नई दिल्ली: ये आम कही जाने वाली बात है कि एक महिला का स्थान घर में होता है और उसकी पहली जिम्मेदारी अपने परिवार की देखभाल करना होता है. बच्चे के जन्म के बाद और भी अधिकतर मांओं से अपेक्षा की जाती है कि वह पहले अपने बच्चे की देखभाल करेंगी. अधिकतर शोधकर्ता बताते हैं कि बच्चे के जन्म का महिला के रोजगार और कामकाज की संभावनाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. हालांकि, भारत में हुई रिसर्च इस तथ्य से मेल नहीं खाती.
यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी वर्ल्ड इंस्टीट्यूट फॉर डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स रिसर्च (यूएनयू-वाइडर) द्वारा एक अध्ययन में पाया गया कि खेती किसानी में लगी ग्रामीण महिलाओं के लिए, बच्चो का जन्म उनके रोजगार की संभावनाओं के लिए कोई बहुत बड़ा खतरा नहीं है.
अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय (भारत) के रोजा अब्राहम, ईटीएच ज्यूरिख (स्विट्जरलैंड) के राहुल लाहोटी और आईआईएम बेंगलुरु से हेमा स्वामीनाथन के द्वारा किए गए अध्ययन में पाया गया कि भारत के दो राज्यों राजस्थान और कर्नाटक के लगभग 6,000 लोगों का इंटरव्यू लिया गया. (अध्ययन में यह नहीं बताया गया कि इन दो राज्यों को क्यों चुना गया.)
शोधकर्ताओं के अनुसार, पहले बच्चे के जन्म के बाद, माताओं को रोजगार मिलने की संभावना में कोई बड़ा बदलाव नहीं देखा गया. जबकि अधिकतर महिलाएं बच्चे के जन्म के साल में काम करना बंद कर देती हैं. लेकिन अध्ययन में पाया गया है कि उनके काम करने और नौकरी की संभावना धीरे-धीरे बढ़ती गई.
अध्ययन में देखा गया है कि, ‘हमारे परिणाम बड़े पैमाने पर ग्रामीण महिलाओं पर ही होते हैं, जिनके लिए कृषि या किसी अन्य प्रकार के अनौपचारिक काम उनके रोजगार पर हावी होने की संभावना रहती है. इस प्रकार के काम शहरी या अधिक औपचारिक सेटिंग में काम करने की तुलना में चाइल्डकेअर जिम्मेदारियों के साथ किए जाने के लिए अधिक अनुकूल हो सकते हैं.
विकसित देशों में बच्चों के पैदा होने पर मां के रोजगार पर पड़े असर को लेकर काफी विस्तृत अध्यय किए गए हैं. जहां महिलाएं बच्चों की परवरिश के साथ ऑफिस के काम काज (फॉरमल कामों) में लगी हैं. अपने शोध से लेखक इस बात का भी प्रमाण दिखाते हैं कि एक महिला के रोजगार का उसके मदरहुड पर पड़ रहे नकारात्मक प्रभाव जो दूसरे देशों में देखे गए हैं उसे भारत के साथ जेनरलाइज नहीं किया जा सकता है.
हालांकि, चूंकि अध्ययन काम की तीव्रता (काम में लगे घंटों की संख्या), कमाई में बदलाव आदि के बारे में उल्लेख नहीं किया गया है. इसलिए महिला के रोजगार पर बच्चे के जन्म के प्रभाव से संबंधित कई बातें हैं जो यहां शामिल नहीं हैं.
बच्चे का जन्म और रोजगार की संभावनाए
लाइफ हिस्ट्री कैलेंडर (एलएचसी) का उपयोग करते हुए – जो उत्तरदाताओं के जीवन की घटनाओं के बारे में ‘आत्मकथात्मक जानकारी’ का इस्तेमाल करता है – अध्ययन में शामिल 6,000 लोगों में से 3,078 पर, शोधकर्ताओं ने घटनाओं की क्रोनोलॉजिकल सीरीज दर्ज की जब वे 15 वर्ष के हो गए.
एलएचसी इंटरव्यू 2,065 घरों में आयोजित किए गए थे. उत्तरदाताओं में 1,766 महिलाएं और 1,312 पुरुष थे. लगभग 80 प्रतिशत उत्तरदाता ग्रामीण क्षेत्रों से थे.
अध्ययन के अनुसार, 49.9 प्रतिशत महिलाएं जो पहले से ही काम कर रही थीं , वहीं रहीं, जबकि बल में प्रवेश करने के बाद केवल 6.5 प्रतिशत महिलाओं ने काम को छोड़ दिया था. हालांकि, लेखकों ने यह भी नोट किया कि लगभग 40 प्रतिशत उत्तरदाताओं को कभी भी काम करने का मौका ही नहीं मिला.
अध्ययन में यह भी पाया गया कि अधिकांश उत्तरदाताओं के पास अगर काम में उनके पसंद की बात पूछी गई तो उनके पास ऑप्शन कम थे.
अध्ययन के लेखकों के अनुसार, भारत में आर्थिक विकास, जो ज्यादातर सेवा क्षेत्र के वज़ह से हुआ है, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों का थोड़ा बदलाव लाया है. वे इस तथ्य का हवाला देते हैं कि ग्रामीण परिवारों में 73 प्रतिशत से अधिक महिलाएं इसका समर्थन करने के लिए अनौपचारिक कृषि (और संबंधित) कार्यों में लगी हुई हैं.
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बहुत कम है चुनने के लिए
ग्रामीण क्षेत्रों में, समाज के लिंग मानदंडों ने उस कार्य को प्रतिबंधित कर दिया है जो महिलाओं को करने की अनुमति है. अधिकांश महिलाएं ऐसे काम में लगी हुई हैं जो वे घर से कर सकती हैं, या जहां उन्हें दूर की यात्रा नहीं करनी पड़ती है और इसलिए, घर के काम में भी सक्षम हैं. इससे उनके लिए काम करना जारी रखना संभव और आसान हो जाता है.
गांवों में शोधकर्ताओं ने नोट किया कि ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों के पैदा होने के बाद भी महिलाओं का काम इसलिए नहीं छूटता है क्योंकि ग्रामीण समाज में आज भी ज्वाइंट फैमिली का कल्चर है. परिवार एक साथ एकजुट होकर रहते हैं. इसलिए घर में कोई न कोई होता है तो मां की अनुपस्थिति में बच्चे की देखरेख कर लेता है.
रिसर्चरों को पता चला जैसा कि पश्चिमी देशों के विपरीत, संस्थागत चाइल्ड केयर की प्रथा है (यानी लोगों की आर्थिक सहायता से क्रेच काम करता है जहां कामकाजी महिलाएं अपने बच्चों को छोड़ सकती हैं) ग्रामीण इलाकों में लगभग न के बराबर है और ज्यादातर बच्चों की देखभाल परिवार के बड़े बुजुर्गों द्वारा की जाती है. यहां तक की जिन महिलाओं के अधिक बच्चे हैं (वहां बड़ा बच्चा छोटे की देखभाल करते हैं. ) माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रहने वालों की तुलना में पति-पत्नी और ससुराल वालों के पास वेतन वाली नौकरी मिलने की संभावना अधिक थी.
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