हें मंच पर आमंत्रित किया और वहां बैठने के लिए कहा.

यह सब महज सांकेतिक नहीं है. कोलकाता में पंजाबी आबादी के एक बड़ा हिस्सा भवानीपुर में ही बसा हुआ है, और इस तथ्य को ममता काफी अच्छी तरह समझती हैं.

शेक्सपियर सरानी में अपने 30 मिनट के संबोधन में वह दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसानों के विरोध का जिक्र करती हैं, और यह मांग भी करती हैं कि नरेंद्र मोदी सरकार को विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेना चाहिए.

इसके तुरंत बाद वह जयकार करती भीड़ की तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सिखों के जोशीले नारे ‘जो बोले सो निहाल’ का उद्घोष करती हैं.

लेकिन भवानीपुर सिर्फ पंजाबियों का ही इलाका नहीं है, ममता बनर्जी इसे ‘मिनी-इंडिया’ करार देती हैं क्योंकि यह क्षेत्र बंगाली, गुजराती, मारवाड़ी, जैन और मुस्लिम जैसे तमाम संस्कृतियों को साझा करता है.

इसीलिए इसमें अचरज की कोई बात नहीं थी कि रामूवलिया के अलावा, मारवाड़ी, जैन और ईसाई समुदायों के प्रतिनिधियों को भी शनिवार की इस जनसभा में मंच पर बुलाया गया था.


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बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री बलवंत सिंह, रामूवालिया भवानीपुर के शेक्सपियर सरानी में | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

अलग-अलग पहलू

पिछले एक हफ्ते में ममता बनर्जी ने भवानीपुर में चुनाव प्रचार के लिए पूरी ताकत झोंक रखी हैं, उन्होंने हर दिन एक या कई बार तो दो सार्वजनिक और नुक्कड़ सभाओं में हिस्सा लिया.

वह अपना संबोधन शुरू करने के साथ और समाप्त करते समय, सभी समुदायों को उनकी भाषाओं में बधाई देती हैं और धार्मिक सहिष्णुता और समावेशी समुदाय के बारे में बात करती हैं, लेकिन साथ ही जिस मुहल्ले में जो आबादी ज्यादा होती है, उसके मुताबिक ही समुदाय-विशिष्ट धार्मिक संबोधनों का भी काफी इस्तेमाल करती हैं.

उदाहरण के तौर पर पंजाबी-सिख समुदाय वाले मुहल्ले में वह ‘सत श्री अकाल’ के साथ अभिवादन करती हैं, गुरुद्वारों में शीश नवाती हैं और किसानों के आंदोलन, गुरु नानक और गुरु गोबिंद सिंह के बारे में बातें करती हैं.

बंगाली-हिंदू बहुल इलाकों में वह रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं को उद्धृत करने, बांग्ला भजनों का जिक्र करने के अलावा ‘जय दुर्गा’ और ‘जय काली’ के उद्घोष के साथ मतदाताओं का अभिवादन करती हैं.

शनिवार को ही चक्रबेरिया, जो हिंदू आबादी बहुल इलाका है, में सड़क के किनारे आयोजित एक जनसभा को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी ने बताया कि कैसे भाजपा शासित राज्य त्रिपुरा ने तृणमूल कांग्रेस को रैलियां आयोजित करने से रोकने के लिए धारा 144 (जिसमें चार या उससे अधिक लोगों की सभा पर पाबंदी होती है) लागू कर रखी गई है. इसका जिक्र वह अन्य जनसभाओं में भी करती हैं.

वह कहती हैं, ‘लेकिन मैं यह जानना चाहती हूं कि क्या लोगों को दुर्गा पूजा और काली पूजा की अनुमति दी जाएगी.’

