scorecardresearch
Wednesday, 20 November, 2024
होमदेशआज ही के दिन 67 साल पहले आजाद हुआ था दादरा- नगर हवेली, RSS की थी अहम भूमिका

आज ही के दिन 67 साल पहले आजाद हुआ था दादरा- नगर हवेली, RSS की थी अहम भूमिका

2 अगस्त 1954 को दादरा और नगर हवेली, जो बाद में भारत का एक केंद्र शासित प्रदेश बना, को पुर्तगाली शासन से मुक्ति मिली थी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई थी.

Text Size:

2 अगस्त भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण तिथि है. 1954 में इसी दिन दादरा और नगर हवेली, जो बाद में भारत का एक केंद्र शासित प्रदेश बना, को पुर्तगाली शासन से मुक्ति मिली थी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई थी. लेकिन ऐसा लगता है कि हम इतिहास का यह स्वर्णिम अध्याय भूल गए हैं.

स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मनाने की जब तैयारियां हो रही हैं, ऐसे में इतिहास के इन विस्मृत अध्यायों की पुन: स्मृति आवश्यक है.

दादरा और नगर हवेली

पहले दादरा और नगर हवेली पर पुर्तगालियों के कब्जे के बारे में चर्चा कर लेते हैं. पुर्तगालियों का विवादास्पद दावा था कि उन्होंने मराठों से एक संधि के तहत दादरा और नगर हवेली पर अपना शासन स्थापित किया. उन्होंने नगर हवेली में 1783 तथा दादरा में 1785 में शासन करना आरंभ किया.

उस समय दादरा का इलाका लगभग साढ़े तीन वर्गमील तथा नगर हवेली का क्षेत्रफल लगभग 185 वर्गमील था. कुल 72 गांव थे और आबादी थी लगभग 42000. पुर्तगालियों का औपनिवेशिक शासन स्थापित होने के बाद काफी समय तक पुर्तगालियों व धर्मपुर के राजा की सेना में इन दोनों इलाकों पर आधिपत्य को लेकर हिंसक झड़पें होती रहीं.

पुर्तगाल का उपनिवेश बनने से पहले दादरा और नगर हवेली धर्मपुर के राज्य का हिस्सा थे.ये तथ्य पाठकों को डा.पी.डी. गायतोंडे की पुस्तक ‘ द लिबरेशन ऑफ गोआ’ में और विस्तार से मिल जाएंगे.

बीसवीं सदी के पूर्वार्ध में भारत के कई हिस्सो में अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन तो चल ही रहा था, इधर गोआ, दमन व दीव, दादरा और नगर हवेली में भी पुर्तगाली शासन के खिलाफ आंदोलन की सुगबुगाहट तेज होने लगी थी. 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ तो पुर्तगाली शासन वाले इलाकों को स्वतंत्रता नहीं मिली-

इधर 1950 का दशक आरंभ होते ही पुर्तगाली शासन के खिलाफ बाकी भारत में भी हलचल होने लगी. राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण जैसे नेताओं ने पुर्तगाली शासन के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन तत्कालीन नेहरू सरकार ने इस विषय में अपेक्षित उत्साह नहीं दिखाया. इधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इस मुद्दे को पूरी गंभीरता से लेते हुए अपने स्वयंसेवकों को इस आंदोलन में कूद पड़ने को कहा.


यह भी पढ़ें: आरएसएस के स्वयंसेवक क्यों भगवा ध्वज की पूजा करते हैं और इसे अपना ‘गुरु’ मानते हैं


आरएसएस की भूमिका

वास्तव में यह भी इतिहास का एक विस्मृत अध्याय है कि दादरा और नगर हवेली कां संघ के स्वयंसेवकों ने अपनी जान हथेली पर रखकर बिना किसी प्रत्यक्ष सैन्य सहायता के मुक्त करवाया और भारत सरकार को सौंप दिया.

