इंफाल: 13 मई को जब पुलिस मणिपुर इंफाल में पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम के घर में घुसी, तो उनके 7 साल, 3 साल, और 9 महीने के तीन बच्चे दहशत में आ गए.
वांगखेम की पत्नी रंजीता ने कहा, ‘हमारा सबसे बड़ा बच्चा फौरन दूसरे बच्ची को चुप कराने लगा, जिसने रोना शुरू कर दिया था. हमारा तीसरा बच्चा अभी बहुत छोटा है. मेरे लिए अब ये कोई चौंकाने वाली बात नहीं है’.
क़रीब 5 किलोमीटर दूर, राजनीतिक कार्यकर्ता इरेंद्रो लेचोम्बम के घर में भी पुलिस अधिकारियों की टीम इसी तरह अंदर घुस आई, जिन्होंने कथित तौर पर उनकी बुज़ुर्ग मां के साथ मारपीट की और लेचोम्बम को खींचते हुए उसके कमरे से बाहर ले गए. उन्हें रात के कपड़े बदलने का भी मौक़ा नहीं दिया.
लेचोम्बम की मां एल लैण्ढोनी ने कहा, ‘वो किसी से नहीं रुके. कितनी भी याचना से नहीं माने. वो ऐसे बर्ताव कर रहे थे, जैसे लेचोम्बम कोई बड़ा अपराधी हो. उसने गिरफ्तारी का बिल्कुल विरोध नहीं किया. उन्होंने मुझे मारा और धक्का देकर हटा दिया. उसके बाद 15 जिन तक मुझे सांस की परेशानी रही’.
वांगखेम और लेचोम्बम को तब गिरफ्तार किया गया, जब बीजेपी पदाधिकारियों ने उनकी फेसबुक पोस्टों की शिकायत दर्ज की, जिनमें कहा गया था कि ‘गाय का गोबर और गाय का पेशाब’ कोविड-19 का इलाज नहीं हैं. इसका संदर्भ ये था कि प्रदेश बीजेपी नेता एस. टिकेंद्र सिंह की कोविड से मौत हो गई थी.
लेचोम्बम ने लिखा था, ‘कोरोना का इलाज गाय का गोबर और गाय का पेशाब नहीं है. इसका इलाज साइंस और कॉमन सेंस है. प्रोफेसर जी आपकी आत्मा को शांति पहुंचे’.
वांगखेम ने लिखा था, ‘सांथी संयुंग ना याद्राबो, ओह!!!आरआईपी #राशिकांग कांग्येत हायेंग एंगा चानी’, जिसका मोटे तौर पर अनुवाद होता है ‘गाय के गोबर, गाय के पेशाब ने काम नहीं किया’.
उनके भाग्य का फैसला उस समय हो गया, जब 17 मई को इंफाल पश्चिम के ज़िला मजिस्ट्रेट टीएच. किरन कुमार ने कड़े राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) के तहत, इस आधार पर उनकी गिरफ्तारी के आदेश दे दिए कि उनकी पोस्टों से ‘सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने में ख़तरा पैदा हो सकता है’.
40 दिन से अधिक हो गए हैं, और दोनों बिना किसी ट्रायल के इंफाल की सजीवा जेल में सड़ रहे हैं. ज़िला मजिस्ट्रेट और राज्य सरकार दोनों की ओर से आरोपों को रद्द करने की गुज़ारिश ठुकरा दी गई.
अपील का रास्ता तंग हो रहा है और दोनों के परिवार केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रहे हैं, और अगर वहां से राहत नहीं मिली, तो उसके बाद वो मणिपुर उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाएंगे
रंजीता ने कहा, ‘अब करने या कहने के लिए और क्या बचा है? हम इंतज़ार करेंगे, और हम क़ानून का पालन करेंगे. और हमें उम्मीद है कि क़ानून हमारी मदद को आगे आएगा’.
मणिपुर सरकार का कहना है कि उसका इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है.
मणिपुर के सूचना एवं जनसंपर्क मंत्री बिस्वजीत सिंह ने दिप्रिंट से कहा, ‘वो ज़िले का एक अधिकारी था, जिसने केस के महत्व को देखते हुए, उनके खिलाफ कार्रवाई की है’. उन्होंने आगे कहा, ‘सरकार ने पूरे मामले का संज्ञान लिया है; उसकी फाइल सीएम के पास लंबित है’.
दिप्रिंट ने कॉल्स और संदेशों के ज़रिए डीएम किरन कुमार से बार-बार संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन इस रिपोर्ट के छपने तक उनका कोई जवाब नहीं मिला था.
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एक गहरी बीमारी
ये गिरफ्तारियां मणिपुर में एक ज़्यादा गहरी बीमारी का हिस्सा हैं- पूरे राज्य में अभिव्यक्ति की आज़ादी के खिलाफ कार्रवाई महसूस की जा सकती है.
