नई दिल्ली: 25 वर्षों में पहली बार अकेले दम पर पंजाब चुनावों का सामना करने जा रही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), सूबे में 2022 विधान सभा चुनावों से पहले, कुछ जाने-पहचाने सिख चेहरों को, अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है.
बीजेपी पंजाब में आगे बढ़ने के लिए, तब से जद्दो-जहद कर रही है, जब पिछले साल सितंबर में, उसके सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने, केंद्र सरकार द्वारा पारित तीन नए कृषि क़ानूनों के विरोध में, पार्टी से नाता तोड़ लिया था. इसके साथ ही 23 सालों से चले आ रहे रिश्ते का अंत हो गया- दोनों ने सबसे पहले 1997 में, पंजाब असैम्बली चुनावों के लिए हाथ मिलाया था.
बीजेपी के सामने अब पंजाब में मुख्य रूप से तीन बड़ी समस्याएं हैं. पार्टी कृषि क़ानूनों के मुद्दे पर, सूबे में किसानों के रोष का सामना कर रही है, जिनमें अधिकांश सिख हैं. चुनाव क्षेत्र के स्तर पर, पार्टी के पास सिख चेहरे नहीं हैं, चूंकि इस बार पार्टी सभी 117 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है, जबकि पहले वो केवल 23 पर लड़ती थी, जो एसएडी से गठबंधन के समय, इसका हिस्सा होता था.
बीजेपी के पास कोई ऐसा दमदार नेता भी नहीं है, जो कांग्रेस के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह, और एसएडी के प्रकाश सिंह बादल का मुक़ाबला कर सके, जो राज्य की दो क़द्दावर राजनीतिक शख़्सियतें हैं.
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पार्टी पंजाब में सक्रिय हुई
ऐसी धुंधली संभावनाओं को देखते हुए, बीजेपी आलाकमान ने हाल ही में, राज्य के नेताओं को विचार विमर्श के लिए दिल्ली बुलाया, ताकि विधान सभा चुनावों के लिए रणनीति तय की जा सके.
सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि गृहमंत्री अमित शाह ने, बीजेपी नेताओं को निर्देश दिया है, कि हर चुनाव क्षेत्र में 300-400 समर्पित पार्टी कार्यकर्त्ताओं की पहचान करें, और ऐसे सिख बुद्धिजीवियों पर भी नज़र रखें, जिन्हें पार्टी में शामिल किया जा सकता हो.
16 जून को पार्टी ने कई सिख बुद्धिजीवियों को, अपने परिवार में शामिल किया था, जिनमें गुरु काशी विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस-चांसलर जसविंदर सिंह ढिल्लन, और वकील हरिंदर सिंह कहलॉन, जगमोहन सिंह सैनी, तथा निर्मल सिंह मोहाली शामिल हैं. ये सब केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, और महासचिव दुष्यंत कुमार गौतम की मौजूदगी में, पार्टी में शामिल हुए.
पंजाब बीजेपी महासचिव सुभास शर्मा ने दिप्रिंट से कहा, कि हालांकि पार्टी में शामिल होने वाले ये लोग राजनेता नहीं हैं, लेकिन अपने अपने क्षेत्रों में, प्रभावशाली और सफल हस्तियां हैं.
शर्मा ने कहा, ‘ये नए सिख चेहरे हैं जो इस धारणा को तोड़ेंगे, कि सिख प्रधानमंत्री (नरेंद्र मोदी) के साथ ख़ुश नहीं हैं. पार्टी राज्य में ऐसे जाने-माने चेहरों की तलाश कर रही है, जैसे प्रोफेसर्स, वाइस-चांसलर्स, डॉक्टर्स, और एडवोकेट्स वग़ैरह’.
एक दूसरे बीजेपी नेता ने, जो अपना नाम छिपाना चाहते थे, कहा कि उनकी पार्टी दूसरे दलों के असंतुष्ट नेताओं को भी, अपने यहां समायोजित कर सकती है.
पंजाब के नेता ने कहा, ‘हमने किसानों के आंदोलन और हरसिमरत कौर के कैबिनेट छोड़ने की अपेक्षा नहीं की थी. अब हमें इस बंटी हुई स्थिति में चुनाव लड़ने हैं. ये और ज़्यादा मुश्किल हो जाएगा, अगर हम किसानों के गतिरोध को चुनावों से पहले नहीं सुलझाते. लेकिन राष्ट्रीय पार्टी के नाते, हमारे पास ये भी अवसर है, कि अपनी संगठनात्मक ताक़त को मज़बूत करें’.
‘2019 लोकसभा चुनावों में, पंजाब में हमारा वोट शेयर 9 प्रतिशत था. आने वाले दिनों में, दूसरी पार्टियों में भी काफी दल-बदल होगा. जिन उम्मीदवारों को टिकट नहीं मिलेंगे, वो बीजेपी का दरवाज़ा खटखटाएंगे’.
पार्टी का सिखों पर फोकस
1997 के बाद से, पार्टी को सिख वोटों के लिए, कभी अकेले नहीं लड़ना पड़ा है, जो एसएडी की ताक़त थी.
इसकी बजाय बीजेपी ने पंजाब में, अपना जातीय गणित बेहतर करने के लिए, दलित चेहरों पर दांव लगाया था. बीजेपी के पंजाब दलित नेताओं में, केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री, और होशियार पुर से सांसद सोम प्रकाश, और पूर्व केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री, तथा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के वर्तमान अध्यक्ष, विजय सांपला शामिल हैं.
इसलिए, जहां अकाली दल जाट सिखों पर फोकस रखता था, जो कुल आबादी का 25 प्रतिशत हैं, वहीं बीजेपी शहरी क्षेत्रों में अपने पारंपरिक हिंदू वोट को बनाए रखते हुए, दलितों के बीच अपनी जगह बनाने में लगी रहती थी, जो कुल आबादी का क़रीब 32 प्रतिशत हैं.
बीजेपी अब सिखों ख़ासकर किसानों के ग़ुस्सों को शांत करने में लगी है.
सूत्रों ने कहा कि प्रदेश इकाई से, हर विधान सभा चुनाव क्षेत्र में, 150 प्रमुख सिख परिवारों को, एक पुस्तिका बांटने के लिए कहा गया है, जिसे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने, जनवरी में किसान आंदोलन के चरम पर तैयार किया था.
सूत्रों ने कहा कि पुस्तिकाएं देने के लिए, ज़िलों के पार्टी नेता व्यक्तिगत रूप से, परिवारों के पास जाएंगे और व्यापक आउटरीच के लिए, तस्वीरों को सोशल मीडिया पर अपलोड करेंगे, ताकि इस धारणा का खंडन किया जा सके, कि किसान बीजेपी के खिलाफ हैं.
पुस्तिका में पीएम नरेंद्र मोदी के सिखों के साथ, विशेष रिश्ते का उल्लेख किया गया है. इसमें वो सामग्री भी है, जिसमें 1984 के सिख-विरोधी दंगों में कांग्रेस की भूमिका, मोदी के कार्यकाल में करतारपुर कॉरिडोर का विकास, और 2019 में गुरु नानक की 550 वीं वर्षगांठ मनाने के, केंद्र सरकार के प्रयासों का, विस्तार से वर्णन किया गया है.
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