जब महान वैज्ञानिक गैलीलियो गैलिली ने ऐनकसाज हैंस लिपर्शे द्वारा दूरबीन के आविष्कार के बाद दूरबीन का पुनर्निर्माण किया और पहली बार खगोलीय अवलोकन में उपयोग किया था, उस क्षण के बाद लगभग चार शताब्दियां बीत चुकी हैं. तब से अब तक दूरबीनों ने खगोल विज्ञान में कई आकर्षक और पेचीदा खोजों को जन्म दिया है. इनमें हमारे सूर्य से परे अन्य तारों की परिक्रमा कर रहे ग्रहों की खोज, ब्रह्मांड के विस्तार की गति में तेजी के सबूत, डार्क मैटर और डार्क एनर्जी का अस्तित्व, पृथ्वीवासियों के लिए खतरा बन सकते एस्टेरॉयड्स और कॉमेट्स वगैरह की खोज शामिल है.
इन 300 वर्षों में बहुत से विशालकाय दूरबीनों का निर्माण पृथ्वी पर किया जा चुका है और कुछ दूरबीनें अंतरिक्ष में भी स्थापित की जा चुकी हैं.
जिस अंतरिक्ष दूरबीन ने खगोल विज्ञान के विकास में सबसे ज्यादा योगदान दिया, जिसने दुनिया का ध्यान सबसे ज्यादा आकर्षित किया और सुर्खियां बटोरीं, वह निश्चित रूप से ‘हब्बल टेलीस्कोप ’ है. तकरीबन एक महीने पहले 13 जून को पेलोड कंप्यूटर में आई तकनीकी खराबी की वजह से हब्बल ने अंतरिक्ष अन्वेषण (स्पेस एक्सप्लोरेशन) का काम बंद कर दिया था.
अंतरिक्ष में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के लिए अच्छी खबर यह है कि हाल ही में नासा के वैज्ञानिकों को उक्त खराबी को ठीक करने में सफलता मिली है और फिलहाल हब्बल ने सुचारु ढंग से पहले की तरह अपनी पूरी क्षमता के साथ काम करना शुरू कर दिया है.
Hubble's back! ?
After the Hubble team successfully turned on backup hardware aboard the telescope, the observatory got back to work over the weekend and took these galaxy snapshots.
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— Hubble (@NASAHubble) July 19, 2021
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क्या थी गड़बड़ी, कैसे हुआ ठीक
अंतरिक्ष में तकरीबन 550 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा हब्बल स्पेस टेलीस्कोप लगभग एक महीने तक बंद पड़ा रहा. इसकी वजह पेलोड कंप्यूटर के हार्डवेयर को स्थायी रूप से वोल्टेज सप्लाई देने वाली पॉवर कंट्रोल यूनिट (पीसीयू) में आई गड़बड़ी थी. इस खराबी की वजह से हब्बल सेफ मोड में चला गया और इसका संपर्क सभी उपकरणों से टूट गया था.
पेलोड कंप्यूटर और पीसीयू, दोनों मिलकर हब्बल के साइंस इंस्ट्रूमेंट कमांड एंड डेटा हैंडलिंग (एसआईसी एंड डीएच) यूनिट का निर्माण करते हैं. वैज्ञानिकों के मुताबिक पीसीयू में लगे पॉवर रेगुलेटर का काम पेलोड कंप्यूटर और उसकी मेमोरी को बेरोकटोक 5 वोल्ट की इलेक्ट्रिसिटी उपलब्ध कराना है. वोल्टेज स्तर में गड़बड़ी की वजह से पेलोड कंप्यूटर का हब्बल से संपर्क टूट गया था. गौरतलब है कि हब्बल में इन्स्टाल सभी साइंटिफ़िक इंस्ट्रूमेंट्स को संचालित करने का काम यही पेलोड कंप्यूटर करता है. लिहाजा पेलोड कंप्यूटर में आई दिक्कत की वजह से हब्बल सेफ मोड में चला गया.