वेबसाइट आर्टिकल 14 की एक रिपोर्ट में पता चला कि अकेले अप्रैल 2020 में मणिपुर सरकार ने कोविड-19 संकट के इसके प्रबंधन के खिलाफ आलोचनाओं को दबाने के लिए देशद्रोह तथा अन्य क़ानूनों के तहत 13 मामले दर्ज किए थे.
ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में भी, मणिपुर देश में सबसे आगे है, जहां 2015 और 2019 के बीच, 1,786 मामले दर्ज किए गए. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार 2017 में राज्य में छह लोगों को राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून के तहत हिरासत में लिया गया.
दिप्रिंट के द्वारा देखे गए दस्तावेज़ों से पता चलता है कि वांगखेम और लेचोम्बम के अलावा मणिपुर पुलिस ने अकेले जून 2021 में एनएसए के तहत कम से कम दो और गिरफ्तारियां कीं.
इंफाल स्थित एक मानवाधिकार संगठन, ह्यूमन राइट्स अलर्ट के निदेशक बबलू लोइतोंगबम ने कहा, ‘सब कुछ मुख्यमंत्री (एन बीरेंद्र सिंह) और सत्तारूढ़ पार्टी की सनक के हिसाब से किया जाता है’.
‘विचारों की अभिव्यक्ति पर हुई कार्रवाइयों का नतीजा, निश्चित रूप से स्वयं सेंसरशिप के रूप में सामने आया है. सिर्फ मुठ्ठी भर लोग हैं, जो बदले से बेख़ौफ होकर अपनी आवाज़ उठाते हैं’.
इंटरनेट स्वतंत्रता को आगे बढ़ाने में लगी एक वैश्विक ग़ैर-मुनाफा संस्था ओपन टेक्नॉलजी फंड्स की 2020 में की गई एक स्टडी में दावा किया गया कि मणिपुर के पत्रकारों को ‘रसूख़दार लोगों और राजनेताओं से’ लगातार धमकियां मिलती हैं.
स्टडी में कहा गया, ‘मणिपुर प्रेस के सदस्य अपनी जान और संपत्ति को लेकर लंबे समय से क़ानूनी बाधाओं और धमकियों का सामना करते आए हैं. ये अभी भी हो रहा है’. उन्होंने आगे कहा, ‘अब उन्हें जो ख़तरा है, वो मुख्य रूप से रसूख़दार लोगों और राजनेताओं तथा ग़ैर-राज्य अभिकर्ताओं (जैसे भूमिगत समूहों) की ओर से है. समय-समय पर प्रेस के सदस्यों को, राज्य के नियंत्रण तथा सेंसरशिप का भी सामना करना पड़ता है’.
इस साल मार्च में मुख्यमंत्री ने बोलने की आज़ादी के ‘दुरुपयोग’ के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा, ‘ऐसे मामलों में जहां सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था का उल्लंघन होता है, वहां क़ानून स्वत: अपना काम करेगा’.
वांगखेम और लेचोम्बम दोनों मणिपुर में बीजेपी सरकार के मुखर आलोचक माने जाते हैं और इसके नतीजे में उनके खिलाफ कई मुक़दमे दर्ज किए गए हैं. वांगखेम के खिलाफ पहली बार 2018 में एनएसए लगाया गया, जब उन्होंने राज्य में स्वतंत्रता सेनानी रानी लक्ष्मीबाई का जयंती समारोह मनाए जाने का विरोध किया और एक फेसबुक पोस्ट में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों का अपमान किया.
वांगखेम एक पत्रकार हैं, जो एक स्वतंत्र न्यूज़ वेबसाइट फ्रंटियर मणिपुर के साथ जुड़े हैं, जिसके मिशन बयान में कहा गया है कि वो तथ्यों को अपने पाठकों के सामने लाने से नहीं डरती, ‘भले ही सत्ता में बैठे लोग असली मुद्दों को छिपाने या उन पर पर्दा डालने की कोशिश करें’.
फ्रंटियर के संपादक और कार्यकारी संपादक, धीरेन सदोकपम और पाओजेल चाओबा दोनों को इस साल जनवरी में देशद्रोह का आरोप लगाकर, यूएपीए के तहत गिरफ्तार कर लिया गया, चूंकि उन्होंने अपनी वेबसाइट पर मणिपुर में उग्रवाद पर एक विवादास्पद संपादकीय प्रकाशित किया था.
लेचोम्बम- जिन्होंने विश्वविख्यात मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला के साथ मिलकर 2016 में पीपुल्स रिसर्जेंस एंड जस्टिस अलायंस का गठन किया था- के खिलाफ भी कई मुक़दमे दायर किए गए. पिछले साल उन पर देशद्रोह का आरोप लगाया गया, जब उन्होंने बीजेपी विधायक और मणिपुर के नाम के राजा, सनाजाओबा लेशेम्बा को ‘एक नौकर का बेटा’ कह दिया था.