लेखक रतन शारदा ने अपनी पुस्तक ‘संघ और स्वराज’ में इसका ब्यौरा दिया है: ‘ उस समय 1954 के आरंभिक दिनों में संघ के स्वयंसेवक राजा वाकणकर और नाना कजरेकर, दादरा नगर हवेली तथा दमन के आसपास के क्षेत्रों में वहां की भौगोलिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए कई बार गए, वहां वे विभिन्न स्थानीय लोगों के संपर्क में आए जो चाहते थे कि उनका क्षेत्र भारत का हिस्सा बने.अप्रैल 1954 में संघ ने नेशनल मूवमेंट लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन तथा आजाद गोमांतक दल के साथ दादरा नगर हवेली के भारतीय गणराज्य में विलय के उद्देश्य से गठबंधन किया.’

वह आगे लिखते हैं, ‘2 अगस्त 1954 को पुणे के संघचालक विनायक राव आप्टे के नेतृत्व में 100 स्वयंसेवकों की एक टोली ने दादरा और नगर हवेली के परिक्षेत्रों पर धावा बोल दिया. फिर उन्होंने सिलवासा पर हमला किया और 175 पुर्तगाली सैनिकों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया. वहां राष्ट्रीय तिरंगा फहराया गया और वह क्षेत्र केंद्र सरकार को सौंप दिया गया.आगे चलकर इन स्वतंत्रता सेनानियों को 2 अगस्त 1979 में सिलवासा में सम्मानित किया गया.’

दादरा व नगर हवेली के मुक्ति संग्राम में संघ की भूमिका को लेकर कई और स्थानों पर भी संदर्भ मिलते हैं. इनमें डा. गायतुंडे की पुस्तक, जिसके बारे में उपर चर्चा की गई है, के अलावा एच.वी.शेषाद्रि की पुस्तक ‘आरएसएस: ए विज़न इन एक्शन’, के आर मल्कानी लिखित :द आरएसएस स्टोरी’ , दीनानाथ मिश्र कृत ‘आरएसएस: मिथ एंड रिएल्टी’ तथा सुचित्रा कुलकर्णी की गहन शोध आधारित पुस्तक ‘आरएसएस बीजेपी सिम्बॉयसिस’ शामिल है. इनमें संघ द्वारा इस मुक्ति संग्राम में निभाई गई भूमिका के पर्याप्त संदर्भ हैं.

इसके अलावा 2011 के अगस्त माह में पुणे में दादरा—नगर हवेली मुक्ति संग्राम में भाग लेने वाले स्वयंसेवकों की याद में एक श्रद्धांजलि सभा हुई थी. इसमें वरिष्ठ इतिहासकार बाबा साहब पुरंदरे ने भी अपने विचार व्यक्त किए थे, उन्होंने खुद भी पुर्तगालियों के खिलाफ इस मुक्ति संग्राम में हिस्सा लिया था.

उस सभा की कार्रवाई के अनुसार संघ के कुल 103 स्वयंसेवकों ने इस मुक्ति सुग्राम में हिस्सा लिया था, उनमें से 55 स्वयंसेवक 2011 की इस सभा के समय जीवित थे और अधिकतर ने इसमें हिस्सा लिया था.

इसके उपरांत 27 नवंबर 2019 में दादरा व नगर हवेली के दमन व दीव में विलय से संबंधित एक विधेयक पर चर्चा के दौरान जब तृणमूल कांग्रेस के सांसद सौगत रॉय ने यह दावा किया दादरा व नगर हवेली को आजादी तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से मिली थी तो भारत सरकार की ओर से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपने जवाब में साफ कहा कि ‘उस समय की नेहरू सरकार इस मामले को लेकर खास सक्रिय नहीं थी लेकिन कुछ युवाओं ने दादरा—नगर हवेली को आजाद करवाने का बीड़ा उठाया और अपनी जान पर खेलकर उन्होंने यह कर दिखाया.’

इसी संदर्भ में यह जानकारी भी इस बहस के दौरान सामने आई कि प्रसिद्ध गायिका लता मंगेशकर ने पुणे में एक सभा कर धन एकत्र कर उन क्रांतिकारियों को दिया था जो इस मुक्ति संग्राम में सक्रिय थे.

(लेखक दिल्ली स्थित थिंक टैंक विचार विनिमय केंद्र में शोध निदेशक हैं. उन्होंने आरएसएस पर दो पुस्तकें लिखी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: जनसंख्या के मुद्दे पर RSS की सोच कैसे विकसित हुई, मोहन भागवत के बयान के क्या मायने हैं


 

share & View comments