कई दिनों की मशक्कत के बाद आखिरकार नासा के वैज्ञानिकों को हाल ही में हब्बल को एसआईसी एंड डीएच यूनिट में मौजूद बैकअप पीसीयू डिवाइस से जोड़ने में कामयाबी मिली. इसके साथ ही हब्बल का संपर्क सभी उपकरणों के साथ दोबारा बहाल हो गया और वह सेफ मोड से नॉर्मल मोड में लौट आया.
गौरतलब है कि वैज्ञानिकों ने 2008 में भी ऐसी ही एक गड़बड़ी को बैकअप पीसीयू डिवाइस की मदद से ठीक किया था. पिछले 30 सालों में हब्बल में कई बार तकनीकी दिक्कतें आईं लेकिन नासा के वैज्ञानिकों ने इन गड़बड़ियों को जल्द ही ठीक कर लिया था. लेकिन इस बार की गड़बड़ी को पकड़ने में नासा को लंबा समय लग गया.
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हब्बल ने दिखाई ब्रह्मांड की अनदेखी दुनिया
दो-तीन दशक पहले तक हमारे सौरमंडल से इतर ग्रहों की बातें विज्ञान कथा और फिल्मों का विषय हुआ करती थीं. लेकिन खगोलशास्त्र के विकास के साथ ही हमारी आकाशगंगा में ऐसे कई तारों का पता चला, जिनके इर्द-गिर्द हमारे सौरमंडल की तरह के ग्रह हो सकते हैं.
सौरमंडल के पार के अंतरिक्ष के बारे में अधिकतर जानकारी हमें हब्बल टेलीस्कोप से ही मिली है. हब्बल टेलीस्कोप एस्ट्रोनोमी और एस्ट्रोफिजिक्स क्षेत्र में क्रांतिकारी सिद्ध हुआ है. हब्बल की महानतम उपलब्धियों ने उसे एस्ट्रोफिजिक्स और एस्ट्रोनोमी के इतिहास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण दूरबीन बना दिया है.
अब तक की जो सबसे प्राचीन और सबसे दूर मौजूद आकाशगंगाएं देखी गई हैं, उन्हें हब्बल ने ही देखा है. हब्बल टेलीस्कोप ने कई ब्लैक होल्स की खोज की. डार्क एनर्जी की खोज में मदद की और ब्रह्मांड के तेज़ विस्तार की वजह समझने में सहायता की. हब्बल द्वारा धरती पर भेजे गए तस्वीरों और डेटा के आधार पर अब तक 15000 से ज्यादा वैज्ञानिक शोधपत्र प्रकाशित किए जा चुके हैं.
ब्रह्मांड की उत्पत्ति और उसकी उम्र के सबंध में खगोलीय प्रेक्षण द्वारा प्रथम परिचय हब्बल टेलीस्कोप ने ही करवाया है. हब्बल दूरबीन हमसे बहुत दूर स्थित सुपरनोवा विस्फोटों को देखने में सक्षम है. इसका मुख्य उद्देश्य है विभिन्न खगोलीय दूरियों का सटीक मापन करके हब्बल कोंस्टेंट का बिल्कुल सटीक आकलन करना.
दरअसल एडविन पी. हब्बल ने 1929 में ब्रह्मांड के विस्तारित होने के पक्ष में प्रभावी तथा रोचक सिद्धांत दिया. हब्बल ने ही हमें बताया कि ब्रह्मांड में हमारी आकाशगंगा की तरह लाखों अन्य आकाशगंगाएं भी हैं. उन्होंने अपने प्रेक्षणों तथा डॉप्लर प्रभाव की मदद से यह निष्कर्ष निकाला कि आकाशगंगाएं ब्रह्मांड में स्थिर नही हैं, जैसे-जैसे उनकी दूरी बढ़ती जाती हैं वैसे ही उनके दूर भागने की गति तेज़ होती जाती है. किसी आकाशगंगा के हमसे दूर जाने के मध्य का अनुपात हब्बल कोंस्टेंट से मिलता हैं.
अगर हमे एक सटीक हब्बल कोंस्टेंट मिल जाएगा तो हम ब्रह्मांड के वर्तमान, भूत तथा भविष्य को जानने में सक्षम हो जाएंगे.