चक्रबेरिया में एक जनसभा में सीएम बनर्जी | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

मुस्लिम बहुल इलाकों में, वह सोच-समझकर ‘अल्लाह मेहरबान’, ‘इंशाल्लाह’ और ‘काफिर’ जैसे उर्दू शब्दों का इस्तेमाल करती हैं. किद्दरपुर जैसे इलाकों में अपनी जनसभाओं के दौरान उन्होंने उर्दू शायर अल्लामा इकबाल के प्रसिद्ध शेर ‘खुदी को कर बुलंद इतना’ के साथ-साथ बिस्मिल अजीमाबादी की कविता ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ आदि का जिक्र किया.

ऐसे इलाकों में बनर्जी का लहजा और तेवर स्पष्ट तौर पर थोड़ा ज्यादा आक्रामक होता है. 22 सितंबर को किद्दरपुर के इकबालपुर इलाके में उन्होंने ने कहा था कि जब तक सत्ता में हैं, नागरिकता (संशोधन) कानून और नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर पश्चिम बंगाल में लागू नहीं किया जा सकता है, और समुदाय को उन पर भरोसा करना चाहिए और अगर सीएए-एनआरसी के खिलाफ लड़ना चाहते हैं तो उन्हें वोट दें.

लेकिन हिंदू बहुल इलाकों में सीएए और एनआरसी का कोई जिक्र नहीं होता है.

इकबालपुर की जनसभा में ही उन्होंने पहली बार कहा था कि वह भाजपा को बंगाल को ‘तालिबान’ नहीं बनाने देंगी. इसके बाद से वह इस बयान को अन्य जनसभाओं में दोहरा चुकी हैं.

एकबालपुर में सीएम बनर्जी की जनसभा में जुटी महिलाएं | फोटो: प्रवीण जैन | दिप्रिंट

भाजपा का ममता पर विभाजनकारी राजनीति करने का आरोप

भाजपा नेताओं का कहना है कि ममता बनर्जी अपने बदलते भाषणों के जरिये विभाजनकारी राजनीति कर रही हैं. भवानीपुर में प्रियंका टिबरेवाल इस पार्टी की तरफ से ममता की प्रमुख प्रतिद्वंद्वी हैं.

पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई के नवनियुक्त अध्यक्ष सुकांतो मजूमदार ने दिप्रिंट के साथ बातचीत में दावा किया, ‘वह विभाजनकारी राजनीति कर रही हैं…उनकी आक्रामक भाषा एक समुदाय के वोटों के ध्रुवीकरण का एक प्रयास है. हिंदू-बहुल इलाकों में उनका स्वर बदल जाता है.’

हालांकि, ममता की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के नेता इस आरोप से इनकार करते हैं.

पश्चिम बंगाल के परिवहन मंत्री फिरहाद हाकिम ने भी दिप्रिंट से बातचीत करते हुए कहा, ‘प्रचार शुरू होने के बाद से मुख्यमंत्री ने भवानीपुर में सभी धार्मिक स्थलों का दौरा किया है. वह शीतला मंदिर, जैन मंदिर और सोला आना मस्जिद जा चुकी हैं. वह धार्मिक स्तर पर एकजुटता की बात करती रही हैं कि कैसे वह सभी धर्मों को समान मानती हैं. लोगों का उनकी भाषा में अभिवादन करने में गलत क्या है?’

भवानीपुर में ही रहने वाले और ममता बनर्जी के एक भरोसेमंद सिपहसालार है हाकिम आगे कहते हैं कि वह अपनी सरकार की तरफ से उठाए गए विभिन्न कल्याणकारी कदमों के बारे में भी बता रही हैं.

उन्होंने दावा किया, ‘तृणमूल सरकार ने आबादी के सभी वर्गों की मदद की है. हमारे कल्याणकारी उपाय सभी की पहुंच में रहे हैं—गरीब, महिलाएं, बालिकाएं—और इनकी वजह से ही हमें भवानीपुर में कुल वोट का 80 फीसदी हिस्सा हमारे खाते में आने का भरोसा है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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