पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार की 10 राजनीतिक पार्टियों के सदस्यों को ‘धैर्य से सुना’, जिन्होंने 2022 में जातिगत जनगणना की मांग करने के लिए सोमवार को उनसे मुलाक़ात की लेकिन अपना रुख स्पष्ट नहीं किया. दिप्रिंट को यह जानकारी मिली है.
बैठक में शरीक होने वाले एक सूत्र ने प्रधानमंत्री का ये कहते हुए हवाला दिया कि ‘मैं इस पर विचार करूंगा और निर्णय लूंगा’.
10 पार्टियों के प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने की और राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव भी इसमें शामिल थे.
बैठक में मौजूद सूत्रों के अनुसार, नीतीश ने इस बात पर बल दिया कि जातिगत जनगणना ये सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि कल्याण योजनाओं का लाभ समाज के सभी वंचित वर्गों तक पहुंच जाए. ऊपर उल्लिखित सूत्र ने ये कहते हुए उनका हवाला दिया कि ‘बीजेपी भी इससे सहमत है’.
सूत्रों ने बताया कि तेजस्वी यादव ने ज़ोर देकर कहा कि जातिगत जनगणना से सामाजिक तनाव पैदा नहीं होगा और उन्होंने ये भी कहा कि समुदायों की गिनती का काम फिलहाल चल रहा है लेकिन इसके नतीजे में कोई सामाजिक तनाव पैदा नहीं हुआ है.
बाद में उन्होंने दिल्ली में मीडिया से कहा कि जातिगत जनगणना से कमज़ोर वर्गों की पहचान करने और विकास कार्यक्रम चलाने की देश की क्षमता में विकास होगा. उन्होंने कहा, ‘हमने सब कुछ कह दिया है. अब हम पीएम के फैसले का इंतज़ार कर रहे हैं’.
एआईएमआईएम के अख़तरुल ईमान ने दिप्रिंट को बताया कि ‘प्रधानमंत्री ने ध्यान से हम सबकी बात सुनी. मीटिंग के अंत में उन्होंने कहा कि वो मांगों पर विचार करेंगे और फिर कोई निर्णय लेंगे’. इमाम ने आगे कहा कि जब वो सब बात कर रहे थे, तो उस समय पीएम कुछ नहीं बोले.
कांग्रेस के अजीत शर्मा ने बातचीत को सकारात्मक करार दिया. उन्होंने आगे कहा कि अगर पीएम जातिगत जनगणना के पक्ष में निर्णय लेते हैं, तो देश के लिए ये एक बड़ा फैसला होगा.
वीआईपी अध्यक्ष और बिहार सरकार में मंत्री मुकेश साहनी ने दिप्रिंट को बताया, ‘हर प्रतिनिधि को दो से तीन मिनट बोलने की अनुमति थी लेकिन बिहार के सीएम ने सबसे ज़्यादा बात की. बीजेपी प्रतिनिधि और मंत्री जनक राम ने भी जातिगत जनगणना के पक्ष में बात की’.
एक वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा कि हालांकि पीएम ने धैर्य के साथ प्रतिनिधिमंडल की बात सुनी लेकिन इसका मतलब ये जरूरी नहीं है कि वो इस विचार के पक्ष में हैं. बीजेपी नेता ने कहा, ‘जो कोई भी पीएम मोदी को जानता है, वो इससे सहमत है कि वो बड़े धैर्य से सुनते हैं. लेकिन वो क्या निर्णय लेंगे, ये कोई नहीं जानता’.
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भाजपा और जातिगत जनगणना
जातिगत जनगणना के मामले पर बीजेपी मिले जुले संकेत देती रही है.
जुलाई में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में जाति-आधारित जनगणना की बात खारिज कर दी थी.
जब नीतीश और तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे पर हाथ मिलाया, तो कई बीजेपी नेताओं ने ये कहते हुए जातिगत जनगणना का विरोध किया कि इसके नतीजे में जातिगत तनाव पैदा होगा.
लेकिन बाद में बीजेपी नेता दूसरी पार्टियों के साथ कदम मिलाने की कोशिश करते नज़र आ रहे हैं.
रविवार को बीजेपी सांसद सुशील कुमार मोदी ने सिलसिलेवार ट्वीट्स करते हुए कहा कि उनकी पार्टी ने कभी जाति-आधारित जनगणना का विरोध नहीं किया था.
उन्होंने कहा कि ये गोपीनाथ मुंडे थे, जिन्होंने 2011 में पहली बार ये मांग संसद में उठाई थी और इस ओर ध्यान खींचा था कि आखनरी जाति सर्वे 1931 में कराया गया था, जब बिहार, झारखंड और ओडिशा एक प्रांत थे और उसकी आबादी करीब एक करोड़ थी.
भाजपा कभी जातीय जनगणना के विरोध में नहीं रही, इसीलिए हम इस मुद्दे पर विधान सभा और विधान परिषद में पारित प्रस्ताव का हिस्सा रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने वाले बिहार के प्रतिनिधिमण्डल में भी भाजपा शामिल है।— Sushil Kumar Modi (@SushilModi) August 22, 2021
एक बीजेपी सांसद ने दिप्रिंट से कहा कि जातिगत सर्वे के मामले पर पार्टी के सावधानी से चलने का एक कारण ये है कि उसे लगता है कि इसे लेकर तीखी प्रतिक्रिया सामने आएगी.
सांसद ने कहा, ‘सर्वे के नतीजे में कुछ जातियां ज्यादा आरक्षण की मांग करेंगी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण पर लगाई गई 50 प्रतिशत की सीमा को हटाने की बात उठाएंगी’.
उन्होंने कहा, ‘निजी क्षेत्र में कोटा की मांग उठाई जाएगी और दूसरी समस्याएं भी पैदा होंगी. पार्टी विश्वस्त नहीं है कि वो इस समय पर इससे जुड़े इतने सारे मुद्दों को संभाल पाएगी’.
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