हाल ही में आई कोरोनावायरस की दूसरी लहर ने देश के प्रत्येक नागरिक को हिला कर रख दिया, पिछले 16 माह में कोई ऐसा व्यक्ति नही रहा जो पेंडेमिक से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित न हुआ हो.
पहली लहर के बाद केंद्र सरकार की तरफ से कहा जाने लगा कि हम कोरोना पर विजय श्री हासिल कर चुके हैं, शायद इसी वजह से लोगों की बेफिक्री लापरवाही में बदल गई, दोबारा आई कोरोनावायरस लहर ने यह दिखा दिया है कि यह लंबे समय तक हमारे बीच में रहने वाला है. और यह समय-समय पर अपना यह असर दिखाता रहेगा. कुछ विशेषज्ञ तीसरी लहर के आने की बात भी कह रहे हैं जिसमें बच्चों के अधिक प्रभावित होने की बात भी कही जा रही है. जिसके लिए देश के नागरिकों को कोरोना से लड़ने में सहायता के लिए चिकित्सीय सहायता के साथ-साथ उसके बाद के स्वास्थ्य पर और आर्थिक स्थितियों पर प्रभाव के लिए भी व्यापक दृष्टिकोण की जरूरत है.
सिर्फ करोना के समय मात्र लोगों को चिकित्सीय सहायता उपलब्ध करा देने से हम इस पर विजय नहीं पा सकते क्योंकि कोरोना की मार ने जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया है लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी पर व्यापक असर पड़ा है रोजगार की बुरी हालत हो गयी है.
हमें यह याद रखना होगा कि लोगों को सिर्फ कोरोना महामारी से बचा लेने भर से उनका जीवन सुखमय नही हो सकता ऐसे खराब आर्थिक दौर में आर्थिक सहायता की अत्यंत जरूरत है.
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यूपी का हाल
यदि उत्तर प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में देखे तो प्रदेश के 24 करोड़ नागरिकों को कोरोना ने आर्थिक रूप से तोड़ कर रख दिया है, जहां एक तरफ कोरोना के पहले से बेरोजगारी का बुरा आलम है, बेरोजगारी दर ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए 45 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी ने नौजवानों को आत्महत्या करने को विवश कर दिया है.पिछले साल विधानसभा में भी यूपी सरकार ने स्वीकारा था कि बेरोजगारों की संख्या बढ़ी है.
ऐसे कोरोना महामारी की परिस्थितियों में BJP आदित्यनाथ सरकार की सिर्फ खोखली प्रचारात्मक कार्यशैली से हालात और भयावह होते जा रहे हैं. पहले से ही सरकार ने जो 1:25 करोड़ नौकरियों के वादा किया था वह पूरा नही हो सका और महामारी के बाद लोगों की नौकरियां छूटती जा रही हैं. CMIE की रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना महामारी से देश में 12 करोड़ नौकरियां जा चुकी हैं जिसमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश के युवा हैं जो बेरोजगार हुए हैं.
स्वरोजगार के लिए लोगों की जमा पूंजी बची ही नही जिससे वह आगे अपना उद्योग बढ़ा सकें, आल इंडिया मैन्युफैक्चरर्स एशोसिएशन और अन्य औद्योगिक संगठनों के सर्वे के अनुसार कोरोना महामारी के बाद सभी उद्योग बुरी तरह प्रभावित हैं, आधे से ज्यादा छोटे उद्योग MSME या तो बंद हैं या अपने कर्मचारियों की छंटनी कर चुके हैं उसका सीधा असर लोगों की आय पर पड़ा है. सर्वे के अनुसार लोगों को सैलरी और भविष्य की गम्भीर चिंता है उसका सबसे बड़ा कारण EMI न चुका पाना है.
देश-विदेश में चमक बिखेरने वाला सुहागनगरी के नाम से मशहूर फिरोजाबाद का चूड़ी/कांच उद्योग बुरी तरह प्रभावित है. लॉकडाउन की वजह से कांच आइटम व चूड़ी की घटती मांग से 50 प्रतिशत चूड़ी कारखाने बंद हैं. 2000 करोड़ के उद्योग में 1700 करोड़ का कारोबार प्रभावित हुआ है.
