नई दिल्ली: महाराष्ट्र, केरल, आंध्र प्रदेश और दिल्ली में कोविड-19 मामलों की सप्ताह-दर-सप्ताह विकास दर बढ़नी शुरू हो गई है और अब शायद समय आ गया है कि इन जगहों में तुरंत ज़्यादा पाबंदियां लगा दी जाएं. ये कहना है मिश्गन यूनिवर्सिटी में जैव-सांख्यिकी की जॉन डी काल्बफ्लेश कॉलेजिएट प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी का.
मुखर्जी की चेतावनी ऐसे समय आई है जब मामलों और मौतों की लगातार गिरती संख्या के बीच, सोमवार से दिल्ली अनलॉकिंग के एक नए चरण में दाख़िल हो गई.
रुझानों का पता लगाने के लिए, मुखर्जी और उनकी टीम, निर्पेक्ष आंकड़ों की बजाय सप्ताह-दर-सप्ताह बदलाव की तुलनात्मक दरों पर नज़र रखती है. फरवरी में ही उन्होंने पूर्वानुमान लगा लिया था कि भारत में जल्द ही दूसरी लहर आ रही है.
मुखर्जी ने कहा कि तीसरी लहर को लेकर की जा रहीं प्रलयकारी भविष्यवाणियों के- जिसमें बच्चों पर असर की बात हो रही है- अभी भी पर्याप्त वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं हैं, लेकिन, उन्होंने आगे कहा कि भारत में हर रोज़ एक करोड़ से कम टीकाकरण की दर आने वाले महीनों में मुश्किलें पैदा कर सकती है.
रविवार को भारत में, केवल 17 लाख टीके लगाए गए.
मुखर्जी ने, जो यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में महामारी विज्ञान और ग्लोबल पब्लिक हेल्थ प्रोफेसर भी हैं, दिप्रिंट के साथ एक ख़ास इंटरवव्यू में कहा, ‘अप्रैल में लगभग हर प्रांत में लगे लॉकडाउन से मामलों की संख्या में किसी हद तक कमी आई. लेकिन कम्यूनिटी में अभी भी पर्याप्त वायरस मौजूद है और नए नए म्यूटेशंस सामने आ रहे हैं, इसलिए ये बहुत ख़तरनाक समय है कि सब चीज़ें पूरी तरह खोलकर ढिलाई बरती जाए.’
‘पिछले सात दिनों में हमने महाराष्ट्र, केरल, आंध्र प्रदेश और कुछ हद तक दिल्ली में भी, मामलों में इजाफा देखा है. यहां पर आंकड़ों के हिसाब से तेज़ी से नीति बनाना ज़रूरी है. जैसे ही मामलों में इज़ाफा नज़र आए आपको बचाव कार्य करना है,और उसे विस्फोटक नहीं होने देना है. धीमे धीमे पकने देना, इस वायरस के लिए सबसे ग़लत रणनीति है, इसलिए इन राज्यों में तुरंत ही और पाबंदियां लगाई जानी चाहिएं.’
केरल, महाराष्ट्र, और दिल्ली के रुझानों का अंदाज़ा लगाते हुए उन्होंने कहा कि ये चौंकाने वाला है क्योंकि इन जगहों पर, पहले ही काफी संक्रमण हो चुका है. उन्होंने कहा, ‘वो (पिछला संक्रमण) कुछ सुरक्षा देता है. इसके अलावा, दिल्ली और केरल में क़रीब 30 प्रतिशत और महाराष्ट्र में क़रीब 20 प्रतिशत लोगों को वैक्सीन का कम से कम एक डोज़ मिल चुका है. हम अभी भी मामले बढ़ते हुए देख रहे हैं. दिल्ली में ये बढ़ोतरी अभी भी बहुत मामूली है. लेकिन महाराष्ट्र और केरल में आर वैल्यू घटकर 0.4-0.5 पर आ गई थी. लेकिन अब ये वापस बढ़कर, 0.8 तक आ गई है.’
आर वैल्यू किसी पैथोजन की संक्रामकता को मापने का तरीक़ा है और इसमें अनुमान लगाया जाता है कि एक संक्रमित व्यक्ति अपने वायरस से कितने लोगों को प्रभावित कर सकता है. उन्होंने कहा कि जब तक देश में, वायरस पर पूरा नियंत्रण नहीं हो जाता तब तक उसे खोलना समस्याएं पैदा कर सकता है.
ये कहना निराधार है कि तीसरी लहर बच्चों को प्रभावित करेगी
प्रोफेसर मुखर्जी ने कहा कि ताज़ा रुझान चिंता के कुछ कारणों की ओर इशारा करते हैं, लेकिन उनका ये भी कहा था कि वो तीसरी लहर के पूर्वानुमान में नहीं पड़ना चाहतीं.
‘मैं ये नहीं मानती कि हम ये भविष्यवाणी कर सकते हैं कि तीसरी लहर आएगी और बहुत से लोगों की जान ले लेगी, बहुत से बच्चे मारे जाएंगे चूंकि इसके समर्थन में कोई आंकड़े नहीं हैं. दुनिया भर में हमने देखा है कि बच्चों में बीमारी से मौतें, और नैदानिक गंभीरता कम है. हमें घबराहट नहीं फैलानी चाहिए, लेकिन इसका इनकार भी अच्छा नहीं है. हमें अपनी आंखें खुली रखनी चाहिएं, और जल्दी ही दख़ल देने के लिए तैयार रहना चाहिए.’
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उन्होंने कहा कि ख़ासकर भारत में बाल चिकित्सा आयु समूह में टीकाकरण वास्तव में महामारी को नियंत्रित करने में, सहायक साबित हो सकता है.