हब्बल टेलीस्कोप की मदद से खगोलशास्त्रियों ने पृथ्वी से दूर स्थित अत्यंत प्राचीन तारों के समूह को ढूंढ निकाला है. यह तारा समूह हमसे लगभग 7000 प्रकाशवर्ष दूर है. इसके बुझते जाने के रफ्तार के आधार पर वैज्ञानिकों ने ब्रह्मांड की उम्र की हालिया गणना 13 से 14 बिलियन वर्ष के बीच आंकी है. हो सकता हैं कि भविष्य में हब्बल कोंस्टेंट कुछ और हो लेकिन जो भी हो ब्रह्मांड की जीवनगाथा हब्बल कोंस्टेंट की कलम से ही लिखी जाने वाली है.
हब्बल ने ही हमें डार्क एनर्जी का ज्ञान दिया है. हब्बल की मदद से खगोलशास्त्रियों ने जब 1 a प्रकार के सुदूरवर्ती सुपरनोवा विस्फोटों को देखा तो उन्हें यह पता चला कि हमारा ब्रह्मांड न केवल विस्तारमान है, बल्कि इसके विस्तार की गति भी समय के साथ त्वरित होती जा रही है.
डार्क एनर्जी को इस त्वरण का उत्तरदायी माना जा रहा है. ब्रह्मांड का कुल 70 प्रतिशत भाग इसी ऊर्जा के रूप में है. दीर्घवृत्तीय आकाशगंगाओं की खोज, क्वासरों के विशिष्ट गुणों की खोज तथा वर्ष 1994 में बृहस्पति ग्रह और पुच्छल तारे ‘शूमेकर लेवी-9′ के बीच हुए टकराव का चित्रण हब्बल दूरबीन की विशिष्ट उपलब्धियों में शुमार है. यह पहली अंतरिक्ष दूरबीन है जो अल्ट्रावायलेट और इन्फ्रा-रेड के नजदीक काम करने में सक्षम है. यह सुग्राहकता के साथ खूबसूरत, मनमोहक एवं अद्भुत चित्रों को लेती है और धरती पर भेजती है.
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अंतरिक्ष में कृत्रिम उपग्रह के रूप में स्थापित है ‘हब्बल टेलीस्कोप’
हब्बल को अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने यूरोपीयन अंतरिक्ष संस्था ईसा के पारस्परिक सहयोग से तैयार किया था. हब्बल को अंतरिक्ष में स्थापित करने में लगभग ढाई अरब डॉलर की लागत लगी थी. पहले हब्बल को 1983 में लांच करने की योजना बनाई गई थी, मगर कुछ तकनीकी खामियों तथा बजट में देरी के चलते इस पारस्परिक सहयोगी कार्यक्रम में सात साल की देरी हो गई. 25 अप्रैल, 1990 को अमेरिकी स्पेस शटल ‘डिस्कवरी’ के उड़ान एस. टी. एस.-31 की मदद से इसे इसकी कक्षा में स्थापित किया गया.
इस अंतरिक्ष आधारित दूरबीन को खगोलशास्त्री ‘एडविन पावेल हब्बल’ के सम्मान में हब्बल स्पेस टेलीस्कोप का नाम दिया गया.
यह दूरबीन अभी 550 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी की कक्षा के चक्कर काट रही है. पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरा करने में इसे लगभग 100 मिनट लगतें हैं. हब्बल टेलीस्कोप में 2.4 मीटर (94.5 इंच) के दर्पण (मिरर) का इस्तेमाल किया गया है. इसका भार 11,110 किलोग्राम है. यह हर रोज पृथ्वी पर 12 से 15 गीगाबाइट डेटा भेजता है. बहरहाल, अपने तीस वर्षीय कार्यकाल में हब्बल ने ऐसे अनगिनत रहस्यों से पर्दा उठाया है, जिनके बारे में हम पहले शायद कल्पना भी नहीं कर सकते थे.
(लेखक साइंस ब्लॉगर एवं विज्ञान संचारक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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