यही हालत बनारस के 2000 करोड़ के सिल्क कारोबार, 1200 करोड़ के कालीन कारोबार ,और आगरा-कानपुर के लेदर कारोबार की है , निर्यात ठप होने से लाखों कर्मचारी/ट्रेंड मजदूरों की छंटनी हो चुकी है जिससे उनकी रोजी-रोटी पर संकट आ चुका है
किसान खेतों में खड़ी फसल को जोतने पर मजबूर हैं. उत्तर प्रदेश के किसान लॉकडाउन के कारण शादी-विवाह, होटल रेस्टोरेंट और ढाबों पर सप्लाई न होने के कारण मजबूरन टमाटर की फसल की लागत न निकलने पर खेत में ही छोड़ने को मजबूर हैं. आदित्यनाथ सरकार की लापरवाही के चलते खरीफ की फसल का बीज समय से किसानों को उपलब्ध नही कराया जिसकी वजह से खरीफ की फसल की देरी की आशंका है.
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आर्थिक पैकेज और आम आदमी
मार्च 2020 में 20 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा हुई, वित्तमंत्री ने मई में उस 20 लाख करोड़ के पैकेज का चरणबद्ध प्रारूप भी बताया लेकिन बीमार अर्थव्यवस्था पर बहुत फर्क नही पड़ा. इसका अंदाजा चार-पांच पैमानों से लगा सकते हैं, अभी हाल में जारी हुए GDP के आंकड़े जिनमें, – बेरोजगारी दर बढ़ रही है, मंहगाई आसमान छू रही, और लोगों के खर्च करने की क्षमता में कमी आयी है. इससे यह पता चलता है कि सरकार की गलत नीतियों के चलते केंद्र सरकार के 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का उत्तर प्रदेश सहित कहीं भी बहुत उपयोग नही हो सका.
कारण सीधा है इस पैकेज में समाज के उस तबके के लिए कुछ नही है जिस पर महामारी और लॉकडाउन का असर सबसे ज्यादा हुआ. पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव सुभाष गर्ग ने एक साक्षात्कार में इस पैकेज को लेकर स्पष्ट रूप से कहा था कि धरातल पर यह पैकेज 10 फीसदी भी नही उत्तर पाया उसका कारण यही था कि पैकेज कर्ज लेने और चुकाने से ज्यादा अपनी अहमियत नही रखता था. अर्थव्यवस्था को स्वस्थ बनाने के लिए पुनः 6 :28 लाख करोड़ का बूस्टर डोज दिया गया है यह भी अपनी दिशाहीनता के चलते पूर्व के 20 लाख करोड़ के पैकेज की तरह अपना महत्व खो देगा क्योंकि इसमें भी अंतिम पंक्ति के व्यक्ति के लिए कुछ नही है.
आर्थिक सहायता ही अंतिम विकल्प
वर्तमान समय मे लोगों को सीधे आर्थिक सहायता की जरूरत है भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस बात को कई बार दोहराया है कि लोगों को 6 माह तक 7500 रुपये दिए जाने की जरूरत है ताकि वह अपनी न्यूनतम जरूरतों को पूरा कर सकें. जब तक मांग-आपूर्ति का संतुलन नही होगा तब तक अर्थव्यवस्था को स्वस्थ नहीं किया जा सकता. 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज में MSME को सिर्फ कर्ज देकर लोगों को आर्थिक संबल नही बनाया जा सकता. लोगों की खाली जेबों में आर्थिक सहायता कर बाजार में डिमांड को बढ़ाकर ही घरेलू अर्थव्यवस्था को गति दी जा सकती है, जिससे बंद पड़े कारखानों और रोजगार का पुनःसृजन कर अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित किया किया सके.
(लेखक अंशू अवस्थी , कांग्रेस के उत्तर प्रदेश के प्रवक्ता हैं, ये उनके निजी विचार हैं)
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