उन्होंने आगे कहा, ‘अमेरिका में, ये (0-18 आयु वर्ग) कुल आबादी का 24 प्रतिशत है. भारत में, ये संख्या 40 प्रतिशत है. अमेरिका में 12-18 आयु वर्ग के अधिकांश लोगों को टीका लग चुका है. लेकिन अगर आप समझते हैं कि 40 प्रतिशत आबादी को टीका लगे बिना हर्ड इम्यूनिटी हासिल की जा सकता है, तो ये संभव नहीं होगा. यही वजह है कि भारत में बच्चों का टीकाकरण शुरू करना ज़रूरी है.’
उन्होंने कहा कि जब उछाल आता है, जैसा कि दूसरी लहर के दौरान हुआ, तो चिकित्सा सुविधाओं पर दबाव बढ़ जाता है, और चिकित्सा देखभाल के अभाव में भी मौतें होती हैं- वो मौतें जिन्हें बेहतर समय में रोका जा सकता था. भारत में बच्चों के स्वास्थ्य इनफ्रास्ट्रक्चर की कमी एक जानी हुई बात है.
भारत में हर रोज़ 1 करोड़ लोगों को टीके लगाने की ज़रूरत
कोविड टीकाकरण की अहमियत पर ज़ोर देते हुए मुखर्जी ने कहा कि उनके परिवार में जिन लोगों ने टीके लगवाए हुए थे, वो टीका न लगवाने वाले सदस्यों के मुक़ाबले, कहीं कम हद तक प्रभावित हुए थे.
उन्होंने कहा कि वायरस के म्यूटेशंस की तेज़ रफ्तार को देखते हुए टीकाकरण और भी ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है.
ग़रीब देशों में एक अरब वैक्सीन्स वितरित करने की, जी-7 देशों की प्रतिबद्धता का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘भारत को हर दिन एक करोड़ टीके लगाने होंगे, वरना कोई उम्मीद नहीं है. हमें लगातार उस दिशा में बढ़ना है ऐसा नहीं कि एक दिन ख़ास पहल करके, हम 80 लाख टीके लगा लें, लेकिन अगले दिन गिरकर फिर 60 लाख पर आ जाएं. मैं एक अरब टीकों की, जी-7 की योजना से बहुत उत्साहित हूं और अब हमें देखना है कि भारत कितना कर पाता है.’
उन्होंने कहा, ‘लेकिन सच्चाई ये है कि भारत में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी है और जब तक भारत वायरस को क़ाबू नहीं करता, दुनिया भी नहीं कर पाएगी.’
वायरस म्यूटेशंस के गहराते संकट पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि कोविड-19 फैलाने वाला वायरस सार्स-सीओवी-2, जब शुरू हुआ था तो आर वैल्यू 2.5-3 थी, लेकिन अब ये बढ़कर 5-8 तक पहुंच गई है, जो संक्रामकता का कहीं ऊंचा स्तर है. इसकी वजह से हर्ड इम्यूनिटी तक पहुंचने की सीमा भी 67 प्रतिशत से बढ़कर 80-90 प्रतिशत हो जाती है.
इसलिए, टीकाकरण में जितना अधिक समय लगेगा, हर्ड इम्यूनिटी तक पहुंचने में, उतने ही ज़्यादा लोगों को कवर करना होगा.
‘संक्रमण मृत्यु दर पर सरकारी दावे को मत मानिए’
मुखर्जी ने कहा कि उन्हें भारत सरकार के, संक्रमण मृत्यु दर यानी संक्रमित लोगों के मरने की दर के, 0.05 प्रतिशत के अनुमान पर विश्वास नहीं है. उन्होंने अनुमान लगाया कि 15 मई तक, भारत में छह के कारक से, मामले कम बताए जा रहे थे, और हर 30 पर छह मौतें स्वीकार की जा रहीं थीं.
‘भारत में 15 मई तक, कम बताने का ये फैक्टर 6 के क़रीब है. 15 मई को मौतों की अधिकारिक संख्या 2,70,000 थी. कुल संख्या का हमारा जो अनुमान है, वो 12.5 लाख का है. अब मौतों की अधिकारिक संख्या 400,000 है, इसलिए अस्ली अनुमान 20-22 लाख के क़रीब होगा. हमने देखा है कि 15-20 मामलों में से केवल एक केस रिपोर्ट किया गया. जब भारत ने 3 करोड़ केस रिपोर्ट किए, तो वास्तव में ये संख्या 60 करोड़ थी.’
प्रोफेसर मुखर्जी ने कहा कि भारत सरकार का 0.05 प्रतिशत संक्रमण मृत्यु का अनुमान, सही तस्वीर पेश नहीं करता, और ये ‘बेईमानी’ है. उन्होंने कहा, ‘देखिए, ये एक अनुपात है इसलिए कोई ये नहीं कह सकता, कि अंश अखंड है जबकि विभाजक बढ़ा हुआ है. हमने मामलों और मौतों की संख्या दोनों में, कम बताने का कारक शामिल किया है, और 0.24 प्रतिशत की संक्रमण मृत्यु दर पर पहुंचे हैं, जो 0.27 प्रतिशत वैश्विक मध्यम आईएफआर (संक्रमण मृत्यु दर) के बराबर है’.
ये पूछे जाने पर कि सार्स-सीओवी-2, दुनिया को कितने समय तक बेचैन रखेगा, उन्होंने कहा कि 2022 अभी भी, अप्रत्याशित साल साबित हो सकता है, और शायद 2023 वो साल होगा, जब दुनिया आख़िरकार वायरस के साथ जीना सीख जाएगी.
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