लेचोम्बम की बहन अनुपमा ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं हमेशा दो बार सोचती हूं कि क्या पोस्ट करूं, क्या न करूं. और हमारे आसपास के लोग भी यही सोच रहे हैं’.
रंजीता ने कहा कि उन्होंने उम्मीद छोड़ दी थी कि उनके आसपास के लोग मुखर होकर उनका सार्वजनिक रूप से समर्थन करेंगे.
उन्होंने कहा, ‘कुछ लोग हैं जो मदद के लिए आगे आए हैं और जिन्होंने सहायता की है. लेकिन एक डर की मानसिकता व्याप्त है. अधिकांश लोग इतने ज़्यादा सतर्क रहते हैं कि बोल ही नहीं पाते’.
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बोलने की आज़ादी
वांगखेम और लेमोम्बम के ख़िलाफ शिकायतें प्रदेश बीजेपी महासचिव मीतेइ प्रेमामनंदा और थूबल ज़िला अध्यक्ष युमनम कुमारजीत सिंह ने, फेसबुक पर दोनों की पोस्ट आने के मिनटों के अंदर दर्ज करा दी गईं थीं.
लेचोम्बम ने तो बहन के ज़ोर देने पर अपना स्टेटस भी डिलीट कर दिया था लेकिन उन्हें फिर भी गिरफ्तार कर लिया गया. उनकी बहन अनुपमा ने कहा, ‘मुझे मालूम था कि कुछ न कुछ होगा. हमारे चेतावनी देने के बाद उसने आख़िर में उसे डिलीट कर दिया लेकिन ज़ाहिर है कि उससे फायदा नहीं हुआ’.
बहरहाल, आईपीसी की धारा 153-ए (दो गुटों के बीच वैमनस्य बढ़ाना और समरसता को हानि पहुंचाने वाले काम करना) तथा 505 (बी)(2) (लोगों या लोगों के किसी वर्ग के बीच इरादतन डर या अलार्म फैलाना, जिससे प्रेरित होकर कोई व्यक्ति, राज्य या सार्वजनिक शांति के खिलाफ किसी अपराध को अंजाम दे) के तहत मुक़दमा दर्ज कर दिया गया.
दोनों के वकील विक्टर चोंगथाम ने दिप्रिंट को बताया, ‘पहला मामला 14 से 17 मई के बीच, कोर्ट के पुलिस कस्टडी देने का था, जब सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश है, जिसमें कहा गया है कि महामारी के चलते ऐसे मामलों में पुलिस कस्टडी नहीं दी जानी चाहिए, जिनमें सात साल से कम की सज़ा का प्रावधान हो’.
वकील ने बताया कि 17 मई को, इंफाल वेस्ट के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने, दोनों को ज़मानत दे दी थी, लेकिन पुलिस ने आदेश के कुछ ही घंटों के भीतर, आनन-फानन में उन पर एनएसए लगा दी.
चोंगथम ने कहा, ‘कोर्ट के आदेशों पर अमल होने से पहले ही पुलिस ने आगे बढ़कर, उन्हें एनएसए के तहत गिरफ्तार कर लिया. आमतौर पर, एनएसए के लिए आवेदन तब दिया जाना चाहिए जब ज़मानत पर सुनवाई चल रही हो’.
उन्हें फिर से गिरफ्तार करते समय, पुलिस के पास सिर्फ डीएम का दस्तख़त किया हुआ आदेश था और बाद में 19 मई को उनकी गिरफ्तारी के आधार पेश किए गए.
डीएम के अनुसार, पोस्टों से साबित होता था कि दोनों, ‘कट्टर’ और ‘आदी’ अपराधी थे, जिनके ‘संभावित रूप से बड़े पैमाने पर धार्मिक घृणा, हिंसा, दंगे आदि फैलाने की आशंका थी’, और वो ‘शत्रुता तथा दुर्भावना’ फैला रहे थे.
चोंगथम ने कहा, ‘इन बयानों में ऐसा कुछ नहीं है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरा पैदा होता हो. ऐसे आदेश विचारों की अभिव्यक्ति के संवैधानिक अधिकार के लिए ख़तरा हैं’.
ज़िला मजिस्ट्रेट तथा राज्य के गृह विभाग से, जिसके प्रमुख मुख्यमंत्री हैं, इस आधार पर अपीलें की गईं कि इन पोस्टों से सुरक्षा को ख़तरे का मामला नहीं बनता, बल्कि ये सिर्फ मज़ाक में थीं और क़ानून के ख़िलाफ नहीं थीं. दोनों को ख़ारिज कर दिया गया और उन्हें ‘योग्यता से रहित’ पाया गया.
एक अंतिम अपील केंद्रीय गृहमंत्री से की गई है, जिसके स्वीकार न होने पर आदेश को मणिपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी जाएगी.
दिप्रिंट ने गृह मंत्रालय के प्रवक्ता नितिन वाकंकर से लिखित संदेश के ज़रिए संपर्क किया, लेकिन उन्होंने कहा कि ‘अभी तक कोई जवाब नहीं था’.
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