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Thursday, 18 April, 2024
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जनसंघ के संस्थापक के भतीजे ने कहा- श्यामा प्रसाद मुखर्जी से बिल्कुल अलग है BJP की मौजूदा राजनीति

चित्ततोष मुखर्जी ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि बंगाल में भाजपा से बहुत कुछ अपेक्षा की गई थी लेकिन वह उस पर खरी नहीं उतर पाई.

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कोलकाता: पश्चिम बंगाल के हाई प्रोफाइल निर्वाचन क्षेत्र भवानीपुर, जहां 30 सितंबर को एक बेहद अहम उपचुनाव होने जा रहा है, में सिर्फ राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का ही घर नहीं है, बल्कि तमाम नामचीन हस्तियां भी कभी यहां रह चुकी हैं.

उन्हीं में से एक नाम भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का भी है जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का शुरुआती अवतार था.

श्यामा प्रसाद मुखर्जी का विशाल पैतृक आवास आज भी भवानीपुर की व्यस्ततम सड़कों में से एक पर स्थित है, जिसका नाम उनके पिता और जाने-माने शिक्षाविद आशुतोष मुखर्जी के नाम पर रखा गया था. एक विरासत बन चुके इस भवन में अब आशुतोष मुखर्जी मेमोरियल इंस्टीट्यूट (एएमएमआई) है और यह पंजीकृत सोसायटी ही इस संपत्ति की देखभाल और रखरखाव की जिम्मेदारी निभाती है.

इस इमारत की समृद्ध विरासत में राजनीतिक दलों, खासकर भाजपा की दिलचस्पी रही है. पार्टी ने 2019 में इमारत के संरक्षण की जिम्मेदारी संभालने के प्रस्ताव के साथ श्यामा प्रसाद के भतीजे चित्ततोष मुखर्जी, जो कोलकाता और बॉम्बे हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त चीफ जस्टिस हैं, से संपर्क साधा था. लेकिन एएमएमआई के अध्यक्ष मुखर्जी ने इससे साफ इनकार कर दिया.

Asutosh Mookerjee Memorial Institute
भवानीपुर में स्थित आशुतोष मुखर्जी मेमोरियल इंस्टीट्यूट | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

एएमएमआई के ठीक सामने स्थित एक दोमंजिला मकान में अपने अध्ययन कक्ष में बैठे 92 वर्षीय रिटायर चीफ जस्टिस ने दिप्रिंट से कहा कि वह नहीं चाहते कि ‘कोई राजनीतिक दल इसे अपने हाथ में ले.’

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उन्होंने कहा, ‘हम अपनी पहचान नहीं खोना चाहते….इमारत में दिलचस्पी के कारण राजनीतिक है. मैं उनसे बहुत दूर ही रहता हूं, खासकर इसके लिए किसी भी राजनेता से…, एएमएमआई किसी से पैसे स्वीकार नहीं करता.’

उन्होंने कहा, ‘हम जो पैसा कमाते हैं, उसे इसी में लगा देते हैं… आशुतोष कॉलेज हॉल अब भी हमारा है, हम वहां से फंड जुटा रहे हैं और यह इसके रखरखाव के लिए पर्याप्त है… हम नहीं चाहते कि कोई राजनीतिक दल आगे आए और इसका जिम्मेदारी अपने हाथों में ले.’

Bhabanipur
आशुतोष मुखर्जी मेमोरियल इंस्टीट्यूट के सामने की सड़क | फोटो: प्रवीन जैन/दिप्रिंट

‘भाजपा की मौजूदा राजनीति श्यामा प्रसाद की राजनीति से अलग’

राष्ट्रवाद पर भाजपा और श्यामा प्रसाद मुखर्जी के दृष्टिकोण पर चर्चा करते हुए चित्ततोष मुखर्जी, जो 2008 में महाराष्ट्र के कार्यवाहक राज्यपाल के तौर पर भी काम कर चुके हैं, ने कहा कि पार्टी की मौजूदा राजनीति उनके चाचा द्वारा जनसंघ की स्थापना के समय की राजनीति की तुलना में बहुत अलग है.

उन्होंने कहा, ‘उस समय हिंदुत्व पर अत्यधिक जोर दिए जाने की बात आपको कहीं नहीं दिखेगी. उन्होंने (श्यामा प्रसाद) जो किया, उसका उद्देश्य भारत को एक रखने का था, जैसा कि उनका अखंड भारत की बात करने से स्पष्ट भी है.’

उन्होंने कहा, ‘निश्चित तौर पर उन्होंने हिंदुओं के लिए आवाज उठाई थी….जनसंघ ने हिंदुओं के लिए काम भी किया लेकिन कभी घोषित तौर पर ऐसा नहीं कहा… कि वे हिंदुओं के लिए ही काम करते हैं.’

चित्ततोष मुखर्जी ने कहा कि श्यामा प्रसाद ने अपने समय में जो किया वह आज भाजपा नहीं कर रही है.

उन्होंने कहा, ‘वह ऐसे समय में सक्रिय थे जब बंगाल में हिंदू अल्पसंख्यक थे और खतरे में थे…उस समय बंगाल मुस्लिम बहुल प्रांत था. कांग्रेस विभाजित थी. वह 1939 में राजनीति में आए, मूल रूप से एक शिक्षाविद के तौर पर वह संस्थाएं चला रहे थे. 33-34 वर्ष की उम्र में वे चांसलर बन गए थे… वह मूल रूप से एक शिक्षाविद थे और हिंदुओं की रक्षा के लिए राजनीति में आए थे…’


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‘भाजपा उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी’

चित्ततोष ने यह भी कहा कि बंगाल में भाजपा से बहुत उम्मीदें लगाई गई थीं लेकिन वह इन पर खरी नहीं उतर पाई है.

उन्होंने कहा, ‘हमें एक स्वस्थ विपक्ष की उम्मीद थी…बंगाल में, उन्होंने दलबदलुओं को अपने साथ ले लिया….यह कदम पूरी तरह गलत था…भले ही वे चुनाव नहीं जीत पाते लेकिन और अधिक ईमानदार हो सकते थे…लोगों को उस पर विश्वास होना चाहिए जो आप कह रहे हैं.’

यह पूछे जाने पर कि वह तृणमूल कांग्रेस के बारे में क्या सोचते हैं, पूर्व चीफ जस्टिस ने कहा, ‘ममता बनर्जी काफी ज्यादा लोकप्रिय हैं, लुभाने की हरसंभव कोशिश भी वह कर रही हैं, फिर भी नंदीग्राम में हार गईं…’

उन्होंने यह भी कहा कि आमतौर पर वह मौजूदा दौर की राजनीति से काफी निराश हैं.

उन्होंने कहा, ‘राजनीति अब वैसी नहीं रही जो पहले कभी हुआ करती थी… मैं काफी निराश हूं. यह स्वस्थ राजनीति नहीं रह गई है, धन बल और बाहुबल…यही दो बुनियादी चीजें हैं जो अब ज्यादा मायने रखती हैं.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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